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अब दक्षिण एशिया में भू-रणनीतिक महत्व का केंद्र बिंदु बना बलूचिस्तान

डॉ लॉरेंस सेलिन
सोम, 27 सितम्बर 2021   |   4 मिनट में पढ़ें

जब तक संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफगानिस्तान में उपस्थिति बनाए रखी, चीन दक्षिण एशिया पर हावी होने और भारत को अलग-थलग करने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा नहीं कर पाया।

अब  दक्षिण एशिया में अमेरिकी प्रभाव समाप्त हो जाने से चीन वैश्विक प्रभुत्व के अपने सुस्थापित रणनीतिक दृष्टिकोण को लागू कर सकता है,  तथा  अपनी  आर्थिक  शक्ति को चीनी सैन्य विस्तार की मजबूत शक्ति के साथ जोड़ सकता है।

वैश्विक प्रभुत्व की प्राप्ति का आर्थिक मार्ग बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)  बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का संग्रहित स्वरूप है तथा यह 152 देशों के साथ वाणिज्यिक समझौतों का नेटवर्क है। इसे भू-आधारित एवं समुद्री मार्गों के माध्यम से चीनी अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने के लिए  तैयार किया गया है।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा  (सीपीईसी) बीआरआई ही है, जो एक बुनियादी ढांचागत विकास परियोजना है, तथा चीन को अरब सागर पर स्थित ग्वादर और कराची के पाकिस्तानी बंदरगाहों से जोड़ने वाला एक परिवहन नेटवर्क  है।

चीन अफगानिस्तान को सीपीईसी में शामिल करने का इच्छुक है और वह अप्रयुक्त अफगान खनिज संसाधनों से लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर का लाभ उठाना चाहता है।

अधिक चिंता का विषय चीन द्वारा ग्वादर के गहरे बंदरगाह और उसके आस-पास के क्षेत्रों में नौसैनिक और हवाई क्षेत्रों के प्रवेश स्थानों को नियंत्रित करके तेल समृद्ध फारस की खाड़ी के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों को नियंत्रित करने की सैन्य महत्वाकांक्षा  है।

अप्रैल 2017 में, पाकिस्तान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके अंतर्गत राज्य द्वारा संचालित चीनी कंपनी, चाइना ओवरसीज पोर्ट होल्डिंग कंपनी  (सीओपीएचसी) 40 वर्षों तक ग्वादर बंदरगाह का रख रखाव करेगी।

सीओपीएचसी के पास टर्मिनल और समुद्री संचालन के सकल राजस्व संग्रह का 91% अंश है और व्यापक ग्वादर फ्री ज़ोन ऑपरेशन के सकल राजस्व का 85% हिस्सा है, जिसमें स्थानीय आबादी के लिए लाभ को अनिवार्य रूप से अलग रखा गया है। सीओपीएचसी द्वारा चीन के उपयोग के लिए  2282 एकड़ भूमि 43 वर्ष के लिए पट्टे पर  दी गई है। ग्वादर में चीन का आर्थिक निवेश  उसके सैन्य विस्तार का पूर्वसंकेत हैं।

“चीनी मुख्य रूप से ग्वादर के प्रति अधिक आकर्षित हैं। क्योंकि यह होर्मुज समुद्री खंड से निकट है,   और इसके माध्यम से उनकी अधिकांश ऊर्जा प्रवाहित होती है। ग्वादर एक ऐसा आधार प्रदान कर सकता है जहां से वे स्थिति की मांग के अनुसार, इस ऊर्जा प्रवाह पर निगरानी और सुरक्षा दोनों अपने नियंत्रण में रख सकते हैं। जिबूती में चीनी सैन्य आधार बना कर, समुद्री डकैती रोधी प्रयासों को जारी रखकर  तथा ग्वादर से परिचालन का आधार बनाकर मकरान तट से बाब-अल-मंडेब के समुद्री खंड तक चीन की नौसैनिक उपस्थिति निरंतर बनी रहेगी।”

कुछ अन्य प्रेस रिपोर्टों ने चीन के अंतरराष्ट्रीय आर्थिक निवेश और विदेशी सैन्य ठिकानों की मजबूत रणनीति की पुष्टि की है:

कराची में एक पाकिस्तानी अधिकारी ने कहा, “चीन 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के अंतर्गत व्यापार मार्गों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तानी नौसेना के जहाजों के साथ अपने नौ सैनिक जहाज तैनात करेगा। एक पाकिस्तानी अधिकारी  ने कराची में कहा कि ग्वादर की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आड़ में चीन की समुद्री  सैन्य रणनीति पर श्वेत पत्र  अनिवार्य है।

1 जनवरी, 2018 के एक लेख ने एक योजना का खुलासा किया, जिसकी बाद में अलग-अलग दो रिपोर्टों से पुष्टि हुई। यह योजना ईरानी सीमा के निकट ग्वादर के पश्चिम में जिवानी प्रायद्वीप पर एक चीनी सैन्य अड्डे के निर्माण के संबंध में है।

चीन  अपनी इन  “गतिविधियों ” के लिए ग्वादर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का  विस्तार  भी कर रहा हैं, जो कि फारस की खाड़ी के  प्रवेश द्वार पर ग्वादर  को एक और रणनीतिक अवरोधक बिंदु  से जोड़ने की क्षमता होगी। जो लाल सागर और स्वेज़ नहर के प्रवेश स्थान  से  चीनी नौ -सेना को जोड़ने वाली एक बढ़ी हुई चीनी सैन्य क्षमता का हिस्सा होगा। ।

पाकिस्तान ग्वादर से चीन के साथ संयुक्त नौसैनिक अभियानों में  अपने निजी हितों को बताने में संकोच  नहीं करता।

“चीन और पाकिस्तान के इस क्षेत्र में समुद्री हितों के समान आधार है। ग्वादर बंदरगाह का उपयोग हिंद महासागर में संयुक्त नौसैनिक गश्त के लिए किया जा सकता है, जिससे इस क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान की नौसैनिक पहुंच में और वृद्धि होगी। ग्वादर बंदरगाह इनकी नौसैनिक गतिविधियों में वृद्धि करेगा और विशेष रूप से नौ -सैनिक क्षेत्र में रक्षा सहयोग का अधिक विस्तार करेगा।”

बलूचिस्तान में अधिक से अधिक सैन्य उपस्थिति की चीनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पाकिस्तान ने ग्वादर से लगभग 100 मील उत्तर पूर्व में  तुरबत  शहर में एक नया नौसैनिक हवाई अड्डा खोला है।

टर्बैट बेस, ग्वादर और पाकिस्तान के ओरमारा नौसैनिक अड्डे के बीच समुद्री क्षेत्रों के लिए हवाई निगरानी और रक्षा कवर प्रदान करने के लिए है। यहाँ पर चीनी पनडुब्बियाँ है, उन्नत चीनी एंटी-शिप मिसाइलों का परीक्षण किया गया है, चीनी मालवाहक जहाजों को डॉक किया गया है तथा जहां से चीनी निर्माण कर्मचारी समीप के पाकिस्तानी द्वीप अस्तोला में बार-बार उड़ान भरते है। ऐसा माना जाता है कि यह चीन की अरब सागर निगरानी की एक प्रणाली  है।

यह निष्कर्ष निकालने के लिए एक रॉकेट वैज्ञानिक की आवश्यकता नहीं है कि दक्षिण एशिया के लिए चीन की व्यापक योजना की सफलता बलूचिस्तान की स्थिरता पर निर्भर करती है,  जिनमें 1948 में पाकिस्तान में शामिल होने के बाद से ही स्वतंत्रता विद्रोह की कटुता है।

बलूचिस्तान में चीनी उपनिवेशीकरण के प्रति रोष लगातार बढ़ रहा है। जिसके परिणामस्वरूप चीनी श्रमिकों पर हमलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

बंदरगाह और नौसैनिक सुविधा के विकास के साथ-साथ ग्वादर के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार के लिए अपेक्षित 500,000 चीनी पेशेवरों के लिए ग्वादर में स्थानीय निवासियों से  विशाल भूमि को विनियोजित किया गया है।

बलूचिस्तान पारंपरिक रूप से धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और खनिजों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र है। इसे पाकिस्तानी सरकार द्वारा आधिकारिक जातीय उत्पीड़न और कथित न्यायेतर हत्याओं  द्वारा जान बूझ कर अविकसित रखा गया है।

एक स्वतंत्र बलूचिस्तान  के सपने को साकार होने में दक्षिण एशिया में चीन दवारा आर्थिक और सैन्य विस्तारवाद इसे रणनीतिक रूप से बाधित करना होगा तथा इस क्षेत्र में आतंकवाद का निर्यात करने वाले देशों जैसे, पाकिस्तान एवं उसके प्रॉक्सी, तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान  को एक सशक्त कवच प्रदान करना होगा।

क्वाड  सुरक्षा वार्ता,  जिसमे संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल है,  भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आर्थिक और सैन्य आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए एक आधार प्रदान  करेगी।

तथापि अब तक क्वाड  राष्ट्रो की केवल गैर-सैन्य उपायों अर्थात जलवायु परिवर्तन,  कोविड-19 टीकों और अर्धचालक जैसे रणनीतिक उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला पर ही सहमति  हुई हैं।

इसके विपरीत, चीन ने हाल ही में पश्चिमी चीन में एक नए बैलिस्टिक मिसाइल साइलो फील्ड के साथ अपनी पहली-स्ट्राइक परमाणु क्षमताओं का विस्तार किया है, जिसमें लगभग 1,000 हथियार हैं।

चीन ने ताइवान के विरुद्ध अपना सैन्य दबाव बढ़ा दिया है और चीन-पाकिस्तान-तालिबान गठबंधन दक्षिण एशिया में  अधिक शक्तिशाली होने का इरादा रखता है।

क्वाड राष्ट्रों को बहुराष्ट्रीय शक्ति के राजनयिक, सूचनात्मक, सैन्य एवं आर्थिक उपयोग द्वारा चीन की दक्षिण एशियाई-हिंद महासागर रणनीति को बाधित करने के लिए एक अधिक मजबूत   निर्णय लेने की आवश्यकता है, जहाँ बलूचिस्तान और अरब सागर गुरुत्वाकर्षण के  केंद्र हो।

भारत इन प्रयासों में एक केंद्रीय भूमिका निभाए और महत्वपूर्ण रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करे।

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लेखक
लॉरेंस सेलिन, पीएच.डी., सेवानिवृत्त अमेरिकी सेना रिजर्व कर्नल हैं और अफगानिस्तान और इराक में भी सेवएं दे चुके हैं। सेना के बाद उनका अंतरराष्ट्रीय व्यापार और चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य का अनुभव रहा हैै। उनका ईमेल lawrence.sellin@gmail.com है।

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