जनता, नेता, संस्थान और उनकी आकांक्षाएं एक राष्ट्रीय ध्वज के नीचे आ गयी है
पिछले दो हफ्तों में एक नए अफगानिस्तान का उदय हुआ है जो अपने भाग्य का स्वामी बनने के अपने संकल्प के लिए एकजुट भी है और आश्वस्त भी।
क्या हम एक ऐसे देश का उदय देख रहे हैं जो कम से कम सुरक्षा के मोर्चे पर आत्मनिर्भर बनना चाहता है? देश और विदेश दोनों जगह, अफगानी अपने चुने हुए नेतृत्व, सुरक्षा बलों और सरकारी संस्थानों के समर्थन में उतर गये हैं। वे सभी केवल अफगानी हैं। क्षेत्र या जातीयता में विभाजित नहीं है। यह उस देश के लिए शुभ संकेत है।
इस क्षेत्र के कई लोग और अमेरिका भी आश्चर्यचकित है कि अफ़ग़ानी राष्ट्रीय सुरक्षा बलों (ANDSF) ने अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों को नहीं छोड़ा है। साथ ही, इसने तालिबानी आतंकवादियों को महत्वपूर्ण क्षेत्रों से पीछे भी धकेल दिया है। साथ ही महत्वपूर्ण शहरों और कस्बों को पाकिस्तानी प्रॉक्सी के हाथों में जाने से रोक दिया है।
हालांकि तालिबान ने घोषणा की है कि उसने 80 प्रतिशत अफगान भूमि पर नियंत्रण कर लिया है, जबकि काबुल की निर्वाचित सरकार ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि मिलिशिया के नियंत्रण वाला क्षेत्र बंजर भूमि और बहुत कम आबादीवाला है। इस प्रकार, उन क्षेत्रों में चल रहे अफगान-पाक युद्ध का परिणाम रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है।
पाकिस्तान और उसके सहयोगियों ने यह मान लिया था कि जैसे ही अमेरिकी सैनिक पीछे हटेंगे, ANDSF बिखर जाएगा, जातीय नेताओं के बीच अंदरूनी कलह शुरू हो जाएगी- जिससे अफगानिस्तान का पूर्ण पतन हो जाएगा, और फिर तालिबान, जैसा कि 90 के दशक के अंत में हुआ था, वैसे ही आईएसआई और पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित शासन स्थापित हो जायेगा। खैर, कई बेहतरीन कारणों से यह पाकिस्तानी मंसूबा असफल हो गया। तो आइए देखते हैं कि अफगानिस्तान को 90 के दशक के गृहयुद्ध की तरह गिरने से कौन रोक रहा है।
2021 का अफगानिस्तान 1996 जैसा नहीं
1996 में अफगानिस्तान का पतन और तालिबान के नेतृत्व में पाकिस्तान के प्रॉक्सी शासन की स्थापना कई कारणों से संभव हुआ। अफगानिस्तान के क्षेत्रीय कमांडरों के बीच संघर्ष ने एएनए के संसाधनों को विभाजित कर इसे कमजोर कर दिया था। इसके अलावा, अफगानिस्तान पर सोवियत रूस के कब्जे के खिलाफ अमेरिकी समर्थन से मुजाहिदीनों को असीमित संसाधनों की आपूर्ति होती रही।
आम अफगानी तीन दशकों से चले आ रहे गृहयुद्ध से थक चुके थे और इसका अंत चाहते थे। इस प्रकार, जब पाकिस्तानी समर्थित कट्टर मुल्लाओं ने मुजाहिदीन का संरक्षण किया, तो अशिक्षित अफगानों ने बड़े पैमाने पर उनका स्वागत किया। उनको विशवास था कि वे उनके हितों की रक्षा करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जैसे ही तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा किया – सबसे पहले पाकिस्तान ने उसके संसाधनों को लूटना और बुनियादी ढांचे को नष्ट करना शुरू कर दिया। मैंने अफगानिस्तान में अपने प्रवास के दौरान महीनों तक स्थानीय से जो सुना उसके अनुसार पाकिस्तानी लुटेरों ने लगभग 100 साल से अधिक पुराने देवदार के पेड़ों को काट कर तस्करी कर ली। 90 के दशक में काबुल में इलेक्ट्रिक बसें थीं- लुटेरों ने केबल और बिजली के खंभों को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने स्क्रैप के लिए नई बसों, नागरिक और सैन्य विमानों पर भी बमबारी की। अफगानी यह भी बताते हैं कि कैसे “पाकिस्तानी दलाल” युवतियों का अपहरण कर और उन्हें कराची और इस्लामाबाद ले गये।
अफगान और पाकिस्तान के बीच जारी युद्ध में – तालिबान ने अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में लूटमार कर और संसाधनों को नष्ट करके अपना असली इरादा स्पष्ट कर दिया है। इस प्रकार, अफगानी निश्चित रूप से यह जानते हैं- यदि उनका देश इस बार फिर से लड़खड़ाया है, तो पाकिस्तान अपने प्रॉक्सी तालिबानियों के माध्यम से, अफगानिस्तान में हर तरफ आतंक और दमन फैलाने में कामयाब हो जायेगा।
2021 और 1996 के अफगानिस्तान के बीच अंतर करने वाले कारक क्या हैं?
1. क्षेत्रीय कमांडर और पूर्व नेता आम दुश्मन के खिलाफ एकजुट हैं:
2001 के बाद से चुनी हुई सरकारों के भीतर काम करने के बाद, अधिकांश पूर्व क्षेत्रीय कमांडर अपने-अपने क्षेत्रों में शानदार ढंग से सेवानिवृत्त हुए हैं। 2001 के बाद से एक बड़े हिस्से पर इन नेताओं ने काबुल में लोकतांत्रिक रूप से चुनी सरकार के शासन में हस्तक्षेप नहीं किया; उनमें से कई सरकार का हिस्सा भी थे। देश ने करजई से राष्ट्रपति गनी तक सत्ता का शांतिपूर्ण तरीके से हस्तांतरण देखा है। इस प्रकार, क्षेत्रीय नेताओं, विशेष रूप से पूर्व सैन्य कमांडरों को एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने की संभावना नहीं दिखती, जैसा कि उन्होंने 90 के दशक में किया था। इसके बजाय, पूर्व गवर्नर और हेरात के मुजाहिदीन कमांडर इस्माइल खान और शेबर्गन से पूर्व उपराष्ट्रपति मार्शल अब्दुल राशिद दोस्तम, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई जैसे शक्तिशाली नेताओं ने वर्तमान अफगान सरकार का समर्थन किया है।
मार्शल दोस्तम ने अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने लोगों की रक्षा करने का वादा किया है, इस्माइल भी “तालिबानियों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए आगे आकर लड़ रहे हैं।”
सैन्य और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर उनका संयुक्त प्रयास देश के लिए शुभ संकेत है, जिसे तालिबानियों द्वारा तोड़ना मुश्किल होगा।
2. ANDSF एक राष्ट्रीय बल के रूप में लड़ रहा है:
ANDSF अब काफी हद तक एक पेशेवर सेना बन गयी है, जो पहले से कहीं ज्यादा अफगानी है। इसके अलावा, वे तालिबान से एक राष्ट्रीय सेना के रूप में लड़ रहे हैं, न कि किसी स्थानीय या क्षेत्रीय कमांडर की सेना के रूप में, जो 90 के दशक से एक बड़ा अंतर है।
ANDSF की जमीन पर टिके रहने और तालिबान को पीछे धकेलने की क्षमता ने अफगानों में उम्मीद जगा दी है। इसका तत्काल सकारात्मक असर यह था कि सैकड़ों अफगानी अफगानिस्तान के प्रमुख शहरों और की सड़कों पर उतर आए और एएनडीएसएफ के समर्थन में अल्लाह-ओ-अकबर के नारे लगाए।
3. राजनयिक कूटनीति और समर्थन:
अफगान की कूटनीति समय के साथ परिपक्व हुई है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अतमार के अनुरोध पर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान पर एक आपातकालीन सत्र बुलाया। अफगान नेताओं और राजनयिकों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन हासिल किया है। उनके कूटनीतिक कदम ने सुरक्षा परिषद को “हिंसा और शत्रुता को समाप्त करने के लिए आह्वान के लिए” प्रेरित किया है और साथ ही “बाहरी दुनिया के देशों को युद्धग्रस्त देश के सामने उपजी गंभीर स्थिति को प्रकट करने में मदद की है।”
4. अफ़गानों को एक अदृश्य कूटनीतिक शक्ति मिली
दुनिया भर में लाखों अफगानी रहते हैं, ज्यादातर अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय संघ में हैं। वे पाकिस्तान और उसके प्रॉक्सी द्वारा महिलाओं, बच्चों और सरकारी संस्थाओं पर की गई हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रवासी अफगान एक अदृश्य राजनयिक शक्ति के रूप में काम कर रहे हैं, और वे जहां रहते हैं उन देशों की सरकारों को प्रभावित कर सकते हैं।
5. मातृभूमि की लालसा:
कई साल पहले, दुबई में कुलीन अफगानों की एक निजी सभा के दौरान, एक अरबपति भावुक हो गये और कहा कि क्या उसके बच्चे कभी अपने पूर्वजों की भूमि पर जा पाएंगे और इसकी संस्कृति और परंपराओं का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त कर सकेंगे। उनकी आशंका को कमरे में उपस्थित कई लोगों ने साझा किया। मैंने पूरे अफ़ग़ानी समाज से ऐसे ही भावनात्मक विचार सुने हैं। अफगान एक ऐसे घर के लिए तरस रहे हैं जो अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए शांतिपूर्ण और सुरक्षित हो।
मेरे जैसे कई लोग जो अफगानिस्तान में रह चुके हैं और जिन्हें एएनडीएसएफ, सरकार और विशेष रूप से युवा अफगानों के साथ काम करने का अवसर मिला है, एक बात की पुष्टि कर सकते हैं। अफगानी एक ऐसी मातृभूमि चाहते हैं जहां वे स्वामी हों।
6. मिलेनियल के अफ़गानों ने आज़ादी का स्वाद चखा है:
मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उपस्थिति और समर्थन के कारण, पिछले दो दशकों के दौरान पैदा हुए और जो अभी अपनी उम्र के 40 के दशक में हैं ऐसे अफगानों ने एक ऐसे जीवन का अनुभव किया है जिसके बारे में उनके माता-पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। प्रौद्योगिकी के जमाने में अधिकांश अफगानी अब दुनिया के साथ हैं और किसी टाइम कैप्सूल में नहीं फंसे हुए। वे अपनी जीवन शैली के साथ समझौता नहीं करेंगे। बल्कि वे इसकी रक्षा के लिए लड़ेंगे। इसका एक उदाहरण अफगान बच्चों का सड़क पर उतरना और ANDSF के समर्थन में अल्लाह-ओ-अकबर का नारा लगाना है। कुछ लोग इस तथ्य की ओर इशारा कर सकते हैं कि समर्थन के लिए यह प्रदर्शन शहरों तक ही सीमित है। बहरहाल – यह एक ऐसी आवाज है जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय नजरअंदाज नहीं कर सकता और इसका सम्मान करना चाहिए क्योंकि उन्होंने अफगानों को लोकतंत्र का स्वाद चखाया है।
7. सोशल मीडिया पर अत्याचारों का दस्तावेजीकरण:
सोशल मीडिया की बदौलत तालिबानियों का अत्याचार अब छिपा हुआ नहीं हैं। अब दुनिया को इसके खिलाफ खड़ा होना है चाहें वे आज करें या कल, कार्रवाई तो करनी है। हजारों महिलाओं, बच्चों और युवा लड़कियों की खातिर यह जितना जल्द हो उतना ही बेहतर।
वैश्विक शक्तियाँ चल रहे इस संघर्ष को “गृहयुद्ध” नहीं कह सकतीं। पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए छद्म युद्ध के खिलाफ अफगानिस्तान लड़ रहा है। यह गृहयुद्ध नहीं है! यह अफगान-पाक युद्ध है, और अब यह वैश्विक शक्तियों पर निर्भर है कि वे पाकिस्तान से इसका बदला चुकायें।
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anil