आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए बल का प्रयोग रणनीति का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है। आक्रमणकारी पर समय पर डाला गया प्रभाव एक राष्ट्र को भविष्य के कष्टों से बचा सकता है। भारत ने यह सब पिछले 1,000 वर्षों में या उससे भी पहले से देखा है। हाल के दिनों में भी, सोवियत संघ के पतन से लोगों ने सोचा कि इस युद्ध की अवधारणा अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। हालाँकि, यह भ्रम मनुष्य को बार-बार विफल करता रहा है। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में भी इसी तरह की उम्मीदें थी। यह धारणा उपजने की वजह यह है कि मनुष्य स्वभाव से एक शांतिप्रिय प्राणी है। हालाँकि, यह तथ्य समय की कसौटी पर तब खरा नहीं उतरता, जब बात साम्यवाद की बात आती है। साम्यवाद का अस्तित्व ही हिंसा पर आधारित है। और इससे पहले कि हम भूल जाएं, मैं आपको याद दिला दूं, कि चीन एक साम्यवादी देश है।
थ्यूसीडाइड्स ट्रैप: इट्स बिटवीन इंडिया एंड चाईना सिल्ली
जॉन एफ केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट के राजनीतिक वैज्ञानिक ग्राहम एलिसन ने अपनी पुस्तक” डेस्टिन्ड फॉर वॉर” में ‘थ्यूसीडाइड्स ट्रैप’ शब्द गढ़ा। वह यह कहना चाहते हैं कि एक उभरती हुई शक्ति (चीन) हमेशा एक सत्तारूढ़ शक्ति (संयुक्त राज्य अमेरिका) का सामना करती रहेगी तथा इसका परिणाम रक्तपात और युद्ध होगा। उनका सिद्धांत एथेंस और स्पार्टा के बीच लड़े गए पेलोपोनेसियन युद्ध पर आधारित था। यहाँ पर, मैं ग्राहम एलिसन से सहमत नहीं हूं। अगला मुकाबला अमेरिका और चीन के बीच नहीं, बल्कि भारत और चीन के बीच होगा।
दोनों एशिया के दिग्गज पड़ोसी हैं और उनके पास विशाल सशस्त्र बल है। चीन का आर्थिक विकास कम हो गया है और जनसंख्या वृद्धि रुक गई है। ऐसा लगता है कि चीन अमीर बनने से पहले बूढ़ा हो जाएगा। यह चीन को एक घटती हुई शक्ति बनाता है। दूसरी ओर, भारत ने उभरती हुई शक्ति के सभी संकेत दिखाए हैं। कोविड-19 के बावजूद, इसका आर्थिक सुधार अच्छा रहा है। विकास दर दुनिया की सबसे तेज विकास दरों में से एक है। भारत के पास मजबूत और अनुशासित सशस्त्र बल भी हैं, जो चीन की परेशानी बढ़ाता है। इसलिए, यह चीन ही है, जिसे बढ़ते भारत से खतरा है। यह चीनी घबराहट आखिरकार युद्ध और रक्तपात की ओर ले जाएगी। स्पष्ट है कि हम युद्ध को कितना भी टालें, लेकिन हम इससे बच नहीं सकते।
एक तानाशाह से कैसे निपटें:
चीन के साथ युद्ध निश्चित है। चूंकि पहल चीन ने की है, भारत को उन्हें निराश नहीं करना चाहिए, अन्यथा वे एक पुरानी बीमारी की तरह वापस आते रहेंगे।
चीन से निपटने के लिए हमें जर्मन-ऑस्ट्रियाई राजनेता एवं नितिज्ञ, प्रिंस क्लेमेंस वेन्ज़ेल वॉन मेट्टर्निच के इन तीन सिद्धांतों पर विचार करना होगा :
उपरोक्त सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, भारत को यह युद्ध लड़ना चाहिए। यह युद्ध किसी तरह का समझौता किए बिना, अकेले ही, निम्न दोनों मोर्चों पर कट्टर प्रतिबद्धता के साथ लड़ना होगा:
युद्ध को चीन के द्वार तक ले जाना होगा:
मेट्टर्निच के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना और नागरिक नेतृत्व के पास बहुत कुछ है। अब तक चीन ही युद्ध को भारत की दहलीज पर ला रहा है, लेकिन अगर भारत को अपना अस्तित्व बचाये रखना है, तो इस युद्ध को चीन के दरवाजे तक ले जाने का समय आ गया है। निश्चित रूप से इसके लिए बहुत अधिक तैयारी और योजना बनाने की आवश्यकता होगी, जो अभी शुरू भी नहीं हुई है। गैर-सैन्य मोर्चे हमेशा से युद्ध का हिस्सा हैं, जबकि, एक सैन्य मोर्चा उपयुक्त समय पर खोलना चाहिए। उस दिशा में पहला कदम हमला करने का सही समय तय करना होगा।
आक्रामक होने के लिए सही समय
एक युद्ध में समय का ही महत्व होता है, जिसे कोई राजनीतिज्ञ नहीं समझ सकता और सैन्य नेताओं को इसे कभी भूलना नहीं चाहिए।
मनुष्य ने बहुत प्रगति की है। हालांकि, जब प्राकृतिक प्रकोप की बात आती है तो उसमें वे अभी भी लाचार हैं। जलवायु परिवर्तन से मौसम में अजीब और अप्रत्याशित परिवर्तन हुए हैं। जलवायु संकट के तेजी से बढ़ते प्रभाव, सरकारों से अग्निशमन, बाढ़ की रोकथाम, आपदा राहत और जनसंख्या पुनर्वास कार्यो लिए सैन्य और अर्धसैनिक बलों की मांग करते हैं। चीन इससे अलग नहीं है। यह एक बड़ा देश है, जिसमें कई जलवायु भिन्ताएँ हैं। अन्य देशों की तुलना में इसे अधिक सहायता की आवश्यकता होगी। यह भारत के लिए एक विशेष अवसर है। इससे भूमिकाओं में उलट फेर हो सकता है। चीन ने दुनिया में कोविड -19 फैलाया और इसकी अति संवेदनशीलता का फायदा उठाया। चीन को मात देने के लिए प्राकृतिक आपदा का लाभ उठाना, उन्हें उसी की भाषा में समझाने के समान होगा।
हेनान की राजधानी झेंग्झौ की हालिया बाढ़ इसका एक उपयुक्त उदाहरण है। तीन दिनों के भीतर पूरा शहर जलमग्न हो गया था। बाढ़ इतनी भयंकर और अभूतपूर्व थी कि शहर का बुनियादी ढांचा ध्वस्त हो गया। सौ से अधिक लोगों को आधिकारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया गया। पुलों, सड़कों, सुरंगों और खेतों की व्यापक क्षति हुई।
जवाब में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पीएलए के वरिष्ठ अधिकारियों से आग्रह किया कि “चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और पीपुल्स आर्म्ड पुलिस फोर्स के सैनिकों को स्थानीय बचाव और राहत कार्य में सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए”। पीएलए ने तेजी से अपना काम किया। आपदा राहत में सहायता के लिए तुरंत पीएलए के सेंट्रल थिएटर कमांड के तीन हजार से अधिक अधिकारियों, सैनिकों और मिलिशियामेन को झेंग्झौ में और उसके आसपास तैनात कर दिया गया था।
आखिरकार, पीएलए और पीपुल्स आर्म्ड पुलिस के छियालीस हजार से अधिक सैनिकों के साथ-साथ साठ हजार मिलिशिया सदस्यों को हेनान में तैनात किया गया। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीन की परमाणु-सशस्त्र अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों की सैन्य शाखा, पीएलए रॉकेट फोर्स के कई सौ कर्मियों को भी तैनात किया गया था।
सीख
अधिकांश आधुनिक चीनी शहरों की संरचना दोषपूर्ण हैं। चीन में एक लाख से अधिक आबादी वाले नब्बे शहर हैं। ये राजमार्गों, कारखानों, मॉल, कार्यालय परिसरों और ऊंची इमारतों के विशाल कंक्रीट के जंगल हैं। पूरा ग्रामीण इलाका डामर और कंक्रीट से ढका हुआ है। जल प्रवाह की निकासी के लिए शायद ही कोई भूमि बची हो। जिसके परिणामस्वरूप सुरंगों, सबवे या कम-निर्मित राजमार्गों में अक्सर बाढ़ आ जाती है।
चीन के कई मेगासिटी और औद्योगिक केंद्र, अर्थात्, ग्वांगझोउ, शंघाई, शेनझेन और टियांजिन, निचले तटीय क्षेत्रों में स्थित हैं, जो बाढ़ और समुद्र के स्तर में वृद्धि के प्रति अति संवेदनशील हैं।
हेनान बाढ़ के दौरान, झेंग्झौ के पास छह दशक पुराना चांग झुआंग जलाशय खतरनाक स्तर तक भर गया था, जो लगभग ढह ही गया था। अगर ऐसा होता तो बड़ा संकट खड़ा हो जाता। आसपास के क्षेत्र के अन्य बांध टूट गए। हाल ही में, पीएलए बलों को उस स्थान पर सैंडबैग की दीवारें खड़ी करने और जियालू नदी पर टूटे हुए बांधो की मरम्मत के लिए रवाना किया गया, जहाँ एक चीनी जे -10 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
यिहेतन बांध का उल्लंघन – सौजन्य: डीडब्ल्यू
चीन के सामने केवल बाढ़ का खतरा ही नहीं है बल्कि चीन का पश्चिम और उत्तर पश्चिम क्षेत्र रेगिस्तान से ढका हुआ हैं। वनों की कटाई और घटती वर्षा के परिणामस्वरूप और अधिक मरुस्थल बन गए हैं। आने वाले दशकों में, भारी आबादी वाले उत्तरी चीन के मैदान पृथ्वी पर सबसे घातक स्थान होंगे, जिससे विनाशकारी गर्मी और कृषि भूमि को नुकसान होगा।
चीन में दुनिया की 22 फीसदी आबादी है और सिर्फ 7 फीसदी कृषि योग्य भूमि है। चीन का 27 प्रतिशत हिस्सा रेगिस्तान से ढका हुआ है। रेगिस्तान बीजिंग से 44 मील की दूरी तक पहुंच गया है। गोबी मरुस्थल प्रति वर्ष 2 मील की गति से दक्षिण की ओर बढ़ रहा है। आने वाले समय में पूरा चीन एक बड़ा रेगिस्तान हो सकता है। अगर संकेतों की माने तो चीन गंभीर खाद्य कमी और अंततः एक बड़े अकाल की ओर बढ़ रहा है।
कम्युनिस्ट पार्टी की एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता सत्ता में बने रहना है। अब तक यह पर्याप्त आर्थिक विकास बनाए रखने से संभव हुआ है। चीनी जनता तब तक पार्टी के प्रति वफादार है जब तक यह वृद्धि बनी रहती है। विकास के किसी भी खतरे को सीसीपी के अस्तित्व के लिए एक महत्वपूर्ण खतरे के रूप में देखा जाता है। जलवायु परिवर्तन एक ऐसा ही खतरा है।
अवसरों में कमी, भोजन की कमी, और कठोर शासन अंततः नागरिक अशांति, आर्थिक विस्थापन, बड़े पैमाने पर अनियंत्रित आंदोलनों और क्षेत्रीय संघर्षो को जन्म देगा। चीन सतही तौर पर एक सजातीय समाज की तरह लग सकता है, लेकिन यह किसी भी अन्य राष्ट्र की तरह ही विभाजित है। यदि पानी, भोजन और अन्य महत्वपूर्ण संसाधनों को देश के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाया जाता है, तो सामाजिक अशांति होना तय है।
पीएलए अधिकारी चीन की सुरक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन के खतरों से अवगत हैं। वे यह भी जानते हैं कि भविष्य में किसी भी आपदा से निपटने में पीएलए को अग्रणी भूमिका निभाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। अधिक आपदाओं का सीधा सा मतलब है कि लड़ाकू भूमिका में बलों की संख्या कम होगी। अजीब है कि, चीनी राज्य की मशीनरी और पीएलए, अपनी सभी चर्चाओं, प्रकाशनों और श्वेत पत्रों में इस विषय से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
भारतीय परिप्रेक्ष्य
क्या हमारी इस चर्चा से भारत ने कोई सबक लिया? भारत भी उतना ही कमजोर है। यहाँ भी बाढ़ और जलवायु परिवर्तन अधिक है। अगर नगर योजनाकार और ग्रामीण मशीनरी पहले से ही इस आधार पर नहीं सोच रहे हैं तो उन्हें दोगुना बदलाव करना होगा, नहीं तो कुछ समय बाद बहुत देर हो जाएगी।
भारत यह नहीं मान सकता कि चीन इस तर्ज पर नहीं सोचता। भारत चीन के साथ भूमि सीमा साझा करने वाला एकमात्र प्रमुख विरोधी है। उन्होंने कोविड -19 संकट के दौरान स्पष्ट रूप से अपने इरादों का प्रदर्शन किया है। प्राकृतिक या मानव निर्मित संकट, चीन इन सभी कमजोरियों का अपने लाभ के लिए उपयोग करता है। भारत को चीन की हर हरकत के लिए तैयार रहने की जरूरत है।
समय महत्वपूर्ण है
आधिपत्य का हर विस्तार भी आतंक का ही विस्तार है – ज्यां बॉड्रिलार्ड
आने वाले वर्षों में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को और भी अधिक विनाशकारी बाढ़, अकाल, सूखा, जंगल की आग, रेत के तूफान और अतिक्रमण करने वाले महासागरों से देश की रक्षा करनी होगी। वे जितना चाहें उतना इस विषय से बच सकते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि क्वाड बलों से लड़ने के लिए मंच तैयार करने के लिए हथियारों से लेस होने की बजाय, अधिकांश चीनी सैनिक बढ़ते समुद्रों से अपने देश की तटरेखा को बचाने, बांधों को मजबूत करने और आने वाले दशकों में आंतरिक अशांति से लड़ने में अधिक समय व्यतीत करेंगे।
भारत और समान विचारधारा वाली अन्य ताकतों को इन चीनी दोषों का अत्यधिक पारदर्शिता और योजना के साथ देखना होगा। बाढ़, अकाल, सामाजिक अशांति और किसी अन्य प्राकृतिक आपदा का समय चीन पर हमला करने का सही समय है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी मंशा पहले ही दिखा चुके हैं। अब बाकी दुनिया को अपना संकल्प दिखाने का समय आ गया है। विस्तार और आधिपत्य के लिए शी की अतृप्त भूख सिर्फ ताइवान पर ही नहीं रुकेगी। उसका उद्देश्य हान पर वर्चस्व प्राप्त करना है। उसके निजी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उसके देश को कोई भी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
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bhuvneshwari