मास्को, 14 अगस्त (भाषा) रूस ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और वह युद्धग्रस्त देश में शांति लाने के लिए भारत और ईरान को शामिल करने में रुचि रखता है।
अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में एक प्रमुख हितधारक भारत को 11 अगस्त को कतर में आयोजित ‘विस्तारित त्रयी’ बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था। इस प्रारूप के तहत वार्ता इससे पहले 18 मार्च और 30 अप्रैल को हुई थी।
अफगानिस्तान की स्थिति पर महत्वपूर्ण बैठक आयोजित करने के बाद, जिसमें अमेरिका, पाकिस्तान, रूस और चीन ने हिस्सा लिया, विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने शुक्रवार को मीडिया से कहा कि रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के फैसलों के आधार पर अफगानिस्तान में राजनीतिक समझौते का समर्थन करता है और इसका खेद है तालिबान बल प्रयोग करके देश में स्थिति को सुलझाने का प्रयास कर रहा है।
उन्होंने कहा कि रूस देश की सभी राजनीतिक, जातीय, इकबालिया ताकतों की भागीदारी से हो रहे अफगान समझौते का समर्थन करता है।
रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ‘तास’ ने लावरोव के हवाले से कहा, ‘‘अंतररष्ट्रीय मध्यस्थ अन्य संघर्ष स्थितियों की तुलना में यहां अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हमारे तथाकथित ट्रोइका – रूस, अमेरिका, चीन – और पाकिस्तान को शामिल करने वाले विस्तारित त्रयी के ढांचे के भीतर हमारे प्रयास ठीक इसी दिशा में निर्देशित हैं। हमारी दिलचस्पी ईरानियों और फिर अन्य देशों, विशेष रूप से भारत को भी शामिल किये जाने में है।’’
ऐसे में जब तालिबान ने अफगानिस्तान में अपना हमला जारी रखा है, रूस ने हिंसा को रोकने और अफगान शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए युद्धग्रस्त देश में सभी प्रमुख हितधारकों तक पहुंच बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं।
रूस अफगानिस्तान में शांति लाने और राष्ट्रीय सुलह की प्रक्रिया के लिए परिस्थितियों का निर्माण करने के लिए वार्ता का ‘मास्को प्रारूप’ आयोजित करता रहा है।
पिछले महीने, लावरोव ने ताशकंद में कहा था कि रूस भारत और अन्य देशों के साथ काम करना जारी रखेगा जो अफगानिस्तान की स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।
यद्यपि रूस के अफगान संघर्ष के विभिन्न आयामों पर अमेरिका के साथ मतभेद हैं, दोनों देश तालिबान द्वारा व्यापक हिंसा को रोकने के लिए अब अंतर-अफगान वार्ता पर जोर दे रहे हैं।
रूस के विदेश मंत्री ने कहा कि रूस देश की सभी राजनीतिक, जातीय, इकबालिया ताकतों की भागीदारी के साथ हो रहे अफगान समझौते का समर्थन करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्वीकृत प्रक्रियाओं का समर्थन करते हैं जो अब दुर्भाग्य से धीमी हो गई हैं। राज्य के प्रतिनिधिमंडल को पहले से ही लगभग डेढ़ – दो साल से बातचीत फिर से शुरू करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, अफसोस की बात है कि तालिबान ने फिर से सैन्य बल के माध्यम से स्थिति को सुलझाने का प्रयास शुरू करने का फैसला किया। वे अधिक से अधिक शहरों और प्रांतों पर कब्जा कर रहे हैं। यह सब अच्छा नहीं है, यह गलत है।’’
उन्होंने कहा कि रूस अफगानिस्तान में सभी राजनीतिक ताकतों के साथ संपर्क बनाए रखता है।
भारत पहले ही युद्ध से तबाह देश में सहायता और पुनर्निर्माण गतिविधियों में लगभग 3 अरब अमरीकी डालर का निवेश कर चुका है।
भाषा. अमित माधव
माधव
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