प्रमुख अंतरिक्ष शक्तियों द्वारा परीक्षण किए गए उन्नत हथियार ‘अत्यधिक सैन्यीकरण’ और वैश्विक ‘हथियारों की दौड़’ के बढ़ने से चिंता का बढ़ना अनिवार्य है।
सारी दुनिया की भौंहें उस समय तन गयी जब 11 जनवरी 2007 को, चीन ने सफलतापूर्वक एक एंटी-सैटेलाइट (एएसएटी) हथियार का परीक्षण किया, जो शीत युद्ध की समाप्ति के बाद पहली बार यूएसएसआर/रूस और अमेरिका के बाहर किसी देश ने ऐसा परीक्षण किया था। इस परीक्षण ने पृथ्वी की निचली कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट) में एक निष्क्रिय चीनी मौसम उपग्रह को नष्ट कर दिया। यह एक एएसएटी गतिज हथियार (काइनेटिक वारहेड-केडब्ल्यू) (बिना विस्फोटक का हथियार) था, जो 28,800 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से टकराया था यह एएसएटी हथियार (अमेरिका द्वारा नामित एससी-19) डीएफ-21सी बैलिस्टिक मिसाइल (बीएम) (चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी [पीएलए] रॉकेट फोर्स के साथ सेवा में) पर लगाया गया था और इसे दक्षिण पश्चिम चीन के ज़िचांग स्पेस सेंटर से रोड-मोबाइल ट्रांसपोर्टर-एरेक्टर-लॉन्चर (टीईएल) से छोड़ा गया था। इस परीक्षण के परिणामस्वरूप 1 सेमी या उससे अधिक व्यास वाले लगभग 40,000 टुकड़ों के कक्ष में परिभ्रमण करते मलबे उत्पन्न हुए थे।
हाल ही में, रूस ने 15 नवंबर 2021 को अपने निष्क्रिय एलईओ उपग्रह, कोसमॉस-1408 (1750 किलोग्राम वजन और 485 किमी की कक्षीय ऊंचाई वाले) को नष्ट कर दिया, इसकेपीएल-19 नुडॉल डाइरेक्ट एसेंट (डीए) एएसएटी सिस्टम केडब्ल्यू के साथ 27000 किमी/घंटा की गति से इस हमले ने ट्रैक करने योग्य अंतरिक्ष मलबे के 1500 टुकड़े उत्पन्न किये। इस एएसएटी हथियार को मास्को के उत्तर में प्लेसेत्स्क कोस्मोड्रोम से एक रोड-मोबाइल टीईएल से भी लॉन्च किया गया था।
Pl-19 Nudol ASAT सिस्टम का ग्राफिक: Source-spacewatch.global
एएसएटी प्रणाली क्या है?
इन ओपन-सोर्स स्टेटमेंट्स का एक संयोजन एएसएटी सिस्टम को परिभाषित करेगा: –
‘… सामरिक/सामरिक उद्देश्यों के लिए उपग्रहों को अक्षम/नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किए गए अंतरिक्ष हथियार।’
‘… या किसी प्रणाली से संबंधित, कक्षा में उपग्रहों को नष्ट करने के लिए।’
एएसएटी प्रणाली की परिकल्पित भूमिकाएँ क्या हैं?
एक एएसएटी प्रणाली की भूमिका पूरी तरह तय नहीं है- वे प्रचलित भू-सामरिक गणना और इन प्रणालियों के उपयोग के बाद अनुमानित/प्राप्त परिणामों पर निर्भर करती है। इसकी वर्तमान भूमिकाओं में रक्षात्मक प्रतिमान, एक विरोधी के एएसएटी हथियार/मार्गदर्शन प्रणाली/संचार लिंक को खत्म करना या पृथ्वी-आधारित सैन्य शक्ति को नष्ट करने के लिए हो सकती है। आक्रामक भूमिका में, परिकल्पित भूमिकाओं में विरोधी के उपग्रह को निष्प्रभावी करना (सैटेलाइट ब्लैक-आउट), पृथ्वी-आधारित ताकतों पर निगरानी की क्षमता को दूर करना, दुश्मन की बीएम-विरोधी रक्षा (बीएमडी) ढाल को नकारने के उपकरण के रूप में इसकी भूमिका हो सकती है। एक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की तरह विरोधी की उच्च मूल्य वाली अंतरिक्ष-आधारित संपत्तियों के लिए यह खतरा है। घरेलू उपयोग में, एएसएटी सिस्टम का उपयोग मृत/विमुक्त उपग्रहों को नष्ट करने के लिए भी किया जाता है। एएसएटी सिस्टम की भूमिका उपयोगकर्ता देश अपने हिसाब से तय कर सकता है।
स्रोत: osr.org/mant.hu
एएसएटी सिस्टम का वैश्विक विकास
एएसएटी सिस्टम का विकास 1950 के दशक में हुआ, जिसमें यूएस/यूएसएसआर (बाद में रूस) ने इस तकनीक को 1980 के दशक/1990 के दशक की शुरुआत में सामरिक रक्षा पहल (एसडीआई) के युग तक आगे बढ़ाया। 2000 के बाद के चीन, इज़राइल और भारत इस विशिष्ट तकनीकी क्षेत्र में अमेरिका और रूस के साथ शामिल हुए।
- अमेरिका : एएसएटी प्रौद्योगिकी विकसित करने में अमेरिकी वायु सेना अग्रणी थी। सबसे शुरुआती परियोजनाओं में से एक बोल्ड ओरियन एयर-लॉन्च बीएम (एएलबीएम) थी, जिसे बी-47 स्ट्रैटोजेट लंबी दूरी के बॉम्बर से लॉन्च किया जाना था। एएलबीएम से एक्सप्लोरर-6 उपग्रह पर एक नकली हमला शुरू किया गया, जो 6.4 किमी के भीतर से गुजरा था- इसका मतलब था कि यह परमाणु हथियार से लैस होने पर ही विनाश करेगा। इसके परिणामस्वरूप दूसरा एएसएटी कार्यक्रम-प्रोग्राम 437 था, जिसमें एलईओ उपग्रहों को रोकने के लिए थर्मो-न्यूक्लियर वारहेड के साथ थोर इंटरमीडिएट-रेंज बीएम के उपयोग की परिकल्पना की गई। इसके बाद एएसएम-135 एएसएटी हथियार का विकास हुआ, एक लघु होमिंग व्हीकल (एमएचवी) जिसे एफ-15 फाइटर जेट से लॉन्च करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिसने 13 सितंबर1985 को केडब्ल्यू के साथ 555 किमी की ऊंचाई पर यूएस सोलविंड उपग्रह को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया। अमेरिका ने एएसएटी को निर्देशित ऊर्जा हथियारों (डीईडब्ल्यू) के उपयोग के साथ भी प्रयोग किया। रॉकेट परियोजना पर बीम प्रयोग (बीईएआर) जुलाई 1989 में शुरू किया गया, जिसने 90 किमी की ऊंचाई से अंतरिक्ष में एक कण-बीम के प्रसार का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया (https://chanakyaforum.com/directed-energy-weapons1/ पर और पढ़ें)। अमेरिका द्वारा एएसएटी प्रौद्योगिकी के सफल उपयोग का अंतिम ज्ञात उदाहरण 21 फरवरी 2008 को था, जब अमेरिकी नौसेना ने एक जहाज से सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल का उपयोग करते हुए एक खराब अमेरिकी एलईओ जासूसी उपग्रह को नष्ट कर दिया। गौरतलब है कि इस परीक्षण ने पता लगाने योग्य उपग्रह मलबे के 174 टुकड़ों का उत्पादन किया, जिनमें से अंतिम लगभग दो साल बाद पृथ्वी पर गिरे।
ASM-135 ASAT MHV को 13 सितंबर 1985 को US F-15 से लॉन्च किया गया: स्रोत-विकिपीडिया
- यूएसएसआर: सोवियत संघ ने इस्त्रेबिटेल स्पुतनिकोव (आईएस) (‘उपग्रहों को नष्ट करने वाला’) कार्यक्रम के तहत 1968 में अपना पहला सफल एएसएटी हथियार परीक्षण किया। आईएस अंतरिक्ष यान रडार/ऑप्टिकल गाइडेड और ‘को-ऑर्बिटल’ था (एक/दो कक्षाओं में लक्ष्य उपग्रह तक पहुंचने के लिए डिज़ाइन किया गया था और फिर एक छर्रे को पास में विस्फोट कर नष्ट कर दिया जाता था)। सोवियत संघ ने 1960 के दशक में अल्माज़ अंतरिक्ष स्टेशन कार्यक्रम भी शुरू किया, जिसमें तीन सैल्यूट सैन्य टोही अंतरिक्ष स्टेशनों (1970 के दशक में शुरू) को रिख़्तर 23 मिमी रैपिड-फ़ायर तोप से लैस करना शामिल था। अल्माज़ श्रृंखला एकमात्र सशस्त्र, चालक दल का सैन्य अंतरिक्ष यान है। इससे कई मध्यवर्ती परीक्षण किए गए, फरवरी 1970 में सोवियत द्वारा अंतरिक्ष यान को मार गिराया गया जो दुनिया का पहला सफल परीक्षण था। इसमें 32 हिट हासिल किए, जिनमें से प्रत्येक 100 मिमी तक के कवच को भेदने में सक्षम था। शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी एएलबीएम एएसएटी हथियार विकास द्वारा प्रेरित, यूएसएसआर ने 1980 के दशक के शुरुआत में 79 एम6 कॉन्टैक्ट केडब्ल्यू विकसित किया, जिसे संशोधित मिग-31 लड़ाकू जेट से 120-600 किमी की ऊंचाई पर अंतरिक्ष यान हिट करने व लॉन्च करने के लिए डिज़ाइन किया गया था जो 24-40 अंतरिक्ष यान को 48 घंटों के भीतर नष्ट कर सकते थे! यूएसएसआर ने 1987 में पॉलीस कक्षीय हथियार मंच के लॉन्च के प्रयास के साथ, डीईडब्ल्यू के साथ भी प्रयोग किया, यह एक मेगावाट कार्बन-डाइऑक्साइड लेजर (अब तक विकसित सबसे शक्तिशाली निरंतर-वेव लेजर) के साथ सशस्त्र थी। यह परियोजना, प्रक्षेपण पर विफल रही। दावा किया गया कि स्पेस शटल चैलेंजर को 10 अक्टूबर 1984 को अपने 6 वें कक्षीय मिशन के दौरान मध्य एशिया के केंद्र टेरा-3, (एक सोवियत लेजर परीक्षण केंद्र) से इंफ्रा-रेड (आईआर) लेजर डीईडब्ल्यू द्वारा संक्षिप्त रूप से प्रकाशित किया गया था। हालांकि इस आरोप का खंडन किया गया।
- एसडीआई और बाद का युग: एएसएटी और बीएमडी सिस्टम में से प्रत्येक हाई-स्पीड स्पेस/निकट-स्पेस इंटरसेप्ट में सक्षम है। यह दोनों प्रणालियों की भूमिकाओं को बार-बार बदलने का कारण बना। एसडीआई के युग में अमेरिका और रूस बेहतर प्रणालियों को विकसित करने पर विचार कर रहे हैं, जो विरोधी के उपग्रहों को न्यूनतम/कोई संपार्श्विक क्षति के बिना नष्ट कर सकते हैं। अमेरिका ने एएसएटी के आगे विकास के लिए एमएचवी का उपयोग करने की योजना बनाई है और चार-चरण की एएसएटी विकास योजना बनायी है, जो एक उपग्रह नक्षत्र के साथ शुरू हुआ जो एलईओ में करीब 5000 केडब्ल्यू तैनात करेगा। बाद के चरणों को बड़े प्लेटफार्मों और डीईडब्ल्यू (ऊपर उल्लेखित) के लिए विकसित होना था। पहला चरण 2000 तक तैनात करने का प्रस्ताव था। रूस ने इस समय सीमा में पॉलीस के लॉन्च का प्रयास किया। इसमें शामिल खर्च ने दोनों देशों को एसडीआई से जुड़े अनुसंधान एवं विकास को कम करने के लिए मजबूर किया। हालांकि, रूसी एयरोस्पेस के लिए बेरीव-ए 60 विमान पर आधारित सोकोल-एशेलॉन लेजर डीईडब्ल्यू का विकास, रूस के एएसएटी कार्यक्रम में पुन: सक्रिय होने का प्रमाण है। रूस ने नवंबर 2015 में पहली बार नूडोल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिसे एक टीईएल से लॉन्च किया गया। अप्रैल और दिसंबर 2020 में दो डीए परीक्षणो किये गये उसके बाद नवंबर 2021 में कोस्मोसैटेलाइट हिट हुआ। अमेरिका ने इसी तरह प्रायोगिक उपग्रह प्रणाली (XSS-11) सहित अनुकूल तकनीक का विकास जारी रखा है, जो स्वचालित है कक्षीय निकायों के करीब निकटता से मारने में सक्षम है। नियर फील्ड आईआर एक्सपेरिमेंट (एनएफआईआरई), को एक केडब्ल्यू के लिए डिजाइन किया गया है।
- चीन: चीन 1964 से ही एएसएटी के शोध और विकास में लगा है। उसने तीन अलग-अलग प्रणालियों- डीएकेडब्ल्यू, डीईडब्ल्यू और माइक्रोसेटेलाइट्स के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है, जिनका इस्तेमाल ‘किल-व्हीकल’ के रूप में या केडब्ल्यू/विस्फोटक वारहेड्स को तैनात करने के लिए किया जा सकता है। 2006 में, कुछ अमेरिकी उपग्रहों को संक्षिप्त रूप से प्रकाशित करने के लिए एक लेजर का उपयोग किया गया था, इस प्रकार एएसएटी डीईडब्ल्यू का प्रदर्शन किया गया। 2008 में, चीन ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के निकट कक्षा में एक सूक्ष्म उपग्रह लॉन्च किया, जिसने इस घातक क्षमता का प्रदर्शन किया। जनवरी 2010 में, एक एससी-19 ने सीएसएस-एक्स 11 बीएम को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया, इस प्रकार दोहरी एएसएटी/एंटी-बीएम क्षमताओं का प्रदर्शन किया। मई 2013 एससी-19 का परीक्षण, एक कथित वैज्ञानिक पेलोड के साथ, जमीन का पहला परीक्षण था- जो एएसएटी पर आधारित हथियार प्रणाली थी और जिसे भूस्थिर उपग्रहों को लक्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। फरवरी 2018 में एक एक्सो-वायुमंडलीय वेक्टर, डोंग-नेंग 3 का परीक्षण भी एएसएटी हथियार परीक्षण होने की संभावना है। बताया गया है कि पीएलए ने एएसएटी इकाइयों का गठन और संचालन प्रशिक्षण शुरू कर दिया है।
- भारत : एएसएटी हथियारों के विकास में भारत का उद्यम 10 फरवरी 2010 को तत्कालीन डीआरडीओ प्रमुख और आरएम के वैज्ञानिक सलाहकार द्वारा इस घोषणा के साथ शुरू हुआ, कि भारत के पास एलईओ/ध्रुवीय कक्षाओं में विरोधी उपग्रहों को नष्ट करनेवाली एएसएटी प्रणाली विकसित करने के लिए सभी संसाधन मौजूद हैं। भारत 27 मार्च 2019 को मिशन शक्ति के साथ उन मुट्ठी भर देशों में शामिल हो गया, जिसमें जमीन से लॉन्च किए गए केडब्ल्यू ने 300 किमी की ऊंचाई पर एलईओ में माइक्रोसैट-आर (एक स्वदेशी प्रयोगात्मक इमेजिंग उपग्रह) को सफलतापूर्वक मार गिराया। एलईओ लक्ष्य का चयन यह सुनिश्चित करना था कि मलबा कम से कम समय में धरती पर गिरे। इस परीक्षण में उपग्रह के मलबे के 270 टुकड़ों को ट्रैक किया गया। भारत ने आक्रामक नहीं केवल निवारक एएसएटी क्षमताओं को विकसित करने का उद्देश्य रखा है। फलस्वरूप अंतरिक्ष के हथियारीकरण के खिलाफ एक संधि के तहत रूस-चीनी प्रस्ताव में शामिल होने के लिए रूस ने भारत को निमंत्रण दिया है।
मिशन शक्ति एएसएटी सिस्टम का स्क्रीनग्रैब: स्रोत-डीआरडीओ
- इजराइल: इज़राइल एक सक्रिय एएसएटी कार्यक्रम का अनुसरण कर रहा है या नहीं इस संदर्भ में बहुत कुछ ज्ञात नहीं है। हालांकि, इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज और यूएस के बोइंग ने संयुक्त रूप से एरो-3 एक्सो-वायुमंडलीय हाइपरसोनिक एंटी-बीएम वाहन विकसित किया है। किल-व्हीकल में थ्रस्ट-वेक्टर-कंट्रोल क्षमता होती है, जो इसे अंतरिक्ष-आधारित लक्ष्यों की ओर जल्दी से मोड़ने की अनुमति देती है। इन क्षमताओं ने इज़राइल अंतरिक्ष एजेंसी के अध्यक्ष को एएसएटी हथियार के रूप में कार्य करने के लिए वेक्टर की क्षमता में विश्वास व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया हो सकता है।
एएसएटी हथियार एक वरदान है या अभिशाप?
यह स्पष्ट है कि एएसएटी हथियार सैन्य प्रौद्योगिकी के अत्याधुनिक दौर का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें विरोधी के अंतरिक्ष यान को अपंग करने की क्षमता है। इनमें डीएएएसएटी हथियारों या अंतरिक्ष-आधारित उपग्रहों द्वारा केडब्ल्यू/ईएम मारने का विकल्प है। गौरतलब है कि उपग्रह संसाधनों के संदर्भ में लक्षित राष्ट्र के पास पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होने की संभावना है, जिसका अर्थ यह होगा कि किसी भी ‘उपग्रह-हत्या’ से अस्थायी व्यवधान होने की संभावना है। एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि लगभग 10 किमी/सेकंड (36,000 किमी प्रति घंटे) की यात्रा करने वाले लक्ष्य को उपग्रह के मार्ग में एक छोटे से परिवर्तन से नकारा जा सकता है, इस प्रकार हत्या के प्रयास को विफल किया जा सकता है। अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ, चीन और जापान (भारत के भी जल्द ही इस समूह में शामिल होने की संभावना है) की उपग्रह प्रणालियों को लक्षित करना आसान नहीं हैं, इनके उपग्रहों की उड़ान ऊंचाई 20,000 किमी से अधिक होने के कारण यह अधिक गंभीर चुनौती है। संचार उपग्रहों के भी समान ऊंचाई पर परिक्रमा करने की संभावना है। अंतरिक्ष-आधारित एएसएटी और डीईडब्ल्यू (लेजर्स/माइक्रोवेव्स) का उपयोग इनमें से कुछ नुकसानों को दूर कर सकता है, लेकिन इसमें गहन प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं और निषेधात्मक लागतों की जरूरत होगी।
केडब्ल्यू एएसएटी के उपयोग का एक और खराब परिणाम खतरनाक अंतरिक्ष मलबे का निर्माण है, जो पृथ्वी पर नष्ट होने/गिरने में कई वर्षों का समय लेता है, जो स्वयं/अनुकूल अंतरिक्ष यान के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करता है। यह केसलर सिंड्रोम में भी योगदान देता है, एक ऐसा परिदृश्य जिसमें यह मलबा एलईओ में वस्तुओं के घनत्व को काफी बढ़ा देता है, जिससे एक टकराव का खतरा होता है। इससे आगे भी मलबा उत्पन्न होता है, जिससे भयावह टकराव होने की संभावना रहती है जो सभी अंतरिक्ष यानों को खतरे में डाल सकता है। अंतरिक्ष के कामकाज पर गंबीर असर डाल सकता है।
उच्च ऊंचाई वाली कक्षा से दिखाई देने वाला अंतरिक्ष मलबा: स्रोत-विकिपीडिया
निष्कर्ष
‘स्टार-वार्स’ तकनीक की संभावना किसी भी देश की अंतरिक्ष-आधारित प्रौद्योगिकी के विकास का परिचय देती है लेकिन राष्ट्रों को सावधानी के साथ एएसएटी प्रौद्योगिकी के विकास के इस मार्ग पर आगे बढ़ना होगा। ऐसा न हो कि दुनिया को भविष्य में तकनीकी भयावहता का सामना करना पड़े। तकनीकी विकास की होड़ में हम वैश्विक प्रौद्योगिकी ब्लैकआउट के दौर में पहुंच सकते हैं जिसे शीत युद्ध-युग के पारस्परिक विनाश का समकक्ष कहा जा सकता है।
****************************************************************************
POST COMMENTS (0)