• 19 May, 2024
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चिंतित संयुक्त राष्ट्र म्यामां संकट को केवल टाल सकता है


रवि, 26 सितम्बर 2021   |   2 मिनट में पढ़ें

बैंकाक, 26 सितंबर (एपी) : संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा के उद्घाटन भाषण में म्यामां की तुलना अफगानिस्तान एवं इथियोपिया से की और कहा कि ये ऐसे मुल्क हैं जहां शांति एवं स्थिरता दूर का सपना है ।

गुतारेस ने सैन्य शासित इस दक्षिण पूर्व एशिया के अशांत देश के लोगों के लिए ‘‘लोकतंत्र, शांति, मानवाधिकारों और कानून का शासन’’ बहाल करने में पूरा समर्थन देने की घोषणा की।

देश में आठ महीने पहले सेना द्वारा सत्ता पर कब्जा कर लेने के बाद म्यामां में लगातार हिंसा बढी है और वहां रक्त रंजित संघर्ष की स्थिति बन गयी है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र म्यामां के शासकों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि उन्हें चीन और रूस का समर्थन है ।

चीन और रूस म्यामां को हथियारों की आपूर्ति कराने वालों में शीर्ष पर हैं और वहां के सैन्य शासकों के साथ इन दोनों देशों की वैचारिक सहानुभूति है। ये दोनों देश सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं और हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने के संयुक्त राष्ट्र के किसी भी प्रयास के खिलाफ ये दोनों देश निश्चित रूप से वीटो करेंगे।

म्यामां की सेना ने जब आंग सान सू ची की निर्वाचित सरकार को सत्ता से हटा दिया था, तब इसने दावा किया कि पिछले साल नवंबर में सू ची की पार्टी की जबरदस्त बहुमत से जीत बड़े पैमाने पर मतदान में धांधली के कारण हुयी थी, हालांकि इसके पक्ष में सैन्य शासक बहुत कम साक्ष्य प्रस्तुत कर पाये।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त मिशेल बेशलेट एव अन्य अधिकार समूहों के अनुसार, म्यामां में सेना द्वारा सत्ता हथियाने के तुरंत बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये थे और सुरक्षा बलों ने इसे कुचलने की कोशिश की। इसमें करीब 1,100 लोग मारे गये हैं।

बेशलेट ने बयान जारी कर कहा, ‘‘सेना के सत्ता पर कब्जा कर लेने का समाज के बड़े वर्गों से विरोध हो रहा है। इस विरोध को दबाने के लिये युद्धक हथियार शहरों में तैनात किये जा रहे हैं।’’

उन्होने कहा कि इससे देश में गृहयुद्ध की संभावना बढ़ गयी है।

म्यामां के एक थिंक टैंक की कार्यकारी निदेशक मोन यी क्याव ने थाईलैंड से बताया, ‘‘तोड़फोड़ एवं नृशंस हत्यायें सभ्य समाज में नहीं होने चाहिये, लेकिन सेना द्वारा की गई हिंसा के कारण, बमबारी और हत्या की रणनीति को रक्षात्मक उपायों के रूप में अपनाया गया।’’

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