संयुक्त राष्ट्र, 19 अगस्त (भाषा) भारत ने बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन बेखौफ अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं और उन्हें इसके लिए शह भी मिल रही है।
जयशंकर ने साथ ही पाकिस्तान स्थित आतंकियों द्वारा किए गए 2008 के मुंबई आतंकी हमले, पठानकोट में वायु सेना अड्डे और पुलवामा हमले की याद दिलाते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कभी भी आंतकवादियों को पनाह नहीं देनी चाहिए।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता करते हुए ‘आतंकवादी कृत्यों के कारण अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा’ विषय पर एक उच्च स्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि प्रतिबंधित हक्कानी नेटवर्क की गतिविधियों में वृद्धि इस बढ़ती चिंता को सही ठहराती है।
जयशंकर ने कहा, ”हमारे पड़ोस में, आईएसआईएल-खोरासन (आईएसआईएल-के) अधिक ताकतवर हो गया है और लगातार अपने पांव पसारने की कोशिश कर रहा है। अफगानिस्तान में होने वाले घटनाक्रम ने स्वाभाविक रूप से क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर वैश्विक चिंताओं को बढ़ा दिया है।”
उन्होंने कहा, ” चाहे वह अफगानिस्तान में हो या भारत के खिलाफ, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूह को प्रश्रय प्राप्त है और वे बेखौफ होकर अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।”
विदेश मंत्री ने कहा कि इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि सुरक्षा परिषद ”हमारे सामने आ रही समस्याओं को लेकर एक चयनात्मक, सामरिक या आत्मसंतुष्ट दृष्टिकोण नहीं अपनाए।”
उन्होंने कहा, ”हमें कभी भी आतंकवादियों के लिए पनाहगाह उपलब्ध नहीं करानी चाहिए या उनके संसाधनों में इजाफे की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।”
पाकिस्तान, जहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी और आतंकवादी समूह कथित तौर पर सुरक्षित पनाह पाते हैं और सरकार के समर्थन का फायदा उठाते हैं, का नाम लिए बिना जयशंकर ने कहा, ”जब हम देखते हैं कि जिनके हाथ निर्दोष लोगों के खून से सने हैं उन्हें राजकीय आतिथ्य दिया जा रहा है, तो हमें उनके दोहरेपन को उजागर करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।”
सुरक्षा परिषद की बैठक में आईएसआईएल (दाएश) की तरफ से अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए उत्पन्न खतरे को लेकर महासचिव की 13वीं रिपोर्ट पर विचार किया गया।
तीन अगस्त को पेश रिपोर्ट में कहा गया कि आईएसआईएल-खोरासन ने अफगानिस्तान के कई प्रांतों में अपने पांव पसारे हैं और काबुल में और इसके आसपास अपनी पकड़ मजबूत की है।
काबुल पर तालिबान के नियंत्रण के बाद बचकर निकले अफगान सामरिक अध्ययन संस्थान के महानिदेशक दाऊद मोराडियन ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक को संबोधित किया और परिषद को बताया कि उड़ते हुए अमेरिकी विमान से गिरने वालों में से एक शख्स कथित तौर पर अफगानिस्तान की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम का सदस्य था।
जयशंकर ने कहा कि आईएसआईएल-खोरासन भारत के पड़ोस में अपनी ताकत बढ़ाते हुए पैर पसार रहा है जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
उन्होंने परिषद को बताया कि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट (आईएसआईएल) या आईएसआईएस द्वारा गतिविधयों को अंजाम देने के तौर-तरीकों में बदलाव आया है, जिसमें मुख्य रूप से सीरिया और इराक में पकड़ मजबूत करना शामिल है।
उन्होंने कहा, ” यह उभार बेहद खतरनाक है और आईएसआईएल और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमारे सामूहिक प्रयासों के लिए चुनौतियों को बढ़ाता है।”
यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब विश्व अगले महीने न्यूयॉर्क में हुए 9/11 हमले की 20वीं बरसी मनाएगा।
जयशंकर ने कहा, ” भारत, आतंकवाद से संबंधित चुनौतियों और क्षति से अत्याधिक प्रभावित रहा है। वर्ष 2008 मुंबई हमले के निशान मिटे नहीं हैं। 2016 में पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए हमले और पुलवामा में हमारे पुलिसकर्मियों को निशाना बनाकर किए गए आत्मघाती हमले की यादें भी ताजा हैं। हमे कभी भी आतंकवाद की बुराई से समझौता नहीं करना चाहिए।”
चीन पर कटाक्ष करते हुए जयशंकर ने परिषद में कहा कि देशों को आतंकवादियों को नामित करने के अनुरोध को बिना किसी कारण के लंबित नहीं रखना चाहिए।
जयशंकर ने जनवरी में परिषद में की गई अपनी टिप्पणी की ओर भी इशारा किया, जब उन्होंने आतंकवाद के संकट को सामूहिक रूप से समाप्त करने के उद्देश्य से आठ-सूत्रीय कार्य योजना का प्रस्ताव दिया था।
विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवाद को किसी भी रूप में न्यायोचित नहीं ठहराएं और ना ही आतंकवाद का महिमामंडन करें क्योंकि आतंकवादी तो आतंकवादी है, ऐसे में उसका भेद अपने जोखिम पर करें।
उन्होंने कहा कि आतंकवाद के सभी रूपों, अभिव्यक्तियों की निंदा की जानी चाहिए, इसे किसी भी तरह न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
विदेश मंत्री ने कहा, ” आईएसआईएस का वित्तीय संसाधन जुटाना और अधिक मजबूत हुआ है, हत्याओं का इनाम अब बिटकॉइन के रूप में भी दिया जा रहा है। भारत मानता है कि आतंकवाद को किसी धर्म, राष्ट्रीयता, सभ्यता या जातीय समूह से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। व्यवस्थित ऑनलाइन प्रचार अभियानों के जरिए कमजोर युवाओं को कट्टरपंथी गतिविधियों में शामिल करना गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।”
भाषा शफीक नरेश
नरेश
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jabar Singh jodha