नयी दिल्ली/बीजिंग, 17 सितंबर (भाषा) : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से कहा कि दोनों पक्षों को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से संबंधित लंबित मुद्दों का जल्द समाधान निकालने के लिए काम करना चाहिए जिससे सीमावर्ती क्षेत्र में अमन-चैन बहाल हो क्योंकि यह भारत-चीन संबंधों में प्रगति का एक अनिवार्य आधार रहा है।
दुशान्बे में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से इतर एक बैठक में बृहस्पतिवार को दोनों विदेश मंत्रियों ने क्षेत्र में वर्तमान हालात पर विचारों का आदान-प्रदान किया। वहीं चीनी विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि मंत्री वांग ने उम्मीद जताई कि भारत सीमा की स्थिति को स्थिरता की ओर ले जाने के लिए आधी दूरी तय कर चीन से मुलाकात करेगा और इसे “तत्काल विवाद समाधान से नियमित प्रबंधन और नियंत्रण” में स्थानांतरित कर देगा।
जयशंकर ने कहा कि चीन को भारत के साथ अपने संबंधों को “किसी तीसरे देश के नजरिये” से देखने से बचना चाहिए जिस पर बीजिंग ने “सहमति” जताई। चीन-भारत के संबंधों के अपने ”अंतर्निहित तर्क” होने का जिक्र करते हुए चीन ने कहा कि चीन-भारत संबंध किसी “तीसरे पक्ष को निशाना नहीं बनाते और ना ही किसी तीसरे पक्ष पर आधारित हैं”।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा दोनों मंत्रियों ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर मौजूदा हालात के साथ ही वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि दोनों तरफ के सैन्य एवं राजनयिक अधिकारियों को जल्द से जल्द फिर मुलाकात करनी चाहिए और लंबित मुद्दों के समाधान पर चर्चा करनी चाहिए।
जयशंकर ने रेखांकित किया कि लंबित मुद्दों के समाधान की दिशा में प्रगति करना आवश्यक है ताकि पूर्वी लद्दाख में एलएसी के निकट अमन-चैन बहाल हो सके क्योंकि सीमावर्ती इलाकों में ऐसा माहौल द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति के लिए एक आवश्यक आधार है।
विदेश मंत्रालय (एमईए) के अनुसार, जयशंकर ने वांग यी से कहा कि भारत ने ‘‘सभ्यताओं के टकराव के सिद्धांत’’ का कभी भी समर्थन नहीं किया है। उन्होंने कहा कि भारत-चीन संबंधों के जरिए जो मिसाल कायम होगी, एशियाई एकजुटता उसी पर निर्भर करेगी।
बयान में कहा गया कि जयशंकर ने कहा कि दोनों पक्षों को ‘‘परस्पर सम्मान’’ आधारित संबंध स्थापित करना होगा और जिसके लिए यह आवश्यक है कि चीन, भारत के साथ अपने संबंधों को, तीसरे देशों के साथ अपने संबंधों के दृष्टिकोण से देखने से बचें।
उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘‘यह भी आवश्यक है कि भारत के साथ अपने संबंधों को चीन किसी तीसरे देश के नजरिए से नहीं देखे।’’
जयशंकर ने अपने वक्तव्य में ‘‘एक तीसरे देश’’ का जिक्र किया, वहीं विदेश मंत्रालय की ओर से जारी वक्तव्य में ‘‘तीसरे देशों’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है।
बताया जाता है कि दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद वहां के घटनाक्रमों पर भी विचार साझा किए।
बयान में कहा गया कि जयशंकर ने याद किया कि वांग ने 14 जुलाई को उनकी पिछली मुलाकात के दौरान जिक्र किया था कि द्विपक्षीय संबंध निम्न स्तर पर रहे हैं।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि 14 जुलाई को हुई बैठक में दोनों पक्षों ने सहमति जताई थी कि वर्तमान हालात का लंबे समय तक जारी रहना दोनों पक्षों के हित में नहीं है क्योंकि इससे संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
उस बैठक में जयशंकर ने वांग से कहा था कि एलएसी पर यथास्थिति में किसी भी तरह का एकपक्षीय बदलाव भारत को स्वीकार्य नहीं है और पूर्वी लद्दाख में अमन-चैन पूरी तरह बहाल होने पर ही समग्र संबंध विकसित हो सकते हैं।
विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया, ‘‘विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि दोनों पक्षों को द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन करते हुए पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर लंबित मुद्दों के जल्द समाधान की दिशा में काम करना चाहिए।’’
इसमें कहा गया, “विदेश मंत्री ने इस बात का संज्ञान लिया कि 14 जुलाई को हुई पिछली बैठक के बाद से दोनों पक्षों ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी से जुड़े लंबित मुद्दों के समाधान की दिशा में कुछ प्रगति की है और गोगरा इलाके में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया को पूरा किया है।”
बयान के मुताबिक, “हालांकि अब भी कुछ लंबित विषय हैं जिनके समाधान की जरूरत है।”
वांग और जयशंकर ने 14 जुलाई को दुशान्बे में एससीओ के एक अन्य सम्मेलन से इतर एक द्विपक्षीय बैठक में बातचीत की थी।
चीन के विदेश मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को हुई वार्ता के बारे में अपने बयान में वांग का हवाला देते हुए कहा, “चीन-भारत सीमा मुद्दे का समुचित समाधान तलाशने के लिये चीन हमेशा सकारात्मक रहा है।”
बयान के मुताबिक, वांग ने उल्लेख किया कि विदेशी और सैन्य विभागों के माध्यम से दोनों पक्षों के बीच हालिया संचार गंभीर और प्रभावी था, और सीमा क्षेत्र में समग्र (तनावपूर्ण) स्थिति “धीरे-धीरे कम हो गई है।”
उन्होंने कहा, “दोनों पक्षों को सीमावर्ती क्षेत्र में अमन-चैन की संयुक्त रूप से रक्षा करने और सीमा विवाद की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए अग्रिम पंक्ति के सैनिकों के पीछे हटने के परिणामों को मजबूत करने और प्रोटोकॉल व समझौतों के साथ ही दोनों देशों के बीच सहमति का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है।”
जयशंकर की टिप्पणी को लेकर पूछे गए सवाल पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने प्रेसवार्ता के दौरान कहा, ” हम भारतीय पक्ष की टिप्पणी से सहमत हैं।”
उन्होंने कहा, ” चीन और भारत दोनों महत्वपूर्ण एशियाई देश हैं। संबंध विकसित करने के लिए दोनों देशों का एक अंतर्निहित आवश्यक तर्क है। चीन-भारत के संबंध कभी किसी तीसरे पक्ष को निशाना नहीं बनाते।”
इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में झाओ ने कहा, ” भारत-चीन संबंधों की प्रगति अपने अंतर्निहित तर्क का पालन करती है। चीन-भारत संबंध किसी तीसरे पक्ष को निशाना नहीं बनाते और ना ही किसी तीसरे पक्ष पर आधारित हैं।”
बृहस्पतिवार को हुई बैठक में दोनों मंत्रियों ने हालिया वैश्विक गतिविधियों पर भी अपने विचार साझा किए।
चीन के बयान ने वांग के हवाले से बैठक में यह भी कहा कि दो प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, चीन और भारत को खतरों के बजाय एक-दूसरे के लिए विकास के अवसर होने की रणनीतिक सहमति को बनाए रखना चाहिए, द्विपक्षीय संबंधों और व्यावहारिक सहयोग को स्वस्थ व स्थिर मार्ग पर आगे बढ़ाना चाहिए।
चीनी विदेश मंत्री ने कहा, “यह दोनों देशों के साझा हितों की पूर्ति करता है और क्षेत्रीय व विश्व शांति तथा विकास को लाभान्वित करता है।”
पैंगोंग झील इलाके में हिंसक संघर्ष के बाद पिछले साल पांच मई को भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच सीमा पर गतिरोध की स्थिति बन गई थी। दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे सीमा पर अपनी तैनाती बढ़ाई और हजारों सैनिकों तथा भारी हथियारों को वहां पहुंचाया। दोनों पक्षों ने सैन्य और राजनयिक वार्ताओं की श्रृंखला के परिणामस्वरूप पिछले महीने गोगरा इलाके में सैनिकों की पूरी तरह वापसी की प्रक्रिया पूरी की।
दोनों पक्षों ने सीमा से हटने के समझौते के तहत फरवरी में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से सैनिकों और हथियारों की वापसी की प्रक्रिया पूरी की। इस समय संवेदनशील क्षेत्र में एलएसी के आसपास प्रत्येक पक्ष के करीब 50-60 हजार सैनिक तैनात हैं।
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