सुरंग युद्ध प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। महाभारत में इसका जिक्र है कि किस तरह पांडव एक गुप्त सुरंग के जरिए ‘लाक्षागृह’ से भाग निकले थे। लाक्षा से बने घर को कौरवों द्वारा जलाने का आदेश दिया गया था। असीरियों ने 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व में सुरंगों का इस्तेमाल किया था। दुश्मन को चकित करने वाले हमलों के लिए विभिन्न सेनाओं द्वारा सुरंग युद्ध के इस्तेमाल से इतिहास भरा पड़ा है। दुश्मन के इलाकों में घुसपैठ करने, सैनिकों व सामग्री ले जाने और बचाव के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कई युद्ध क्षेत्रों में सुरंगों का भंवरजाल तैयार किया गया है।
सुरंग युद्ध का एक हालिया उदाहरण सीरियाई गृहयुद्ध में अलेप्पो में मार्च 2015 में देखने को मिला। इसमें सीरियाई वायु सेना के खुफिया निदेशालय मुख्यालय के नीचे बड़ी संख्या में विस्फोटक लगाए गए थे और उनमें विस्फोट किया गया था। इस हमले की जिम्मेदारी अल कायदा से जुड़े नुसरा फ्रंट और मुहाजिरीन और अंसार सेना सहित जिहादी समूहों ने ली थी। इस हमले ने इमारत को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचाया जिसमें कई सुरक्षा अधिकारी मारे गए थे।
सैन्य रणनीति के रूप में सुरंग युद्ध को क्रीमियन युद्ध, अमेरिकी गृहयुद्ध और सोम्मे की लड़ाई में देखा गया था। हालाँकि 1917 में मेसिन्स में जर्मन लाइन्स को तबाह करने वाले विस्फोट अब तक के सबसे बड़े गैर-परमाणु विस्फोटों में से एक हैं। इन विस्फोटो में 26,000 फीट से अधिक सुरंग खोदा गया और लगभग 600 टन विस्फोटकों का उपयोग हुआ था। धमाकों से 19 बड़े दरार बन गए थे। इस भयंंकर विस्फोट में 10,000 से अधिक सैनिकों की जान गई थी।
हाल के दिनों में सुरंगों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए किया गया है। अमेरिकी अधिकारियों को मेक्सिको सीमा पर ड्रग तस्करों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सबसे लंबी सुरंग मिली है। 4,309 फीट (1,313 मीटर) तक फैले इस सुरंग में एक लिफ्ट, रेल पटरी, जल निकासी व्यवस्था, वायु संचालन व्यवस्था और उच्च विद्युत दबाव वाले बिजली के केबल थे। यह सुरंग मैक्सिकन शहर तिजुआना के एक औद्योगिक स्थल को कैलिफोर्निया के सैन डिएगो क्षेत्र से जोड़ रही थी।
29 अगस्त 2020 को भारतीय सीमा सुरक्षा बल ने भारत-पाक सीमा पर जम्मू के सांबा क्षेत्र के गालार इलाके में एक सुरंग खोज निकाला। जाहिर है यह सुरंग आतंकवादियों और नशीले पदार्थों की खेपों को सुरक्षित भारतीय सीमा में घुसाने में मदद करने के लिए बनाया गया था। बीएसएफ ने 20 फिट गहरे सुरंग की खोज की जिसमें 340 मीटर तक के लिए वायु संचालन व्यवस्था और सांस लेने की व्यवस्था थी। यह पठानकोट हवाई अड्डे से महज 58 किलोमीटर दूर था, जहां चार साल बाद आतंकवादियों ने हमला किया था।
आसानी और सटीकता के साथ भूमिगत सुरंगों का पता लगाने के लिए बीएसएफ ने व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (CIBMS)की स्थापना की है। सीआइबीएसएम सेंसर, संचार, बुनियादी ढांचे, प्रतिक्रिया और कमांड एवं नियंत्रण को एकीकृत करता है। सीआइबीएमएस का एक महत्वपूर्ण घटक उपग्रह यानी सैटैलाइट इमेजरी है। हालांकि रीयल-टाइम नहीं होने के कारण यह हमेशा उपयोगी नहीं होते हैं। लेकिन इस बाधा को दूर करने और रीयल-टाइम डेटा प्राप्त करने के लिए यूएवी तैनात किए गए हैं।
पहली नार्को-सुरंग 1989 में कुख्यात ड्रग लॉर्ड जोकिन ‘एल चैपो’ गुज़मैन के सिनालोआ कार्टेल ने बनाई थी। तब से यूएस-मैक्सिकन सीमा के तहत 13,000 से अधिक नार्को-सुरंगों का पता चला है। नोगलेस को मेक्सिको और अमेरिका के बीच सीमा पार सुरंगों की राजधानी कहा जाता है। इसी तरह मैक्सिकन पुलिस को सितंबर 2008 में उत्तर पश्चिमी मेक्सिको में अमेरिकी सीमा के पास एक वातानुकूलित ड्रग-तस्करी सुरंग मिली थी। सुरंग 140 मीटर लंबी, 1.3 मीटर चौड़ी और पांच मीटर गहरी थी। यह सुरंग अमेरिका में कैलेक्सिको से सीमा पार 60 मीटर से भी कम दूरी पर मेक्सिकैली शहर में गश्त के दौरान एक घर के नीचे मिली थी। सुरंग में कंटेनर लाने-ले जाने के लिए एक इलेक्ट्रिक रेल, हवा संचालन और रोशनी के साथ-साथ वातानुकूलित व्यवस्था भी थी।
नशीले पदार्थों की तस्करी, हथियारों की तस्करी और आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ को रोकने की भूमिगत चुनौती हमारे सुरक्षा अधिकारियों के लिए एक विकट चुनौती बनने जा रही है। अफगानिस्तान के पतन की ओर बढ़ने के साथ, तालिबान के हजारों दु:साहसी अपने गलाकाटू अभियान को जारी रखने के लिए नए जगहों की तलाश करेंगे। भारत, विशेष तौर पर कश्मीर सबसे पहले उनके रडार पर होगा। उनमें से अधिकतर सुरंग युद्ध में पारंगत हैं, क्योंकि अफगानिस्तान हजारों गुफाओं, अनगिनत मील की सुरंगों, गहराई से खोदे गए ठिकानों और बेहद सुरक्षित सुरंगों का गढ़ है।
इन सुरंगों में प्राकृतिक और कृत्रिम सुरंगें शामिल हैं। अमेरिका और रूसी सेना भी अफगानिस्तान में अत्यधिक जटिल सुरंगों के जाल को पूरी तरह से समाप्त करने में सफल नहीं थे। भारत की पश्चिमी सीमा और कश्मीर में घुसने के लिए पाकिस्तान को अफगानिस्तान के इन सुरंग-योद्धाओं की विशेषज्ञता मिलेगी। तालिबान विद्रोहियों की विशेषज्ञता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अफगानिस्तान के दक्षिणी कंधार प्रांत में एक प्रमुख सैन्य अड्डे के पास एक शक्तिशाली बम का सफलतापूर्वक विस्फोट किया था। यहां तालिबान विद्रोहियों ने अफगान नेशनल आर्मी बेस तक दो किलोमीटर सुरंग खोद कर विस्फोटक लगाया था।
चीन के कब्जे वाले तिब्बत के साथ सटे एलएसी पर स्थिति अधिक चिंताजनक है, जहां चीनी पीएलए बल ‘सुरंग-युद्ध’ का सहारा लेने में सक्षम हैं। चीनियों का आक्रामक और रक्षात्मक उद्देश्यों के लिए सुरंगों का उपयोग करने का एक लंबा इतिहास रहा है। द्वितीय चीन-जापान युद्ध में चीन को सुरंग सुरक्षा का उपयोग करते हुए देखा गया था। वर्तमान में कुछ रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि पीएलए बलों ने ल्हासा एयरबेस पर विमानों को बचाकर रखने के लिए सुरंगों का निर्माण किया है।
व्यापक सड़क-निर्माण/निर्माण गतिविधियों से चीन पूरे हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं को चूर-चूर कर रहा है। इसके साथ ही भारत-चीन के बीच संघर्ष का केंद्र रहे डोकलाम क्षेत्र के पास बनाए जा रहे नए सैन्य भंडारण बंकरों का निर्माण भी चल चल रहा है। बेहद दुर्गम इलाके में निर्माण गतिविधियों में चीनी विशेषज्ञता से भारत को सावधान रहना चाहिए।
एक ‘सुपर-डैम’ के निर्माण की योजनाएँ चल रही हैं, जो पानी को हिमालय से निकलकर भारत तक पहुंचने से पहले ही ब्रह्मपुत्र नदी को विस्तार देगा। यह दुनिया की सबसे लंबी और सबसे गहरी घाटी 1,500 मीटर (4,900 फीट) से अधिक ऊँचाई पर बनेगा। तिब्बत के मेडोग काउंटी में यह परियोजना मध्य चीन में यांग्त्ज़ी नदी पर रिकॉर्ड तोड़ने वाले थ्री गोरजेस बांध को बौना बना देगी। तिब्बती लोग नदी को ‘यारलुंग त्सांगपो’ कहते हैं। यहां दो अन्य परियोजनाएं चल रही हैं, जबकि छह अन्य प्रक्रिया में हैं या निर्माणाधीन हैं।
सिविल इंजीनियरिंग परियोजनाओं में चीनी दक्षता उन्हें एलएसी पर विभिन्न स्थानों पर सुरंगों के निर्माण और हमारी सेनाओं को चकमा देने के लिए प्रेरित करेगी। इसलिए, प्रभावी सीमा प्रबंधन के लिए पल्स्ड इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्च सिस्टम (PEMSS, ग्राउंड पेनेट्रेशन रडार (GPR), सिस्मिक सेंसर टेक्नोलॉजी, ब्रिलॉइन ऑप्टिकल टाइम रिफ्लेक्टोमेट्री और सिंक्रोनाइज्ड इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव ग्रेडियोमीटर को तत्काल तैनात करने की आवश्यकता है।
चीनियों के पास सुरंग युद्ध का इतिहास भी है, जिसका व्यापक रूप से उत्तरी चीन के मैदानों में जापानी आक्रमणकारियों के खिलाफ युद्ध के दौरान इस्तेमाल किया गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में, घरों और गांवों को सुरंगों के माध्यम से जोड़ा जाता था, जिससे दुश्मनों के आक्रामक अभियान के दौरान स्थानीय निवासियों और गुरिल्ला बलों को छिपने के लिए जगह मिलती थी। वर्ष 1960 के दशक में वियतकांग ने अमेरिकियों के खिलाफ अपनी छापामार युद्ध में उसी रणनीति का इस्तेमाल किया था कोरियाई युद्ध में उत्तर कोरिया ने किया था।
22 नवंबर 2020 को द हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “पीएलए ने तिब्बत और अन्य संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरंगों का निर्माण किया है। एक चतुर जवाबी रणनीति के रूप में, भारतीय सेना ने दुश्मन के हमलों से सैनिकों का बचाव करने और बदतर चीनी पीएलए द्वारा खोदी गई सुरंगों में गडढा करने के लिए बड़े व्यास के ह्यूम प्रबलित कंक्रीट पाइप लगाए गए हैं। प्रबलित कंक्रीट पाइप में छह से आठ फिट के व्यास होते हैं, जो सैनिकों को दुश्मन के हमले से बचाकर आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने में मदद करता है। सुरंगों का अन्य लाभ यह भी है कि उन्हें भीतर गर्म रखा जा सकता है और हिमालय के उप-शून्य ठंड तापमान -20 से -35 डिग्री सेंटीग्रेड और बर्फीले तूफान से सैनिकों को भी बचाव मिल सकता है। सुरंगें ऐसे खराब मौसम का सामना करने में मदद कर सकती हैं।”
सुरंगों की मदद से पृथ्वी के नीचे लड़ना समय की कसौटी पर खरा उतरा है। प्राचीन काल से सुरंगों ने सैन्य लड़ाकों को अपने दुश्मनों तक गुप्त रूप से पहुंचने में सक्षम बनाया है और कमजोर लड़ाकों को युद्ध में बढ़त लेने में हमेशा मददगार साबित हुए हैं।
इस प्रकार, दुनिया भर में आतंकवादियों, नशा-तस्करों, हथियार-तस्करों और कई सेनाओं के लिए सुरंग एक पसंदीदा और भरोसे वाली लाभकारी रणनीति है। भूमिगत सुरंगें और बेहद छोटे आकार के ड्रोन पूरी दुनिया में सेना को एक अतिरिक्त घातक बढ़त देने जा रहे हैं। यह दोहरी चुनौतियां आने वाले दशक में सैन्य नेताओं, रक्षा वैज्ञानिकों और युद्ध विशेषज्ञों की सोच पर हावी होंगी।
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