• 25 December, 2024
Foreign Affairs, Geopolitics & National Security
MENU

आईएनएस विक्रांत – नौसेना पर बोझ

भरत कर्नाड
मंगल, 24 अगस्त 2021   |   4 मिनट में पढ़ें

आईएनएस विक्रांत – नौसेना पर बोझ

भरत कर्नाड

भारतीय युद्धपोत निर्माण ने आखिरकार अपनी पूर्णता को हासिल कर लिया। 1780 में ईस्ट इंडिया कंपनी के बॉम्बे शिपयार्ड में पारसी मास्टर बिल्डर लुवजी नुसरवानजी वाडिया के नेतृत्व में शिपराइट्स की एक टीम ने 100 टन-1,000 टन रेंज के कठोर मालाबार टीक से बने युद्धपोतों का निर्माण किया था। उस समय रॉयल नेवी ने वाडिया को कई युद्धपोतों का ऑर्डर दिया था। लगभग 250 साल बाद, कोच्चि शिपयार्ड ने भारतीय नौसेना के लिए 40,000 टन का विमानवाहक पोत, नया आईएनएस विक्रांत का निर्माण किया है जो वर्तमान में समुद्री परीक्षण पर है।

फिर भी, अभी देश में बहुत कुछ नहीं है। बॉम्बे शिपयार्ड के 1852 एचएमएस कार्नवालिस टाइप के पोत और पैक्स ब्रिटानिका अपने बेहतर दिनों में, ब्रिटेन में 3 टन तोपों से लैस थे। विक्रांत पर अधिकांश कीमती हथियार और अन्य हार्डवेयर उसके डेक से उड़ान भरनेवाले एयरक्राफ्ट की तरह ही विदेशी मूल के हैं।

लिएंडर-क्लास फ्रिगेट की तर्ज पर गोदावरी-क्लास को 1970 के दशक के अंत में मझगांव में बनाया गया था, जिनके कारण अभी भी हमें असुविधाजनक वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि यह पोत 80-85% स्वदेशी है, लेकिन यह वजन से ही है मूल्य से नहीं। इनके वजन का 15-20% शिपबोर्न गन, मिसाइल, सेंसर, और डेटा/ इंफॉर्मेशन फ्यूजन, नेविगेशन और अन्य उच्च तकनीकी वस्तुएं जो विमान वाहक पोत की लागत का बड़ा हिस्सा है, वे सभी आयातित हैं।

विमान वाहक पोत बनाने की क्षमता कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि भारत की अपनी परमाणु-संचालित मिसाइल-फायरिंग पनडुब्बियों (SSBN) को डिजाइन और निर्माण करने की क्षमता। भारतीय विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता तब हासिल हुई है जब बड़े जहाजों का समय खत्म हो रहा है। वाडिया शिपबिल्डर्स ने कभी भी पाल संचालित पोतों के निर्माण से वाष्प संचालित पोतों के निर्माण की ओर रुख नहीं किया और इसलिए वे मार खा गये। अभी भी जब तक भारतीय नौसेना और शिपयार्ड भविष्य की नौसैनिक आवश्यकताओं के लिए खुद को तेजी से तैयार नहीं करेंगे तो वे भी अवशेष बन सकते हैं।

सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों और दूर से संचालित स्वायत्त हथियार वाले प्लेटफार्मों के युग में विमान वाहक पोत का परिचालन मूल्य चर्चा का विषय है। यहां मैं अपनी पिछली दो किताबों में एयरक्राफ्ट कैरियर के खिलाफ दिए गए तर्कों को दोहराए जाने से बेहतर कुछ नहीं कर सकता। 2015 में प्रकाशित ‘व्हाई इंडिया इज नॉट ए ग्रेट पावर (येट)’ के पेज 350-351 पर और 2018 में प्रकाशित पुस्तक ‘स्टैगरिंग फ़ॉरवर्ड: नरेंद्र मोदी एंड इंडियाज़ ग्लोबल एम्बिशन’ के 373 से 376 पृष्ठ पर ये तर्क दिये गये हैं।

विमान वाहक पोत के अत्यधिक एक्सपोजर के अलावा तीन मुख्य नकारात्मक बिंदु हैं। जैसा कि बताया गया है सभी संभावित विरोधी नौसेनाओं के पास आनेवाले समय में सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक एंटी-शिप क्रूज मिसाइलें होंगी।

1)    विमान वाहक पोत अपने प्रतीकात्मक मूल्य और भारी लागत दोनों के कारण बेशकीमती लक्ष्य हैं। विक्रांत का मूल्य यूएस $ 8-10 बिलियन है जिनमें स्ट्राइक एयरक्राफ्ट, प्रारंभिक चेतावनी और पनडुब्बी रोधी युद्ध हेलीकाप्टरों की कीमत भी शामिल है। इसलिए, दुश्मन किसी भी युद्ध में उनको नष्ट करने को प्राथमिकता देगा। वह जमीन से या आसमान से बैलिस्टिक मिसाइलों द्वारा,  जहाजों और पनडुब्बियों से लॉन्च की गई क्रूज मिसाइलें और पनडुब्बी से दागी गई भारी टॉरपीडो से इन पर हमला करेगा। इस तरह समुद्र में खड़ा एक विमान वाहक पोत सभी तरह के निर्देशित आयुधों को देखते हुए असुरक्षित है, जिसे न केवल अकेले बल्कि बहुत सारे फायरिंग पॉइंट से दागा जा सकता है, जिनमें से सभी को किसी भी समय पर्याप्त रूप से कवर नहीं किया जा सकता।

2)     इस पोत की प्रकृति को देखते हुए नौसेना इसकी सुरक्षा के लिए घने इंतजाम करेगी। इसका मतलब यह होगा कि कम से कम, छह से आठ युद्धपोत और मिसाइल विध्वंसक और पिकेट के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली एक पनडुब्बी को इसके एस्कॉर्ट फ्लोटिला के रूप में तैनात करने की आवश्यकता होगी। जब तक भारतीय नौसेना के पास लगभग 300 जहाज नहीं हो जाते हैं, केवल विमान वाहक संपत्तियों की रक्षा के लिए अपनी क्षमता का एक बड़ा हिस्सा यानी 50 जहाजों को तैनात करने का कोई मतलब नहीं है। विशेष रूप से इस तरह की सुरक्षा के परिणामस्वरूप हिंद महासागर में भी नौसेना की समुद्री उपस्थिति बहुत जोरदार नहीं होगी। विक्रमादित्य और विक्रांत के साथ क्रमशः पूर्वी और पश्चिमी बेड़े में, 16 सतही लड़ाकू और दो किलो-श्रेणी की पनडुब्बियां पिकेट के रूप में रहेंगी जो अन्य मिशन के लिए नौसेना के लिए तुरंत उपलब्ध नहीं हो पाएंगी। कहने का तात्पर्य यह है कि इस वाहक को तैनात करने से नौसैनिक बल के एक बहुत बड़े हिस्से को आक्रामक और रक्षात्मक समुद्री नियंत्रण मिशनों के लिए उपलब्ध होने से रोकने को बाध्य होना पड़ेगा।

3)    एक विमानवाहक पोत की लागत पर भारतीय नौसेना तीन-चार बहुउद्देश्यीय फ्रिगेट, मिसाइल विध्वंसक/माइन स्वीपर और डीजल पनडुब्बियां या इन युद्धपोतों के मिश्रण को हासिल कर सकती थी। वित्तीय मितव्ययिता के समय में, इतनी ही राशि से बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार के युद्धपोतों को बेड़े में शामिल कर अपनी  ताकत बढ़ाना बेहतर होता।

उक्त कारणों से ही 100,000-टन गेराल्ड फोर्ड-श्रेणी के परमाणु संचालित विमान वाहक की निरंतर उपयोगिता को लेकर अमेरिकी नौसैनिक क्षेत्र और सुरक्षा परिक्षेत्रों में लंबे समय तक टिके रहने को लेकर गंभीर संदेह व्यक्त किए जाने लगे हैं।

मान लेते हैं कि भारतीय नौसेना वास्तव में अपने विमान वाहक पोत की रक्षा करने में सक्षम है, जैसा कि यह दावा करता है। सवाल यह है कि क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों पर खरा उतरेगा। क्या यह दो विमान वाहक समूहों की तुलना में बेहतर साबित होगा। हिंद महासागर के विशाल क्षेत्र में इस पोत से 250 मील की त्रिज्या में कारगर होने की तुलना में दो-तीन छोटे पोतों के समूह और मिसाइल विध्वंसक पनडुब्बियां अकेले या पैक में, विरोधी नौसेनाओं को नाके चने चबवा सकती हैं। यह अधिक लागत-कुशल और परिचालन की दृष्टि से भी बेहतरीन विकल्प है।

यदि सही मायनों में विश्लेषण किया जाय तो जो मैंने बहुत पहले निष्कर्ष निकाला था वही दिखेगा। आईएनएस विक्रमादित्य, नया आईएनएस विक्रांत और तीसरा वाहक, आईएनएस विशाल (जब भी इसके निर्माण को मंजूरी दी जाती है) दुश्मन के निशाने पर तैयार उच्च लागत वाली बतख के समान हैं, जो भारतीय नौसेना और देश के लिए एक बड़ा बोझ है।

——–


लेखक
भरत कर्नाड सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन में एक एमेरिटस प्रोफेसर और एक राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ हैं। वह 'इंडियाज न्यूक्लियर पॉलिसी' (प्रेजर, 2008), 'न्यूक्लियर वेपन्स एंड इंडियन सिक्योरिटी: द रियलिस्ट फाउंडेशन ऑफ स्ट्रैटेजी' (मैकमिलन इंडिया, 2002, 2005) के लेखक और 'फ्यूचर इम्पेरिल्ड: इंडियाज सिक्योरिटी इन द 1990 और बियॉन्ड' (वाइकिंग-पेंगुइन इंडिया, 1994) के लेखक संपादक हैं। उनकी नवीनतम पुस्तकों में 2015 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित 'व्हाई इंडिया इज नॉट ए ग्रेट पावर (अभी तक)' और 2018 में पेंगुइन इंडिया द्वारा प्रकाशित 'स्टैगरिंग फॉरवर्ड: नरेंद्र मोदी एंड इंडियाज ग्लोबल एम्बिशन' शामिल हैं।

अस्वीकरण

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और चाणक्य फोरम के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। इस लेख में दी गई सभी जानकारी के लिए केवल लेखक जिम्मेदार हैं, जिसमें समयबद्धता, पूर्णता, सटीकता, उपयुक्तता या उसमें संदर्भित जानकारी की वैधता शामिल है। www.chanakyaforum.com इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।


चाणक्य फोरम आपके लिए प्रस्तुत है। हमारे चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें (@ChanakyaForum) और नई सूचनाओं और लेखों से अपडेट रहें।

जरूरी

हम आपको दुनिया भर से बेहतरीन लेख और अपडेट मुहैया कराने के लिए चौबीस घंटे काम करते हैं। आप निर्बाध पढ़ सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी टीम अथक प्रयास करती है। लेकिन इन सब पर पैसा खर्च होता है। कृपया हमारा समर्थन करें ताकि हम वही करते रहें जो हम सबसे अच्छा करते हैं। पढ़ने का आनंद लें

सहयोग करें
Or
9289230333
Or

POST COMMENTS (1)

yogesh

अगस्त 24, 2021
his inflated intellect is bojha on India . ins vikrant is an asset.

Leave a Comment