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गलवान पराक्रमः जब शिकारी बने शिकार

कमांडर संदीप धवन (सेवानिवृत्त)
शनि, 14 अगस्त 2021   |   7 मिनट में पढ़ें

15 जून 2020 की भयानक रात को, कुख्यात गलवान घाटी 16 बिहार रेजिमेंट के युद्ध के नारे ‘बजरंग बली की जय’ और ‘बिरसा मुंडा की जय’ से गूंज उठी। युद्ध के उद्घोष बाद एक असाधारण घटना हुई थी। कोर कमांडर स्तर की वार्ता और समझौते की उपेक्षा और चीनी विश्वासघात के कारण 16 बिहार के कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) कर्नल बी संतोष बाबू शहीद हो गये।

उस झड़प से कुछ दिन पहले, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के भारतीय क्षेत्र में एक चीनी चौकी बन गयी थी। जब इस तथ्य से चीनियों को अवगत कराया गया तो समझौते के अनुसार चीनियों ने उस चौकी को समाप्त कर दिया। हालांकि, 14 जून 2020 को वह शिविर फिर से रातों-रात बन कर तैयार हो गया। भारतीय जवान पश्चिमी थिएटर कमांड के कमांडर जनरल झाओ झोंगकी की भयावह और कायरतापूर्ण कृत्यसे रूबरू होनेवाले थे।

15 जून 2020 की पूर्व संध्या पर, कर्नल बाबू ने व्यक्तिगत रूप से शिविर स्थल का निरीक्षण करने का निर्णय लिया। लगभग 35 जवानों की भारतीय टीम कमांडिंग ऑफिसर के साथ थी। उस क्षेत्र में पहुंचने पर, भारतीय टीम ने पाया कि शिविर स्थल पर जिन चीनी सैनिकों से वे निपट रहे थे वे सामान्य पीएलए के जवान नहीं थे। शुरुआत से ही, यह स्पष्ट था कि नए चीनी सैनिक पूर्व तय योजना का अनुसरण कर रहे थे। भारतीय टीम के आते ही उन्होंने आक्रामकता दिखानी शुरू कर दी। कर्नल बाबू ने ऑब्जर्वेशन पोस्ट के बारे में पूछताछ की तो चीनी सैनिक गाली-गलौज करने लगे और एक सिपाही ने कर्नल बाबू को धक्का दे दिया।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, जनरल झाओ झोंगकी ने निर्देश दिया था कि 16 बिहार के कमांडिंग ऑफिसर को निशाना बनाना है. चीनियों ने यह समझा था कि यदि कमांडिंग ऑफिसर को हटा दिया जाता है, तो यूनिट का मनोबल गिर जाएगा और वह मैदान छोड़ देगी। लेकिन वे हैरान रह गए। चीनियों को पीछे धकेल दिया गया और जल्द ही मुठभेड़ शुरू हो गई। भारतीय पक्ष की जीत हुई और चीनियों को 30 मिनट के भीतर वापस उनकी तरफ धकेल दिया गया। चीनी शिविर को भी ध्वस्त कर राख कर दिया गया।

कर्नल बाबू ने उनकी बड़ी योजना को भांपते हुए घायल लोगों को वापस भेज दिया और बैकअप भेजने के लिए कहा। जब तक अतिरिक्त जवान पहुंचे, तब तक अंधेरा हो चुका था। गलवान नदी के किनारे और तीरों पर इंतजार कर रहे नये चीनी सैनिकों ने भारतीय़ जवानों पर पथराव करना शुरू कर दिया। योजना के अनुसार ऐसा ही एक पत्थर कर्नल बाबू को निशाना बनाकर मारा गया था। उनके सिर पर चोट लगी और वह गलवान नदी में गिर गये।

चीनी सैनिक धातु के नुकीले डंडों और कांटेदार तार से लिपटी छड़ों के साथ अच्छी तरह से तैयार होकर आए थे। भारतीय सैनिक खाली हाथ लड़ रहे थे, पत्थरों से या चीनी जवानों से छीने गये हथियारों से लड़ रहे थे। लड़ाई एक घंटे से भी कम समय तक चली, जिसमें दोनों पक्षों की ओर से बड़ी संख्या में जवान हताहत हुए। जब जवानों की शक्ति जवाब दे गई, तो बड़ी संख्या में भारतीय और चीनी सैनिकों के शव गलवान नदी में तैर रहे थे। भारतीय कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू भी उनमें से एक थे।

जल्द ही 16 बिहार और पंजाब रेजीमेंट से घातक पलटन वहां पहुंच गयी जिससे युद्धरत चीनी कोई और गुल न खिला सके। भारतीय सैनिक एलएसी के पार तक चले गए। प्रत्येक भारतीय सैनिकों ने चीनी विश्वासघात के खिलाफ असाधारण साहस और बहादुरी का परिचय दिया।

एक युवा घातक कमांडो (नाम गुप्त रखा गया है) ने बहादुरी और वीरता का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तमाम विषम परिस्थितियों के बावजूद बहादुरी से लड़ाई लड़ी और अकेले ही 12 चीनी सैनिकों को मार गिराया। जब चार चीनी सैनिकों ने उसे घेर लिया, तो उसने एक-एक करके चारों को चट्टान से धक्का दे दिया। उन्हें नीचे धकेलते हुए वह भी चट्टान से फिसल गया। गिरते समय एक बोल्डर में वह अटक गया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। हालांकि, गिरने पर लगी चोटें भी उसे रोक नहीं पायी। वह पुनः चीनियों से लड़ने लगा। मौका मिला तो उसने एक चीनी सैनिक से कांटेदार तार का डंडा छीन लिया। इसके बाद तो उसे कोई रोक नहीं पाया। उसने विश्वासघातियों के  हथियार से ही सात और चीनियों को मार डाला। हाथापाई में उस बहादुर को एक कायर चीनी सैनिक ने पीछे से छुरा घोंपा। गंभीर रूप से घायल घातक कमांडो ने पीछे मुड़कर हमलावर को मार डाला और मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व बलिदान दे दिया।

अपनी टोली में बड़ी संख्या में जवानों की मौत देखकर चीनी सैनिक घबरा गए और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पार अपनी यूनिट में सुरक्षा के लिए भागे। भारतीय सैनिकों ने एक किलोमीटर से अधिक दूर तक उनका पीछा किया। हालाँकि, LAC के पार उनकी संख्या अधिक थी और उनमें से कुछ को पकड़ लिया गया था। वे उनमें से थे जिन्हें अगले दिन रिहा कर दिया गया। ऐसा करके चीनियों ने उदारता नहीं दिखायी बल्कि भारतीय सेना ने भी कई चीनी सैनिकों को पकड़ लिया था और उन्हें भारतीय सैनिकों के रिहा करने के साथ रिहा कर दिया गया।

रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सैनिकों ने चीनियों में ऐसा आतंक फैला दिया था जो आधुनिक सैन्य इतिहास में कभी सुना नहीं गया। चीनियों का यह विश्वासघात एक संयोग नहीं था। यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सर्वोच्च अधिकारियों के निर्देश पर किया गया एक सुनियोजित हमला था। जनरल झाओ ने इस ऑपरेशन को मंजूरी दी थी। उसने पहले भी राजनीतिक नेतृत्व के समक्ष यह चिंता व्यक्त की थी कि चीन नई दिल्ली और उसके सहयोगी संयुक्त राज्य अमेरिका के सामने कमजोर दिखाई दे रहा है। सूत्रों के अनुसार उन्होंने इस क्षेत्र में पीएलए यूनिट को “भारत को सबक सिखाने” का निर्देश दिया था। एक चीनी सूत्र के अनुसार, पूरे गेम प्लान की निगरानी और निर्देशन चीनी ड्रोन द्वारा किया जा रहा था।

चीनी सैनिकों के जीवन को हुए भारी नुकसान ने नेतृत्व को मुश्किल में डाल दिया था। भारत को सबक सिखाने की जनरल झाओ की योजना बुरी तरह विफल हो गई थी। भारतीय सैनिकों ने चीनियों को अपने पराक्रम और वीरता से सबक सिखा दिया।

भारत ने स्थिति का आकलन करने के बाद घोषणा की कि कमांडिंग ऑफिसर सहित 20 भारतीय बहादुरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। चीनी पक्ष सदमे में था और पूरी घटना के बारे में चुप था। 22 जून 2020 को, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने चीनी हताहतों की संख्या का खुलासा करने से इनकार कर दिया। बाद के प्रेस कांफ्रेंसों में, वह वही राग अलापता रहा कि उसे हताहतों की संख्या के बारे में पता नहीं है। बता दें कि झाओ लिजियन वही व्यक्ति है जिसने घटना के तुरंत बाद गलवान संघर्ष का विस्तृत और एकतरफा चीनी विवरण दिया था।

चीनी पक्ष में हताहतों की संख्या के पुष्ट आंकड़ों के अभाव में, सोशल मीडिया पर विभिन्न संख्याओं और सिद्धांतों का उल्लेख किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका के खुफिया आकलन ने यह आंकड़ा 35 रखा, रूसी समाचार एजेंसी टीएएसएस ने यह आंकड़ा 45 बताया, भारतीय सोशल मीडिया ने kreately.in, और pratyaksha.com जैसी विभिन्न वेबसाइटों का हवाला देते हुए 100 चीनी सैनिकों के मारे जाने की बात कही। एक अन्य भारतीय भू-राजनीतिक वेबसाइट Insightful.co.in ने ये आंकड़े 111 बताये,  जिसमें मारे गए और गंभीर रूप से घायल शामिल थे।

‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में प्रकाशित एक लेख में, चीन के लिए सिटीजन पावर इनिशिएटिव्स के संस्थापक और अध्यक्ष जियानली यांग ने लिखा है कि “बीजिंग को यह स्वीकार करते हुए डर लग रहा है कि उसने भारतीयों की तुलना में अधिक सैनिकों को खो दिया है। इससे चीन में अशांति हो सकती है जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के शासन को भी दांव पर लगा सकती है।” भारतीय सोशल मीडिया ने 100 चीनी सैनिकों की मौत के  रहस्योद्घाटन के लिए पूर्व चीनी सैन्य अधिकारी और सीसीपी में एक नेता के बेटे को जिम्मेदार ठहराया।

पीएलए अधिकारियों ने अपने एजेंडा पर अमल करते हुए भारत को भ्रमित करने के लिए, विभिन्न आधिकारिक वार्ता के दौरान यह आंकड़ा 4 से 14 तक बताया। अंत में, फरवरी 2021 में, चीन ने गालवान संघर्ष में खोए चीनी सैनिकों की संख्या का खुलासा किया, और तुरंत चीनी सोशल मीडिया पर मजाक का पात्र बन गया। आठ महीने के अंतराल के बाद चीन द्वारा यह घोषणा कि उन्होंने चार सैनिकों को खो दिया, एक सोची-समझी रणनीति थी।

50 के दशक के उत्तरार्ध में, जब चीन माओ के ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ द्वारा उत्पन्न अकाल से जूझ रहा था। उससे चीनी नागरिकों का ध्यान विचलित करने के लिए, प्रचारकों ने एक नकली राष्ट्रीय नायक कॉमरेड लेई फेंग को बनाया, जो वास्तविक था। वह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में एक निम्न ड्राइवर था। उसकी डायरी में राष्ट्रवादी नारे लिख दिये गये और उसे स्टूडियो में दीपक के नीचे पार्टी की विचारधारा पढ़ते हुए पोज देने के लिए कहा गया था। वह एक पोल दुर्घटना में मारा गया ताकि उसकी महानता की पहेली चिरस्थायी हो जाए।

फरवरी 2021 में एक बार फिर ऐसा ही एक अवसर था। चीनी नव वर्ष निकट था और चीन भोजन की कमी के दौर से गुजर रहा था। कमी इतनी गंभीर थी कि शी जिनपिंग को संकट से निपटने के लिए ‘क्लीन प्लेट कैंपेन’ चलाना पड़ा। अभियान को “एन -1” के रूप में डब किया गया, 10 लोगों का एक समूह जो केवल 9 थाली ऑर्डर कर सकता है। चीनी नव वर्ष निकट था और सीसीपी सार्वजनिक आक्रोश बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। उन्हें लोगों का ध्यान भटकाने की सख्त जरूरत थी। अंग्रेजी लेखक और अंग्रेजी शब्दकोश के संकलनकर्ता सैमुअल जॉनसन ने एक बार कहा था: “देशभक्ति बदमाशों की आखिरी शरणस्थली है।” चीनी नेतृत्व ने देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावनाओं को जगाकर इस नारे का इस्तेमाल किया। शहीद पीएलए सैनिकों चेन होंगजुन, जिओ सियुआन, वांग ज़ुओरान और चेन ज़ियानग्रोंग को महिमामंडित किया गया। उनकी कथित डायरियों से भारी शब्दों वाले नारों के साथ उनके रंगीन पोस्टर देश भर में लगवाये गये थे। मारे गए सैनिक गलती से जवान कम दार्शनिकों की तरह अधिक दिखते थे।

हालाँकि, ताश का घर तब ढह गया जब एक पूर्व खोजी पत्रकार किउज़िमिंग ने ट्विटर के समकक्ष वीबो पर मृत पीएलए सैनिकों की संख्या के बारे में सवाल उठाया। उनके 2.5 मिलियन फॉलोअर्स हैं और यह खुलासा वायरल हो गया, जिसने सीसीपी के उच्चाधिकारियों को सदमे में डाल दिया। सच्ची कम्युनिस्ट शैली में, किउ और पांच अन्य चीनियों को सजा दी गयी। उन पर नायकों और शहीदों की मानहानि को प्रतिबंधित करने वाले एक नए कानून के तहत मुकदमा चलाया गया। किउ के अनुसार, चार मृत सैनिक कभी भी एलएसी पर शुरुआती लड़ाई का हिस्सा नहीं थे। वे शव लेने गए थे और उनकी हत्या कर दी गई। इसलिए, उन्होंने अधिकारियों से सवाल किया कि अगर ये सैनिक शवों को लेने गए थे और मारे गए थे तो संख्या चार तक ही कैसे सीमित हो सकती है।

किउ के खुलासे ने एक बार फिर कर्नल बाबू के इस आकलन की पुष्टि की कि 15 जून 2020 की रात एलएसी पर जो चीनी सैनिक थे वे नियमित सैनिक नहीं थे। इन सैनिकों की मौत की घोषणा से चीनी गेम प्लान की पोल खुल जाती। इससे पहले से ही सहमे पीएलए सैनिकों की भावनाओं पर असर पड़ता। शी जिनपिंग और सीसीपी संयुक्त राज्य अमेरिका या चीनी नागरिकों से उतना नहीं डरते हैं, जितना कि वे पीएलए सैनिकों के तख्तापलट या आंतरिक अशांति से डरते हैं। पीएलए के जनरलों को शी की गतिविधियों से चोट पहुंची है, लाखों असंतुष्ट दिग्गजों को लगता है कि वे ‘गधे हैं जो बोझा नहीं ढो पाने लायक हो जायेंगे तो उनका वध किया जाना है’, ऐसे में अगर वे हाथ मिला लिए तो वे एक दुर्जेय बल साबित होंगे, जिनको रोक पाना मुश्किल होगा।

‘जर्नल ऑफ थर्ड मिलिट्री मेडिकल यूनिवर्सिटी’ में चीन के सबसे सम्मानित सैन्य मनोवैज्ञानिक फेंग झेंगझी और लियू जिओ ने लिखा है कि पीएलए के 29.7 प्रतिशत सैनिकों में विभिन्न प्रकार की प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक स्थितियां पायी गयी हैं। इतनी बड़ी संख्या में मनोवैज्ञानिक परिस्थितियों से जूझ रहे जवान भविष्य के युद्ध कैसे लड़ सकते हैं? कुछ स्रोतों ने पुष्टि की है कि गलवान संघर्ष में बचे कई सैनिक मनोवैज्ञानिक उपचार की मांग कर रहे हैं। कुछ सैनिकों ने कबूल किया है कि जब वे सोने की कोशिश करते हैं तो अभी भी 16 बिहार के युद्ध के नारे सुनायी देते हैं। भारतीय जवानों के पीछा करते कदम सुनायी देते हैं।


लेखक
भारतीय नौसेना के एक अनुभवी कमांडर धवन ने 1988 से 2009 तक नौसेना में सेवा की।
वह एक समुद्री टोही पायलट और एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे। वह एक भू-राजनीतिक विश्लेषक हैं 
और विभिन्न ऑनलाइन वेबसाइटों और संगठनों के लिए लिखते हैं।

अस्वीकरण

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POST COMMENTS (5)

Prasad parameswara rao

सितम्बर 07, 2021
Jai Hind Jai Bharat

Ramesh bhati

सितम्बर 02, 2021
Mujhe meri Sena pr garav h jai hind, jai bajrang Bali

Ram Baghele

अगस्त 31, 2021
जय हिंद जय हिंद की सेना

Tushar

अगस्त 23, 2021
जय बजरंगबली...

अभिषेक मिश्रा

अगस्त 16, 2021
जय हिंद। जय हिंद की सेना

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