कोलंबो, 21 सितंबर (भाषा) : श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपनी नीति में बड़ा बदलाव करते हुए कहा है कि वह देश की आंतरिक समस्याओं के समाधान के लिए प्रवासी तमिलों के साथ सुलह वार्ता में शामिल होंगे और प्रतिबंधित लिट्टे के साथ जुड़े होने की वजह से जेलों में बंद तमिल युवकों को माफी देने से नहीं हिचकिचाएंगे।
पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने जिनेवा में कहा था कि उनके पास करीब 120,000 सबूत हैं जो संघर्ष के अंतिम चरण के दौरान श्रीलंकाई सैनिकों द्वारा की गई कथित प्रताड़ना से संबंधित है।
राजपक्षे (72) ने नवंबर 2019 में राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद कहा था कि उन्हें सिंहली बहुसंख्यकों ने चुना है और वे उनके हितों को बढ़ावा देंगे। उन्होंने पहले तमिल समूहों के साथ बातचीत नहीं करने का रुख अपनाया था।
संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र को संबोधित करने के लिए पहले विदेशी दौरे के दौरान कोलंबो में राष्ट्रपति राजपक्षे के कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि श्रीलंका के आंतरिक मुद्दों को एक आंतरिक तंत्र के माध्यम से हल किया जाना चाहिए और इसके लिए तमिल प्रवासियों को चर्चा के लिए आमंत्रित किया जाएगा।
राजपक्षे ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस से कहा कि वह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के साथ जुड़े रहने की वजह से लंबे समय से जेल में बंद तमिल युवाओं को राष्ट्रपति के अधिकारों का इस्तेमाल कर क्षमादान देने से नहीं हिचकिचाएंगे।
वह अपने भाई महिंदा राजपक्षे के 2005-15 तक राष्ट्रपति रहने के दौरान रक्षा मंत्रालय में शीर्ष नौकरशाह थे और उन्होंने सेना द्वारा लिट्टे को कुचलने के अभियान की अगुवाई की थी और इस तरह 2009 में लिट्टे का तीस साल लंबा खूनी अलगाववाद अभियान खत्म हो गया था।
उनपर 2006 में लिट्टे के आत्मघाती हमलावर ने हमला किया था लेकिन वह बच गए थे। राजपक्षे ने मई 2020 में कहा था कि अगर कोई अंतरराष्ट्रीय संस्था या संगठन आधारहीन आरोपों का इस्तेमाल करके लगातार श्रीलंकाई सरकार के सैनिकों को निशाना बनाता है, तो “मैं श्रीलंका को ऐसी संस्थाओं या संगठनों से अलग करने में संकोच नहीं करूंगा।”
मार्च में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) ने श्रीलंका के मानवाधिकारों के रिकॉर्ड के खिलाफ एक प्रस्ताव अपनाया था, जिससे संयुक्त राष्ट्र की संस्था को लिट्टे के खिलाफ देश के तीन दशक लंबे गृहयुद्ध के दौरान किए गए अपराधों के सबूत एकत्र करने का अधिकार मिला गया था।
तमिलों ने आरोप लगाया कि 2009 में समाप्त हुए युद्ध के अंतिम चरण के दौरान हजारों लोगों की हत्या कर दी गई जब सरकारी बलों ने लिट्टे प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरन को मार डाला था।
श्रीलंकाई सेना ने आरोप का खंडन किया और दावा किया कि यह तमिलों को लिट्टे के नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए एक मानवीय अभियान था।
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