कोलंबो, 14 सितंबर (भाषा) : श्रीलंका ने मंगलवार को कहा कि वह देश के मानवाधिकारों की जवाबदेही पर उसके नये प्रस्ताव के माध्यम से अपनाये गये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के कदमों का विरोध करता है। श्रीलंका ने बात पर जोर दिया कि इस तरह के किसी भी कदम से समाज का ‘‘ध्रुवीकरण’’ होगा।
विदेश मंत्री जी एल पीरिस ने सोमवार को जिनेवा में यूएनएचआरसी के 48वें सत्र को डिजिटल तरीके से संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की। वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेशलेट द्वारा श्रीलंका की मानवाधिकार स्थिति पर दिये गये संबोधन का जवाब दे रहे थे। उन्होंने द्वीप राष्ट्र के मानवाधिकारों की जवाबदेही पर कई चिंताएं उठाई थीं।
पीरिस ने कहा, ‘‘हम प्रस्ताव 46/1 द्वारा कथित रूप से उठाये गये किसी भी बाहरी कदम के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं। यह हमारे समाज का ध्रुवीकरण करेगा, जैसा कि हमने प्रस्ताव 30/1 में देखा था।’’ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने मार्च में श्रीलंका के मानवाधिकारों के रिकॉर्ड के खिलाफ एक मजबूत प्रस्ताव अपनाया था, जिसमें ‘‘(श्रीलंकाई) सरकार से आह्वान किया गया था कि मानवाधिकारों के उल्लंघन और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के उल्लंघन से संबंधित सभी कथित अपराधों की त्वरित और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाये।’’
उन्होंने कहा कि श्रीलंका ने अपने स्वयं के तंत्र के माध्यम से मानवाधिकारों की जवाबदेही में प्रगति की है। उन्होंने कहा, ‘‘हम अपनी चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और एक जिम्मेदार और लोकतांत्रिक सरकार के रूप में, हम जवाबदेही, सुलह, मानवाधिकार, शांति और सतत विकास से संबंधित सभी मुद्दों पर ठोस प्रगति हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’
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