• 05 May, 2024
Geopolitics & National Security
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रणनीतिक रुचि बढ़ाता है आसियान

गुरजीत सिंह (राजदूत)
शनि, 14 अगस्त 2021   |   4 मिनट में पढ़ें

इन दिनों लोगों का ध्यान अगले क्वाड शिखर सम्मेलन और यूएस-चीन प्रतिद्वंद्विता पर केंद्रित है। जबकि इंडो-पैसिफिक का आसियान देशों के साथ रणनीतिक जुड़ाव एक स्पष्ट गतिविधि है।

इसमें अमेरिकी रक्षा सचिव, लॉयड ऑस्टिन की आसियान यात्रा, क्षेत्र में संयुक्त अभ्यास के लिए यूके के जहाजों के बेड़े की यात्रा और जुलाई में एक जर्मन नौसैनिक जहाज की यात्रा शामिल है।

जर्मन युद्धपोत बायर्न की जलयात्रा जर्मनी के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सक्रिय होने का दो दशकों में पहला प्रयास है। यह हिंद-प्रशांत से जुड़ाव के लिए जर्मन दिशानिर्देश है।1 दिशा-निर्देशों के अनुसार युद्धपोत दौरे के जरिए जर्मनी चीन को दरकिनार करने की कोशिश नहीं कर रहा है। इसका मुख्य संदेश क्षेत्र में जर्मनी के दोस्तों और क्वाड सदस्यों जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूएसए के लिए है। ऑस्ट्रेलिया, गुआम, जापान, चीन, सिंगापुर और पूर्वी अफ्रीका में इसके महीने भर के दौरे का हिस्सा है।2 दिलचस्प बात यह है कि युद्धपोत के शंघाई जाने का इरादा है। यह अपनी वापसी यात्रा पर भारत का दौरा करेगा।

जर्मनी को चीन से मिश्रित संदेश मिल रहे हैं। चीन ने इस युद्धपोत की यात्रा के मंसूबे पर स्पष्टीकरण मांगा है जो दक्षिण चीन सागर से होकर जाएगा। सही साथी को सही जानकारी देने की जर्मन कोशिशें इस क्षेत्र में चीन और उसके प्रतिद्वंद्वियों को उलझाए हुए हैं। जर्मनी भले ही मौजूदा तनाव का पक्ष न ले लेकिन जहाजों की यात्रा को कुशलता से पूरा करना चाहेगी जिससे उनका सकारात्मक जुड़ाव बना रहे। दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरने के परिणामों के अपने कारण हैं जिनसे जर्मनी को निपटना होगा।3

यूके भी इस क्षेत्र में वापसी कर रहा है। एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ के नेतृत्व में इसके बेड़े में, एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट ले जाने वाला एक बड़ा विमानवाहक पोत है। संयुक्त अभ्यास और पोर्ट निरीक्षण के जरिए वह क्षेत्र में उपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। उन्होंने 22 और 23 जुलाई को दक्षिण चीन सागर जाने के क्रम में भारतीय नौसेना के साथ संयुक्त अभ्यास किया था। अक्टूबर में कारवार के आसपास अभ्यास की उम्मीद है। साथ ही बेडे़ के यूके लौटने के क्रम में गोवा तट पर अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में भी अभ्यास करेंगे।

जहाजों के बेड़े में यूएस और हालैंड के जहाज शामिल हैं। विध्वंसक, युद्धपोत और सहायक पोत जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलियाई नौसेनाओं के साथ अभ्यास करेंगे। इन्होंने अदन की खाड़ी में जापान के साथ समुद्री डकैती रोधी संयुक्त अभ्यास किया। दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत में की गई यह तैनाती यूनाइटेड किंगडम की एशिया की ओर बढ़ने का हिस्सा है।4 हालांकि ब्रिटेन भी, विशेष रूप से आर्थिक मुद्दों पर, चीन को चिढ़ाना नहीं चाहता, वह लोकतंत्र के पक्ष में रहते हुए एक स्वतंत्र और खुला हिंद-प्रशांत (एफओआईपी) चाहता है। यूके ने सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और जापान की मदद से अगस्त से इस क्षेत्र में दो गश्ती नौकाओं की स्थायी तैनाती का फैसला किया।5 ब्रुनेई के साथ भी पहले से ही यह व्यवस्था है।

जुलाई के अंत में अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने सिंगापुर, वियतनाम और फिलीपींस का दौरा किया। बाइडेन प्रशासन और आसियान देशों के बीच यह पहली बड़ी बातचीत थी। सचिव ब्लिंकन ने 3 अगस्त को यूएस-आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक में आनलाइन रहकर हिस्सा लिया।6 अगस्त के दूसरे पखवाड़े में उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की सिंगापुर और वियतनाम यात्रा की संभावना है।7

ऑस्टिन की यात्रा ने इस क्षेत्र में वाशिंगटन के दोहरे पदचिन्ह को दिखाता है। एक ओर अमेरिका अपने करीबी सहयोगियों के साथ इस क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को चुनौती देना चाहता है। वास्तव में बाइडन प्रशासन क्वाड पर अनुमान से कहीं अधिक तेजी से आगे बढ़ा है। दूसरी ओर, उसने अब आसियान से फिर जुड़ने की कोशिश की है, जो इसकी केंद्रीयता को महत्व देता है।आसियान भी अर्थव्यवस्था में चीन को प्रमुखता देकर और उसके साथ सुरक्षा असंतुलन के लिए समर्थन मांगकर अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ के तहत दोहरे पदचिन्ह का अनुशरण करता है।

ऑस्टिन ने आसियान देशों को आश्वस्त किया कि उनकी केंद्रीयता संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है। आसियान एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसकी ‘साझेदारी की रणनीतिक अनिवार्यता’ के कारण इसे समर्थन की आवश्यकता है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।8

यह नहीं कहा जा सकता है कि आसियान अमेरिका में उत्सुकता पैदा नहीं करता है। आसियान के दृढ़ निश्चय से चीन के साथ विवाद में पड़ने की संभावना नहीं है। ओबामा प्रशासन के दौरान एशिया में अमेरिकी धूरी न बन पाने से संयुक्त राज्य अमेरिका से रक्षा की पारंपिरक व्यवस्था लड़खड़ा गई। आसियान को बाइडन प्रशासन से बहुत अधिक उम्मीदें हैं और वह चाहता है कि वह अन्य अधिक जरूरी आवश्यकताओं से विचलित होने की बजाय आसियान पर अधिक ध्यान केंद्रित करें। आसियान के साथ अमेरिकी संबंधों की श्रृंखला बताती है कि वह अमेरिका के जहन से बाहर नहीं हैं। लंबे समय से आसियान अमेरिका की भारत-प्रशांत नीति का एक महत्वपूर्ण घटक बना हुआ है।

इसमें यह संदेश भी निहित है कि, जहां ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका प्रथम नीति का पालन किया, वहीं बाइडन दक्षिण पूर्व एशिया में लोगों के अधिकारों और आजीविका सहित अब महामारी से निपटने में भी बड़ी साझेदारी चाह रहे थे। ब्लिंकन ने आसियान के विदेश मंत्रियों के साथ अपनी बैठक में एक बार भी चीन का जिक्र किए बिना यह बात कही थी।9 आसियान को वास्तव में चीन से मछली पकड़ने के क्षेत्रों में चुनौती की आहट मिलती है जिससे उनके नागरिकों को नुकसान हो सकता है। आसियान देशों को एफओआईपी को महज यूएस या क्वाड की रचना के तौर पर नहीं देखना चाहिए। यह उन पर और उनके लाभ पर समान रूप से लागू होता है।

ऑस्टिन की तीन देशों की यात्रा और आसियान के विदेश मंत्रियों के साथ ब्लिंकन की आभासी बैठक, एफओआईपी पर अमेरिकी दृष्टिकोण के रूप में हिंद-प्रशांत पर आसियान की केंद्रीयता और आसियान आउटलुक के लिए समर्थन को अमेरिका की पुष्टि भरा संदेश था।

अपनी केंद्रीयता के रूप में आसियान, विचारों के संतुलन और नए सिरे से अमेरिकी जुड़ाव का उस क्षेत्र में आदर करता है। ब्रिटेन और जर्मन नौसेनाओं की यात्रा भी आसियान के लिए इसकी पुष्टि करती है।फिलिपिंस की तरह बेहतर और अधिक समान भागीदारी का स्वागत है।10 लेकिन इससे आसियान की जिम्मेदारी भी बढ़ती है। अब सवाल यह है कि, क्या आसियान और उसके सहयोगियों के बीच आपसी उम्मीदें पूरी होंगी?


लेखक
राजदूत गुरजीत सिंह 37 वर्षों तक भारतीय राजनयिक रहे। वह जर्मनी, इंडोनेशिया, तिमोर-लेस्ते और आसियान और इथियोपिया, जिबूती और अफ्रीकी संघ में भारत के राजदूत रहे हैं, इसके अलावा जापान, श्रीलंका, केन्या और इटली में असाइनमेंट पर रहे हैं। वह पहले 2 भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलनों के लिए शेरपा थे और भारत और इथियोपिया पर उनकी पुस्तक 'द इंजेरा एंड द परांथा' को खूब सराहा गया था। उन्होंने जापान, इंडोनेशिया और जर्मनी के साथ भारत के संबंधों पर किताबें भी लिखी हैं।

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