नयी दिल्ली, 21 सितंबर (भाषा) : भारत और फ्रांस ने मंगलवार को अफगानिस्तान की स्थिति पर ‘‘गहरी चिंता’’ जताई और इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने आतंकवाद के संभावित प्रसार, नशीले पदार्थों के व्यापार, अवैध हथियारों और मानव तस्करी के बारे में अपनी-अपनी चिंताओं को साझा किया।
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक मोदी और मैक्रों के बीच फोन पर हुई वार्ता के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते द्विपक्षीय सहयोग और क्षेत्र में स्थिरता एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने में भारत-फ्रांस साझेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका की भी समीक्षा की गई।
बयान में कहा गया, ‘‘दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम सहित विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की। इस संदर्भ में, उन्होंने आतंकवाद के संभावित प्रसार, नशीले पदार्थों के व्यापार, अवैध हथियारों और मानव तस्करी के साथ-साथ मानवाधिकारों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता के बारे में अपनी-अपनी चिंताओं को साझा किया।’’
फ्रांस के राष्ट्रपति कार्यालय ने भी बयान जारी कर मोदी-मैक्रों वार्ता के बारे में एक विस्तृत जानकारी साझा की और कहा कि दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान की स्थिति पर ‘‘गहरी चिंता’’ प्रकट की।
उसके मुताबिक, ‘‘सत्ता में बैठे प्राधिकारी वर्ग को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से संबंध खत्म करने चाहिए, मानवतावादी संगठनों को पूरे देश में काम करने की अनुमति और अफगान के लोगों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। निकासी के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों को निर्बाध रूप से जारी रखना चाहिए।’’
प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को कहा था कि अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन ‘‘समावेशी’’ नहीं हुआ है, लिहाजा नयी व्यवस्था की स्वीकार्यता पर सवाल उठते हैं और इस परिस्थिति में उसे मान्यता देने के बारे में वैश्विक समुदाय को ‘‘सामूहिक’’ और ‘‘सोच-विचार’’ कर फैसला करना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने साथ ही यह चेताया था कि अगर अफगानिस्तान में ‘‘अस्थिरता और कट्टरवाद’’ बना रहेगा तो इससे पूरे विश्व में आतंकवादी और अतिवादी विचारधाराओं को बढ़ावा मिलेगा।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद के 21वें शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत का रुख स्पष्ट करते हुए अपने डिजिटल संबोधन में कहा कि वहां की भूमि का इस्तेमाल किसी भी देश में आतंकवाद फैलाने के लिए नहीं होना चाहिए।
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