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Geopolitics & National Security
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चीन पर हमला कर दुनिया को बचाओ: भाग 2 – वास्तविकता का निर्माण

कमांडर संदीप धवन (सेवानिवृत्त)
शनि, 13 नवम्बर 2021   |   9 मिनट में पढ़ें

ज़रा सोचिए कि चीन के अधिकारियों ने चीनी नागरिकों पर क्रूर हमला करने और उन्हें गिरफ्तार करने वाला वीडियो जारी किया जो सिना विबो पर कम क्रेडिट रेटिंग वाले मानदंडों पर था। कुछ ही समय में यह वीडियो,  वी चैट, दोय बैंन, यु क्यू और चीनी सोशल मीडिया के कई अन्य प्लेटफॉर्मों पर वायरल हो गया। जब तक चीनी अधिकारी इस पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे, तब तक नुकसान हो चुका होगा। यह वीडियो पूरी तरह से नकली था, जिसे भारतीय एजेंसियों ने डाला था। भारत और कई अन्य देशों ने चीन पर गैर-गतिज  (नान कायनेटिक) युद्ध की घोषणा कर दी है।

प्रायः, जब किसी भी बातचीत में ‘युद्ध’ शब्द सामने आता है, तो हर किसी के दिमाग में लड़ाकू विमानों की गूंज,  धधकती हुई बंदूकें, मिसाइलें दागते हुए और दुश्मन के इलाके में घुसते हुए सैनिकों की छवि उभरती है। हालाँकि,  गैर गतिज युद्ध भी एक प्रकार का युद्ध ही  है,  जिसकी कोई  शुरुआत या अंत नही होता। इसे ‘विषम युद्ध’ कहा जाता है।

तो यह विषम युद्ध क्या है? यह एक ऐसा युद्ध है, जो लड़े बिना किया जाता है। यह सबसे अच्छा तब लड़ा जाता है जब विरोधी ताकतों को पता भी नहीं होता कि वे इस तरह के युद्ध में शामिल हैं। यह युद्ध, नागरिकों के विचारों को नियंत्रित करने, उन्हें ढालने और कभी-कभी  अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें बदलने में मदद करता है।

वर्तमान युग को ‘सूचना युग’ कहा जाता है। इस युद्ध का हर पहलू सूचना पर निर्भर है।  अर्थात जो सूचना को नियंत्रित करेगा, वही दुनिया को नियंत्रित करेगा। चीन इस तथ्य को बहुत पहले समझ चुका था। उन्होंने यह भी मान लिया था कि  इंसानों को इंटरनेट से जोड़ने वाले उपकरण सूचना या दुष्प्रचार की कुंजी होंगे। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आज चीन   पूरे विश्व में मोबाइल फोन, लैपटॉप और राउटर का  सबसे बड़ा निर्माता देश है। विषम युद्ध के युग में आपका स्वागत है।

 विषम युद्ध

इस युद्ध में परमाणु, रासायनिक, जैविक, आर्थिक, सूचना संचालन, सूचना संबंधी अवधारणाएं  और आतंकवाद आदि शामिल हैं। हालांकि, भारत को निम्नलिखित पर विचार करना चाहिए:

  • मनोवैज्ञानिक युद्ध
  • दुष्प्रचार और प्रचार
  • आर्थिक युद्ध
  • चीनी संचालन में व्यवधान
  • तकनीकी युद्ध
  • कूटनीतिक युद्ध

चीन ने इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है, भारत और समान विचारधारा वाले अन्य देशों ने अगर अब तक इसे प्रारंभ नहीं किया है तो इसे तुरंत शुरू करना होगा। उस दिशा में पहला कदम चीन के लोगों की ज्ञानात्मक प्रक्रिया को समझना होगा। ज्ञानात्मकता मनोविज्ञान  का क्षेत्र है, जो लोगों की सोच, जानकारी, याद रखने, न्याय करने और समस्या-समाधान की जांच करता है।

चीन के अध्यक्ष माओ ने एक बार चीनी लोगों के बारे में बताया था कि, “चीन के 600 मिलियन लोगों में दो उल्लेखनीय विशेषताएं हैं; सबसे पहली गरीबी और दूसरा खालीपन। यह बात बुरी लग सकती है, लेकिन वास्तव में यह एक अच्छी बात है। गरीब लोग बदलाव चाहते हैं, कुछ करना चाहते हैं, क्रांति चाहते हैं। कागज की साफ शीट पर कोई धब्बा नहीं होता,  इसलिए उस पर नवीन और सुंदर शब्द लिखे जा सकते हैं।” यह इस बात की ओर इशारा करता है कि माओ ज्ञानात्मक प्रक्रिया को नियंत्रित करने के महत्व को समझ चुके थे। चीन  द्वारा पहला विषम युद्ध अपने ही लोगों के खिलाफ लड़ा गया था।

कहाँ से शुरू करें

चीन की जनता को भारत और किसी अन्य देश से बचाने के लिए, चीन कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने अनेक उपाय किए। आज चीन के नागरिक वही पढ़ते, लिखते और सोचते हैं  जो सीसीपी चाहता है। मैंने अपने  इस लेख में गहरायी से समझाने का प्रयास किया है कि  ‘चीन, चीन के भीतर इंटरनेट को कैसे नियंत्रित करता है :

  • चीन का महान फ़ायरवॉल
  • महान तोप
  • गोल्डन शील्ड

स्त्रोत : CitizenLab Canada

भारत और समान विचारधारा वाले अन्य देशों को चीनी नागरिकों तक पहुंचने के लिए इस सुरक्षा व्यवस्था में घुसना होगा। इसके अलावा, चीन के राजनयिक, छात्र, पर्यटक और विदेश में रहने वाले व्यवसायियों को लक्ष्य बनाना और अपने संदेश को उनके माध्यम से  उनके देश तक ले जाना होगा। जैसा कि माओ ने कहा था, सुंदर चीजों को लिखने के लिए एक साफ कागज़  होना चाहिए। हम जो चाहते हैं वे वही सोचें और समझें।

सीसीपी, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और चीन के नागरिकों की ज्ञानात्मक सोच को बदलने के लिए एक सामूहिक मनोवैज्ञानिक हमला शुरू करना होगा। जो निम्न प्रकार से हो सकता है:

  • धारणा में बदलाव
  • ऐतिहासिक स्मृतियों को बदलना
  • कुलीनों की सोच को प्रभावित करना और उनकी विचारधारा को बदलना
  • राष्ट्रीय नायकों को बेनकाब कर राष्ट्रीय पहचान पर सवाल खड़े करना

यह पूरा खेल, सूचना युद्ध के मैनुअल में उपलब्ध हर माध्यम के उपयोग से, बहुत बड़े पैमाने पर खेला जाएगा। हालांकि हांगकांग, तिब्बत और झिंजियांग को उत्तेजित रखा जाएगा, लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता हूं कि चीनी व्यवस्था की ताकत और हान के वर्चस्व को निशाना बनाये। यदि चीन की ताकत को कम कर दिया जाए, तो कमजोर क्षेत्रों में आसानी से जाया जा सकता है।

गहरा मनोवैज्ञानिक हमला

भारत को चीन के लोगों के चेतन और अवचेतन मन पर हर प्रकार से हमला करना होगा। विशेषज्ञों को प्रौद्योगिकी के हर साधन के उपयोग से चीनी भावनाओं, यादों, भाषण, प्रेरणाओं, और जरूरतों को समझना होगा।

प्रकाश तरंगों, चुम्बकीय तरंगों और माइक्रोवेव के प्रयोग से पीएलए के सैनिकों और राजनयिकों को बाहरी स्तर पर भौतिक रूप से निशाना बनाना होगा। इससे उन्हें मनोवैज्ञानिक क्षति, भ्रम और मति भ्रम होगा। जब भारत चीन के खिलाफ इन तकनीकों का उपयोग कर रहा है तो  भारत को अपने सैनिकों और राजनयिकों को चीन के ऐसे हमलों से भी बचाना होगा।

एक तकनीक जिसे मैं ‘स्लो बॉयलिंग’ कहता हूं, ज्ञानात्मक सोच को अवचेतन रूप से बदलने में बहुत उपयोगी है। उदाहरण के लिए, यदि किसी मेंढक को गर्म पानी में डाला जाता है, तो मेंढक तुरंत बाहर कूद जाता है और थोड़ा सा ही जलता है। इसके विपरीत, यदि किसी मेंढक को ठंडे पानी में डाल दें और उस पानी को बहुत धीमी आंच पर रख  दें, तो मेंढक  इसे समझ नहीं पायेगा और उबल कर मर जाएगा।

इस तकनीक का उपयोग विरोधी आबादी के खिलाफ अपने सोशल मीडिया में पूरी तरह से नई सामग्री को इंजेक्ट करके या मौजूदा घटनाओं को बड़ी बारीकी से इधर-उधर करके, मुख्य भाग को बरकरार रखते हुए किया जाना है।

पाठकों को भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों या ‘सोशल मीडिया फॉरवर्ड्स’  में प्रकाशित ऐसे कई लेख याद होंगे, जिन्हें  घटनाओं को  परिवर्तित करने के  लिए  स्थापित किया गया  था। इन लेखों और संदेशों का एकमात्र उद्देश्य भारतीयों का मनोबल गिराना और देश के सैन्य या नागरिक नेतृत्व के बारे में उनके मन में संदेह पैदा करना था। सीएए का विरोध, किसानों का विरोध, ब्लैक लाइव्स मैटर (बीएलएम) या कैपिटल हिल पर तूफान चीनी दखल के स्पष्ट संकेत हैं।

चीन ने भारतीय स्थानीय मीडिया में भी भारी निवेश किया है। वह बड़े पैमाने पर भारत विरोधी प्रचार कर रहा हैं, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। चीनी पे रोल पर बड़ी संख्या में सम्मानित पत्रकार भी हो सकते हैं, जिससे चीन का काम बहुत आसान हो जाता है। चीन और उसके साथी राज्यों को उसी की भाषा में जवाब देने का समय आ गया है। हालाँकि, इन सभी तकनीकों का उपयोग करते हुए सरकार को ऐसे हमलों से भारत के नागरिकों को बचाना है।

पूर्ण अराजकता के लिए वास्तविक तैयारी

मनुष्य न केवल अपनी परिस्थितियों की वस्तुनिष्ठ विशेषताओं के प्रति प्रतिक्रिया देता है, बल्कि अपनी व्यक्तिगत समझ के आधार पर भी इसे अभिव्यक्त करता है, भले ही उनका  विश्वास तथ्यात्मक रूप से गलत हो। अन्य कमियों में, मनुष्य की उस जानकारी पर विश्वास करने की इच्छा शामिल है जो सत्य नहीं है और उनमें भावनात्मक अपीलों द्वारा आसानी से शोषण करने की प्रवृत्ति है जैसा दुनिया में नकली समाचारों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

इतने खोखले अतीत के बावजूद, चीन के कई लोगों के लिए, ‘अपमान की सदी’  की शुरुआत प्रथम अफीम युद्ध (1840-1842) के साथ हुई थी और 1949 तक चली। जब चीन जनवादी गणराज्य की स्थापना हुई थी। इन नकली कहानियों और हेरफेर किए गए ऐतिहासिक मिथकों का भंडाफोड़ करना होगा। सीसीपी द्वारा चीनी जनता के साथ दो तरह से छेड़छाड़ की गई है। सबसे पहले, उनके सामने  झूठ  फैलाया गया कि सीसीपी ने अपमान के युग को समाप्त कर दिया है और दूसरा 1840 से पहले चीन कितना महान और शक्तिशाली था। तथ्य यह है कि पिछले 1500 वर्षों में चीन पर विदेशियों का शासन रहा है। लियाओ, जिन, ज़िया, युआन और किंग राजवंश गैर-चीनी थे और उन्होंने चीनी राजवंशों को नष्ट कर दिया।

सांस्कृतिक क्रांति के दौरान, माओ और उनके साथियों ने देश में जो भी चीनी विरासत मौजूद थी, उसे नष्ट कर दिया। चीन बिना किसी निजी पहचान के रह गया। ग्रेट वॉल और फॉरबिडन सिटी को छोड़कर अधिकांश प्रतिष्ठित स्थल नकली हैं। उन्हें फिर से बनाया गया है। कुछ माओ की मृत्यु के बाद और कुछ शी जिनपिंग के शासनकाल के दौरान बनाई गई हैं। चूंकि चीनी नागरिक अपनी विरासत से जुड़ना चाहते हैं, इसलिए वे नकली स्मारकों और फिर से बनाए गए इतिहास में विश्वास करते हैं। इस झूठ को उजागर करना चीनी जनता के  मनोबल को बहुत अधिक गिराने वाला होगा।

इसी तरह, चीनी ऐतिहासिक शख्सियतों और नायकों के मिथक को तोड़ना चीनी सम्मान को एक और झटका देगा। माओ, मुलान और कॉमरेड लेई फेंग जैसे लोग उजागर होने चाहिए। चीनी लोगों को यह भी समझाना होगा कि उनके पूर्वजों ने रामायण जैसे भारतीय शास्त्रों से बहुत अधिक उधार लिया है। अपनी संस्कृति की कमियों को पूरा करने के लिए उन्होंने भारतीय देवी-देवताओं को भी उधार लिया है। चीनी देवी जिउंटियन जुआननी भारतीय देवी दुर्गा पर आधारित हैं। भगवान इंद्र पर तियान शांग ती, देवी गंगा पर देवी माजू, सूर्य देव पर ताई यांग जिंग जून, धरती मां पर मदर हौटू, भगवान वरुण पर गोंगोंग और भगवान हनुमान पर सूर्य वुकोंग स्थापित किये गए हैं। चीनियों को यह एहसास दिलाने की सूची अंतहीन है कि उनका इतिहास कितना खोखला और नकली रहा है।

नकली इतिहास के अलावा, वर्तमान चीन सामाजिक मुद्दों से मुक्त नहीं है और वे शोषण के लिए तैयार हैं। अन्य इच्छुक राष्ट्रों के साथ भारत सरकार को उसे वास्तविक बनाने या सामाजिक मुद्दों को बढ़ाने के ठोस प्रयास करने चाहिए। इन खामियों का फायदा उठाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम का इस्तेमाल करने वाली मशीनों को तैयार किया जा सकता है। वे मनुष्यों की तुलना में अधिक प्रभावी हैं। वे पहचानती हैं कि कौन सी सामग्री कहां काम आयेगी और उसका किस गति से उपयोग करना है, वह तब तक कार्य करती है, जब तक कि लक्षित मानव वांछित प्रतिक्रिया नहीं देता।

 युद्ध में सब जायज है

भारतीय एजेंसियों का एकमात्र उद्देश्य चीन में पूर्ण तबाही होना चाहिए। यह दुष्प्रचार और गंभीर अफवाहों के उपयोग से किया जा सकता है। इन रणनीतियों के लिए विरोधियों और महत्वपूर्ण स्थानीय नागरिकों के बीच टीम वर्क की आवश्यकता होगी। चीनी नेताओं और पीएलए कमांडरों की आवाज की नकल करने के लिए ऑडियो-विजुअल तकनीक का पता लगाना होगा, ताकि विरोधी पक्ष के निर्णय लेने वालों को गलत फैसलों से गुमराह किया जा सके। इन तकनीकों का इस्तेमाल नेताओं और पीएलए कमांडरों को बदनाम करने के लिए भी किया जा सकता है। चीनी व्यवसायी, छात्र, राजनयिक, पर्यटक या चीन से बाहर निकलने वाला प्रत्येक चीनी नागरिक ऐसे अभियानों का आसान लक्ष्य होने चाहिए।

आज चीन को, कठोर नीतियों और क्रूर सरकारी अधिकारियों के खिलाफ लाखों प्रदर्शनों के अलावा भोजन, शक्ति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आंदोलन की स्वतंत्रता, विकास दर में गिरावट, पर्यावरण संबंधी आपदाओं और तर्कहीन आक्रामकता  का सामना करना पड़ रहा है। इन मौजूदा मुद्दों के इर्द-गिर्द नई वास्तविकताओं को बुना जा सकता है या पूरी तरह से नई वास्तविकताओं का निर्माण किया जा सकता है जो चीनी सपनों और इच्छाओं के साथ  मेल खाती  हैं।

डेटा नया  सहायक है

सभी रणनीतियों को पूरा करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक ‘डेटा’ है। लोगों ने ‘डेटा इज द न्यू ऑयल’ शब्द कई बार सुना है, लेकिन बहुत कम लोग ही इसके महत्व को समझते हैं। सस्ती वस्तुओं का उत्पादन करने वाला चीन दोधारी तलवार था। सबसे पहले, इसने अधिकांश देशों के उद्योगों को समाप्त कर डाला और सबसे बड़ी बात कि, इसने  खरीदारों के डेटा का खजाना  चीनी अधिकारियों को पेश किया।

चीनी अधिकारियों ने इस डेटा को उन्हीं लोगों के खिलाफ हथियार बनाया, जो चीनी उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे थे। वे इनकी खरीदारी एवं खाने की आदतों, विचार प्रक्रिया और चिंताओं से परिचित हो गए। फिर मोबाइल उपकरणों की क्रांति आई। चीन ने सस्ते हैंडहेल्ड डिवाइस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT)  से बाजारों को भर दिया। उनके इस प्रभुत्व ने डेटा की नई बाढ़ के द्वार खोल दिए।

चीनी सरकार ने शोषण के लिए गूगल, याहू, माइक्रोक्रोसॉफ्ट, ब्लूमबर्ग और लिंकेडिंन जैसी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कंपनियों को डेटा सौंपने के लिए सहमत किया। इनमें से ज्यादातर कंपनियों ने अपनी भलाई के लिए चीन का साथ छोड़ दिया है, हालांकि, चीन अभी भी मोबाइल डिवाइस क्षेत्र पर हावी है। यह एक चिंताजनक तथ्य यह है कि भारत में इस्तेमाल होने वाले अस्सी प्रतिशत मोबाइल फोन, राउटर और लैपटॉप अभी भी चीन में बनते हैं।

 धीमा नहीं पड़ना है

चीनी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता एक वास्तविक खतरा है और यदि सरकार भारतीय बलों और नागरिकों को चीन के हमलों से बचाना चाहती है तो इस स्थिति को उलटना होगा। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, दुनिया भर की सरकारों को बदलाव लाने होंगे। उस दिशा में पहला कदम चीनी उपकरणों से बचना है। सरकारी एजेंसियों और सरकारी अधिकारियों द्वारा चीनी उपकरणों के प्रयोग ना करने को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।

यदि किसी भी समय नीति निर्माता इन तकनीकों को बहुत कठोर पाते हैं,  और पंगु हो जाते हैं तो उन्हें खुद को ‘पृथ्वी राज चौहान सिंड्रोम’ की याद दिलानी होगी। एक बहुत ही सक्षम और बहादुर राजा पृथ्वी राज ने महमूद गजनी को हरा दिया, लेकिन उसे क्षमा कर दिया और इस तरह भारतीय इतिहास को बदल दिया। परंतु अब कश्मीर के महान राजा ललितादित्य मुक्तापिदा की आक्रामक नीतियों को अपनाने का समय आ गया है, जिनका साम्राज्य मध्य एशिया तक फैला हुआ था। और अगर अभी भी कुछ संदेह बाकी है तो उन्हें खुद को याद दिलाना होगा कि दुनिया भर में कोविड -19 के कारण 5 मिलियन लोगों की मौत और गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की मौत के पीछे कौन था।

युद्ध में कुछ भी अनुचित नहीं होता और जब विरोधी चीन हो तो ऐसी नीतियों के क्रियान्वयन का प्रभाव और निर्ममता दुगनी होनी चाहिए।

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लेखक
भारतीय नौसेना के एक अनुभवी कमांडर धवन ने 1988 से 2009 तक नौसेना में सेवा की।
वह एक समुद्री टोही पायलट और एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे। वह एक भू-राजनीतिक विश्लेषक हैं 
और विभिन्न ऑनलाइन वेबसाइटों और संगठनों के लिए लिखते हैं।

अस्वीकरण

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POST COMMENTS (1)

Narinder%20

नवम्बर 25, 2021
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