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अलविदा…. भारतवर्ष के जनरल

कर्नल एस डीन्नी (सेवानिवृत्त)
शनि, 11 दिसम्बर 2021   |   4 मिनट में पढ़ें

किसी राष्ट्र के इतिहास में ऐसे क्षण भी आते हैं, जब समय ठहर जाता है। देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन लक्ष्मण सिंह रावत का दुर्भाग्यपूर्ण और असामयिक निधन ऐसा ही एक क्षण है।

पहले भी देश के वरिष्ठतम सैन्य अधिकारियों के साथ ऐसी घातक दुर्घटनाएं हुई हैंl ऐसे में प्रश्न यह है कि जनरल बिपिन रावत के साथ हुई दुर्घटना में अलग क्या था?

जनरल रावत वास्तव में अलग थे, क्योंकि वह हमारे पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ थे। वह अलग थे, क्योंकि अतीत में किसी अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के साथ   राजनीतिक टकराव नहीं थाl इसकी वजह से उन्हें अन्यायपूर्ण, अशोभनीय और कभी-कभी क्रूरतम आलोचनाओं का खामियाजा भुगतना पड़ा, यह टकराव कभी-कभी शुद्ध निंदा का रूप भी ले लेता था। उनके साथ ऐसा केवल इसलिए किया जाता था, क्योंकि  वे राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में जो सोचते थे, वही बोलते थे और उस पर ही कार्य करते थे।

उनसे पहले रहे अन्य सेना प्रमुखों ने भी राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखा था, लेकिन अपने मन की बात कहने के लिए किसी राजनीतिक नेता और मीडिया ने उन पर कभी टीका टिप्पणी नही की। वास्तव में, उन्हें अपना काम करने के लिए  एक उत्कृष्ट दर्जा दिया गया था। हमारे सामने इसका सबसे बड़ा उदाहरण फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ थे। फील्ड मार्शल के अपने विचार थे और उनके विचारों के लिए उनका सम्मान किया जाता था। जनरल बिपिन रावत के साथ ऐसा नहीं था।

कई लोगों ने जनरल रावत का मूल्यांकन “अत्यधिक देशभक्त”, “बहुत सख्त” और “मुखर” के रूप में किया और इसलिए उन्हें आसानी से ब्रांडेड कर दिया गया।

सेनाध्यक्ष के रूप में नेतृत्व करते हुए वह ‘कठोर और कम व्यावाहरिक’ थे। परंतु जब “दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब” देने की बात आई तो उन्होंने इसकी बात की।   डोकलाम संकट के दौरान निर्णायक और दृढ़ तरीके से भारतीय सेना के नेतृत्व से  उन्होंने इसे साबित कर दिया। लंबे समय के बाद उत्तरी सीमाओं से चीनी सेनाओं की वापसी चीन के लिए एक झटका थाl यह उनकी एक ठोस प्रतिक्रिया थी। जनरल बिपिन रावत भारतीय वायु सेना की उस टीम का हिस्सा थे, जिसने बालाकोट हवाई हमलों की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में, उन्होंने पूर्वी लद्दाख में चीन के दुस्साहस के खिलाफ भारतीय सशस्त्र बलों की कड़ी प्रतिक्रिया का प्रबंधन किया। यह प्रतिक्रिया केवल उत्तरी सीमाओं तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि समुद्र, वायु और अंतरिक्ष मार्ग सहित सभी क्षेत्रों में इसकी योजना बनाई गई थी। उन्होंने हाइब्रिड युद्ध को अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक बेहतरीन ढंग से समझा और राष्ट्र की सुरक्षा में समाज की वर्तमान भूमिका के बारे में स्पष्ट रूप से कहा।

इसमे कोई आश्चर्य नहीं है कि एक सैन्य प्रमुख के रूप में अपने बेहद आक्रामक दृष्टिकोण के कारण, जनरल बिपिन रावत को सोशल मीडिया द्वारा हमारे देश के भीतर और बाहर विशेष रूप से निशाना बनाया जाता था।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में जनरल बिपिन रावत एक ऐसे मार्ग पर चले, जिस पर उनसे पहले कोई और नहीं चला था। वह सिस्टम से भलि भाँति परिचित  थे और राष्ट्र के सर्वोत्तम हित के प्रति दृढ़ संकल्प थे।

एक राष्ट्र के रूप में हमने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद के लिए दशकों तक इंतजार किया। देश लंबे समय से तीनों सेनाओं के बीच मतभेद का गवाह रहा है। जनरल रावत राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में तीनों सेवाओं को एकल लड़ाकू यूनिट बनाने   के मिशन पर थे। उनके व्यवाहरिक दृष्टिकोण और स्पष्ट रूप से अपनी बात कहने की वजह से सेवाओं के भीतर भी उनकी तीखी आलोचना हुई। लेकिन उन्होंने इनकी परवाह नहीं की, क्योंकि उनका मानना ​​था कि देश हमेशा पहले होता है।

फ़ौजी हलकों में जनरल बिपिन रावत के बारे में अक्सर सुनी जाने वाली आलोचनाओं में से एक यह थी कि उन्होंने सेवा कर्मियों, विशेष रूप से अधिकारियों के अवांछित भत्तों और विशेषाधिकारों में कटौती करने की पहल की थी। उनका विचार था कि एक देश जो अभी विकसित हो रहा है, वह अपने अल्प संसाधनों को उन मुद्दों पर खर्च करने का जोखिम नहीं उठा सकता, जिनका संबंध संचालन से नहीं है। इसने उन्हें सशस्त्र बलों के कुछ वर्गों में अलोकप्रिय बना दिया। लेकिन यहां भी वे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में अपने दृष्टिकोण और अपने कार्य के बारे में स्पष्ट थे।

भारतीय सेना के युवा नेतृत्व की रक्षा करने में जनरल बिपिन रावत सबसे आगे थे। कई बार आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान जब कभी स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई और युवा अधिकारी मीडिया के दबाव की कगार पर थे, उस समय जनरल बिपिन रावत ने इन युवा अधिकारियों को अपना पूरा समर्थन दिया और सुनिश्चित किया कि उत्तम इरादों के साथ राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में काम करने वाले इन लोगों को कोई नुकसान ना पहुंचे।

एक सख्त सैन्य नेता होने के साथ-साथ, जनरल बिपिन रावत जनरल बिपिन रावत, सेना प्रमुख, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, भारतीय सेना, एक बेहद ‘डाउन टू अर्थ’ अधिकारी भी थे, जिनका अपने देश की संस्कृति, परंपराओं और इसकी अद्वितीय शक्ति में दृढ़ विश्वास था। इसीलिए उन्होंने हमेशा पौड़ी गढ़वाल में अपने गांव के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे।

ऐसे कुछ ही लोग होते हैं, जिनका जन्म सैनिक बनने के लिए ही होता है। जनरल बिपिन रावत का जन्म एक सैनिक बनने के लिए ही हुआ था। उनका जन्म एक सैनिक परिवार में हुआ और उन्होंने सैनिक कर्तव्यों को निभाने में ही अपना जीवन लगा दिया।

उनसे पहले भी पेशेवर रूप से उत्कृष्ट कई जनरल रहे हैं। कुछ को ‘सोल्जर्स जनरल’ के रूप में जाना जाता था, कुछ को उनकी ‘रणनीतिक प्रतिभा’ के लिए याद किया जाता है, कुछ को ‘नए सिद्धांतो’ के लिए और कुछ को किसी विशेष युद्ध में ‘विजय’ के लिए याद किया जाता है।

भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत को हमेशा ‘देश के जनरल’, ‘भारत के जनरल’ के रूप में याद किया जाएगा।

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लेखक
कर्नल एस डीन्नी (सेवानिवृत्त) के पास जम्मू और कश्मीर और उत्तर-पूर्व में आतंकवाद विरोधी अभियानों में पांच परिचालन कार्यकाल हैं। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से आतंकवाद विरोधी अभियानों पर एमफिल के लिए अपना शोध किया है। वह डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में फैकल्टी थे। वर्तमान में, वे चाणक्य मंच के संपादक हैं। उनका ट्विटर हैंडल @sdinny14 है।

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POST COMMENTS (1)

Kavya

दिसम्बर 11, 2021
Gen Bipin Rawat sir will always be cherished and missed. We lost one of the finest gems. A salute you sir and all the other personnels. Thank you

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