• 29 March, 2024
Geopolitics & National Security
MENU

ऑकस बाहुबल और क्वाड वैश्विक हित के लिए

टीपी श्रीनिवासन
बुध, 29 सितम्बर 2021   |   4 मिनट में पढ़ें

वर्ष 1972 में राष्ट्रपति निक्सन द्वारा एशिया में अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगी देश चीन के बीजिंग  की  यात्रा  के पश्चात जापान के शब्दकोश में एक नया शब्द  “निक्सन शोक्कु “शामिल हो गया। क्वाड शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर ऑकस की आश्चर्यजनक घोषणा से जापान में अब “बाइडन शोक्कु” कहा जा सकता और इसके समकक्ष भारत में कोई शब्द हो सकता है। परंतु फ्रांस की कठोर प्रतिक्रिया ने क्वाड के उत्साही सदस्यों को रक्षात्मक बना दिया है। उन्होंने अपने इस कदम को युक्तिसंगत बताया और नई व्यवस्था को  उचित  ठहराया। अब ऑकस और क्वाड को  क्रमश:,  बाहुबल के लिए और वैश्विक हितों के लिए बताया जा रहा है।

कुछ दिनों तक भारतीय टीकाकारों ने खूब टीका-टिप्पणी की और कहा की अमेरिका ने विश्वासघात करते हुए, भारत और जापान के बिना इस क्षेत्र में एक अन्य गठबंधन ऑकस स्थापित किया। इसके उपरांत भारत द्वारा घोषणा की गयी कि ऑकस एक सैन्य गठबंधन  है, जिसका भारत से कुछ लेना-देना नहीं  है। शायद भारत और जापान की स्थिति को देखते हुए अमेरिका उनके बिना इस औपचारिक गठबंधन के लिए प्रोत्साहित हुआ होगा। भारत ने अपने हस्ताक्षरित एनपीटी से बंधे रहने के लिए ऑस्ट्रेलिया के दायित्व को भी दर किनार करने का निर्णय लिया। अमेरिका द्वारा यह स्वीकार कर लिए जाने के उपरांत कि अफ़ग़ान की स्थिति को बेहतर ढंग से सुलझाया जा सकता था, बाइडन को फ्रांस के साथ समझौते के लिए सहज स्थिति में ला खड़ा किया।

तथापि, एक ऐसे क्षेत्र के लिए प्रतिबद्धता थी जो “हमारी संयुक्त सुरक्षा और समृद्धि का आधार है। एक स्वतंत्र और खुला इंडो-पैसिफिक क्षेत्र जो समावेशी और लचीला भी है।” क्वाड ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि कोविड-19 के कारण वैश्विक आर्थिक संकट  जारी  रहा; जलवायु संकट बढ़ गया और क्षेत्रीय सुरक्षा अधिक जटिल हो गई है। उन्होंने स्वतंत्र, खुली, नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। यह कुछ और नहीं अपितु चीन पर नियंत्रण के प्रति एक व्यंजना है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि वे कानून के शासन, नौ-परिवहन एवं अधिक उड़ानों की स्वतंत्रता, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, लोकतांत्रिक मूल्यों और राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खड़े हैं।

क्वाड नेताओं ने कोविड का मुकाबला करने के लिए संयुक्त रूप से किए गए कार्यों पर   अपना वाक कौशल दिखाया, परंतु समूह का कोई भी देश संक्रमण को सुरक्षित स्तर पर लाने या अपने नागरिकों को पर्याप्त टीकाकरण कराने में अधिक सफलता का दावा नहीं कर सकता। महामारी राहत प्रयासों में क्वाड की भागीदारी का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री स्वास्थ्य मामलों में माहिर हो गए।

जलवायु परिवर्तन पर क्वाड में गहरे मतभेद हैं। समूह में एकमात्र विकासशील देश के रूप में भारत पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों को अपनाने और अपने आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए वित्त पोषण और प्रौद्योगिकी की अपेक्षा करता है। निष्पक्ष रूप से, भारत से 2050 तक वैश्विक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की उम्मीद नहीं की जा सकती, जब तक कि परमाणु और नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति न हो। साइबर क्षेत्र में सहयोग और अंतरिक्ष सहयोग में नए अवसर क्वाड के एजेंडे का हिस्सा हैं।

क्वाड फेलोशिप कार्यक्रम, चारों देशों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित स्नातक छात्रों को 100 स्नातक फेलोशिप प्रदान करेगा। यह एक महत्वपूर्ण पहल है।

क्वाड अफगानिस्तान के प्रति कूटनीतिक, आर्थिक और मानवाधिकार नीतियों का बारीकी से समन्वय करेगा और यूएनएससी प्रस्ताव 2593 के अनुसार आने वाले महीनों में आतंकवाद को कम करेगा और मानवीय सहयोग को बढ़ायेगा। इसने पुष्टि की कि अफगान क्षेत्र का उपयोग किसी भी देश को धमकाने या हमला करने, आतंकवादियों को पनाह देने, प्रशिक्षित करने, आतंकवादी कृत्यों की योजना बनाने, उन्हें वित्तपोषित करने के लिए नहीं होना चाहिए। इसने अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व को दोहराया और प्रॉक्सी आतंकवाद के उपयोग की निंदा की। उन्होंने आतंकवादी समूहों, जिनका उपयोग सीमा पार हमलों तथा आतंकी हमले करने, उनकी योजना बनाने के लिए किया जाता है, उन्हें किसी भी प्रकार की, वित्तीय या सैन्य सहायता देने  का विरोध करने  के महत्व पर जोर दिया।

घोषणा में कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण और म्यांमार की हिंसा को भी शामिल किया गया। बयान इस घोषणा के साथ समाप्त हुआ कि एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की दृष्टि को साकार करने की प्रतिबद्धता दृढ़ है और यह साझेदारी  महत्वाकांक्षी और दूरगामी बनी रहे। क्वाड नेताओं ने कहा, “दृढ़ सहयोग के साथ, हम इस क्षण का सामना एक साथ  कर पाएंगे।”

हमारे पड़ोस में हुई उथल-पुथल, जिसमें चीन-पाकिस्तान-तालिबान समन्वय की संभावना है। उसके पश्चात क्वाड की ओर से एक साक्ष्य के रूप में दिया गया संयुक्त बयान बहुत कम प्रतीत होता है।

जब तक इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भारत-प्रशांत क्षेत्र और अफगानिस्तान में अपनाई जाने वाली स्थिति लागू है, चारों देश किसी भी तरह की सुरक्षा चुनौती में साथ मिलकर काम करेंगे।

यहां क्वाड और ऑकस के बीच की कड़ी महत्व रखती है। अनुमान यह है कि अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों में सुधार पूर्ण अर्थों में एक रणनीतिक साझेदारी  है। क्वाड भागीदारी और ऑकस के साथ जुड़ाव इसे अतिरिक्त शक्ति प्रदान करेगा। ऐसी स्थिति में जब भारत ने निर्णय कर लिया है कि वह किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं होगा और किसी भी कीमत पर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा, तब भारत किसी से सुरक्षा गारंटी की अधिक उम्मीद नहीं कर सकता।

यद्यपि क्वाड, ऑकस की परिलक्षित महिमा का आनंद ले सकता है। इंडो-पैसिफिक में एक परमाणु समझौता स्पष्ट रूप से क्वाड के रणनीतिक बयानों की तुलना में चीन के लिए एक अधिक कड़ा संदेश है, जो वैश्विक मुद्दों तक ही सीमित है। चीन ने क्वाड की तुलना में ऑकस के प्रति अधिक तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। फ्रांस की स्थिति ने गठबंधन के देशों की वफादारी पर सवाल उठाया इसे “पीठ में छूरा घोपना” के रूप में  दर्शाया गया है। नए गठबंधन के उद्देश्य को इस आधार पर उचित ठहराया गया है कि यह ऑस्ट्रेलिया के लिए पनडुब्बियों के परमाणु प्रणोदन प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की सक्षम व्यवस्था के रूप में था। यद्यपि, यह एनपीटी के ऑस्ट्रेलियाई उल्लंघन के परिणामस्वरूप उत्पन्न स्थिति में एक और आयाम जोड़ता है, जो जापान और भारत के लिए परेशानी की बात है।

सकारात्मक पक्ष पर, क्वाड  का नया रूप जो वॉशिंगटन में सामने आया उसमें उसने चीन विरोधी गठबंधन की अपनी छवि को नरम किया है और यह इस क्षेत्र के अन्य देशों को समूह में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है और इसके फलस्वरूप इसकी ताकत और पहुंच बढ़ सकती है।

विदेश नीति पत्रिका के अनुसार “क्वाड चीन को प्रभावित नहीं कर पायेगा और केवल समुद्री झाग की तरह समाप्त हो जाएगा, जैसा कि बीजिंग में कुछ लोगों ने उम्मीद की थी।  ऑकस बमबारी … और क्वाड शिखर भी शेष एशिया को कुछ स्पष्ट संकेत देता है – और उससे भी अधिक-कि चीन को संतुलित करने की कोशिश अब एक गंभीर चरण में  पहुँच गयी है।”

***********************


लेखक
टीपी श्रीनिवासन भारत के पूर्व राजदूत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं। वह वर्तमान में केरल अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के महानिदेशक हैं। उन्हें बहुपक्षीय कूटनीति में लगभग 20 वर्षों का अनुभव है और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रमंडल और एनएएम की ओर से आयोजित कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने कई संयुक्त राष्ट्र समितियों और सम्मेलनों की अध्यक्षता की है।

अस्वीकरण

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और चाणक्य फोरम के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। इस लेख में दी गई सभी जानकारी के लिए केवल लेखक जिम्मेदार हैं, जिसमें समयबद्धता, पूर्णता, सटीकता, उपयुक्तता या उसमें संदर्भित जानकारी की वैधता शामिल है। www.chanakyaforum.com इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।


चाणक्य फोरम आपके लिए प्रस्तुत है। हमारे चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें (@ChanakyaForum) और नई सूचनाओं और लेखों से अपडेट रहें।

जरूरी

हम आपको दुनिया भर से बेहतरीन लेख और अपडेट मुहैया कराने के लिए चौबीस घंटे काम करते हैं। आप निर्बाध पढ़ सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी टीम अथक प्रयास करती है। लेकिन इन सब पर पैसा खर्च होता है। कृपया हमारा समर्थन करें ताकि हम वही करते रहें जो हम सबसे अच्छा करते हैं। पढ़ने का आनंद लें

सहयोग करें
Or
9289230333
Or

POST COMMENTS (0)

Leave a Comment