कोलकाता, 11 जनवरी (भाषा) : सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उग्रवादी म्यांमा के साथ लगते चीन के सीमावर्ती इलाकों में फिर से संगठित होने की दिशा में काम कर रहे हैं, ऐसे में हालिया महीनों में देश के पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी हमलों के बीच मणिपुर में चुनाव और नगालैंड में शांति वार्ता के बीच इनके हमलों के बढ़ने की आशंका है।
ऐसा माना जा रहा है कि रुकी हुई वार्ता के कारण अधीर नगा समूह और आगामी मणिपुर विधानसभा चुनावों बाधित करने के इच्छुक विद्रोही मणिपुरी समूह चीन के यून्नान प्रांत और म्यांमा में सीमावर्ती इलाकों में फिर से संगठित हो रहे हैं। इसके लिए वे म्यांमा में उथल- पुथल का फायदा उठाकर उसे आवागमन के गलियारे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
असम राइफल्स के पूर्व महानिरीक्षक मेजर जनरल भबानी एस दास ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘उग्रवाद के फिर से सिर उठाने का चीनी पहलू है। कई समूहों के चीन में लोग हैं।’’ ऐसा माना जा रहा है कि ‘यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम’ (आई), ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर’ और शांति वार्ता के विरोधी नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन)(के) के अलग हुए गुट सीमावर्ती इलाकों में फिर से संगठित हो रहे हैं।
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सेवानिवृत्त अतिरिक्त महानिदेशक एवं पूर्वोत्तर उग्रवाद संबंधी मामलों के विशेषज्ञ संजीव कृष्ण सूद ने कहा, ‘‘चीन संबंधी कारक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन हमें इस तथ्य को भी देखना होगा कि कई नगा शांति वार्ता में अलसुलझे मामलों के कारण अधीर हो गए हैं और मणिपुरी उग्रवादी आगामी विधानसभा चुनाव में हस्तक्षेप करना चाहेंगे।’’
मणिपुर में हाल में हुए उग्रवादी हमले उन विस्फोटों का हिस्सा माने जा रहे है, जिन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया के दौरान करने की योजना बनाई जा रही है। अक्सर अलग-अलग लक्ष्य रखने वाले उग्रवादी समूहों ने बड़े हमले करने के लिए हाथ मिलाया है। इन हमलों में पिछले साल 13 नवंबर को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में आईईडी विस्फोटकों और गोलियों से घात लगाकर किया गया वह हमला भी शामिल है, जिसमें असम राइफल्स के एक कमांडिंग अफसर, उनकी पत्नी और बेटे तथा बल के चार अन्य कर्मियों समेत सात लोगों की मौत हो गई थी।
दो प्रतिबंधित उग्रवादी संगठनों पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और मणिपुर नगा पीपुल्स फ्रंट (एमएनपीएफ) ने चुराचांदपुर जिले के सेहकन गांव में अर्द्धसैन्य बल पर हमले की जिम्मेदारी ली है। आईपीएस (सेवानिवृत्त) और मॉरीशस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे सुरक्षा विश्लेषक शांतनु मुखर्जी ने कहा, ‘‘आमतौर पर, मैतेई समूहों और नगा समूहों के अलग-अलग और कभी-कभी शत्रुतापूर्ण उद्देश्य होते हैं तथा वे एक साथ नहीं आते (हालांकि पीएलए ने 1980 के दशक में उत्तरी म्यांमा में एनएससीएन से अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था)… इनके बीच एक मात्र संबंध यह है कि वे चीन के कुनमिंग में शरण लेते हैं और वहीं हथियार खरीदते हैं।’’
1950 के दशक में शुरू हुए नगा विद्रोह को प्रशिक्षण और हथियारों में रूप में चीनी सहयोग मिला। इसके अलावा कुछ विद्रोही समूह ईस्ट पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश गए, जहां पाकिस्तान के आईएसआई से उन्हें समर्थन मिला। पूर्वोत्तर विद्रोही समूहों को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनाने वाली शेख हसीना सरकार ने बांग्लादेशी मार्ग बंद कर दिया, ऐसे में इन समूहों के पास म्यांमा के जरिए चीन सबसे अच्छा विकल्प शेष है।
पूर्वी कमान में आतंकवाद रोधी और खुफिया जानकारी के क्षेत्र में लंबा अनुभव रखने वाले सेवानिवृत्त मेजर जनरल बिस्वजीत चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘विद्रोही समूह कई वर्षों से कुनमिंग में ग्रे मार्केट (ऐसा बाजार जहां अनधिकृत माध्यम से सामान बेचा और खरीदा जाता है) से हथियार खरीदने और चीन, म्यांमा एवं थाईलैंड के सीमावर्ती इलाकों में नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए चीन की यात्रा कर रहे हैं, ताकि वे अपनी गतिविधियों के लिए धन जुटा सकें।’’
हालांकि 2019 में एक संयुक्त अभियान में उल्फा (आई), नगा और मणिपुरी समूहों समेत अधिकतर विद्रोही समूहों को म्यांमा स्थित शिविरों से बाहर निकाल दिया गया था, लेकिन म्यांमा में उथल-पुथल के बाद ये समूह फिर से पुनर्गठित होने लगे हैं। चक्रवर्ती ने कहा कि म्यांमा सेना का अपने सीमावर्ती क्षेत्रों पर नियंत्रण नहीं है। म्यांमा के लिए नगा विद्रोहियों की मौजूदगी एक और सिरदर्द है।
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