काबुल, 26 सितंबर (एपी) : अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुए एक महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है और अब देश में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के साथ उसकी नजर देश के प्रतिनिधि के तौर पर अन्य देशों के साथ संबंध बनाने और अपनी दूसरी सरकार को मान्यता दिलाने पर है।
अफगानिस्तान में तालिबान शासन को अब तक किसी देश से औपचारिक मान्यता नहीं मिली है ऐसे में वह अपने शासन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने की कोशिश में है। तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखकर न्यूयॉर्क में चल रहे संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक को संबोधित करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। उसका तर्क था कि सरकार के तौर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए उसके पास सभी अर्हता है। संयुक्त राष्ट्र ने प्रभावी तरीके से तालिबान के अनुरोध पर जबाब देते हुए संकेत दिया कि अभी वह ऐसा कुछ भी करने की जल्दी में नहीं है।
अफगानिस्तान शुरुआती सदस्यों के तौर पर 1946 में संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुआ था और उसे सोमवार को महासभा में नेताओं के सम्मेलन को संबोधित करना है। लेकिन अबतक संयुक्त राष्ट्र समिति की बैठक नहीं हुई है जो उसकी मान्यता की चुनौती पर फैसला कर सके, ऐसा लगता है कि लगभग तय है कि अफगानिस्तान के मौजूदा राजदूत इस साल अपने देश की ओर से संबोधित करेंगे – या फिर कोई नहीं करेगा।
संयुक्त राष्ट्र तालिबान को औपचारिक मान्यता दे सकता है या रोक सकता है और इस अहम समय का इस्तेमाल तालिबान से मानवाधिकार, लड़कियों की शिक्षा और राजनीति मेलमिलाप का आश्वासन लेने के लिए कर सकता है। यह स्थान है जिसकी प्रासंगिकता 76 साल बाद भी बनी हुई है।
कनाडा में सेंटर फॉर इंटरनेशनल गवर्नेंस के अध्यक्ष रोहिंटन मेधोरा ने कहा,‘‘अगर आप संयुक्त राष्ट्र हैं और आप चाहते हैं कि परिवार के सदस्य जैसे देशों का प्रतिनिधित्व हो तो निश्चित तौर पर आप चाहेंगे कि परिवार के सभी सदस्य उपस्थित हों, भले ही आप जानते हैं कि आपका दूर का भाई ऐसा नहीं है जिसपर सभी गर्व करें। इसलिए संयुक्त राष्ट्र को अफगानिस्तान और अन्य देशों की जरूरत है ताकि वह अपनी कार्यशैली के मूल्यों को प्रदर्शित कर सके।’’
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र बड़े पैमाने पर मदद और विकास कार्यों को आगे बढ़ा सकता है ताकि दिखा सके कि कैसे उसकी आर्थिक तौर पर कम समृद्ध एजेंसी भी स्थिरता और सुरक्षा के लिए अहम है। अफगानिस्तान कई स्तर पर मानवीय संकट का सामना कर रहा है और राजनीतिक स्थिति की वजह से पूरी तरह से गरीबी आ गई है।
पहले ही अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए मदद की मांग की जा रही है। यह तब हो रहा है जब समावेशी और खुली सरकार का वादा करने वाले तालिबान को बड़ी उम्र की लड़कियों को स्कूलों में वापसी की अनुमति देनी है, जिसने स्थानीय मीडिया की आजादी में कटौती की है और शहर के चौक पर सार्वजनिक रूप से शवों को लटकाने का बर्बर तरीके अपना रहा है।
जिनेवा में अफगानिस्तान के संयुक्त राष्ट्र में मान्यता प्राप्त राजदूत नासिर अंदिशा ने कहा, ‘‘तालिबान अफगान लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं करता।’’
उन्होंने कहा कि अगर संयुक्त राष्ट्र तालिबान के सत्ता पर दावे को मान्यता देता है तो यह विनाशकारी संदेश अन्य को जाएगा- फिर चाहे यमन हो या म्यांमा- कि वे बंदू उठा सकते हैं, हिंसा कर सकते हैं, अमेरिका द्वारा घोषित आतंकवादी समूह में शामिल हो सकते हैं।
अंदिशा ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि संयुक्त राष्ट्र के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का समय है।’’
तालिबान द्वारा नियुक्त संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि , तालिबान के पूर्व वार्ताकार और राजीतिक प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने एसोसिएटेड प्रेस से कहा कि उनकी सरकार को देशों के समूह में जगह दी जानी चाहिए क्योंकि ‘ अफगानिस्तान की सभी सीमाएं और शहर हमारे कब्जे में हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें हमारे लोगों का समर्थन प्राप्त है और उनके समर्थन से हम सफलतापूर्वक अपने देश की आजादी का संघर्ष जारी रखने में सफल हुए और जो अंतत: हमारी आजादी में तब्दील हुआ।’’
शाहीन ने कहा, ‘‘ हम सरकार के तौर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए सभी अर्हता पूरी करते हैं। अंतत: हम संयुक्त राष्ट्र से उम्मीद करते हैं कि तटस्थ विश्व निकाय के तौर पर वह अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार को मान्यता देगा।’’
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