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क्या तालिबान को मान्यता दिए बिना दुनिया अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर भुखमरी को टाल सकती है?

भाषा एवं चाणक्य फोरम
बुध, 10 नवम्बर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

-अर्थव्यवस्था के 30% तक घटने की आशंका है, 2022 के मध्य तक 97% अफगान गरीबी की गिरफ्त में हो सकते हैं

मेलबर्न/जिलॉन्ग, नौ नवंबर (द कन्वरसेशन) : तालिबान के हाथों अफगानिस्तान सरकार के पतन के बाद दुनिया के सामने कुछ सीमित विकल्प ही बचे हैं। हाल के सप्ताहों में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने देश में तेजी से बढ़ रहे मानवीय आपातकाल के बारे में चेतावनी दी है और सर्दियों से पहले लाखों अफगानों तक सहायता पहुंचाने का आह्वान किया है।

इस बीच, नए तालिबान शासन ने व्यवस्थित रूप से अफगान लोगों को मताधिकार से वंचित कर दिया है और उनके मौलिक मानवाधिकारों को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया है – विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा से जुड़े अधिकार।

हाल फिलहाल की बात करें तो तालिबान और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के देश की तत्काल मानवीय जरूरतों की ओर पर्याप्त तवज्जो न देने से अकाल पड़ने की संभावना है।

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि देश की लगभग आधी आबादी – या लगभग दो करोड़ तीस लाख लोग – आने वाले महीनों में भोजन से वंचित होने वाले हैं। और वर्ष के अंत तक पांच वर्ष से कम आयु के 32 लाख बच्चों के कुपोषण से पीड़ित होने की आशंका है।

हालाँकि, देश की दीर्घकालिक जरूरतों को इन अधिक तीव्र चिंताओं से इतनी आसानी से अलग नहीं किया जा सकता है।

ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तालिबान को प्रोत्साहित किए बिना या उसके भयावह मानवाधिकार रिकॉर्ड की उपेक्षा किए बिना वहां की जनता को मानवीय आपातकाल से बचाने का एक तरीका खोजना चाहिए। जातीय भेदभाव और लैंगिक रंगभेद के खतरे वास्तविक हैं – और अफगानिस्तान की नागरिक आबादी के भविष्य के लिए उतने ही हानिकारक होंगे।

FILE PHOTO: A Taliban security member holding a rifle ensures order in front of Azizi Bank in Kabul.

बढ़ता मानवीय आपातकाल

अगस्त में तालिबान के नियंत्रण में आने से पहले अफगानिस्तान एक बड़े मानवीय संकट से गुजर रहा था। पिछले साल लगभग आधी आबादी राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे जी रही थी। यह बरसों तक विद्रोही हिंसा से जूझने, देश के कुछ हिस्सों में भीषण सूखे और महामारी के कारण आई समस्याओं का मिला जुला नतीजा था।

तालिबान के हाथों सरकार गिरने से संकट और बढ़ गया। अफ़ग़ानिस्तान की विदेशी संपत्ति – लगभग 9.5 अरब अमेरिकी डॉलर को तत्काल अमेरिका में फ्रीज कर दिया गया। इससे देश के वित्तीय और सार्वजनिक क्षेत्र लगभग पतन के कगार पर आ गए।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, इस वर्ष देश की अर्थव्यवस्था के 30% तक घटने की आशंका है, जिससे लोग और अधिक गरीबी में घिर जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2022 के मध्य तक 97% अफगान गरीबी की गिरफ्त में हो सकते हैं।

FILE PHOTO: Afghan money exchange dealer carries bundles of banknotes at a money exchange market in Kabul.

तालिबान को सहायता वितरित करने की अनुमति देने पर चिंता

तालिबान ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मान्यता और अमेरिका में अफगानिस्तान के वित्तीय भंडार को मुक्त करने की मांग की है।

यूरोपीय संघ ने भी देश के लिए अपनी विकास निधि में कटौती की है, जबकि आईएमएफ ने 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि तक ताजिबान की पहुंच को निलंबित कर दिया है और विश्व बैंक ने इस वर्ष अफगानिस्तान को दी जाने वाली 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता राशि को जारी करने से रोक दिया है।

ऐसे में जब अफगानिस्तान मानवीय आपदा की चपेट में है, तो इस बात को लेकर बड़ी चिंताएं हैं कि क्या तालिबान के दमनकारी और बहिष्कृत शासन को मजबूत किए बिना आपातकालीन सहायता पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से वितरित की जा सकती है।

तालिबान से ‘‘समावेशी’’ सरकार बनाने का वादा तो किया था, लेकिन इसके विपरीत उसकी सर्व-पुरुष कार्यवाहक कैबिनेट में कट्टरपंथी गुटों का वर्चस्व है। हक्कानी आतंकवादी नेटवर्क के नेता, सिराजुद्दीन हक्कानी, आंतरिक मामलों के नए मंत्री हैं, जबकि उनके चाचा, खलील हक्कानी, अफगान शरणार्थियों के मंत्री हैं।

वैसे आईएमएफ ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान जाने वाले किसी भी धन का इस्तेमाल आतंकवाद और धन शोधन के लिए किया जा सकता है। मानवाधिकारों के लिए तालिबान की घोर अवहेलना भी सहायता को निष्पक्ष रूप से वितरित करने की उसकी क्षमता पर सवाल उठाती है।

FILE PHOTO: Afghan women’s rights defenders and civil activists protest to call on the Taliban for the preservation of their achievements and education, in front of the presidential palace in Kabul.

समूह का लैंगिक भेदभाव भी चिंता का विषय है-उदाहरण के लिए, महिलाओं को कार्यबल से बाहर कर दिया गया है। प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में कुछ आवश्यक भूमिकाओं को छोड़कर, अधिकांश महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों से अलग कर दिया गया है, जिससे अनगिनत परिवारों को उनकी आय से वंचित होना पड़ा है। लाखों अफगान लड़कियों के स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

ये नीतियां समाज के सबसे हाशिए पर पड़े वर्गों को प्रभावित कर रही हैं, जिन्हें मानवीय सहायता की सबसे अधिक आवश्यकता होने की भी संभावना है।

महिला सहायता कर्मियों पर तालिबान के गंभीर प्रतिबंधों ने भी देश के अधिकांश हिस्सों में महिलाओं तक सहायता की पहुंच को सीमित कर दिया है।

इसके अलावा, तालिबान हजारा अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को उनके घरों और खेतों से जबरन बेदखल करके बड़े पैमाने पर भूमि हथियाने में लगा है। ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि पूर्व सरकार से जुड़े अन्य लोगों को भी ‘‘सामूहिक दंड’’ के रूप में निशाना बनाया गया है।

कई पर्यवेक्षकों ने चेतावनी दी है कि बड़े पैमाने पर बेदखली की ये घटनाएं, साथ ही इस्लामिक स्टेट के स्थानीय सहयोगी समूहों द्वारा अल्पसंख्यक समूह पर भीषण हमले, नरसंहार तक जा सकते हैं।

ऐसी भी खबरें हैं कि अफगानिस्तान में पिछली सरकार का समर्थन करने वाले समूहों और व्यक्तियों को यातनाएं दी जा रही हैं और मौत के घाट उतारा जा रहा है। उदाहरण के लिए, पंजशीर प्रांत में, जहां तालिबान को भयंकर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, वहां तालिबान पर नागरिकों की हत्या और उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप है।

G20 summit in Rome.

मदद के लिए क्या किया जा सकता है?

फिलहाल तो यह जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय सहायता प्रदाता अफगानिस्तान में पैदा हुए इस मानवीय संकट से निपटने के लिए वहां पड़ने वाली लंबी और ठंडी सर्दी से पहले तुरंत जीवन रक्षक सहायता प्रदान करें। लेकिन दुनिया को तालिबान को मान्यता अथवा वैधता प्रदान किए बिना ऐसा करना चाहिए और उसे धन को सीधे नियंत्रित करने की अनुमति भी नहीं दी जानी चाहिए।

जी20 देश वर्तमान में ऐसा करने के तरीके तलाश रहे हैं। इसके लिए तालिबान के साथ एक समझौते की जरूरत होगी, जिसमें उसके सीधे नियंत्रण से गुजरे बिना जरूरतमंदों तक सहायता पहुंचाई जा सकेगी। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा कैसे हो सकेगा।

जैसा कि पिछले महीने इतालवी प्रधान मंत्री मारियो ड्रैगी ने कहा था, – यह सोचना बहुत मुश्किल है कि तालिबान सरकार की किसी प्रकार की भागीदारी के बिना अफगान लोगों की मदद कैसे की जा सकती है।

यूनिसेफ ने तालिबान के साथ एक समझौते पर बातचीत की है जिसमें संयुक्त राष्ट्र एजेंसी तालिबान-नियंत्रित संस्थानों के हाथों से गुजरे बिना सीधे शिक्षकों के वेतन का भुगतान करती है। यदि यह उपाय सफल होता है, तो यह संभावित रूप से स्वास्थ्य और कृषि जैसे अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है।

मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए, दाता और गैर सरकारी संगठन कई मौजूदा सामुदायिक नेटवर्क का भी उपयोग कर सकते हैं। यूरोपीय संघ ने अफगानिस्तान को तत्काल सहायता में 1 अरब यूरो (1.5 अरब डॉलर) देने का वादा किया है, जिसमें से लगभग आधा देश में काम कर रहे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से दिया जाएगा।

पश्चिमी देशों ने स्पष्ट कर दिया है कि नकदी की किसी भी आमद का मतलब तालिबान सरकार को मान्यता से जुड़ा नहीं होगा।

अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत देशों को राजनयिक मान्यता हमेशा मानवाधिकारों के सम्मान पर निर्भर नहीं होती है, तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने के लिए मानवीय आपातकाल को सौदेबाजी की चाल के तौर पर इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को दूर करने के लिए तालिबान द्वारा एक वास्तविक प्रतिबद्धता के अभाव में, दुनिया को उसे औपचारिक मान्यता प्रदान किए बिना, विशुद्ध रूप से व्यावहारिक और मानवीय आधार पर समूह से बात करनी चाहिए।

(सफीउल्लाह ताए, शोधकर्ता और शिक्षाविद्, डीकिन विश्वविद्यालय और नियामतुल्ला इब्राहिमी अंतरराष्ट्रीय संबंधों में व्याख्याता, ला ट्रोब विश्वविद्यालय)

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POST COMMENTS (1)

Narendra kumar

जनवरी 10, 2022
आख़िर दुनिया इस्लामिक आतंकवादियों को ज़िंदा क्यों रखना चाहती है। अफ़गानिस्तान इस्लामिक आतंकवादियों का गढ़ है। दुनिया को चाहिए सारे लोगों को मरने दे। इससे दुनिया में शांति ही आएगी।

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