नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) : ईरान द्वारा एक स्थानीय कंपनी को फारस की खाड़ी में स्थित फरजाद-बी गैस क्षेत्र का अधिकार दिए जाने के बावजूद ओएनजीसी विदेश लि. (ओवीएल) की अगुवाई वाले भारतीय गठजोड़ के पास इस क्षेत्र के विकास में अनुबंध के हिसाब से 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी।
फरवरी, 2020 में नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी (एनआईओसी) ने भारत को सूचित किया था कि वह फरजाद-बी के विकास का अनुबंध ईरान की एक कंपनी के साथ करने जा रही है। इस साल मई में उसने पेट्रोपार्स समूह को 1.78 अरब डॉलर का ठेका दे दिया।
इस मामले की जानकारी रखने वाले एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘‘इस क्षेत्र की खोज भारतीय कंपनियों के गठजोड़ ने की थी। निश्चित रूप से भारत इस क्षेत्र से उत्पादन शुरू करना चाहता था। इसके लिए भारतीय कंपनियों ने अपनी विकास योजना भी सौंपी थी। लेकिन ईरान सरकार ने बिना किसी विदेशी भागीदारी के इस परियोजना पर आगे बढ़ने का फैसला किया।’’
बहुत से लोगों का मानना है कि यह भारत के लिए झटका है। अधिकारी ने कहा, ‘‘अभी सब खत्म नहीं हुआ है। मूल लाइसेंसी होने और क्षेत्र की खोज करने की वजह से भारतीय गठजोड़ के पास इस क्षेत्र में 30 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिकार है। यह क्षेत्र में भंडार के विकास और गैस के उत्पादन से संबंधित है।’’
इस परियोजना में भारतीय गठजोड़ ने रुचि दिखाई है। ओवीएल ने 29 जुलाई, 2021 को विकास अनुबंध के नियम और शर्तों का ब्योरा मांगा था। लेकिन एनआईओसी की ओर से इसका जवाब नहीं मिला है। एक अधिकारी ने बताया कि अब ओवीएल ने फिर से इस बारे में पत्र लिखा है।
अधिकारी ने कहा, ‘‘यह अनुबंध मजबूत और स्पष्ट है। इस मामले में लाइसेंसी भारतीय कंपनियों का गठजोड़ है। परियोजना का क्रियान्वयन कोई भी करे लेकिन विकास परियोजना में हमारी 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है।’’
ओएनजीसी की विदेश इकाई ओवीएल के पास फारस की खाड़ी में 3,500 वर्ग किलोमीटर के फारसी अपतटीय ब्लॉक में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के पास 40 प्रतिशत तथा शेष 20 प्रतिशत हिस्सेदारी ऑयल इंडिया के पास है।
ब्लॉक के लिए खोज सेवा अनुबंध (ईएससी) पर 25 दिसंबर, 2002 में हस्ताक्षर हुए थे। ओवीएल ने 2008 में इसमें एक बड़ी खोज की थी जिसे बाद में फरजाद-बी का नाम दिया गया।
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