मुंबई, 22 जनवरी (भाषा): दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच भारत में जर्मनी के राजदूत वाल्टर लिंडनर ने शनिवार को कहा कि उनका देश अंतरराष्ट्रीय कानून की अवहेलना को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
यूक्रेन-रूस गतिरोध के बारे में उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘अधिक आक्रामकता’ की स्थिति में परिणाम प्रतिकूल होंगे। इसी ऑनलाइन चर्चा में जर्मन नौसेना के युद्धपोत ‘बायर्न’ के कप्तान कमांडर तिलो कल्स्की ने कहा कि भारत तथा जर्मनी अपने सैन्य सहयोग को और तेज करेंगे।
यूक्रेन के खिलाफ संभावित रूसी सैन्य कार्रवाई के बारे में बढ़ती चिंताओं पर, राजदूत लिंडनर ने कहा, ‘यूक्रेन में हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट है कि सीमाएं हैं …यदि अधिक आक्रामकता होती है (तब) परिणाम होंगे।’’
उन्होंने कहा कि विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में चीनी मुखरता बढ़ रही है और 2020 में जर्मनी ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित अपनी दिशानिर्देश नीति का अनावरण किया।
राजदूत ने एक सवाल के जवाब में कहा, “दिशानिर्देश किसी भी राष्ट्र के खिलाफ निर्देशित नहीं हैं। वे समावेशी हैं। लेकिन, निश्चित रूप सीमाओं के बीच … हम उस व्यवहार पर आंखें नहीं मूंदते हैं जिससे अंतरराष्ट्रीय कानून के सम्मान को खतरा हो। हम नियम-आधारित व्यवस्था के सम्मान के पक्ष में हैं।”
उन्होंने कहा कि जब ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियों से निपटने की बात आती है तो चीन एक भागीदार है और एक आर्थिक प्रतियोगी तथा ‘व्यवस्थित प्रतिद्वंद्वी’ भी है।
लिंडनर ने कहा कि चीन की सरकार की एक अलग प्रणाली है, जबकि ‘हम भारत और कई अन्य देशों की तरह एक लोकतांत्रिक प्रणाली हैं।’
भारत-जर्मनी सैन्य सहयोग पर राजदूत ने कहा, ‘नौसैन्य सहयोग तेज किया जाएगा …. लंबे समय के बाद, जर्मन नौसेना के युद्धपोत की भारत में यह पहली बंदरगाह यात्रा है। यह पहले से ही संबंधों को प्रगाढ़ करने की अभिव्यक्ति है।’
उन्होंने कहा कि बायर्न की भारत यात्रा और इसके नौसेना प्रमुख की उच्चस्तरीय यात्रा ‘गहन सहयोग का प्रारंभिक बिंदु’ है।
इस बीच, कमांडर कल्स्की ने यह भी कहा कि जर्मन वायुसेना हिन्द-प्रशांत में अभ्यास में भाग लेगी।
हिन्द-प्रशांत में लगभग सात महीने बिताने के बाद बायर्न युद्धपोत यहां पहुंचा।
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