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भारत में आपदा प्रबंधन की चुनौतियाँ

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त)
गुरु, 14 अक्टूबर 2021   |   7 मिनट में पढ़ें

प्रत्येक वर्ष 13 अक्टूबर को ऐसे दिवस के रूप में मनाया जाता है कि कैसे दुनिया भर के लोग और समुदाय आपदाओं के प्रति अपने जोखिम को कम कर रहे हैं और उनके सामने आने वाले जोखिमों पर अंकुश लगाने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ा रहे हैं। भारत में हम इस अवसर का उपयोग एक ऐसे क्षेत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए करें जिसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। आपदा प्रबंधन (Disaster Management) एक ऐसा क्षेत्र है जो लगभग 16 साल पहले अपने पेशेवर अवतार में आया। इसके आगमन की शुरुआत कैसे हुई और आज इसकी स्थिति क्या है, यह कुछ ऐसी जानकारी है जिसके बारे में जनता को अवगत होना चाहिए।

वर्ष 1999 में ओडिशा में आये चक्रवात, बीओबी 06 के कारण 10,000 से अधिक लोगों की मौत हुई और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गई। एक राष्ट्र के रूप में हम केवल इतना कर सकते थे कि उस संकट के समय सेना को बुलाएं और राहत के लिए कुछ संसाधन संग्रह करें। उस समय हम केवल ‘प्रतिक्रिया’ ही कर सकते थे।

दूसरे शब्दों में, हमने एक आपदा के आने का इंतजार किया और फिर उस पर प्रतिक्रिया दी। वही हमारी आपदा प्रबंधन की नीति और सिद्धांत थे। फिर गुजरात में भूकंप आया जिसमें 20,000 लोग मारे गए और दस लाख लोग बेघर हो गए। तब जाकर राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में कुछ आंदोलन हुआ और आबदा प्रबंधन को राष्ट्रीय प्राथमिकता देते हुए इसको पेशागत रूप में शुरू किया गया।

सरकार ने अगस्त 1999 में ओडिशा चक्रवात के बाद एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति और गुजरात भूकंप के बाद एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया, जो आपदा प्रबंधन योजनाओं की तैयारी पर सिफारिशें करने और प्रभावी शमन तंत्र का सुझाव देने के लिए थी।

अंततः 26 दिसंबर 2004 की सुनामी ने सरकार को दिसंबर 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू करने के लिए बाध्य किया। इसके तहत भारत में आपदा प्रबंधन पर एक एकीकृत दृष्टिकोण तैयार करने के लिए प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनआपदा प्रबंधन ए) और संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसआपदा प्रबंधन ए) के गठन की परिकल्पना की गई।

आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी कृषि मंत्रालय से गृह मंत्रालय (एमएचए) में स्थानांतरित हो गई। एनडीएमए और 36 एसडीएमए के अलावा, 750 जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) की स्थापना की गई थी, जिसके चेयरमैन के रूप में जिला के कलेक्टर (जिले के प्रमुख) कार्यरत थे। इस अवधि में आपदा प्रबंधन  को एक पेशेवर दृष्टिकोण देने के लिए दो अन्य महत्वपूर्ण संगठन अस्तित्व में आए। पहला राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम ) था, जिसे 2003 में सभी अवधारणाओं के प्रशिक्षण और विकास के लिए स्थापित किया गया था। आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत इसे आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में मानव संसाधन विकास, क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, अनुसंधान, दस्तावेजीकरण और नीतिगत समर्थन के लिए नोडल जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।

दूसरा है नेशनल डिसास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) है। एनडीआरएफ की 12 पूर्ण इकाइयों को स्थापित  किया गया, प्रत्येक यूनिट में कम से कम एक सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स (सीएपीएफ) पर आधारित थी। इन इकाइयों को चलाने वाले कर्मी प्रशिक्षित जवानों के अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए सात साल तक प्रतिनियुक्ति पर रहते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के क्षेत्रीय केंद्रों की तर्ज पर एनडीआरएफ की 12 इकाइयों को बढ़ाकर अब 16 किया जा रहा है ताकि महत्वपूर्ण खतरे वाले क्षेत्रों में जल्द से जल्द कार्रवाई संभव हो सके। नागपुर स्थित नेशनल कॉलेज फॉर सिविल डिफेंस को एनडीआरएफ अकादमी में परिवर्तित कर दिया गया है।

एनडीएमए रोकथाम, शमन और तैयारी की नीति के विकास पर अमल करता है। केंद्र सरकार सभी सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों और लोगों की भागीदारी के निरंतर और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं से होने वाली क्षति और विनाश को कम करने के लिए राष्ट्रीय संकल्प को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। एक सुरक्षित, आपदा प्रतिरोधी और गतिशील भारत के निर्माण के लिए टेकनॉलॉजी-संचालित, सक्रिय, बहु-खतरा और बहु-क्षेत्रीय रणनीति को अपनाकर इसे पूरा करने की योजना है। इसमें देश के किसी भी हिस्से में आपदा आने पर उसे बेहतर तरीके से निर्माण करने की अवधारणा की भी परिकल्पना की गई है। एनडीएमए एक प्रतिक्रिया संगठन नहीं है क्योंकि प्रतिक्रिया गृह मंत्रालय और उसके आपदा प्रबंधन  डिवीजन के अंतर्गत आती है। आपदा प्रबंधन के हर दूसरे पहलू जिसमें सिद्धांत, प्रौद्योगिकी का विकास, बजट, योजना और प्रशिक्षण शामिल है, को एनडीएमए द्वारा निपटाया जाता है।

भारत में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सफलता का एक उत्कृष्ट उदाहरण नेशनल साइक्लोन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट (एनसीआरएमपी) है। इस परियोजना ने 13 चक्रवात संभावित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) की पहचान की है, जिनमें विभिन्न स्तरों के जोखिम की संभावनाएं हैं। एनसीआरएमपी का परियोजना विकास उद्देश्य बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रसार प्रणाली के माध्यम से आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों की क्षमता वृद्धि, लोगों को बाहर निकालकर आपातकालीन आश्रय तक पहुंचाना, चक्रवात और अन्य मौसम संबंधी खतरों के लिए तटीय समुदायों के जोखिम को कम करना है। तूफान, बाढ़ और अन्य आपदा के समय केंद्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर डीआरएम क्षमता को मजबूत करना भी इसमें शामिल है।

विश्व बैंक के सहयोग से परियोजना के तहत संवेदनशील तटीय जिलों में बुनियादी ढांचे का निर्माण किया गया है और पर्याप्त पूर्व चेतावनी के साथ चक्रवातों से प्रभावित लोगों की संख्या को कम करने में सफलता मिली है। वर्ष 2020 में भी जब महामारी चरम पर थी तब अम्फान चक्रवात में ओडिशा और पश्चिम बंगाल में केवल 128 लोगों की जानें गयीं जबकि 1999 में ऐसे ही चक्रवात में हजारों लोगों की जान गंवानी पड़ी थी।

भारत ने अपनी आपदा प्रबंधन प्रणाली को औपचारिक रूप देने के साथ ही आपदा प्रबंधन के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में कूटनीतिक प्रगति की। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2016 में 7वें एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान अपना दस सूत्री एजेंडा दिया, जो भारत में आपदा प्रबंधन के लिए एक आभासी दस्तावेज बन गया है।

अपने गृह राज्य गुजरात में आपदाओं से निपटने में प्रधानमंत्री के व्यापक अनुभव को देखते हुए यह उम्मीद की जा रही थी कि वह इस क्षेत्र में एक अलग दृष्टिकोण लाएंगे। उन्होंने तैयारी, जोखिम शमन और पूर्वानुमान के मुद्दों पर जोर दिया। उन्होंने लैंगिक संवेदनशीलता और सोशल मीडिया के उपयोग को न केवल प्रारंभिक चेतावनी के लिए बल्कि सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) के लिए उपयोग पर बल दिया। उन्होंने आपदा प्रबंधन मुद्दों पर काम करने के लिए विश्वविद्यालयों का एक नेटवर्क तैयार करने जैसे नवीन विचारों को पेश किया।

दस सूत्रीय एजेंडा में डिसास्टर रिस्क रिडक्शन 2015-2030 के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क जिसमें किसी भी नई आपदा को रोकने और मौजूदा आपदा जोखिमों को कम करने के लिए कार्रवाई हेतु स्पष्ट लक्ष्यों और प्राथमिकताओं की रूपरेखा तैयार की जाती है। सेंडाई फ्रेमवर्क को 18 मार्च, 2015 को सेंडाई, जापान में डिसास्टर रिस्क रिडक्शन पर संयुक्त राष्ट्र के तीसरे विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था।

कोलिशन फॉर डिसास्टर रीजिलेंट इंफ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई) भारत सरकार की एक नवीनतम पहल है। सीडीआरआई को 2019 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर लॉन्च किया गया था। इसके सदस्य 25 देश और सात अंतर्राष्ट्रीय संगठन हैं; इसमें शामिल होने वाले सदस्यों का विस्तार हो रहा है। जलवायु और आपदा जोखिमों के लिए नई और मौजूदा बुनियादी ढांचा प्रणालियों को बढ़ावा देने सहित सतत विकास का समर्थन करने के उद्देश्य से इसे स्थापित किया गया है। शब्द “रीजिलेंट” का अर्थ है इस तरह का बुनियादी ढांचा जो कंपन को अवशोषित कर अपने मूल कार्य और संरचनात्मक क्षमता को बनाए रखे।

एनडीएमए द्वारा समय-समय पर चलाए जा रहे विभिन्न आईईसी कार्यक्रमों के तहत आपदा प्रबंधन के बारे में जागरूकता का प्रसार सुनिश्चित किया जाता है। हालांकि, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी) की तैयारी के माध्यम से आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जाती है। इसके आधार पर भारत सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को अपनी आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयार करनी होती हैं और इसके लिए एनडीएमए से मार्गदर्शन लेना होता है। प्रत्येक एसडीएमए और डीडीएमए को अपने स्तर पर समान रूप से योजनाएँ तैयार करने की आवश्यकता होती है।

कई राज्यों द्वारा इंसीडेंट रिस्पांस सिस्टम (आईआरएस) को अपनाने से प्रतिक्रिया और जिम्मेदारी की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने में मदद मिली है। इस प्रकार तैयारी और जोखिम शमन प्रक्रिया का हिस्सा बन गया है। राज्यों और जिलों को अपने आईआरएस को सूचित करने की आवश्यकता है ताकि सभी संबंधित लोगों को जिम्मेदारियों और प्रक्रियाओं के बारे में स्पष्ट रूप से पता चल सके। एनडीएमए प्रक्रियाओं में शामिल सभी कर्मियों का प्रशिक्षण सुनिश्चित करता है। यहां तक कि कोरोनावायरस महामारी के दौरान भी प्रत्येक राज्य में ऑनलाइन अभ्यास को अपनाते हुए जागरूकता फैलायी गयी। एनडीआरएफ द्वारा कार्यान्वित की जाने वाली एक नई विधि अब हर तीन साल पर कम से कम एक बार हर जिले में अपनायी जाती है जिसके तहत शारीरिक मॉक एक्सरसाइज (एमई) किया जाता है। कई गैर सरकारी संगठनों सहित सभी स्टेक होल्डर ऐसे अभ्यासों में भाग लेते हैं।

सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के स्तर पर दो अन्य मुद्दे महत्वपूर्ण हैं। जिला स्तर पर एक अत्याधुनिक राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र (एसईओसी) स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया जा सकता है। यह सभी आपदा आपात स्थितियों के लिए वार रूम और सूचना और प्रतिक्रिया के लिए संपर्क का एकल बिंदु बन जाता है।

इमरजेंसी रिस्पांस सपोर्ट सिस्टम (ईआरएसएस) नामक एक परियोजना शुरू की जा रही है, जिसके तहत किसी भी सुरक्षा या आपदा से संबंधित आपात स्थिति के लिए, एक अखिल भारतीय एकल संपर्क नंबर (112) होगा जिसमें आपदा से संबंधित कॉल अंततः संबंधित एसईओसी तक पहुंच जाएगी। साथ ही टेक्नॉलॉजी एक ऐसी परियोजना को सक्षम करने जा रही है जिसके तहत विभिन्न एजेंसियों द्वारा प्राप्त सुनामी, चक्रवात, बाढ़ या यहां तक कि लाइटनिंग जैसी आपदा की प्रारंभिक चेतावनी को एक ऐप के माध्यम से जीआईएस टेक्नॉलॉजी के माध्यम से अभीष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित सभी मोबाइल नंबरों तक तुरंत चेतावनी के रूप में पहुंचाया जाता है।

विदेशी सहयोग से पड़ोसी देशों में भी आपदा आपात स्थितियों में रिस्पॉन्स के लिए एनडीआरएफ की तत्परता से भारत ने एक राजनयिक प्रभाव हासिल किया है। पूर्व चेतावनी की अवधारणा अंततः पड़ोसी देशों तक पहुंचेगी और समय के साथ और अधिक लाभदायक साबित होगी। आईएमडी पहले से ही पीओके और गिलगिट बलूचिस्तान क्षेत्र के लिए पूर्वानुमान जारी कर रहा है, जिससे इन क्षेत्रों पर भारत का दावा बढ़ रहा है।

यह ध्यान देने की जरूरत है कि प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिए सबसे अच्छी प्रतिक्रिया पहले रिस्पॉन्स करने वालों पर होती है जो आमतौर पर स्थानीय समुदाय के लोग होते हैं। इसके आधार पर एनडीएमए ने अब आपदा प्रबंधन के लिए जिम्मेदारियों को निभाने के लिए 350 जिलों में 5500 सामुदायिक स्वयंसेवकों को शुरू में प्रशिक्षित करने के लिए आपदा मित्र और आपदा सखी योजना की स्थापना की है। इनके साथ राष्ट्रीय कैडेट कोर और अन्य स्वैच्छिक संगठनों को शामिल करने से आपदा के समय तत्काल रिस्पॉन्स को कहीं अधिक पेशेवर और कुशल बना देगा।

अंत में इस महत्वपूर्ण दिवस पर यह भी जानना आवश्यक है कि भारत में आपदा प्रबंधन में शामिल लोगों और संस्थानों की सेवाओं को सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार के माध्यम से सम्मानित भी किया जा रहा है। ऐसे तीन पुरस्कार हर साल संस्थानों या व्यक्तियों को प्रदान किये जाते हैं। संस्थान को चयनित किये जाने की स्थिति में 51 लाख रुपये और किसी व्यक्ति विशेष के चुने जाने पर 5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

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लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय सेना के श्रीनगर कोर के पूर्व कमांडर रहे हैं। वह रेडिकल इस्लाम के इर्द-गिर्द घूमने वाले मुद्दों पर विशेष जोर देने के साथ एशिया और मध्य पूर्व में अंतर-राष्ट्रीय और आंतरिक संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वह कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और रणनीतिक मामलों और नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमने वाले विविध विषयों पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में बड़े पैमाने पर बोलते हैं।

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