• 03 December, 2024
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अब्‍दुल हमीद से टकराकर चकनाचूर को गया था पाकिस्‍तान का ‘फौलादी मुक्‍का’

कर्नल शिवदान सिंह
सोम, 06 दिसम्बर 2021   |   11 मिनट में पढ़ें

1965 के भारत-पाक युद्ध में खेमकरण के असल उत्तर मैदान में पाकिस्तान के 21 पैटन टैंकों को बर्बाद करके उसके फौलादी मुक्के को चकनाचूर करने वाले भारतीय सेना के हवलदार अब्दुल हमीद की वीरता और साहस भारतीय सैनिकों में प्रेरणा का नया संचार करती है। मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्‍मानित अब्‍दुल हमीद की वीरगाथा के हर शब्‍द रोंगटे खड़े करने वाले मन में राष्‍टभक्ति पैदा करते हैं।

1947 में विभाजन के बाद से ही पाकिस्तानी सेना जम्मू कश्मीर पर कब्जा करना चाहती थी। इसके लिए उसने अक्टूबर 1947 में कश्मीर पर हमला कर दिया जिसमें भारतीय सेना ने उसे करारा जवाब देते हुए पीछे धकेला। परंतु कश्मीर पर कब्जा करने के नाकाम इरादों को पूरा करने के लिए पाकिस्तानी सेना सदैव अपनी कोशिश करती रही। इसी के अंतर्गत  उसने 1965 में पहले ऑपरेशन जिब्राल्टर के द्वारा घुसपैठियों को घाटी में भेजा। जब इसमें सफलता नहीं मिली तो उसने ऑपरेशन ग्रैंडसलाम शुरू किया। इसके द्वारा वह जम्मू श्रीनगर राजमार्ग पर कब्जा करके कश्मीर घाटी को भारत के शेष भाग से अलग करना चाहता था। अपने इस वादे को पूरा करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मीर के अखनूर क्षेत्र में हमला कर दिया। इस हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने इस हमले के जवाब में लाहौर-सियालकोट सेक्टर में हमला किया। इस भारतीय सेना के हमले को रोकने के लिए पाकिस्तान ने अपनी टैंक डिवीजन को अखनूर से लाकर अमृतसर के खेमकरण में हमले के लिए लगा दिया।

पाकिस्तान उस समय अपनी इस आर्मर्ड डिविजन को फौलादी मुक्का कहकर पुकारता था और वह सोचता था कि अमेरिका के आधुनिक टैंकों से सुसज्जित इस डिवीजन का भारत के पास कोई जवाब नहीं है। क्योंकि उस समय भारत सरकार अपना ध्यान देश के पुनर्निर्माण पर ज्यादा दे रही थी। इसलिए 1965 तक भारतीय सेना पुराने हथियारों और टैंकों से ही देश की सीमाओं की सुरक्षा कर रही थी। पाकिस्तान के इसी फौलादी मुक्के के 21 आधुनिक पैटन टैंकों को बर्बाद कर भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर इन्फेंट्री बटालियन के हवलदार अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान का फौलादी मुक्का कहे जाने वाली फर्स्ट आर्मर्ड डिविजन के लिए असल उत्तर के मैदान को कब्रगाह में बदल दिया था, जिसमें पाकिस्तान के 120 टैंक आज भी अपनी बर्बादी की कहानी इस मैदान में कह रहे हैं। अमृतसर में आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आज भी पाकिस्तान के इस टैंकों के कब्रगाह को दिखाने के लिए ले जाया जाता है।

 

ऐसे बना 1965 के भारत-पाक युद्ध का माहौल

1947-48 के हमले के नाकाम होने के बाद पाकिस्तानी सेना भारत पर हमला करने के लिए उपयुक्त मौका तलाश कर रही थी। दुर्भाग्य से 1962 में भारत-चीन युद्ध में भारतीय सेना को मिली असफलता के कारण पाकिस्तानी सेना को यह विश्वास हो गया कि भारतीय सेना अभी युद्ध के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसके पास आधुनिक हथियार नहीं हैं और 1962 के युद्ध में मिली असफलता के कारण भारतीय सेना का मनोबल काफी नीचे गिर चुका है। पाकिस्तान के इस विश्वास का मुख्य कारण आजादी के बाद भारत सरकार की राष्ट्र निर्माण को प्राथमिकता बनाकर देश का ज्यादातर बजट देश के विकास पर खर्च करना था। जिसके कारण भारतीय सेना को आधुनिक हथियार, टैंक और गोला बारूद उपलब्ध नहीं हो सका। सरकार की इस नीति के कारण देश के दुर्गम क्षेत्रों में जिनमें उत्तर पूर्व का पहाड़ी क्षेत्र भी शामिल है, यहां पर संचार व्यवस्था का पूर्ण विकास नहीं हो सका। जिसके कारण भारतीय सेना अपनी पूरी क्षमता के द्वारा 1962 के युद्ध में अपना पराक्रम नहीं दिखा पाई। इसी समय में भारत के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की मृत्यु हो गई और उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बन गए। उनको देखकर पाकिस्तान के मिलिट्री तानाशाह अयूब खान ने यह सोचा के यह साधारण सा आदमी कोई सख्त निर्णय नहीं ले पाएगा और हम आसानी से भारत से कश्मीर छीन लेंगे। परंतु 1965 के युद्ध में भारतीय सेना ने अपने पुराने गोला बारूद और हथियारों से ही पाकिस्तान को परास्त करके उसे अपनी शक्ति का एहसास करा दिया था और साधारण सा दिखने वाले भारत के प्रधानमंत्री कितने मजबूत इरादों के व्यक्ति हैं, यह भी समझा दिया था।

वर्ष 1965 के युद्ध की स्‍वर्ण जयंती पर दिल्‍ली में आयोजित शौर्यांजलि प्रदर्शनी में दिखाया गया युद्ध क्षेत्र।

आसान जीत की लालच में पाकिस्‍तानी मौत के मुंह में आए

उपरोक्त हालातों ने पाकिस्तानी सेना ने 1965 में पूरा भरोसा दिला दिया कि अब समय आ गया है जब आसानी से कश्मीर घाटी पर कब्जा किया जा सकता है। इसलिए उसने ऑपरेशन जिब्राल्टर के असफल होने के बाद अगस्त 1965 में ही जम्मू क्षेत्र के अखनूर सेक्टर में छूम्ब-जोरीयन क्षेत्र में अपनी फर्स्ट डिवीजन के द्वारा हमला करा दिया। इस हमले का मुख्य उद्देश्य अखनूर के क्षेत्र से आगे बढ़कर जम्मू- श्रीनगर राजमार्ग पर कब्जा, जिससे घाटी का पूरा क्षेत्र देश के मुख्य भाग से कट जाए और आसानी से पाकिस्तान सेना कश्मीर घाटी पर कब्जा कर ले। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के इस हमले को नाकाम करने के लिए उसके सबसे संवेदनशील शहर लाहौर पर दबाव बनाने के लिए उसके लाहौर-सियालकोट क्षेत्र में जवाबी हमला कर दिया। जिसको देखते हुए पाकिस्तानी सेना ने अखनूर क्षेत्र से अपनी 1 आर्मर्ड डिविजन को हटाकर इसे भारत के खेमकरण क्षेत्र में भेजने की योजना बनाई। पाकिस्तान के इस हमले को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना की 4 माउंटेन डिविजन को जिम्मेवारी दी गई जिसकी 4 ग्रेनेडियर इन्फेंट्री बटालियन हिस्सा थी। जिस समय इस बटालियन को इस ऑपरेशन का हिस्सा बनाया गया उस समय यह बटालियन अपनी पूरी संख्या के अनुसार तैयार नहीं थी। क्योंकि इस बटालियन की एडवांस पार्टी चीन और हिमाचल की सीमा पर बटालियन की तैनाती में गई थी, जिसमें बटालियन के दो मेजर रैंक के अधिकारी और 110 जवान थे। इसलिए इस समय बटालियन में केवल 600 सैनिक थे और इसकी ब्रावो और चार्ली कंपनी को लेफ्टिनेंट और कैप्टन स्तर के अधिकारी कमांड कर रहे थे। अब्दुल हमीद चार्ली कंपनी में तैनात थे।

भारतीय सेना ने पहले घेरा, फि‍र मारा

6 सितंबर 1965 को बटालियन को भारत-पाकिस्तान के सीमा पर बहने वाली इच्‍छोगिल नहर पर पन्नू नाम के पुल पर कब्जा करने का आदेश मिला। बटालियन ने अपने मिशन को पूरा करने के लिए नहर की तरफ बढ़ना शुरू किया जिसकी सूचना मिलने पर पाकिस्तान ने इस नहर में पानी बढ़ा दिया जिसके कारण इस बटालियन के सैनिकों को पांच 5 फीट गहरे पानी में होकर आगे बढ़ना पड़ा। इसी दौरान पाकिस्तानी सेना ने नहर को पार करने वाले ग्रेनेडियर के सैनिकों पर जबरदस्त फायर करना शुरू कर दिया। परंतु भारतीय सेना के इन बहादुर जवानों ने पानी में छुप-छुप कर अपनी जान बचाई और इस मिशन को सुबह 11:00 बजे तक ही पूरा कर दिया। भारतीय सेना की इस कामयाबी को देखते हुए पाकिस्तान ने अपनी फर्स्ट आर्मर्ड डिविजन को खेमकरण की तरफ आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। 6 सितंबर की रात में ही पन्नू पुल पर कब्जे के बाद ग्रेनेडियर बटालियन को पाकिस्तान की आर्मर्ड डिविजन के विरुद्ध खेमकरण में खेमकरण-अमृतसर सड़क के दोनों तरफ मोर्चा संभालने के आदेश प्राप्त हो गए। इसको देखते हुए 7 सितंबर की सुबह ही बटालियन ने अपने नए मोर्चे को संभालने के लिए नहर के पन्नू पुल से पैदल मार्च करना शुरू कर दिया और दिन में 4:00 बजे तक बटालियन अमृतसर क्षेत्र के चीमा और खेमकरण के बीच स्थित असल उत्तर गांव के आगे मोर्चा संभालने के लिए पहुंच गई। पाकिस्तान की आर्मर्ड डिवीजन के कभी भी यहां पहुंचने की आशंका में बटालियन के जवानों ने उसी समय पहुंचकर अपने मोर्चे खोदने शुरू कर दिए और 7 सितंबर की रात में मोर्चे तैयार करके ग्रेनेडियर के सैनिक पाकिस्तान की सेना का मुकाबला करने के लिए इंतजार कर रहे थे।

अब्दुल हमीद के गोलों ने उड़ाए पाकिस्‍तानी टैंक और दुश्‍मन के होश भी

अमृतसर क्षेत्र में जुलाई से अक्टूबर तक मानसून सीजन रहता है। जिसमें यहां पर खूब बारिश होती है और इस क्षेत्र में इस मौसम में गन्ने की फसल बढ़ जाती है। जिसके कारण इस क्षेत्र में दूर तक केवल गन्ने ही गन्ने नजर आते हैं इसलिए यहां पर आसपास के क्षेत्र पर नजर रखने में गन्ने के खेतों के कारण मुश्किल आती है। इसके साथ-साथ मानसून होने के कारण यहां की जमीन दलदली हो जाती है और इसमें मच्छरों और जंगली कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। जिस समय ग्रेनेडियर बटालियन के सैनिक  इस क्षेत्र में पहुंचे उससे पहले इस बटालियन के सैनिक 3 दिन तक सो नहीं सके थे। क्योंकि 5 सितंबर से इस बटालियन के सैनिक पहले इच्‍छोगिल नहर के लिए प्रयासरत थे और उसके बाद उन्हें असल उत्तर का मोर्चा संभालने का आदेश मिला। इसी के कारण इस बटालियन के सैनिकों ने 3 दिन तक न आराम किया और न ही इन्हें ढंग से खाना मिल पाया। परंतु इस मुश्किल हालात में भी बटालियन के वीर सैनिकों ने असल उत्तर गांव के आगे अपने मोर्चे 8 सितंबर की सुबह तक अच्छी प्रकार से संभाल लिए थे। हवलदार अब्दुल हमीद इस समय अपनी आरसीएल तोप के साथ चार्ली कंपनी को दुश्मन के टैंकों से सुरक्षा देने के लिए तैयार थे। 8 सितंबर की सुबह 11:00 बजे दुश्मन की एक टैंकों की टोली जिसमें तीन टैंक थे वह चार्ली कंपनी की तरफ आगे बढ़ती नजर आई। नजर आते ही अब्दुल हमीद ने आगे आने वाले टैंक को निशाना बनाते हुए अपनी गन का गोला फायर कर दिया। इससे पूरे टैंक में आग लग गई। इसको देखकर  इस टैंक के आसपास के दोनों टैंकों में मौजूद पाकिस्तानी सैनिक अपने टैंकों को चालू हालत में ही छोड़कर भाग गए। इसके कुछ ही देर बाद 11:30 बजे दूसरी पाकिस्तानी टैंकों की टोली चार्ली कंपनी की तरह आगे  बढ़ती नजर आई। इसमें भी एक टैंक आगे था और दो उसके आस-पास थे इनको भी देखते ही हमीद ने  उसी प्रकार आगे आने वाले टैंक में अपनी आरसीएल तोप के गोले से आग लगा दी। पहले की तरह ही आसपास के टैंकों को पाकिस्तानी सैनिक फिर छोड़ कर भाग गड़े हुए। इसी प्रकार पाकिस्तान ने तीसरा हमला दिन में 2:30 बजे बराबर में तैनात ग्रेनेडियर बटालियन की ब्रावो कंपनी पर किया। इसको इस कंपनी के साथ आरसीएल गन पर तैनात सैनिक सुखपाल और जयराम ने मुकाबला करते हुए दुश्मन के 2 टैंकों में आग लगा दी और तीसरे टैंक को पाकिस्तानी सैनिक छोड़कर कर भाग खड़े हुए। दिन में 2:30 बजे तक ब्रावो और चार्ली कंपनी के सामने दुश्मन के 9 टैंक बर्बाद हो चुके थे जिनमें 4 टैंक भारतीय सैनिकों के दवारा बर्बाद हुए थे और 5 को पाकिस्तानी स्वयं छोड़कर भाग गए।

भारतीय सेना ने की पाकिस्‍तानी टैंकों के स्‍वागत की तैयारी

8 सितंबर को ही पाकिस्तानी टैंकों की इस क्षेत्र में हलचल को देखकर 4 ग्रेनेडियर बटालियन के कमान अधिकारी ने अपने ब्रिगेड कमांडर से उनके क्षेत्र में एंटी पर्सनल और एंटी टैंक माइन (बारूदी सुरंगे) लगाने के लिए मांग की। इसको देखते हुए 9 सितंबर की सुबह तक डिवीजन की इंजीनियर कंपनी ने इस पूरे क्षेत्र में यह दोनों प्रकार की माइन लगा दी थी। 9 सितंबर की सुबह ही अचानक पाकिस्तान के सेवर जेट लड़ाकू विमानों ने इस क्षेत्र में भारी बम बरसा की परंतु यहां पर तैनात भारतीय सैनिकों ने अपने मोर्चों में अपनी रक्षा की और इस प्रकार दुश्मन के हवाई हमले को नाकाम कर दिया। 8 सितंबर की तरह ही पाकिस्तान के टैंकों ने सुबह 9:30, 11:30 और दिन में 2:30 बजे पहले की तरह ही  टँको के हमले किए और 8 सितंबर की तरह ही हवलदार अब्दुल हमीद और ब्रावो कंपनी के हवलदार वीर सिंह ने दुश्मन के 9 टैंकों को फिर बर्बाद कर दिया। इसके अलावा पाकिस्तानी सैनिकों ने जब भारतीय सैनिकों के मजबूत मोर्चा को देखा तो वे भारतीय सैनिकों को चकमा देने के लिए इस क्षेत्र में लगी  माइन में घुस गए जिसके कारण भी उनके और कई टैंक वहां पर बर्बाद हो गए। बार-बार पाकिस्तानी टैंकों की टोलियां ग्रेनेडियर बटालियन की आरसीएल तोपों को खत्म करने के लिए उसी स्थान पर पहुंच रही थी परंतु हवलदार अब्दुल हमीद अपनी सैनिक कुशलता से ईख खेतों में अपनी आरसीएल जीप को छुपा-छुपा कर दुश्मन पर जवाबी हमला कर रहे थे। इस प्रकार अब्दुल हमीद की एक आरसीएल तोप ने पाकिस्तान की पूरी टैंक डिवीजन को पूरी तरह से आतंकित कर दिया था।

वर्ष 2015 में दिल्‍ली के आयोजित प्रदर्शनी शौर्यांजलि में अब्‍दुल हमीद की जीप देखते लोग।

जाते-जाते भी दुश्‍मन का टैंक उड़ा गए हवलदार अब्‍दुल हमीद

10 सितंबर की सुबह 8:30 बजे फिर से पाकिस्तानी टैंकों की आवाज आने लगी। जब यह टैंक चार्ली कंपनी से 180 मीटर दूर रह गए तब अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान के पहले टैंक को पहले की तरह ही निशाना बना दिया और 9 सितंबर की तरह ही पाकिस्तानी सैनिक फिर से 2 टैंकों को छोड़कर भाग गए। इसके बाद दूसरा हमला 9:00 बजे आया। अब्दुल हमीद अब तक पाकिस्तान के 6 टैंक बर्बाद कर चुके थे। इस बार अब्दुल हमीद की आरसीएल तोप लगी जीप और पाकिस्तान का टैंक बिल्कुल आमने-सामने आ गए। इस स्थिति को देखते हुए अब्दुल हमीद ने अपनी जीप के ड्राइवर और तोप में गोला भरने वाले सैनिक को वहां से सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कहा। इसके बाद पाकिस्तानी टैंक अब्दुल हमीद की जीप को निशाना बनाकर गोले दागने लगे। इसकी परवाह न करते हुए जिस वक्त अब्दुल हमीद ने पाकिस्तानी टैंक पर अपना गोला डागा उसी समय पाकिस्तानी टैंक के गन की गोली अब्दुल हमीद के सीने में आकर लगी जिससे वह वीर सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। परंतु वीरगति को प्राप्त होने से पहले अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान के इस टैंक को भी बर्बाद कर दिया था। बाद में जब भारतीय सैनिकों ने इस वीर सैनिक के पार्थिव शरीर वहां से उठाया तो देखा कि उनकी आंखें खुली हुई थी और ऐसा लग रहा था जैसे अब्दुल हमीद अभी भी पाकिस्तानी टैंकों को बर्बाद करने के लिए इस पूरे क्षेत्र पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं। इस प्रकार वीरगति को प्राप्त होने से पहले हवलदार अब्दुल हमीद पाकिस्तान के 7 टैंकों को अपने हाथों से स्वयं बर्बाद कर चुके थे और इनके साथ आने वाले 14 टैंकों को अब्दुल हमीद के डर के कारण पाकिस्तानी छोड़कर भाग गए थे। इस प्रकार इस वीर सैनिक ने 21 पाकिस्तानी टैंकों को बर्बाद करके पाकिस्तान का अभिमान कहे जाने वाली फर्स्ट आर्मर्ड डिविजन को नाकारा साबित कर दिया था। इस द्वितीय वीरता और साहस के लिए भारत सरकार ने हवलदार अब्दुल हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।

 

पाकिस्‍तानी सैनिकों को दोझक की आग ने भी डराया

यहां पर यह प्रश्न उठता है की टैंक में आग लगते ही पाकिस्तानी सैनिक सही सलामत टैंकों को क्यों छोड़ कर भागते रहे। इसका उत्तर यह है कि मुस्लिम धर्म में आग में जलने को दोझक की आग के समान समझा जाता है। इसलिए जब भी साथी टैंक में आग लगती थी तो पाकिस्तानी सैनिक अगला निशाना स्वयं को समझ कर आग में जलने से बचने के लिए अपने चालू टैंकों को भी छोड़ कर भाग जाते थे। पाकिस्तानी सैनिकों के इस प्रकार व्यवहार में जहां उनकी धार्मिक कट्टरता झलकती है वहीं पर उनका अपने देश के प्रति समर्पण की भावना की कमी भी दिखाई देता है। पाकिस्तानी सैनिक स्वयं को अपने देश से ज्यादा मानते हैं। इसके अतिरिक्त पाकिस्तानी सैनिकों का मनोबल युद्ध के उद्देश्य के कारण भी इतना ऊंचा नहीं होता जितना भारतीय सैनिकों का होता है। आज तक पाकिस्तान ने हर बार भारत की भूमि पर अवैध कब्जा करने के लिए हमले किए हैं जबकि भारतीय सैनिक अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्‍यौछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। इसी कारण भारतीय सैनिकों ने अपने पुराने गोला बारूद और टैंकों से ही पाकिस्तान के आधुनिकतम अमेरिका के बने हुए पैटन टैंकों को भी अपनी वीरता और साहस से बर्बाद किया और हर स्थिति में अपनी मातृभूमि की रक्षा की। इसी जज्बे से 1965 के युद्ध में आसपास के क्षेत्रों में तैनात भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान की फौलादी पंजा कहे जाने वाली फर्स्ट आर्मर्ड डिविजन के 120 टैंकों को असल उत्तर के मैदान में बर्बाद किया था। इसके कारण असल उत्तर को पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह के नाम से जाना जाता है। भारतीय सैनिकों की उच्च कोटि की देशभक्ति और कर्तव्य परायणता का उदाहरण 1947 से लेकर आज तक के सभी युद्धों में देखा जा सकता है।

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लेखक
कर्नल शिवदान सिंह (बीटेक एलएलबी) ने सेना की तकनीकी संचार शाखा कोर ऑफ सिग्नल मैं अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत्त हुए। 1986 में जब भारतीय सेना उत्तरी सिक्किम में पहली बार पहुंची तो इन्होंने इस 18000 फुट ऊंचाई के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र को संचार द्वारा देश के मुख्य भाग से जोड़ा। सेवानिवृत्ति के बाद इन्हें दिल्ली के उच्च न्यायालय ने समाज सेवा के लिए आनरेरी मजिस्ट्रेट क्लास वन के रूप में नियुक्त किया। इसके बाद वह 2010 से एक स्वतंत्र स्तंभकार के रूप में हिंदी प्रेस में सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों पर लेखन कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में चाणक्य फोरम हिन्दी के संपादक हैं।

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