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अमेरिका और रूस के विवादास्पद संबंधों में भारत

लेफ्टिनेंट जनरल कमल डावर (सेवानिवृत्त)
शुक्र, 30 जुलाई 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

1991 में मुख्य प्रतिद्वंद्वियों अमेरिका तथा रूस के बीच शीत युद्ध की समाप्ति पर आशा जागृत हुई थी कि इन दोनों के बीच शांति स्थापित होगी और इन दोनों के बीच मैं शांति होने से पूरे विश्व में भी शांति स्थापित होगी ! सोवियत संघ के विघटन से विश्व में नाम के लिए केवल एकऔर महाशक्ति रूस के रूप में बची थी ! बहुत से लोगों ने सोचा था कि अब इस राजनीतिक परिवर्तन से विश्व में प्राकृतिक रूप में बहु ध्रुवीय व्यवस्था लागू होनी चाहिए ! 19वीं सदी के अंत में चीन हर प्रकार से धीरे-धीरे अपनी आर्थिक उन्नति तथा सैनिक शक्ति से प्रदर्शित कर रहा था कि वह विश्व की महाशक्ति बन रहा है ! इस कारण उसकी महत्वाकांक्षा में बढ़ोतरी होने लगी ! इस सब के साथ रूस जो पूर्व के सोवियत संघ का उत्तराधिकारी है ने अपनी दलदली आर्थिक दशा के बावजूद अपनी सैनिक क्षमता, तकनीकी विकास तथा भूसामरिक स्थिति को पूरे यूरोप और एशिया में बचा कर रखा है !

पिछले दो दशकों में यह देखने में आया है कि सोवियत संघ के उत्तराधिकारी रूस के चारों तरफ प्रभाव में थोड़ी कमी स्थानीय तथा विश्व स्तर पर आई है ! इसका मुख्य कारण है इसकी सुस्त आर्थिक प्रगति तथा कच्चे तेल के भावों में उतार-चढ़ाव ! फिर भी इसके दृढ़ निश्चय और राष्ट्र प्रमुख व्लादिमीर पुतिन के निर्देशन में रूस ने अपनी आर्थिक चुनौतियों के बावजूद भी अपना रास्ता बनाया है पिछले कुछ सालों मैं रूस दोबारा इस प्रकार उभर कर आया है जो विश्व और क्षेत्रीय स्तर पर अपना प्रभाव डालने की स्थिति में है !

भारत रूस के साथ अपने परंपरागत संबंधों और अमेरिका के साथ भी शीघ्रता से विकसित होते सामरिक संबंधों के कारण एक अजीब स्थिति में पड़ गया है ! इसमें भारत ना केवल राष्ट्रीय हितों के लिए बल्कि वे इन दोनों अलग-अलग दिशाओं मेंबढ़ती महा शक्तियों को साथ लाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है ! जो विश्व शांति के लिए परम आवश्यक है ! इसमें ज्यादा विचार करने की आवश्यकता नहीं है कि इन दोनों के खराब संबंधों का सबसे बड़ा फायदा केवल चीन को हो रहा है ! चीन रूस को अपने नजदीक लाने की पूरी कोशिश करेगा जिससे अमेरिका पूरे मध्य पूर्व, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में पूरी तरह से महत्वहीन हो जाए ! यह उसकी हरकतों से साफ नजर आ रहा है !

रूस अमेरिका के बीच संबंधों के बीच में विवादास्पद विषय है, अफगानिस्तान का मुद्दा, ईरान द्वारा परमाणु शक्ति के रूप में आगेआना, अमेरिका की हिंद और प्रशांत महासागर में सामरिक नीति और 4 देशों का जिनमें भारत ऑस्ट्रेलिया जापान और अमेरिका का गठबंधन जिसे स्क्वाड का नाम दिया गया है, का उभरना ! इसके अलावा चीन द्वारा चारों तरफ अपने प्रभाव को फैलाने की कोशिश जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों पर आधारित आचार संहिता का भी उल्लंघन वह कर रहा है ! रूस का यूक्रेन में दखल और रूस द्वारा मानव अधिकारों का हनन, अमेरिका द्वारा तथा अन्य देशों पर लगे व्यापारिक प्रतिबंध, जलवायु परिवर्तन और सबसे जरूरी साइबर सुरक्षा इत्यादि ऐसे विषय है जिन पर दोनों में मतभेद है !

कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों में सीधे या परोक्ष रूप से रूस और अमेरिका के मतभेदों से भारत भी प्रभावित होता है ! एक विश्लेषक ने संक्षेप में बताया है कि भारत के विषय में अमेरिका की सबसे बड़ी समस्या रूस के बारे में है ! पिछले कई दशकों से रूस भारत को हथियार सप्लाई करने वाला सबसे बड़ा देश रहा है, जो भारत के कुल हथियारों के आयात का 70 परसेंट है !इसी प्रकार रूस भी भारत के अमेरिका से बढ़ते हुए उच्च तकनीक के हथियारों के आयात से उसी प्रकार चिंतित है !

2 साल पहले अमेरिका के विरोध के बावजूद भारत ने रूस से 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम S400 खरीदने का अनुबंध किया था ! इसी तरह के रूस और टर्की के बीच हुए अनुबंध के बाद अमेरिका ने टर्की पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे ! अमेरिका मैं अब भारत और रूस के बीच हुए इस अनुबंध को खत्म करने की आवाजें उठ रही हैं परंतु भारत अभी भी अपने फैसले पर अडिग है ! यह सारे दोस्तों और दुश्मनों को साफ हो जाना चाहिए कि भारत किसी की सैनिक सहायता पर निर्भर नहीं है, और वह अपनी रक्षा सामग्री की आवश्यकता की पूर्ति जब भी उचित समझता है खरीद कर लेता है ! यह एक संबंधों को खराब करने वाला कदम होगा यदि अमेरिका काटसा प्रतिबंध ( अमेरिका द्वारा प्रतिद्वंद्वियों को रोकने के लिए लगाया गया प्रतिबंध ) अपने सामरिक साथी भारत पर भी लगाता है तो !

अमेरिका रूस के बीच एक और विवादास्पद विषय है अफगानिस्तान का भविष्य जिसका प्रभाव भारतपर भी पड़ेगा, क्योंकि यहां से अमेरिका ने अपने सैनिकों की वापसी शुरू कर दी है ! जिसको वह 11 सितंबर 2021 तक पूरा कर लेगा ! अमेरिका के द्वारा मौजूदा स्थिति मैं अफगानिस्तान साथ छोड़ना जब वहां पर गंभीर सुरक्षा तथा राजनीतिक संकट चल रहा है, यह सब भारत के अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना तथा मानवीय भावनाओं पर आधारित संबंधों के साथ उचित नहीं बैठता ! जबकि अफगानिस्तान मेंचारों तरफ हिंसा फैली हुई है !

पाकिस्तान द्वारा प्रोत्साहित और आर्थिक मदद के द्वारा तैयार किए अफगान तालिबान तथा आतंकी सरदारों और आतंकी संगठनों जैसे हक्कानी, अलकायदा, कोरोस्थान इस्लामिक स्टेट जो अफगानिस्तान के पूर्वी राज्य में अपनी जगह बना रहे हैं, यह सब उस मौके का इंतजार कर रहे हैं जब अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा कर ले ! और दोबारा से उस काले युग का शुरुआत कर सकें जिसमें औरतें, स्कूल जाने वाले बच्चे और एकसाधारण नागरिक अपना भविष्य तलाश करता फिरता है ! और इनमें से बहुत से काबिल छोड़कर दूसरे देशों के लिए पलायन कर जाएंगे ! !इस स्थिति में भारत, अफगानिस्तान की युद्ध के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में मदद करने पर स्वयं हाशिए पर आ जाएगा ! आश्चर्य है कि रूस और अमेरिका संकट में पड़े देश की मदद पर एकमत नहीं हुए ! इससे क्षेत्र की शांति प्रभावित होगी ! इसमें भारत को रूस और अमेरिका के बीच इस विषय पर समझौता कराने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए थे !

चीन की नोसैनिक शक्ति बढ़ने और उसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री यात्रा संबंधी नियमों की अनदेखी को देखते हुए अमेरिका तथा बहुत से एक जैसे देशों ने चीन की बढ़ती हुई महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने के लिए हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में समझौता किया है ! दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में स्थित देशों जैसे वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, जापान को चीन द्वारा धमकाने से रोकने के लिए स्क्वाड नाम के गठबंधन को चीन के विरुद्ध तैयार किया गया है, जो अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है! इस को मजबूत किया जाना चाहिए ! चीन के साथ रूस की बढ़ती नजदीकियों के बावजूद रूस ने दक्षिण चीन महासागर मामले में निष्क्रियता अपनाई हुई है और एक प्रकार से रूस बेपरवाह है स्क्वाड के भविष्य के गठन और उसके इरादों के बारे में !

इसलिए अमेरिका को रूस की स्क्वाड के बारे में सारी भ्रांतियों को शांत करना चाहिए ! इस प्रयास में भारत भी अपना रोल निभा सकता है ! रूस यह समझता है कि हिंद प्रशांत महासागर में देशों के बीच आपसी टकराव की और उसकी स्वयं की इसमें पढ़ने की बहुत कम संभावनाएं हैं ! फिर भी छोटे देश चीन की हिंद प्रशांत महासागर में बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के बारे में चिंतित है ! इसके कारण अमेरिका रूस और भारत को इस सामरिक क्षेत्र में पूर्ण सहयोग करना चाहिए !

अमेरिका मेंबिडेन के राष्ट्रपति बनने पर यह आशा की जा रही थी कि वह रूस के मामले में सख्त रवैया अपनाएंगे ! पहले 3 महीने मैं पद संभालने के बाद बिडेन ने रूस के प्रति सख्त रवैया अपनाते हुए व्लादीमीर पुतिन को क्रूर हत्यारा तक कहा था ! परंतु उसके बाद बिडेन के रुख में काफी नरमी देखी जा रही है ! जैसा कि 16 जून को जिनेवा ( स्वीटजरलैंड) के महा सम्मेलन में G7 की लंदन मीटिंग के बाद उनके द्वारा उनके साथ किए गए वार्तालाप के तरीके से देखा जा सकता है !

इस मीटिंग में बिडेन तथा पुतिन दोनों ने 3 घंटे तक उन विषयों पर विस्तार से चर्चा की जो उनके संबंधों को बिगाड़ रहे हैं ! इस सब के साथ मीटिंग दोनों देशों के लिए काफी लाभप्रद साबित हुई ! और बिडेन ने घोषणा की कि हमने अन्य विषयों पर विचार के साथ इस पर भी विचार किया था कि कैसे युद्ध रोकने के लिए हथियारों पर नियंत्रण करने के लिए कदम उठाना चाहिए ! पुतिन नेबिडेन को बहुत रचनात्मक, संतुलित और काफी अनुभवी बताया ! दोनों नेताओं ने स्वीकार किया किसाइबर हमले के विरुद्ध निश्चित सामान हमेशा तैयार रहना चाहिए ! इसके साथ पानी और शक्ति के क्षेत्रों में भी विचार किया गया ! इसके साथ साथ विश्व में फिरौती के लिए हमला करने वाले अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही को जारी रखने के लिएभी सहमति दिखाई गई ! यह मीटिंग निकट भविष्य की राजनीति के लिए एक अच्छा कदम है !

इस सब के साथ रूस अमेरिका के संबंधों का भारत पर प्रभाव को देखते हुए भारत को साफ दृष्टिकोण से अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान मैं रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए ! इन दोनों देशों से भारत के संबंधों में कोई बड़ी समस्या नहीं है इसलिए इनसे दोस्ताना और आपसी हितों को बनाए रखना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए ! भारत इन दोनों के बीच क्षेत्रीय तथा विश्व की समस्याओं को चीन की चालों को दूर करके सुलझाने के लिए सहयोग बढ़ाने की दिशा में बड़ी भूमिका निभा सकता है ! इस प्रकार अगले कुछ महीने भारत के राजनयिक तथा राष्ट्रीय नीतियों की परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण होंगे !


लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल कमल डावर (सेवानिवृत्त) भारत की रक्षा खुफिया एजेंसी के पहले प्रमुख थे। वह भारत के प्रमुख रणनीतिक विचारकों में से एकहैं और सुरक्षा मामलों पर एक विपुल लेखक हैं।

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