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स्थायी शांति हासिल करने के लिए तमिल समुदाय के साथ सार्थक सुलह आवश्यक है : राजपक्षे


शुक्र, 24 सितम्बर 2021   |   2 मिनट में पढ़ें

संयुक्त राष्ट्र, 23 सितंबर (भाषा) : श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने कहा कि देश में स्थायी रूप से शांति हासिल करने के लिए घरेलू संस्थानों के जरिए तमिल समुदाय से सार्थक सुलह आवश्यक है।

उन्होंने इस बार पर जोर दिया कि उनकी सरकार इस प्रक्रिया में सभी पक्षकारों को शामिल करने तथा अपने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों का सहयोग हासिल करने के लिए तैयार है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय चर्चा को बुधवार को संबोधित करते हुए राजपक्षे ने कहा, ‘‘2009 तक देश को 30 वर्षों तक अलगावादी उग्रवादी युद्ध का सामना करना पड़ा था।’’ उन्होंने कहा कि 2019 में श्रीलंका ने ईस्टर संडे हमलों में चरमपंथी धार्मिक आतंकवादियों द्वारा मचायी गयी तबाही देखी जिसमें 250 से अधिक लोग मारे गए थे।

उन्होंने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के साथ क्रूर संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘उससे पहले 2009 तक देश को 30 वर्षों तक एक अलगाववादी उग्रवादी युद्ध का सामना करना पड़ा। आतंकवाद एक वैश्विक चुनौती है जिससे निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।’’

श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने कहा कि स्थायी शांति हासिल करने के लिए घरेलू संस्थानों के जरिए वृहद जवाबदेही, दृढ़ न्याय और सार्थक सुलह को बढ़ावा देना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार का सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए एक समृद्ध, स्थिर और सुरक्षित भविष्य निर्माण का दृढ़ इरादा है।

राजपक्षे ने कहा कि श्रीलंका इस प्रक्रिया में सभी घरेलू पक्षकारों को शामिल करने तथा अपने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों और संयुक्त राष्ट्र का सहयोग हासिल करने के लिए तैयार है।

उन्होंने कहा कि हिंसा ने उनके देश में हजारों लोगों की जान ली साथ ही उन्होंने ऐसी हिंसा श्रीलंका में फिर कभी न हो यह सुनिश्चित करने की अपनी सरकार की प्रतिबद्धता जतायी।

राजपक्षे की ये टिप्पणियां तब आयी है जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने पिछले हफ्ते जिनेवा में घोषणा की कि उनके पास लिट्टे के साथ संघर्ष के अंतिम चरण के दौरान श्रीलंकाई बलों के कथित दुर्व्यवहार पर करीब 1,20,000 दस्तावेजों का सबूत है।

उन्होंने नवंबर 2019 में राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर कहा था कि उन्हें सिंहली बहुसंख्यक आबादी ने चुना है और वे उनके हित में काम करेंगे। वह पहले तमिल समूहों के साथ बातचीत न करने का रुख अपना चुके हैं।

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