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पेरिस समझौता पटरी पर, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना है


रवि, 09 जनवरी 2022   |   2 मिनट में पढ़ें

टोरंटो, नौ जनवरी (द कन्वरसेशन): नए साल के आते ही गुजरा साल पुराना लगने लगा है। बीता 2021 भी पहले के वर्षों की तरह जलवायु के लिहाज से तबाही का एक साल था।

आगजनी और बाढ़ की घटनाओं का एक और साल जिसके 2022 में भी होने के और अधिक संकेत हैं। बीते वर्ष की तरह 2022 में भी जलवायु कार्रवाई का आह्वान जोर पकड़ने वाला है। अगर हमें जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचना है तो यह कई तरह से (तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक) होना चाहिए।

फिर भी एक बात जो पिछले वर्षों की तुलना में 2022 में भिन्न है, वह यह है कि अब हमारे पास एक पूर्ण, कार्यशील वैश्विक जलवायु संधि है। नवंबर 2021 में ग्लासगो में सीओपी-26 की बैठक में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पेरिस समझौते के शेष विवरणों को अंतिम रूप दिया।

अधिकांश दुनिया या कम से कम उत्तरी अमेरिका और ब्रिटेन में इस खबर में भ्रम की स्थिति रही। सीएनएन, द इकोनॉमिस्ट, द ग्लोब एंड मेल और यहां तक ​​​​कि सीबीसी किड्स ने भी एक ही सवाल पूछते हुए कार्यक्रम दिखाए: ‘‘क्या सीओपी-26 एक सफलता थी?’’ मीडिया में और स्तंभकारों के बीच जो सर्वसम्मति उभरी, वह यह थी कि जलवायु परिवर्तन को ठीक न करने के बावजूद कुछ प्रगति हुई है। पर्यावरण कार्यकर्ता अधिक आश्वस्त थे कि सीओपी-26 एक विफलता थी।

दोनों प्रतिक्रियाएं उचित भी हैं क्योंकि जलवायु कार्रवाई के बारे में दो तथ्य सह-अस्तित्व में हैं। पेरिस समझौता वैसे ही काम कर रहा है जैसे इसे डिजाइन किया गया था, यह वही कर रहा है जो इसे करना चाहिए और यह एक अंतरराष्ट्रीय समझौते के रूप में क्या कर सकता है। केवल पेरिस समझौता ही हमें नहीं बचा सकता। जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया उस गति या पैमाने पर परिवर्तन उत्पन्न नहीं कर रही है जिसकी हमें जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए आवश्यकता है।

इस वैश्विक संस्थागत संदर्भ को जलवायु परिवर्तन की दिशा में एक प्रभावी वैश्विक प्रतिक्रिया में बदलने के लिए महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय कार्रवाई की आवश्यकता है। पेरिस समझौता व्यापक अर्थों में सफल होगा यदि राज्य अपनी जलवायु योजनाओं की महत्वाकांक्षा और कार्यान्वयन को तेज करें।

भले ही पेरिस समझौता संयुक्त प्रतिबद्धताओं के बजाय व्यक्तिगत प्रतिबद्धता पर निर्भर करता है, फिर भी देश अपने साथियों और प्रतिस्पर्धियों से आगे बढ़ने को लेकर चिंतित हैं। हालांकि, निधि जुटाने के प्रयासों में काफी सुधार करने की जरूरत है। यह सीओपी-26 में एक प्रमुख बिंदु था जिसने सम्मेलन को लगभग पटरी से उतार दिया।

ग्लोबल नॉर्थ में देश जलवायु और अनुकूलन वित्त पर अपनी प्रतिबद्धताओं से कम कर रहे हैं। वे प्रति वर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर के संकल्प से घटकर 20 अरब अमेरिकी डॉलर पर आ गए हैं जिसे आवश्यकता से काफी ‘‘कम’’ माना जाता है।

हमें कनाडा के ‘नेट जीरो एकाउंटेबिलिटी एक्ट’ जैसे और अधिक राष्ट्रीय कानूनों की आवश्यकता है। पेरिस समझौते को वास्तव में सफल बनाने के लिए एक देश द्वारा अपने नागरिकों, समुदायों, गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और नगर निगमों को उचित प्रयास के लिए प्रेरित किए जाने की आवश्यकता है।

हमारे पास पेरिस समझौता है लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि 2022 में यह हमें दुनियाभर में आंदोलनों और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं में भी देखने को मिलेगा। (मैथ्यू हॉफमैन, राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और पर्यावरण नियमन प्रयोगशाला के सह-निदेशक, टोरंटो विश्वविद्यालय)

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