-मुस्लिम भूमियों से अमेरिकी सेना को हटाने और वापस भेजने के लिए अलकायदा ने किए हमले
-सबसे बड़ा और घातक हमला बना 9/11, सेनाओं की वापसी की बजाय शुरू हुई आतंक के खिलाफ विश्वव्यापी जंग
-आतंक के खिलाफ दुनिया को एक जुट करने के अमेरिकी आह्वान को मिला दुनिया के तमाम देशों का साथ
रीडिंग (ब्रिटेन), 12 सितंबर (द कन्वरसेशन) : आतंकवादी संगठन अल-कायदा ने 20 साल पहले अमेरिकी धरती पर सबसे घातक हमला किया था जिसकी गवाह पूरी दुनिया है। रातों-रात, अल-कायदा का संस्थापक ओसामा बिन लादेन दुनिया का सबसे कुख्यात आतंकवादी बन गया था।
पूरी दुनिया में इस्लाम के वर्चस्व की महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित और अमेरिका की विदेशों में मौजूदगी व पश्चिम एशिया में हस्तक्षेप से नाराज, यह अमेरिकी आधिपत्य और अजेयता की धारणा को तोड़ने के लिए अल-कायदा के अभियान पर विशेष रूप से ध्यान खींचने वाली घटना थी। इसका अंतिम उद्देश्य उम्मा को वापस लाना था, जो सभी मुसलमानों का राजनीतिक सत्ता द्वारा एकजुट समुदाय था।
अल-कायदा पहली बार 1998 में आतंकवाद की दुनिया में दिखाई दिया, जब उसने केन्या और तंजानिया में अमेरिकी दूतावासों पर एक साथ बमबारी की, जिसमें 224 लोग मारे गए और 4,000 से अधिक घायल हो गए। अक्टूबर 2000 में, अल-कायदा ने यमन के अदन बंदरगाह में अमेरिकी पोत ‘यूएसएस कोल’ में विस्फोटकों से भरी एक छोटी नाव से टक्कर मार दी थी, जिसमें 17 अमेरिकी नौसेना कर्मियों की मौत हो गई।
उनका मानना था कि 9/11 हमलों के बाद, अमेरिका मुस्लिम भूमियों से अपने सैन्य बलों को वापस बुला लेगा और अपने निरंकुश शासकों के लिए समर्थन को समाप्त कर देगा जिससे अल-कायदा एक आधुनिक खलीफा दौर की शुरुआत कर पाएगा।
बिन लादेन ने हमले के बाद कहा था, “अमेरिका और उसके लोगों के लिए मेरे पास कुछ ही शब्द हैं। इससे पहले कि हम फलस्तीन में सुरक्षा को वास्तविकता के रूप में देख सकें और सभी काफिर सेनाएं मोहम्मद की भूमि को छोड़ दें, न तो अमेरिका और न ही यहां रहने वाले लोग, सुरक्षित महसूस कर पाएंगे।”
बिन लादेन की उम्मीदें गंभीर गलत आकलन साबित हुईं। सैन्य बलों को वापस लेने के बजाय, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने तेजी से वैश्विक ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ की घोषणा की और दुनिया के नेताओं को इसमें अमेरिका का साथ देने का आह्वान किया।ye
अल-कायदा का क्रमिक विकास
9/11 हमले अल-कायदा के लिए कुछ ही समय की जीत साबित हुए। तालिबान का शासन ढहने के कुछ ही हफ्तों के भीतर, इसके अधिकतर नेता और लड़ाके कैद कर लिए गए या मारे गए। जो लोग भागने में सफल रहे, जिनमें बिन लादेन भी शामिल था, वे पाकिस्तान के संघ प्रशासित कबायली इलाकों में छिप गए, जो अफगानिस्तान की सीमा से लगा एक स्वायत्त क्षेत्र है।
दो मई, 2011 को अमेरिकी विशेष बलों द्वारा मारे जाने से पहले, दस वर्षों तक, बिन लादेन ने अल-कायदा को पुनर्जीवित करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा।
‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ का अगला चरण (और यकीनन सबसे बड़ी गलती) इराक पर 2003 का आक्रमण था। जिहादी गतिविधियों को तिरस्कार की नजर से देखने वाले इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को हटाने से एक राजनीतिक शून्य पैदा हो गया, जिससे अल-कायदा आतंकवादी नेता अबू मुसाब अल-जरकावी के नेतृत्व में उठ खड़ा हुआ। जून 2006 में एक अमेरिकी बम हमले में उनकी मृत्यु के बाद, इराक में अल-कायदा इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक (आईएसआई) बन गया और अंततः इस्लामिक स्टेट (आईएस) में मिल गया।
बिन लादेन की 2011 में मौत के बाद, अल-कायदा के वरिष्ठ सदस्यों ने वैश्विक जिहाद जारी रखने की कसम खाई जिसके बाद दुनिया ने अब तक हुए सबसे बुरे हमलों को देखा।
अमेरिका ने 30 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने का काम पूरा किया जो अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध का अंत था। एक हफ्ते से भी कम समय के बाद, तालिबान ने एक नई सरकार की घोषणा की और इसे ‘इस्लामी अमीरात’ घोषित किया। सिराजुद्दीन हक्कानी, अमेरिका का “सबसे वांछित आतंकवादी” इस सरकार में नया कार्यवाहक आंतरिक मंत्री है।
9/ 11 हमलों की 20वीं बरसी तक अल-कायदा भले ही हार गया हो लेकिन यह साफ है कि जिहाद और खलीफा दौर को फिर से लाने की इच्छा अभी जिंदा है।
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(क्रिस्टीना हेलमिच, अंतरराष्ट्रीय संबंधों एवं पश्चिम एशिया अध्ययन की सहायक प्राध्यापक, यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग)
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