जम्मू कश्मीर की व्यवस्था को चलाने वाले दिशानिर्देशों के नवीनीकरण को 2 वर्ष पहले अगस्त 2019 में किया गया था, परंतु व्यवस्था का अभी तक पूरी तरह नवीकरण नहीं हुआ है ! जम्मू कश्मीर के बारे में प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय मीटिंग इस दिशा में पहला कदम है ! जैसा की सर्वविदित है मोदी सरकार के निर्णयों की पूर्व कल्पना कोई नहीं कर सकता इसी प्रकार इस मीटिंग के परिणामों के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी !इसको देखते हुए इस मीटिंग के बारे में तरह-तरह की आशाएं की जा रही थी ! जो वास्तविकता से दूर थी जिनमें ( 2019 के संवैधानिक सुधारों को वापस लेना )कुछ लोग डर और लगाव के कारण सोच रहे थे कि संघीय क्षेत्र का दोबारा बटवारा होगा, कुछ आशावादी सोच रहे थे कि दोबारा राज्य व्यवस्था की ही स्थापना होगी, कुछ आलोचक पाकिस्तान की तरफ इशारा कर रहे थे, कुछ का ध्यान प्रशासनिक विषयों जैसे हदबंदी की तरफ था, कुछ विश्लेषकों के अनुसार यह एक राजनीतिक पहल है जिसमें वहां के निवासियों के विचारों के अनुसार आगे के दिशानिर्देश तय किए जाएंगे !
आखिर में यह 3:30 घंटे चली मीटिंग ज्यादातर आशाओं के अनुसार ही चली ! कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई और भूलावे में रहने वाले जो सोच रहे थे कि यह सुधार वापस हो जाएंगे उनकी निराशा के लिए इन मूलभूत संवैधानिक बदलावों पर कोई कदम वापस नहीं लिया गया ! यही प्रसन्नता का विषय है कि किसी भी राजनीतिक नेता ने जो इस मीटिंग से पहले तरह-तरह के पत्थर फेंक रहे थे जैसे पाकिस्तान से बातचीत की जाए दोबारा धारा 370 को 5 अगस्त से पहले की स्थिति में वापस लाया जाए और इसी प्रकार की अन्य काल्पनिक मांगे इत्यादि यह उत्साहवर्धक था की मीटिंग बड़े सौहार्दपूर्ण वातावरण में चली ! इसकी पुष्टि इस मीटिंग में भाग लेने वाले एक वरिष्ठ और बुद्धिमान राजनैतिकनेता मुजफ्फर बेग ने की और बताया कि मीटिंग के परिणाम संतोषजनक है !
प्रतीत होता है की नई दिल्ली की सरकार केवल वहां के राजनीतिक नेताओं के विचारों को सुन रही थी तथा प्रधानमंत्री ने उन्हें अपने विचार प्रकट करने की पूरी पूरी छूट दे रखी थी ! कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने जल्दी में बुलाई पत्रकार वार्ता में बताया कि संघीय क्षेत्र का पूरा राजनीतिक दृष्टिकोण पांच बड़ेविषयों पर केंद्रित था, यह थे राज्य व्यवस्था की वापसी, राज्य के निवासी होने के कानून पर स्पष्टीकरण, और राज्य की नौकरियों में वहां के निवासियों के लिए आरक्षण, चुनाव प्रक्रिया के द्वारा स्थापित शासन की वापसी, कश्मीरी पंडितों की वापसी तथा 5 अगस्त के बाद गिरफ्तार किए गए राजनीतिक कैदियों की आजादी ! आश्चर्य है कि आजाद तथा वेग वह दोनों ने बताया कि इस मीटिंग में 5 अगस्त से पहले के स्वरूप में धारा 370 की वापसी की मांग नहीं उठाई गई थी ! इसके बारे में सबकी सहमति थी कि यह विषय उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन है और न्यायिक फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए !
अपनी तरफ से सरकार ने जम्मू कश्मीर के नेताओं को पूर्व राज्य की नई संवैधानिक व्यवस्था की घोषणाके बाद उठाए गए कदमों के बारे में सूचित किया ! यहां पर सबसे दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री ने इस मीटिंग में कोई निश्चित समय सीमा इस बारे में नहीं बताई की दोबारा से राज्य व्यवस्था कब लौटेगी ! उन्होंने केवल इतना ही इशारा किया कि उनकी सरकार दोबारा राज्य व्यवस्था को पूरे जम्मू कश्मीर में हदबंदी समाप्त होने के बाद लागू करने के लिए वचनबद्ध है ! परंतु यह सब तभी होगा जब संघीय प्रणाली के अनुसार चुनाव हो जाएंगे ! उन्होंने मीटिंग में यह भी बताया कि वह इस मीटिंग को पहले ही बुलाना चाहते थे परंतु महामारी के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका ! इस समय स्वायत्तशासी कमीशन के द्वारा हदबंदी का काम जम्मू कश्मीर में पूरे जोर-शोर से किया जा रहा है !
ऐसा ऐसा प्रतीत होता है कि हदबंदी का कार्य कुछ महीने तक और चलेगा ! पहले कमीशन अपनी रिपोर्ट पेश करेगा इसके बाद जनता की प्रतिक्रिया मांगी जाएंगी और इस सब में समय लग सकता है ! इसको देखते हुए चुनावअगले फरवरी-मार्च में ही संभव हो सकते हैं ! राज्य व्यवस्था भी आसानी से वापस नहीं की जा सकती इसके लिए लोकसभा का प्रस्ताव चाहिए ! इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि यह व्यवस्था चुनावों से पहले होगी या बाद में ! यहां के मूल निवासी के बारे तथा राज्य में नौकरियों के बारे में नए निर्देश राज्य में लागू किए गए हैं ! मूलनिवासी विषय पर डर तथा तरह तरह की सोच गलत है क्योंकि यहां का मूलनिवासी बनने और यहां पर जमीन खरीदने पर बहुत से प्रतिबंध और बाधाएं हैं जो इन क्षेत्रों में अभी भी लागू है ! संक्षेप में कहा जा सकता है कि यहां पर जनसंख्या का आक्रमण या बदलाव की कोई आशा नहीं है ! परंतु यह पता नहीं लग रहा कि कश्मीरी पंडितों की वापसी तथा राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए दिल्ली की सरकार की क्या कार्य योजना है ! कैदियों की रिहाई के बारे में तो कोई बाधा नहीं है, केवल उन कैदियों को छोड़कर जिनके विरुद्ध अन्य कोई अपराधिक केस लंबित है !
सर्वदलीय मीटिंग के बाद पहला प्रभाव यही है कि केंद्र के इस कदम ने जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया को दोबारा शुरू कर दिया है ! इस विषय पर केंद्र तथा राज्य के राजनीतिक नेताओं ने काफी परिपक्व ता तथा वास्तविकता दिखाई है ! जिसके द्वारा यह प्रक्रिया आगे दोबारा शुरू हुई ! यह प्रशंसनीय है कि संघीय क्षेत्र में राजनीतिक समुदाय ने नई वास्तविकताओं से समझौता कर लिया है और केंद्र के साथ मिलकर यह लोग काम करना चाहते हैं ! धारा 370 में बदलाव तथा 35a को खत्म करने के विषयों पर गलियों में विरोध के स्थान पर उन्हें अदालत में चुनौती दी जाएगी ! यह जरूरी है कि बिना सोचे समझे की गई आतंकी हरकतें जिनमें पिछले हफ्ते में चुन चुन कर लोगों की हत्या की गई, इस सबसे राजनीतिक प्रक्रिया में बाधा नहीं आनी चाहिए ! हालांकि जम्मू-कश्मीर में काफी दुर्घटनाएं तथा उतार-चढ़ाव आते हैं इन को देखते हुए इस अच्छी उठने वाली राजनीतिक शुरुआत को उन हर समय उठने वाली अनचाही और विषय को भटकाने वाली आवाजों से जो ना केवल सीमा पार से आती हैं बल्कि यह देश के विभिन्न भागों से भी आएंगी इस सबसे इस नई प्रक्रिया को पटरी से नहीं उतरने दिया जाना चाहिए !
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Abhishek Saxena