जर्मनी में 26 सितंबर को होने वाले चुनावों से परिवर्तन की आशा है। वर्ष 2005 के पश्चात पहली बार चांसलर एंजेला मर्केल इस चुनाव में उम्मीदवार नहीं हैं। उनके द्वारा चाँसेलर की स्वत: निर्धारित चार अवधियों की सीमा ने जर्मनी में अनिश्चितता का वातावरण बना दिया है। जर्मनी मर्केलियनर प्रणाली का अभ्यस्त हो गया है, जो एक वैज्ञानिक, व्यावहारिक, भावनात्मक, उदार, मध्यमवर्गीय अस्तित्व का प्रतीक है। स्थिति संकट पूर्ण है, परंतु ‘मट्टी’ मर्केल हमेशा की तरह तत्पर हैं।
जर्मन मतदाता अब मर्केल के बिना मतदान करेंगे। जर्मनी पिछले कुछ महीनों से बुनियादी ढांचे और सतर्कता की कमी, कोविड तथा बाढ़ से पीड़ित था। ऐसी परिस्थितियों में चुनावों में मर्केल की अनुपस्थिति और वर्तमान समस्याएं, दोनों का अत्यधिक प्रभाव रहेगा।
2017 में, मर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) पार्टी का 1945 के पश्चात का सबसे खराब परिणाम था। उसे 32.9% वोट मिले। सबसे बड़ी हार अब तक के सबसे कम वोटो के बावजूद, यह सबसे बड़े वोट शेयर के साथ विजेता थी। इस अवसर पर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) ने 20.5% मतों और दक्षिणपंथी अल्टरनेट फॉर डेमोक्रेसी (एएफडी) ने 12.6% मतों से जीत हासिल की। फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) जैसी छोटी पार्टियों को 10.7%, लेफ्ट को 9.2% और ग्रीन्स को 8.9% मत मिले।
मर्केल के चार में से तीन कार्यकालों में छोटे दलों की भूमिका अत्यधिक कम हो गई थी। सीडीयू दो छोटे दलों के साथ मिलकर भी स्थिर सरकारें नहीं बन पायी थी। केवल एक बार एफडीपी की सरकार बनी थी। अगले चुनावों में एफडीपी वोट शेयर कम हो गया और उन्होंने बुंडेस्टाग में अपना स्थान गँवा दिया।
सीडीयू और एसपीडी महागठबंधन ने वर्ष 2005 से लेकर 12 वर्षों तक जर्मनी को चलाया है। यह केंद्र में भाजपा-कांग्रेस विचारधारा के गठबंधन के समान है। हालाँकि, इसमें कोई अपवाद नहीं था, परंतु पिछले कुछ वर्षों से यह प्रमुख विषय रहा।
दूसरी सबसे बड़ी पार्टी एसपीडी, पिछले अनेक वर्षो से एक कनिष्ठ गठबंधन दल होने की समस्याओं का सामना कर रही है। उनका वोट शेयर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। सीडीयू के साथ केंद्रीय गठबंधन से इनके वोट शेयर में कमी आयी। जिसके फलस्वरूप यह समाजवाद की अपनी नींव खो रहा है। इनके वोट शेयर में कमी तब स्पष्ट दिखाई दी जब यह वर्ष 2017 में 20.5% पर पहुंच गयी। गठबंधन से दूर रहने और खुद की फिर से एक पहचान बनाने के आह्वान किए जा रहे है। चुनाव परिणामों की प्रकृति इसकी अनुमति नहीं देती, क्योंकि अन्य पार्टियों के पास सीडीयू को बहुमत प्रदान करने के लिए पर्याप्त मत नहीं थे, विशेष रूप से तब, जब एफडीपी अधिक महत्वाकांक्षी हो गया और इस सम्बन्ध में वार्ता तक बंद कर दी। जिससे एसपीडी एक बंधन में आ गया और अक्टूबर 2020 में 15% वोट स्तर से यह गुमनामी में खो गया।
जुलाई-अगस्त 2021 में एसपीडी के समर्थन में अचानक वृद्धि आयी और 13 सितंबर को हुए अंतिम मतदान में यह 25% वोट शेयर के साथ गणना के स्तर पर आ गया ।
यह स्पष्ट है कि एसपीडी के वोट शेयर में लगभग 10% की वृद्धि कैसे हुई? इसके वर्तमान नेता ओलाफ स्कोल्ज़ सरकार में कुलपति और वित मंत्री के पद पर है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह रहा कि इन्होंने शांत रहकर और किसी विवाद में उलझे बिना नकारात्मक धारणाओं से स्वयं को दूर रखा। शहरी राज्य हैम्बर्ग के मेयर और वर्तमान में वित्त मंत्री पद के अपने अनुभवों के कारण वह सीडीयू के आर्मिन लाशेट और ग्रीन्स के एनालेना बारबॉक के चांसलरशिप के तीन मुख्य उम्मीदवारों में अग्रणी रहे।
सीडीयू/क्रिश्चियन सोशलिस्ट यूनियन (सीएसयू) गठबंधन के वोट शेयर में अचानक आयी गिरावट भी आश्चर्यजनक थी। अक्टूबर 2020 से वे लगातार लगभग 35% पर स्थिर थी। मार्च में इस समर्थन में कमी आयी। मई तक आते आते यह 25% से भी कम हो गया और सितंबर में इसमे 21% तक की गिरावट आ गयी। 2017 की लगभग 12% की गिरावट अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। असंतोष की यह स्थिति कोविड तथा बाढ की स्थिति को संभालने में उसकी कार्यप्रणाली के परिणामस्वरूप थी।
दूसरा कारण यह प्रतीत होता है कि दुविधापूर्ण मनस्थिति वाला मतदाता लशेट के व्यक्तित्व से मोहित नहीं हुआ। जो जर्मनी के सबसे बड़े राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के क्षेत्रीय अध्यक्ष हैं। उन्होंने गठबंधन नेतृत्व के लिए बवेरिया से अपने गठबंधन सहयोगी, सीएसयू नेता मार्कस सोडर को चुनौती दी थी। अनेक व्यक्ति यह स्वीकार करते हैं कि सोडर एक बेहतर उम्मीदवार हो सकते थे। सीडीयू चांसलरशिप नहीं लेना चाहती थी।
सीडीयू के सामने चुनौती चुनाव के बाद उत्पन्न हो सकती है। क्या वे सरकार से बाहर रहना और मर्केल के कार्यकाल के पश्चात फिर से खुद सरकार बनाना पसंद करेंगे? अथवा क्या वे गठबंधन में जूनियर सहयोगी के रूप में शामिल होकर वर्षों तक एसपीडी का समर्थन करते रहेंगे? चुनाव दूसरे विकल्प का सुझाव नहीं देते हैं, परंतु फिर भी स्थितियाँ आश्चर्यजनक हो सकती है। सीडीयू १६ में से ११ राज्य सरकारों में और एसपीडी १० में भागीदार है। ६ राज्यों में दोनों भागीदार हैं।
सबसे बड़ा घुमाव ग्रीन्स का रहा है। 2017 में उनका वोट शेयर 8.9% था। उन्होंने कई राज्यों के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया। बाडेन वुर्टेमबर्ग में राष्ट्रपति पद और 10 राज्यों में सरकार में शामिल हैं। अक्टूबर 2020 में उन्हें लगभग 18% समर्थन प्राप्त था और मई 2021 में हुए चुनावों में उनके वोट शेयर में धीरे-धीरे लगभग 25% की वृद्धि हुई। इसने उन्हें पहली बार एनालेना बारबॉक के साथ चांसलर के लिए अपने उम्मीदवार की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया। वह संसद में रही हैं, परंतु कभी भी क्षेत्र या केंद्र में मंत्री पद पर नहीं रहीं।
इससे ग्रीन्स के समर्थन में वृद्धि हुई। परंतु उनके अभियान के दौरान अखंडता के मुद्दे ने ग्रीन्स को व्यथित कर किया और सितंबर के चुनावों में यह प्रतिशतत गिरकर 16% रह गयी। यह अभी भी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। उनका वोट शेयर 2017 के उनके वोट शेयर से लगभग दोगुना है। उनके नेतृत्व मे कोई भी पार्टी ग्रीन्स सरकार का हिस्सा हो सकती है।
दक्षिणपंथी एफडीए ने 2017 के अपने 12.6% के स्तर को बनाए रखा है। जो इस वर्ष अधिकांश समय तक 10 -12% ही बना रहा। यह सभी दलों के लिए खतरे की घंटी हैं और किसी भी पार्टी द्वारा सरकार बनाने के लिए उनसे संपर्क करने की उम्मीद नहीं की जाती है।
एएफडी की तुलना में एफ डी पी को मामूली रूप से अधिक समर्थन प्राप्त हुआ है, जो वर्तमान में नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया से सीडीयू उम्मीदवार लसचेत के भागीदार है। 2017 में एफडीपी का वोट शेयर 10.7 फीसदी था, परंतु यह अति महत्वाकांक्षी हो गया और सरकार से बाहर हो गया। अब इसके 12% तक पहुँचने का अनुमान है और ग्रीन्स के साथ सरकार में शामिल् होने की उम्मीद है, चाहे इसका नेतृत्व एसपीडी या सीडीयू में से कोई भी कर रहा हो। चूंकि वे केवल 2 राज्य सरकारों का हिस्सा हैं, इसलिए वे बर्लिन में प्राप्त अवसर का स्वागत करेंगे।
वाम दल मुख्य रूप से पुराने पूर्वी जर्मनी में कार्य करते रहे हैं और सत्तारूढ़ दल जीडीआर के शेष में से हैं। उनके पास लगभग 6% समर्थन का आधार लगातार रहा है। 2017 में, उन्होंने अपने वोट शेयर को बढ़ाकर 9.2% कर दिया, जिसमें एएफडी विरोधी वोट थे। वे 6% के स्तर पर वापस आ गए हैं। यद्यपि 3 राज्य सरकारों के हिस्से, के रूप में वे संघीय सरकार के लिए अभिशाप हैं क्योंकि उनके पास नाटो से हटने की स्पष्ट नीतियां हैं और अन्य बातों के साथ साथ वे यूरोपीय संघ के प्रति उत्साहित नहीं हैं।
वैसे भी, एसपीडी गैर-सीडीयू गठबंधन को प्राथमिकता देगी और यदि वे इसमें मदद करेंगे तो ग्रीन्स और वामपंथियों के साथ जाना पसंद करेगी। एफडीपी बाद का विकल्प होगा।
लेखक का मत है कि एस पी डी द्वारा वामपंथियों के साथ साझेदारी का प्रस्ताव मुख्य रूप से एसपीडी की समाजवादी शाखा को खुश करने के लिए है, जो फिलहाल अभी चुप है। इससे एसपीडी स्वयम् को मर्केल के सांचे में एक मध्यमार्गी संगठन के रूप में स्थापित कर पायेगा। चुनावों के पश्चात्, एसपीडी की समाजवादी शाखा द्वारा अधिक मुखर भूमिका निभाई जाने की संभावना है। चुनाव जीतने के लिए, शोल्ज़ के अधीन एसपीडी खुद को मर्केल विरासत के बेहतर उत्तराधिकारी के रूप में पेश कर रहा है।
जर्मन बुंडेस्टाग में न्यूनतम, 598 संसदीय सीटें निर्धारित हैं, परंतु इसमें सीटों के आनुपातिक असाइनमेंट के आधार पर एक समरूप व्यवस्था है, जो इस बात पर निर्भर करती है कि प्रत्येक पार्टी की जीत के लिए न्यूनतम 5% की सीमा से, वोट शेयर कितना अधिक हैं। पिछली संसद में 709 सीटें थीं, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या हैं। इसका अभिप्राय है कि स्थिर सरकार के लिए अधिक गठबंधन करने होंगे।
मिश्रित आनुपातिक प्रणाली में ऐसी किसी लहर की संभावना नहीं होती जो संसदीय प्रणाली से पूर्व, अतीत में लोकतांत्रिक व्यवस्था में संभव हुई हो। अतः गठबंधन वह आदर्श प्रणाली है जिसे जर्मनी ने दूसरे चुनाव के बाद से अपनाया है।
सरकार पर स्पष्ट नियंत्रण के लिए, आईएसपीडी को कम से कम 30% से अधिक वोट शेयर की आवश्यकता है। तब उनकी स्थिति मजबूत होगी। वे सरकार बनाने के लिए ग्रीन्स और वामपंथियों को शामिल कर सकते हैं। यदि यह अपर्याप्त होगा तो एफडीपी को शामिल करने की आवश्यकता पड़ेगी और वामपंथियों को छोड़ दिया जाएगा। एसपीडी की समाजवादी शाखा को यह पसंद नहीं है। एसपीडी द्वारा अधिक वोट हासिल करने की संभावनाओं को समाजवादी पार्टी के रूप में नहीं बल्कि एक मध्यमार्गी के रूप में देखा जाता है। यदि यह पर्याप्त मतों से विजयी होती है तो उनकी समाजवादी शाखा महारथियों को बुलाएगी।
यदि एसपीडी को 30% से अधिक वोट शेयर नहीं प्राप्त होता, तो उन्हें एक और महागठबंधन के लिए सीडीयू के पास वापस आना पड़ सकता है। तब बदलाव केवल मर्केल की गैरमौजूदगी ही होगा।
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