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तालिबन से जानबूझकर हारा अमेरिका

मुरसल नूरजई
बुध, 20 अक्टूबर 2021   |   8 मिनट में पढ़ें

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के अनुसार, “15 अगस्त 2021 को  अफ़ग़ानिस्तान का पतन उम्मीद से  ज्यादा तेजी से हुआ। जब तालिबान ने अफगानिस्तान के सभी प्रमुख शहरों को एक-एक करके अपने कब्जे में ले लिया तो पासपोर्ट और वीजा एजेंसियां खुश हो गईं। हालाँकि, मैं यह कहना चाहूंगी कि अमेरिका ने तालिबान को चांदी के थाल में परोसकर अफगानिस्तान  दिया।

मेरा सवाल यह है कि आखिर यह उम्मीद क्यों की जा रही थी कि अफगानिस्तान पर दोबारा तालिबान का शासन नहीं होगा? तालिबान को विदेशी दान, नशीली दवाओं के व्यापार, अवैध कर जैसे आय के अनेक स्रोतों को विकसित करने के लिए जाना जाता है और इन सब के साथ हमें खदानों और खनिजों को भी नहीं भूलना चाहिए। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में तालिबान ने 1.5 अरब डॉलर की सलाना कमाई की। रिपोर्ट में पाकिस्तान, ईरान, रूस द्वारा तालिबान को दी जाने वाली वित्तीय सहायता की जानकारी भी शामिल है, जिसमें पाकिस्तान और सऊदी अरब, यूएई और कतर सहित खाड़ी देशों के  कई नागरिक भी शामिल हैं-हालांकि इन सब का लगातार खंडन किया जाता रहा है।

तालिबान अब एक ऐसे देश पर शासन कर रहा है जो अफीम की दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसका अनुमानित वार्षिक निर्यात मूल्य $1.5 बिलियन से $3 बिलियन तक है और उसके पास खनन उद्योग भी है जिसका वार्षिक मूल्य $1 बिलियन है। इसके अलावा हमें  अमेरिकी सेना द्वारा तालिबान के लिए छोड़ी गई लाखों डॉलर की मशीनरी और विस्फोटक सामग्री को भी नहीं भूलना चाहिए।

जो बाइडेन ने कहा कि, “अफगानिस्तान के राजनीतिक नेताओं ने हार मान ली और देश छोड़कर भाग गए”। मैं बयान का विरोध नहीं करती; हालाँकि, यह रातों रात नहीं हुआ।  दोहा समझौता, आतंकवादी संगठनों से  बातचीत, आतंकवादियों को अपनी आवाज उठाने और बातचीत करने का अधिकार देना अमेरिकी सरकार की सबसे बड़ी गलती थी।

पिछले 20 वर्षों के संघर्ष के दौरान 50,000 अफगान नागरिक मारे गए। अमेरिका ने अफगानिस्तान में 2,325 सेवा कर्मियों को खो दिया और 20,000 से अधिक घायल हो गए। अफगानिस्तान ने अपनी सेना के 66,000 से अधिक जवानों को खोया। ऐसा कहा जाता है कि अफगानिस्तान के युद्ध पर अमेरिका ने 2.26 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए हैं और लगभग 130,0000 नाटो सदस्यों को अफगानिस्तान में तैनात किया गया। हालांकि वास्तविक  संख्या अलग है, लेकिन कागजों में अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों के पास 300,000 सैनिक थे। यह सब किस लिए? पुराने तालिबान शासन को एक नए तालिबान शासन में बदलने के लिए।

यह सारा पैसा और संसाधन, जो अफगानिस्तान की सहायता के लिए था, उसे अफगानिस्तान के भ्रष्ट राजनेताओं ने ले लिया। क्या अमेरिका ने इस बात पर नज़र नहीं रखी कि उनका पैसा और संसाधन  कहाँ और कैसे खर्च किए जा रहे थे? और यह मानवीय रूप से कैसे संभव है कि तालिबान अकेले इतनी अधिक शक्ति और संसाधनों पर कब्जा कर पाया?

नाटो, अमेरिका और भ्रष्ट अफगान सरकार, सभी तालिबान द्वारा सभी छोटे प्रांतों पर व्यवस्थित रूप से कब्जा करने का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ लोगों ने इसे बम वर्षा कहा, लेकिन वास्तविकता यह है कि तालिबान के कमांडर देश भर के लोगों से बातचीत कर रहे थे और सैनिकों के सामने अपनी रणनीति बना रहे थे।

मैं समझती हूं कि कई तरह के जातीय मतभेदों और भूवैज्ञानिक जटिलताओं के कारण, अफगानिस्तान को एक केंद्रीय सरकार की जरूरत थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य क्षेत्र कम महत्वपूर्ण हैं और उन्हें नजरअंदाज किया जाना चाहिए था। मेरे विचार से यह उनकी कमजोरी थी, जिसका इस्तेमाल तालिबान ने ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों और कम  पढ़े लिखे लोगों को नियंत्रित करने के लिए किया।

अफगानों को यह स्पष्ट है कि तालिबान, अल-कायदा, आईएस और हक्कानी सभी समूह  आतंकवाद फैलाने, इस्लाम की झूठी छवि बनाने, नुकसान करने और अपने हानिकारक एजेंडे के लिए अफगान धरती का इस्तेमाल करने, निर्दोषों की हत्या करने, अफगान लोगों और विशेष रूप से अफगान महिलाओं पर सभी तरह के प्रतिबंध लगाने के एजेंडे में एक समान ही है। अफगान न केवल अमेरिका से निराश हैं, जिसने तालिबान को सुविधा दी और उसे शक्तिशाली बनाया, बल्कि पाकिस्तान जैसे अपने पड़ोसी देशों से भी निराश हैं, जिन्होंने इस प्रक्रिया में अमेरिका की मदद की और चरमपंथी समूहों को शरण दी।

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान के अनुसार, “अफगानिस्तान के लोग पश्चिमी देशों की मानसिक गुलामी में जी रहे थे और अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ, अफगानों ने मानसिक गुलामी की इन जंजीरों को तोड़ दिया है”। पाकिस्तानी प्रधान मंत्री इमरान खान आतंकवादी संगठन तालीबान की लगातार प्रशंसा कर रहे हैं। जिसकी वजह से अफगान और दुनिया भर के लोग उनकी विचारधारा और आतंकवादियों को उनके अनुचित समर्थन के बारे में  विचार करने लग गये हैं।

वर्ष 1996 के दौरान जब तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया था तब, पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात उन्हें  मान्यता देने वाले पहले देशों में थे और अब 2021 में फिर से अभी तक सबसे पहले पाकिस्तान, सऊदी अरब, रूस और चीन ने ही तालिबान शासन को मान्यता दी है। हम एक लोकतांत्रिक और आधुनिक दुनिया में रहने का दावा करते हैं, लेकिन हम पाखंड से भरी दुनिया में रहते हैं, जहां अफगानिस्तान पर जबरन और गैरकानूनी तालिबानी कब्जा होता जा रहा है। एक देश हमेशा अपने लोगों द्वारा बनाया जाता है और अफगानिस्तान के लोग हमेशा आतंकवाद और आतंकवादियों के खिलाफ थे।

अमेरिकी युद्ध को देर-सबेर समाप्त होना ही था, लेकिन जिस तरह से अमेरिका ने पीछे हटने का फैसला लिया वह एक मजाक की तरह था और इससे कई सवाल खड़े हो गये हैं। गठबंधन सेना की मदद करने वाले हजारों अफगानों ने खुद को और अपने परिवार के जीवन को बचाने के लिए तालिबान से शरण मांगी। सैनिकों की वापसी से पहले अमेरिका ने इन नागरिकों को क्यों नहीं निकाला? वे इस प्रक्रिया में अराजकता और सैकड़ों मौतों को बचा सकते थे।

1996  से 2001 के बीच तालिबान शासन से पीड़ित अफगान अब लोगों के साथ मिलकर काम करने और तालिबान शासन के तहत सभी अफगानियों को सुरक्षित रखने के  तालिबान के वादे को स्वीकार नहीं करेंगे।

आज अफ़ग़ानिस्तान के लोग अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, ख़ासकर अमेरिका का उन्हें  इस तरह छोड़ देने  से विश्वासघात महसूस कर रहे हैं। अमेरिका ने 5 जुलाई, 2021 को अफगान अधिकारियों को सूचित किए बिना, आधी रात को अफगान बाघराम हवाई क्षेत्र छोड़ दिया। अमेरिका को यह पता था कि अफगान राष्ट्रीय सेना पूरी तरह से अमेरिकी हवाई सहायता, चिकित्सा सहायता और सबसे महत्वपूर्ण रसद जैसे भोजन और वेतन पर ही निर्भर है।

अशरफ गनी ने अपने लोगों को तालिबान के हाथों छोड़ दिया और यह रिपोर्ट  भी मिली कि उन्होंने 169 मिलियन डॉलर की चोरी की और अपने ही देश को तथा उसके लोगों को लूटा, जिन्होंने उन पर विश्वास किया और उन्हें वोट दिया था। जब विदेशी सैनिक और सदस्य मारे जाते हैं, तो उन्हें नायक कहा जाता है, लेकिन उन लाखों अफगानों का क्या जो पिछले 40 वर्षों में मारे गए हैं? अफ़ग़ानिस्तान के उन मासूम बच्चों का क्या जिन्होंने अपनी जान गंवाई, उनके माता-पिता, साथ ही जो लोग अभी भी जीवित हैं, लेकिन बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित हैं और लगातार चल रहे आतंकवाद और गरीबी के निशाने पर हैं? अफगान परिवारों के सदस्यों के नुकसान के बारे में क्या? अफ़ग़ानिस्तान की उन मासूम महिलाओं का क्या, जिनकी ग़लती बस यही है कि वे अफ़ग़ानिस्तान में पैदा हुई हैं? इसके लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए?

हालांकि तालिबान ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया, लेकिन वे अफगानिस्तान में जातीय समूहों को निशाना बना रहे हैं, शिया और हजारा जैसे अल्पसंख्यकों को मार रहे हैं, स्थानीय अफगानों के बीच नफरत और डर पैदा कर रहे हैं, अफगानिस्तान की एक पीढ़ी को नष्ट कर रहे हैं और महिलाओं को  उच्च शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में काम करने वाली अफगानी महिलाओ को उनके मूल अधिकारों से वंचित कर रहे हैं। महिलाओं को घर पर रहने के लिए कहा जाता है और उन्हें अपनी इच्छानुसार कपड़े पहनने या पुरुषों के साथ के बिना अपने घर छोड़ने की अनुमति नहीं दी जा रही है और यहां तक ​​कि रंगीन कपड़े और ऊँची एड़ी के जूते पहनने से भी मना किया जाता है, क्योंकि तालिबान के अनुसार ये पुरुषों को लुभाने के तरीके हैं।

हाल ही में अफगान मस्जिदों में हुए हमले और हत्याएं और साथ ही 26 अगस्त को काबुल हवाईअड्डे पर हुए हमले, जिसमें 13 अमेरिकी सैनिक और सैकड़ों अफगान मारे गए थे, को आईएस का काम माना जा रहा है। हालिया समाचारों में तालिबान को अफगानों के रक्षक के रूप में दर्शाया गया है और आईएस को अफगान धरती पर नए आतंकवादियों के रूप में  बताया गया है, जिससे यह महसूस होता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तालिबान की एक अच्छी छवि बना रहा है और अफगानिस्तान में एक सक्रिय शासन के रूप में उसकी पहचान  सुनिश्चित कर रहा है।

जबकि मेरे जैसे लोग अफगानिस्तान के निर्दोष लोगों के लिए लगातार आवाज उठा रहे हैं और उनकी ओर से बोलते रहे हैं,। हम आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान के आईएसआई जैसे आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का अनुरोध करते हैं; इसके विपरीत, अमेरिका ने तालिबान और उनकी आतंकवादी गतिविधियों को उसी दिन मान्यता दे दी थी,  जब उन्होंने उनके साथ दोहा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

अमेरिका का तालिबान के अस्तित्व को स्वीकार करना और उनके साथ वार्ता करना उन्हें मान्यता देने का कार्य ही है। यह केवल समय की बात है जब अमेरिका और अन्य देश  अपने  द्वारा बनाये गये और घोषित आतंकवादी समूहों के साथ व्यापार करना शुरू कर देंगे।

अब तक तालिबान उन शरिया कानूनों के बारे में ब्योरा देने में विफल रहा है जिन पर वे विश्वास करते हैं और उनका पालन करते हैं। शरिया कानून की उनकी झूठी व्याख्या उनके एनाल्फैबेटिक होने के सबूत से ज्यादा कुछ नहीं है। तालिबान आधुनिक तकनीक का उपयोग करने, सोशल मीडिया, पश्चिमी भाषाओं के उपयोग, अधिक कूटनीतिक दिखने की कोशिश से, समाचार चैनलों का उपयोग अपने प्रचार प्रसार के लिए करने, अधिक वैध लगने की कोशिश करने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त करने की चाहत में रणनीतिक रूप से अपने आप को बदला हुआ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन वे उतने ही क्रूर हैं जितने वे पहले कभी थे।

साथ ही इन सभी आधुनिक संसाधनों की वजह से ये और भी खतरनाक हो गए हैं। अफगानिस्तान की महिलाएं एक अनिश्चित स्थिति में हैं क्योंकि कुछ लोगों को उम्मीद है कि आज का तालिबान अधिक उदार हो सकता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकांश  लोग जानते हैं कि तालिबान बिल्कुल भी नहीं बदला है।

आतंकवादी संगठन हत्याओं का अभ्यास कर रहे हैं। अकेले 2021 में लगभग आधा मिलियन अफगान विस्थापित हुए। विश्व खाद्य कार्यक्रम का अनुमान है कि अफगानिस्तान में 14 मिलियन लोगों के खाद्य सहायता के बिना भूख से मरने का खतरा है और यूनिसेफ ने बताया है कि हाल के सप्ताहों में अफगानिस्तान में कोविड टीकाकरण में 80% की गिरावट आई है।

14 जुलाई 2021 को गेटस्टोन संस्थान द्वारा प्रकाशित एक लेख में उल्लेख किया गया है कि “अफगान से वापसी ने चीन के लिए रास्ता खोल दिया” – चीन अफगानिस्तान के साथ 47 मील लंबी सीमा साझा करता है, जो इसे चीन के लिए व्यापार का एक आदर्श स्रोत बनाता है।  इससे पाकिस्तान को फायदा होगा। इसमें कोई शक नहीं कि इमरान खान, जिन्हें कभी “तालिबान खान” कहा जाता था, न केवल इस बात को मानते है बल्कि वह चीन और तालिबान के बीच सहयोगी की भूमिका भी निभाना चाहते हैं।

कई लोग सोच सकते हैं कि यह एक अफगानिस्तानी संकट है, परंतु यह अंतरराष्ट्रीय संकट है, जिसमें आतंकवादी संगठन अन्य देशों से मान्यता प्राप्त कर रहे हैं और आतंकवादियों को उनकी बुराई का अभ्यास करने के लिए जगह दे रहे हैं। अफ़गानों ने बहुत कुछ खोया है और  इस बात की किसी को परवाह नहीं है कि कितने अफ़ग़ान मारे जा रहे हैं या कितने अफ़ग़ान अपने घर या मातृभूमि को आतंकवादियों के हाथों खो चुके हैं। यह सब अभी खत्म नहीं हुआ है।

आतंकवाद का नया युग अभी शुरू हुआ है और इस बार यह अधिक लोकतांत्रिक होगा। चूंकि चीन मध्य एशिया तक विस्तार करने और अपनी उपस्थिति को मजबूत करने की योजना बना रहा है। अफगानिस्तान के बचे हुए लोगों को चीनी और पाकिस्तानी गुलामों के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।

सवाल यह है कि तालिबान और अन्य लोगों को अफगानिस्तान किसने बेचा? क्या यह  डोनाल्ड ट्रम्प या वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो. बाइडेन हैं? परंतु इसके परिणाम भुगतने वाला एकमात्र देश अफगानिस्तान, उसके लोग और वे लोग होंगे जो इस शासन का विरोध करेंगे। भविष्य अभी बाकी है – लेकिन जो अंजान हैं, उन्हें बता दें कि यह अफगानिस्तानी खून की कीमत पर सत्ता और पैसे की लड़ाई है और इससे भी बदतर अभी आना बाकी है।

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स्रोत : –

  1. https://www.bbc.com/news/world-46554097
  2. Afghan Withdrawal Opens the Way for China : Gatestone Institute
  3. Imran Khan speaks on Taliban takeover, praises them for ‘breaking chains of slavery’ in Afghanistan – YouTube
  4. Which 6 Countries Are ‘Welcoming’ the Taliban Rule of Afghanistan? | Al Bawaba
  5. Clarissa Ward presses Taliban fighter on treatment of women – YouTube
  6. History and the Recognition of the Taliban – Lawfare (lawfareblog.com)
  7. United Nations Security Council Debate on the Fall of Afghanistan | C-SPAN.org

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लेखक
मुरसल नूरजई एक अफगानी एक्टिविस्ट हैं।

अस्वीकरण

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