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अफगानिस्तान का आर्थिक पुनरुद्धार: कोई राह नहीं

लेफ्टिनेंट जनरल सीए कृष्णन (सेवानिवृत्त)
शुक्र, 27 अगस्त 2021   |   10 मिनट में पढ़ें

अफगानिस्तान का आर्थिक पुनरुद्धार : कोई राह  नहीं

लेफ्टिनेंट जनरल सी कृष्णन (सेवानिवृत्त)

ऐतिहासिक रूप से अफगानिस्तान उथल-पुथल और संघर्षों का पर्याय रहा है। संघर्षों का अंतहीन सिलसिला बे रोकटोक जारी है और काबुल में तालिबान का जुलूस देश के हिंसक इतिहास में एक और अध्याय की शुरुआत से अधिक कुछ नहीं है। फिलहाल, अफगानिस्तान के बड़े हिस्से पर तालिबान का नियंत्रण है और जल्द ही एक कमजोर राजनीतिक ढांचा उभर सकता है।

थोड़े समय के लिए तालिबान काबुल में सामान्य स्थिति थोपने में सफल हो  भी सकता हैं। परंतु जैसे-जैसे जीत का उत्साह समाप्त होता जाएगा, जातीय समूहों और विभिन्न गुटों के बीच गहरी वैचारिक असंगति, नेतृत्व प्रतिद्वंद्विता के साथ-साथ तालिबान द्वारा दिए गए सामाजिक और मनोवैज्ञानिक घावों के गहरे निशान उभरेंगे। तालिबान के लिए राष्ट्र निर्माण में निवेश एक असहज और फालतू कवायद है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी यह कम प्राथमिकता देने वाला एजेंडा है। इसलिए अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और दीर्घकालिक  स्थायी अर्थव्यवस्था विकसित होने पर ध्यान नहीं दिया जा सकता ।

अपने शहरों और राजमार्गों से दूर, ग्रामीण अफगानिस्तान हमेशा सामाजिक इकाइयों की एक बिखरी हुई, आत्मनिर्भर इकाई रहा है, जिसे ‘ग्राम-गणराज्य’ के रूप में वर्णित किया जा सकता है। ग्रामीण अफ़ग़ानिस्तान को कभी भी मुख्य धारा के साथ एकीकृत नहीं किया गया है, कम से कम आर्थिक रूप से तो ऐसा कभी नहीं किया गया। ऐतिहासिक रूप से, ग्रामीण अफगानिस्तान के लोगों का जीवन काबुल और अफगान के अन्य शहरों की घटनाओं से अप्रभावित रहा है। देश की सीमावर्ती आबादी का सीमाओं के पार  आत्मीयजनों का एक बहुत मजबूत नेटवर्क है और वे देश के भीतर के लोगों की तुलना में सीमा पार के लोगों के साथ अधिक घनिष्ठ सामाजिक और आर्थिक संबंध स्थापित करते हैं। किसी भी अफगान सरकार ने कभी भी डूरंड रेखा को मान्यता प्रदान नहीं की। कुछ लोग तो पाकिस्तान के साथ अपनी पूर्वी सीमाओं के निकट स्थित क्वेटा शहर को अपना ही मानते हैं। सुरक्षा आयामों के अतिरिक्त, झरझरा सीमाओं का भी देश की अर्थव्यवस्था पर  गंभीर प्रभाव पड़ा ।

अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पर गहराई से नज़र डालने से पहले, देश का एक सिंहावलोकन आवश्यक है। अफगानिस्तान का क्षेत्रफल लगभग 650,000 वर्ग किमी है, जो भारतीय राज्य राजस्थान और मध्य प्रदेश के बराबर है और लगभग 35 मिलियन की आबादी है, जो केरल या उत्तराखंड से तीन गुना  है। अरुणाचल प्रदेश के 17 या भारत के 382 (2011 के आंकड़े) की तुलना में इसका घनत्व 46 प्रति वर्ग किमी है। लगभग 20 बिलियन डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद (नाम मात्र) के साथ, जो हिमाचल प्रदेश के समान ही है अथवा केरल के लगभग 1/6वें और भारत से 25% से कम प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ, अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। बड़े पैमाने पर प्रवास, बार-बार बमबारी और बिखरी हुई खदानों के कारण ग्रामीण अफगानिस्तान की पारंपरिक जीविका कृषि  लगभग पूरी तरह से नष्ट हो गई है।

विद्वानों का कहना है कि अफगानिस्तान १०० से अधिक वर्षों से बाहरी सहायता पर जीवित है। सबसे पहले अंग्रेज आए जिन्होंने इस क्षेत्र में अच्छे संबंध बनाए रखने और अपने व्यापार मार्गों को सुविधाजनक बनाने के साथ-साथ इस पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए अमीरों को भुगतान किया। तत्पश्चात सहायता और अराजकता के साथ   सोवियत संघ आया। उनके बाद अमेरिका  पुनर्निर्माण के बड़े उद्देश्यों, अधिक सहायता और उथल-पुथल के साथ आया।

अब सवाल यह है कि आगे इसे कौन चलायेगा ? क्या यह चीन होगा? विश्व चीन के संबंध में जो जानता है,  उसके  अनुसार आर्थिक सहायता के लिए चीन का दर्शन केवल ऋण पद्धति को मान्यता देना है,  वित्तीय सहायता पद्धति को नहीं। अब तक एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जहां चीन ने किसी देश को उसके आर्थिक पुनरुद्धार में सहायता की हो। अफगानिस्तान के लिए कोई अपवाद नही हो सकता। अभी तो चीन ही है, जो मध्यम-आय की बाधा को तोड़ पाने से अभी दूर है।

वर्ष 2018 के अफगानिस्तान के बजट में बाहरी सहायता के लिए देश की निरंतर भूख का संकेत मिलता है। 353 अरब (एएफएन) के कुल राजस्व में से, बाहरी अनुदान और सहायता में 191 अरब शामिल थे !! जबकि लगभग पूरे विकास बजट  की पूर्ति बाहरी सहायता से  ही की गयी। यहां तक कि देश के दैनिक संचालन के लिए भी परिचालन बजट का लगभग 40% बाहरी सहायता के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था।

बाहरी सहायता के पश्चात् आय का सबसे बड़ा स्रोत सीमा शुल्क से राजस्व प्राप्त होता है, जो अफगानिस्तान जैसे देश के लिए सीमा चौकियों के महत्व को रेखांकित करता है।

अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था का एक और महत्वपूर्ण पहलू सुरक्षा व्यय है, जो 2018 में उसके सकल घरेलू उत्पाद का 28% था; इसकी तुलना में,  कम आय वाले समान देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3%  ही सुरक्षा पर खर्च करते हैं। अफगानिस्तान में तैनात अंतर्राष्ट्रीय सैनिकों ने अफगान अर्थव्यवस्था में  अत्यधिक योगदान दिया। विदेशी सैनिकों की कमी से बाहरी सहायता में लगातार कमी देखी गई। 2009 के आसपास जब सैन्य स्तर अधिक था उस समय 100 प्रतिशत जीडीपी की सहायता प्राप्त थी। वर्ष 2020 तक सैनिकों की संख्या लगभग 10,000 तक  हो जाने से  सहायता में भी लगभग 40% तक कमी आयी । विदेशी सैनिकों ने कई अन्य प्रकार से  अर्थव्यवस्था में योगदान दिया। बगराम एयरबेस जो पिछले सप्ताह जून 2021 के दौरान खाली किया गया था,  वह उस क्षेत्र के 30,000 से अधिक स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का स्रोत था।

अफगानिस्तान आज आय, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, सुरक्षा और स्वतंत्रता के मामले में बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहा है। दशकों के युद्ध और उथल-पुथल ने देश में एक खुली युद्ध अर्थव्यवस्था का निर्माण किया है। युद्ध अर्थव्यवस्था, जैसा कि इसकी प्रकृति है, इसने आर्थिक लाभ के लिए खुद को संरचित किया है।

अफगानिस्तान की युद्ध अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ उसकी ड्रग्स अर्थव्यवस्था है। विश्व के अफीम उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत अफगानिस्तान से आता है। 2015 की संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान बाल्कन ड्रग  मार्ग के माध्यम से अन्य देशों द्वारा उपभोग की जाने वाली संपूर्ण अफीम का उत्पादक  देश है। बाल्कन ड्रग मार्ग अफगानिस्तान से निकलता है और ईरान और तुर्की के माध्यम से दक्षिणी और पूर्वी यूरोप में जाता है। बाल्कन मार्ग पर वार्षिक 28  अरब डॉलर का ड्रग व्यापार होता है। हालांकि, इस 28 अरब डॉलर में से करीब 8 अरब डॉलर ईरानी व्यापारियों को, करीब 18 अरब डॉलर यूरोप के खुदरा विक्रेताओं को, करीब एक अरब डॉलर तुर्की के व्यापारियों को और केवल आधा अरब डॉलर अफगानिस्तान को जाता है, जो वैश्विक ड्रग माफिया का स्रोत है। वास्तविक अफीम की खेती करने वालों को इसमे से केवल एक बहुत छोटा अंश ही मिल पाता है। किसानों, प्रयोगशालाओं, विभिन्न  व्यापारियों और परिवहन से शुरू होने वाली ड्रग्स श्रृंखला लिंक पर प्रमुख समूहों द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों में 10% ‘कर’ लगाया जाता है।

अफगान की युद्ध अर्थव्यवस्था का दूसरा स्तंभ अवैध खनन है। अफगानिस्तान के पास काफी खनिज संपदा है, जिसका आकलन लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर है, जो काफी हद तक अप्रयुक्त है। अफगानिस्तान लौह अयस्क, एल्यूमीनियम, लिथियम, तालक, सोना, यूरेनियम में समृद्ध है और कुछ दुर्लभ पृथ्वी तत्व भी है। जबकि अफगानिस्तान में आधिकारिक सरकारी खनन की सीमा नगण्य रही है, वहां कई छोटी, अनौपचारिक,  एवं अवैध खदानें हैं। खनन और नशीले पदार्थ मिलकर तालिबान और यहां तक ​​कि इस्लामिक  राज्य (खोरासान) जैसी संस्थाओं को जीवन  प्रदान करते हैं।

अपने मामूली आधिकारिक खनन राजस्व में भी बड़े पैमाने पर होने वाले भ्रष्टाचार के कारण अफगान सरकार को राजस्व की अत्यधिक क्षति होती है। पाकिस्तान को देश के आधिकारिक कोयला निर्यात का विवरण अलग ही कहानी कहता है। 2015-2018 की अवधि में पाकिस्तान को कोयला निर्यात के लिए अफगान सरकार के आधिकारिक आंकड़े $30 मिलियन थे, उसी अवधि के लिए अफगानिस्तान से कोयले के आयात के लिए पाकिस्तान सरकार के आधिकारिक आंकड़े 6.8 मिलियन डॉलर होने का दावा करते हैं। इसी प्रकार, अफगानिस्तान की ओर से पाकिस्तान को कोयले का आधिकारिक निर्यात मूल्य 42 डॉलर प्रति टन दिखाया गया जबकि पाक सरकार के आंकड़ों में यह 87 डॉलर प्रति टन दिखाया गया है। इस तरह के बड़े पैमाने पर और व्यापक भ्रष्टाचार के परिणामस्वरूप, खनिज खनन से अफगानिस्तान का वार्षिक राजस्व केवल $42 मिलियन है, जबकि आधिकारिक तौर पर खनन किए गए खनिजों में भ्रष्टाचार के कारण इसका वार्षिक अनुमानित राजस्व नुकसान $125 मिलियन  आंका गया है।

अफगान की युद्ध अर्थव्यवस्था का तीसरा स्तंभ सीमा शुल्क के रूप में पारगमन  है जो  वह अपनी सीमा चौकियों पर आयात और निर्यात से प्राप्त करता है। सीमा शुल्क विदेशी सहायता के बाद राष्ट्रीय राजस्व का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। जून 2021 में, अफगान सरकार ने सीमा शुल्क राजस्व से $91 मिलियन एकत्रित किए। यद्यपि, ठीक एक माह पश्चात्, इस वर्ष जुलाई में, जैसे ही सीमा शुल्क बंदरगाह तालिबान के हाथों में आया,  राजस्व में लगभग $30 मिलियन तक की कमी हो गयी।

तस्करी वाली उपभोक्ता वस्तुओ का एक बड़ा प्रवाह भी है जो दुबई के वैश्विक शुल्क-मुक्त केंद्र से अफगानिस्तान के माध्यम से पाकिस्तान जाता है। यह युद्ध अर्थव्यवस्था में अवैध पारगमन आय के माध्यम से भी अपना योगदान देता है।

युद्ध अर्थव्यवस्था के इन मुख्य स्तंभों के अतिरिक्त संबंधित सेवा क्षेत्र हैं जो नशीली दवाओं के व्यापार और अवैध खनन से प्रेरित हैं और इसमें परिवहन व्यवसाय, ईंधन स्टेशन, दुकानें, भोजनालय आदि शामिल हैं, जिन्हें ‘जबरन वसूली’ करने की आवश्यकता होती है।

तालिबान के राजस्व का स्रोत अफगानिस्तान की युद्ध अर्थव्यवस्था का सही प्रतिबिंब है। 2019-2020 में इसका कुल राजस्व 1.6 बिलियन डॉलर था, जिसमें ड्रग्स और अवैध खनन का योगदान $400 मिलियन से अधिक था। जबरन वसूली-कर लगभग 150 मिलियन डॉलर था। मीडिया, दुकानों, सरकारी परियोजनाओं, व्यवसायों, भूमि, धन, यात्रा आदि जैसी हर गतिविधि में इस ‘जबरन वसूली कर’ वसूल किया जाता है। यहां तक ​​कि काबुल या अफ़ग़ानिस्तान में कहीं और से रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों को भी जबरन वसूली कर का भुगतान करना होता है और तालिबान द्वारा जारी किए गए पत्रकार पास और स्वीकृति प्राप्त करना अनिवार्य होता है। दुनिया भर के इस्लामी संगठनों से ‘चैरिटेबल डोनेशन’ के रूप में तालिबान का राजस्व लगभग 250 मिलियन डॉलर है। इसके अलावा, कुछ इस्लामी सरकारों से  इन्हें प्रत्यक्ष  रूप से भी धन  प्राप्त होता है।

अफगानिस्तान की युद्ध अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, देश के राजमार्ग भी एक अनूठी भूमिका निभाते हैं। एक लैंडलॉक देश होने के नाते, राजमार्ग अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। अफगानिस्तान में 2000 मील लंबी रिंग रोड का निर्माण सोवियत संघ द्वारा 1950 के दशक में शुरू किया गया था। यद्यपि निरंतर उथल-पुथल के कारण, केवल कुछ ही हिस्सों को पूरा किया जा सका और वह भी बहुत खराब बनायी गयी । अफगानिस्तान में सड़कों की स्थिति इतनी दयनीय थी कि 2001 में देश के पास लगभग 50 मील  की अच्छी सड़क भी   नहीं थी।

2001 के बाद, अमेरिका ने  विश्व बैंक,जापान, तथा अन्य देशों के साथ मिलकर रिग रोड को पूरा करने और उसका उन्ननयन करने के लिए 1.5 बिलियन डॉलर की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की। काबुल-कंधार की पहचान सबसे महत्वपूर्ण खंड के रूप में की गयी जिसे 2003 तक पूरा किया जाना था। काम अत्यधिक गंभीरता से शुरू हुआ लेकिन जल्द ही विकट समस्याओं में पड़ गया क्योंकि तालिबान ने इंजीनियरों और श्रमिकों पर अपहरण, हत्या, घात और आईईडी हमलों के माध्यम से उन्हे निशाना बनाना शुरू कर दिया। इसमे भारी अतिरिक्त सुरक्षा लागत आई। जिसके परिणामस्वरूप सड़क निर्माण की लागत आसमान छू गई। व्यवधान के बावजूद, कंधार खंड 2003 में पूरा हो गया।

लेकिन फिर इराक हुआ और अमेरिका का ध्यान इराक पर केंद्रित हो गया जिसके परिणामस्वरूप अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण की गति धीमी हो गई। तालिबान ने सड़कों और पुलों को विध्वंस करके राजमार्गों पर हमलों की आवृत्ति से इस अवसर का लाभ उठाया।  वर्ष 2016 तक, यह रिंग रोड गड्ढों, मलबे और घात बिंदुओं वाले राजमार्ग में परिवर्तित हो गया था। , रिंग रोड की स्थिति और उस पर सरकार के नियंत्रण की कमी अफगान सरकार के प्रभाव और क्षमता का सटीक प्रतिबिंब बन गई थी।

2013 के बाद जैसे-जैसे विदेशी सैनिकों की संख्या में तेजी से कमी आती गयी वैसे ही तालिबान ने रिंग रोड पर अपना दबदबा  बड़ा दिया और   और भुगतान करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए सुरक्षित मार्ग की गारंटी देने की अपनी क्षमता का दावा किया, एक ऐसा दावा जिसे स्थानीय लोगों ने सच माना। यह माना जाता है कि यदि आपने तालिबान को एकतरफा वाहन  परिचालन के लिए $75 की एकमुश्त “अग्रिम कर” राशि का भुगतान कर दिया तो आपको एक सुरक्षित यात्रा का आश्वासन दिया जायेगा। दूसरी ओर, यदि आपने तालिबान की उपेक्षा की और अफगान सैनिकों पर भरोसा किया, तो आप इन चौकियों पर तैनात अफगान सैनिकों को 12 चेक पोस्टों में से प्रत्येक पर $15 से $20 तक की  रिश्वत राशि देनी होगी । और वह भी आपकी के सुरक्षा की किसी गारंटी के बिना।

2001 से 2020 के दौरान, अकेले अमेरिका ने कथित रूप से अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए 134 बिलियन डॉलर का निवेश किया। यह एक विडंबना है कि अमेरिकी करदाता के पैसे का एक बड़ा  भाग वास्तव में उसी तालिबान को वित्तपोषित कर रहा है जिसके विरुद्ध उनके सैनिक लड़ रहे थे।

गार्डेज़ – खोस्त राजमार्ग इस तथ्य की गवाही देता है।  अफ़ग़ानिस्तान की पूर्वी सीमाओं को रिंग रोड से जोड़ने वाली गार्डज- खोस्त रोड 60 मील की दूरी पर  स्थित है। इसकी निर्माण एजेंसी लुई बर्जर ग्रुप (LBG) थी।  यह कार्य वर्ष 2003 में  प्रारभ हुआ था परंतु  वर्ष 2015 तक ही पूरा हो सका वह भी लगभग 5 मिलियन डॉलर प्रति मील की भारी लागत से के साथ। अमेरिका के एक अदालती मामले में आरोप लगाया गया  कि फर्म ने बिना रुकावट सड़क निर्माण की अनुमति प्राप्त करने के लिए तालिबान और संभवत: अल कायदा को सुरक्षा राशि के रूप में एक बड़ी राशि का भुगतान किया।  संभव है कि परियोजना को शीघ्र पूरा करने के दबाव में एलबीजी इस अपराध के लिए बाध्य हो गया हो।

अफगानिस्तान में डूबे हुए  धन का अंतिम परिणाम एक स्थानीय व्यक्ति द्वारा सबसे सटीक रूप से वर्णित किया गया है जो कहता है कि ‘2001 से पहले, हमारे पास रिंग रोड के रूप में केवल एक गंदा ट्रैक था, लेकिन यह यात्रा के लिए सुरक्षित था। फिर 2001 के बाद कुछ अच्छी सड़कें आयी । परंतु अब  वर्ष 2020 में, सड़कें पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई हैं,  उनमें गड्ढे हो गए हैं और 2001 से पहले की गंदगी वाली सड़कों की तुलना में कहीं अधिक खराब हैं, जिसमें हर मोड़ पर बम विस्फोट या हमले का अतिरिक्त जोखिम है।

2017 में अफगानिस्तान में गरीबी 54% थी और वर्ष 2021 तक आते आते आर्थिक स्थिति अत्यधिक खराब हो गई । एक राजनीतिक समझौते के अतिरिक्त जो रातोंरात संभव हो सकता है, आर्थिक पुनरुद्धार का कोई शॉर्टकट नहीं हैं। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था रेजर के किनारे पर   है। तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार आर्थिक दृष्टि से क्या कर सकती है? यहां तक ​​​​कि एक शासन प्रणाली या एक वित्तीय संस्थान के रूप में इनका अस्तित्व  न के बराबर होने के कारण  भविष्य की आर्थिक यात्रा बहुत लंबी और कठिन प्रतीत होती है।  घरेलू संसाधनों को बनाने और जुटाने की किसी भी संभावना को नकारते हुए, निजी क्षेत्र और मानव पूंजी  पूरी तरह गायब  है। अफगानिस्तान को आज पहले से कहीं अधिक बाहरी सहायता की आवश्यकता है। यहां तक ​​कि अगर उदार सहायता मिलती है, तो भी बुनियादी सेवा वितरण एक कठिन कार्य  होगा।

चीन अत्यधिक दुविधा में  है। जैसे-जैसे घटनाएं सामने आएंगी, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थिति चीन को अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में निवेश करने के लिए मजबूर करती है?  क्या इस्लामिक राष्ट्र मदद के लिए  आगे आएंगे? क्या शेष दुनिया अफगानिस्तान के बचाव में आएगी, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि अविश्वसनीय पाक-तालिबान गठबंधन अफगानिस्तान और चीन को प्राप्त होने वाले प्रत्येक डॉलर से सबसे अधिक लाभ प्राप्त करने  का प्रयास  करेगा और सबसे बड़ा लाभार्थी होगा? क्या तालिबान अपनी बर्बर छवि के साथ अफगानिस्तान की युद्ध अर्थव्यवस्था को औपचारिक अर्थव्यवस्था में बदलने की अनुमति देने के लिए कभी खुद को बदल सकता है?

अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था  तालिबान की  कमजोरी बन सकती  है।  राजनीतिक स्थिरता एक निश्चित   आर्थिक पुनरुद्धार के बिना हासिल नहीं की जा सकती है, आर्थिक पुनरुद्धार के लिए केवल राजनीतिक स्थिरता, शरिया कानूनों और तालिबान की वित्तीय विशेषज्ञता की तुलना में कहीं अधिक की आवश्यकता होती है।  यह अनिष्ट का संकेत है। अफ़ग़ानिस्तान के आर्थिक बोझ का  कोई संरक्षक नही है तथा उसका आर्थिक पुनरुद्धार होने की कोई,  संभावना  नही है।

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लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल सीए कृष्णन, पीवीएसएम, यूवाइएसएम, एवीएसएम (सेवानिवृत्त) पूर्व उप सेना प्रमुख और सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के पूर्व सदस्य हैं। वह भारत के दो प्रमुख रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड, के निदेशक मंडल में रहे हैं। वह सामरिक मुद्दों, दुर्लभ पृथ्वी, अंतरिक्ष खनन, ऊर्जा, जनसंख्या आदि जैसे विविध विषयों पर एक विपुल लेखक हैं। वह रक्षा उद्योगों को विस्तार विस्तार देने की सोच रहे/अपने मौजूदा रक्षा विनिर्माण आधार को सुव्यवस्थित करने वालों के साथ-साथ रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में प्रवेश पर विचार कर रहे संभावित उद्यमियों को भी सलाह देते हैं।

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