• 22 November, 2024
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सीमा सुरक्षा के लिए बढ़ाया बीएसएफ का बल

बीएन शर्मा, आईजी बीएसएफ (रि.)
गुरु, 21 अक्टूबर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

सीमा सुरक्षा बल के तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी के अधिकार क्षेत्र में संशोधन करने की गृह मंत्रालय की 11 अक्टूबर 2021 की अधिसूचना पर राजनीतिक हलकों और सीमा प्रबंधन के विशेषज्ञों ने कड़ी प्रतिक्रिया जतायी। इसे संविधान के संघीय ढांचे और राज्यों में पुलिस के कामकाज में हस्तक्षेप के रूप में देखा गया। यहाँ यह स्पष्ट करना होगा कि बीएसएफ की पुलिस शक्तियां नहीं बढ़ाई गई, ये पहले की तरह ही हैं। सीमावर्ती राज्यों के बड़े क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले सीमापार के अपराधों से निपटने के लिए उन्हें और अधिक जवाबदेह बनाया गया है। यह समझने की जरूरत है कि सीमा सुरक्षा और  उभरने वाली अन्य सुरक्षा स्थितियों के खतरों से निपटने के लिए बीएसएफ को विभिन्न अधिनियमों के तहत कौन-कौन सी शक्तियां दी गई हैं। सीमापार अपराधों और अनधिकृत व्यक्तियों के प्रवेश-निकासी को रोकना बीएसएफ का प्राथमिक कार्य है। सीमापार अपराध  आम अपराधों से भिन्न होते हैं और ये राष्ट्रीय सुरक्षा से सीधा संबंध रखते हैं। इसमें नशीले पदार्थ, हथियार और गोला-बारूद, नकली मुद्रा और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी के साथ-साथ अपराधियों और राष्ट्र विरोधी तत्वों की आवाजाही शामिल है। बीएसएफ को  उसे सौंपे जाने वाले कार्यों को करने में सक्षम बनाने के लिए 1969 में भारतीय पासपोर्ट अधिनियम, सीमा शुल्क अधिनियम, शस्त्र अधिनियम, एनपीएसडी अधिनियम, सीआरपीसी के तहत किसी व्यक्ति, जहाज या परिसर में गिरफ्तारी करने, तलाशी लेने और समान जब्त करने का अधिकार दिया गया था।

1969 की सबसे पहली अधिसूचना में 1973 में संशोधन किया गया और बाद में विभिन्न राज्यों  की स्थितियों के अनुसार उस क्षेत्र में इसके विस्तार की सीमा तय की गयी।

11 अक्टूबर 2021 की अधिसूचना जारी होने से पहले, बीएसएफ के पास गुजरात, राजस्थान, पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल में अपनी शक्तियों के प्रयोग का अधिकार क्षेत्र क्रमशः 80, 50,15,15 और 15 किमी था, जिसे अब संशोधित करके 50 किमी किया गया है। मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में इन शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार क्षेत्र राज्यों की पूरी  लंबाई  और चौडाई के हिसाब से निर्धारित किया जायेगा ।

बीएसएफ की तैनाती के प्रकार, उस स्थान की आबादी के घनत्व, अपराध पैटर्न और दूरदराज के सीमावर्ती क्षेत्रों में पुलिस और अन्य एजेंसियों की उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए इन शक्तियों के उपयोग का अधिकार दिया जाता है।

गुजरात और राजस्थान में बहुत कम आबादी है। विशाल खुली सीमाएँ और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पीछे लगभग 30-40 बीओपी हैं। दूसरी ओर पंजाब, बांग्लादेश और पूर्वी पाकिस्तान के साथ लगने वाली अधिकांश सीमाओं पर बहुत बड़ी आबादी शून्य रेखा के बहुत ज्यादा  नजदीक रहती थी। बीएसएफ की शक्तियां पुलिस के सीमापार अपराधों से निपटने के कामों में  बहुत उपयोगी  और सहायक  होंगी।

बीएसएफ के पास केवल शून्य रेखा पर अपराधियों को पकड़ने की जिम्मेदारी ही नहीं है, बल्कि उनके पास स्वतंत्र रूप से या स्थानीय पुलिस की मदद से अपने क्षेत्र से संचालित होने वाले किसी नेटवर्क और उनके सहयोगियों को बेअसर करने के लिए जानकारी जुटाने  की जिम्मेदारी भी है।

चुनौतियां!

बीएसएफ इकाइयों में बढ़ोत्तरी, सीमा पर बाड़ लगाने और आधुनिक तकनीकों के उपयोग के बावजूद पिछले चार दशकों में पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं पर चुनौतियां कई गुना बढ़ गई हैं। सीमा पार अपराध अब खाने वाली कुछ छोटी मोटी चीजों या स्थानीय रूप से बनायी जाने वाली वस्तुओं की छोटी तस्करी तक ही सीमित नहीं हैं;  बल्कि अब भारत में नशीले पदार्थों, हथियारों और नकली मुद्रा को भेजा जा रहा है। बड़े पैमाने पर बंगलादेशी नागरिक और रोहिंग्या का देशांतरण, हमारी सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा हैं। कनेक्टिविटी, संचार और गतिशीलता में बढ़ोत्तरी हुई है, सीमा पार के अपराधी अब दूर के क्षेत्रों से संचालन का लाभ उठा सकते है। बीएसएफ वैसे तो स्थानीय पुलिस के साथ  मिलकर काम करती है, लेकिन ऐसे अवसर भी आते हैं, जब सीमा पर अपराध के बारे में सूचना या इनपुट के लिए पुलिस या अन्य एजेंसियों के साथ संपर्क करने में समय गंवाए बिना बीएसएफ टीम को अपने दम पर तेजी से काम करने की आवश्यकता होती है। ऐसे में गोपनीयता बनाए रखना भी बहुत जरूरी होता है। हालाँकि ऐसी स्थितियां कम होती हैं।

सीमापार अपराधों को रोकना बीएसएफ की जिम्मेदारी है। अपराधियों का दायरा भीतरी इलाकों तक फैलता है, अपने को प्रभावी बनाने और इस खतरे का मुकाबला करने के लिए  बीएसएफ को अधिक  कानूनी शक्ति और अधिकार क्षेत्र की आवश्यकता है। पश्चिम बंगाल जैसी जगहों पर सीमापार अपराधी बड़ी चतुराई से बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र से बाहर के इलाकों से अपना काम कर रहे थे। केवल बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र से अपने को दूर रख कर यह आराम से रह रहे हैं। इस अधिसूचना का विरोध केवल राष्ट्रविरोधी और सीमा पार  के आपराधिक मामलों में शामिल लोग ही करेंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ भ्रामक बयान फैलाये जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि बीएसएफ अब घरों और धार्मिक स्थलों में अपनी मर्जी से प्रवेश करेगी। सीमा पर होने वाले अपराधों और कृत्यों में बढ़ोतरी होने से, संवेदनशील सीमावर्ती राज्यों में अधिकार क्षेत्र को कम कर देने से उन पर नियंत्रण समाप्त हो जाएगा। बीएसएफ की ये शक्तियां और अधिकार किसी भी तरह से पुलिस के कामकाज से नहीं टकरा रहे है, बल्कि यह राज्य की पुलिस को उनकी कानून व्यवस्था और  अपराधों पर नियंत्रण रखने में सहायक होगी और साथ ही यह पुलिस की अन्य नौकरियों के लिए बधाई दे रही है। बीएसएफ केवल सीमा अपराधों से निपटती है, नागरिक अपराधों से नहीं।

सीमा क्षेत्र की स्थिति में बदलाव को राष्ट्रीय सुरक्षा के नजरिए से देखा जाना चाहिए; इनकी समय-समय पर समीक्षा और संशोधन किया जाना चाहिए। सुरक्षा खतरों के ये मुद्दे सर्वोपरि हैं और इन्हें राजनीतिक कारणों से नहीं देखना चाहिए।

क्या सीमा पर इसका असर होगा!

अंदरूनी इलाकों में इसका संचालन करने के लिए अपने स्वयं के खुफिया नेटवर्क या बीपीओ के सैनिकों से मिलने वाले विशेष इनपुट के आधार पर ही कार्यवाही होती है। ये   इनपुट हमेशा एक जैसे नहीं होते, इसलिए तेज प्रतिक्रिया के लिए विशेष टीमें बनाई जा  सकती हैं। सुदूर क्षेत्रों के लिए पुरुषों की उप इकाइयां निर्धारित की जाती हैं। सीमा पर  तैनात व्यक्ति किसी भी प्रकार की बातचीत या समझौता नहीं करेंगे। भीतरी इलाकों में इन कार्यों के संचालन के लिए टीमों को भेजने से मिली सफलता बहुत बड़ी है। बीएसएफ से,  गहन क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से या पुलिस की मदद से कार्य करने के लिए संसाधन जुटाने की उम्मीद है। इन्हें, पकड़े गए व्यक्ति (व्यक्तियों) को कमांडरों को सौंपने, जब्त की गई वस्तुओं को पुलिस को सौंपने और एक निश्चित समय सीमा के भीतर प्राथमिकी दर्ज करने  के साथ साथ पालन की जाने वाली दूसरी प्रक्रियाओं से पूरी तरह से परिचित होना चाहिए।

ज्यादातर पश्चिम बंगाल में और कभी-कभी अन्य पूर्वी सीमाओं में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जहां अपराधियों ने बीएसएफ कर्मियों को चुनौती देने और अदालतों में घसीटने के लिए प्राथमिकी दर्ज की थी, क्योंकि वे कर्मचारी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर काम कर रहे थे। यहां तक ​​कि वे बीएसएफ दलों के साथ हिंसा करने और उन्हें घेरने के लिए दोनों सीमाओं और साथ ही निर्दिष्ट अधिकार क्षेत्र का उपयोग भी करते हैं। बीएसएफ को इन शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (अफस्प) की कोई आवश्यकता नहीं है, अशांत क्षेत्रों की घोषणा करने की आवश्यकता नहीं है। अफ्सफा की अनुपस्थिति में, बीएसएफ स्वतंत्र रूप से छत्तीसगढ़, उड़ीसा या त्रिपुरा जैसे स्थानों पर घेराबंदी, तलाशी और अन्य नक्सल विरोधी या काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए काम नहीं कर सकती । यह ऑपरेशन पुलिस के साथ मिलकर करना पड़ता है।

बीएसएफ खुफिया तंत्र के पास विशिष्ट, सटीक और वास्तविक जानकारी समय पर इकट्ठी करने का बहुत महत्वपूर्ण कार्य है। सूचना की गंभीरता और समय को देखते हुए, यह कमांडरों पर निर्भर होगा कि वे ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए सर्वोत्तम विकल्पों का निर्णय लें और स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ने के लिए कॉल करें या ज्वाइंट ऑपरेशन करें। यह  सब उस मामले और स्थिति पर निर्भर करेगा। अधिकतर यह  कुछ  मुख्य परिणामों, विश्वसनीय स्रोतों या मुखबिरों से सीमापार अपराधियों के नेटवर्क के बारे में मिलने वाली जानकारी पर आधारित होता है। पूरे क्षेत्र की जानकारी इकट्ठी करने की आवश्यकता नहीं  होती, न ही इसकी जरूरत है। एक प्रमुख खुफिया एजेंसी होने के कारण बीएसएफ हमेशा बहमूल्य जानकारी तक अपनी पहुँच बना लेती है।

निस्संदेह, बीएसएफ को भूमिगत सुरंगों या ड्रोन या अन्य तरीकों के इस्तेमाल से बढ़ने वाले  खतरों के खिलाफ सीमा पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने की जरूरत है। अतिरिक्त जिम्मेदारी के लिए हर स्तर पर बेहतर प्रयासों की जरूरत होगी। सीमा सुरक्षा, सीमा प्रबंधन का एक जरूरी हिस्सा है और विभिन्न एजेंसियों के बीच घनिष्ठता और आपसी विश्वास से इसके उद्देश्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। बलों और संगठनों के बीच किसी भी तरह की गलतफहमी पैदा करने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। सुरक्षा आवश्यकताओं की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए और व्यापक हितों के लिए आवश्यक संशोधन किये जाने चाहिए। बीएसएफ केवल अनिवार्य भूमिका के अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन कर रहा है। उसने न तो ऐसा कभी अतीत में किया है और न ही अब उसे पुलिस की नौकरी करनी है। बीएसएफ प्राथमिक भूमिका की अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। यह  मामला केवल इसकी जिम्मेदारी तय करने का है ।

ये शक्तियां सीमा सुरक्षा बलों की जरूरतों के लिए दी गयी हैं; पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमा पर तैनात बीएसएफ को आज इनकी जरूरत है। भारत-भूटान की रक्षा करने वाले एसएसबी या आईटीबीपी हो सकते हैं, भारत-नेपाल और भारत-तिब्बत सीमा पर अब उस तरह की जरूरत नहीं है।

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लेखक
भोलानाथ शर्मा बीएसएफ की सेवा में लंबे अरसे तक कार्यरत रहे और महानिरीक्षक पद से सेवानिवृत्त हुये। वह उत्तर-पूर्व, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल में सेवाएँ दे चुके हैं। वह बीएसएफ अकेडमी के मुख्य प्रशिक्षक रहे। बीएसएफ त्रिपुरा फ़्रंटियर के प्रमुख रहे। सीमा प्रबंधन और राष्ट्रीय सुरक्षा में इनकी विशेष रुचि रही है। उन्होंने डिफेंस एंड स्ट्रेटेजिक स्टडीज़ में मास्टर्स डिग्री हासिल की हैं।

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