कराची, नौ दिसंबर (भाषा) : पाकिस्तान ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ग्वादर बंदरगाह में चीन को कोई सैन्य अड्डा देने की पेशकश नहीं की है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने यह बात कही।
उन्होंने दोहराया कि कोई भी देश चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना में 60 अरब डॉलर का निवेश कर सकता है और हमारे दरवाजे किसी के लिये बंद नहीं हैं।
अरब सागर से सटे ग्वादर बंदरगाह को सीपीईसी का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
यूसुफ ने बीबीसी के ‘हार्डटॉक’ कार्यक्रम के लिये स्टीफन सैकर को दिये साक्षात्कार में कहा, ”पाकिस्तान में चीन के आर्थिक आधार हैं, जहां दुनिया का कोई भी देश निवेश कर सकता है … वही संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और मध्य पूर्व को भी यह पेशकश की जाती है। हमारे दरवाजे सभी देशों के लिए खुले हैं।”
गौरतलब है कि ग्वादर में पिछले महीने अनावश्यक चौकियों, पानी और बिजली की भारी कमी तथा अवैध रूप से मछली पकड़ने के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
ये विरोध प्रदर्शन ग्वादर में चीन की मौजूदगी पर बढ़ते असंतोष के तहत हुए। चीन का बंदरगाह 60 अरब अमेरिकी डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का एक अभिन्न अंग है। सीपीईसी चीन की कई अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड पहल की प्रमुख परियोजना है।
भारत सीपीईसी को लेकर चीन के समक्ष विरोध दर्ज करा चुका है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीएओके) से होकर गुजरता है। इस परियोजना के तहत पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ा जाएगा।
यूसुफ ने चीन को ”इस्लामाबाद का करीबी दोस्त” बताया।
यह पूछे जाने पर कि क्या पाकिस्तान ने चीन के साथ घनिष्ट संबंध विकसित करने के लिये दुनिया भर के और विशेष रूप से शिनजियांग के मुसलमानों के लिये आवाज उठाने के प्रयासों को दांव पर लगा दिया है तो यूसुफ ने कहा कि पाकिस्तान शिनजियांग में मुसलमानों के खिलाफ कथित अत्याचारों की पश्चिमी धारणा से सहमत नहीं है।
उन्होंने कहा, ”चीन के साथ हमारे भरोसेमंद संबंध हैं और यहां से हमारे राजदूत और अन्य प्रतिनिधिमंडल भी शिनजियांग प्रांत गए हैं।”
उन्होंने कहा कि अगर पश्चिमी देशों को चीन से कोई समस्या है, तो उन्हें इस बारे में बीजिंग से बात करनी चाहिए।
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