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विकसित देशों को 2030 तक शून्य उत्सर्जन लक्ष्य के लिए कानून बनाना चाहिए: भारत


शुक्र, 15 अक्टूबर 2021   |   2 मिनट में पढ़ें

वाशिंगटन, 15 अक्टूबर (भाषा) : भारत ने शुक्रवार को मांग की कि विकसित देशों को मौजूदा दशक तक ही शून्य उत्सर्जन के उपाय करने चाहिए और इसके लिए कानून बनाना चाहिए।

ऐतिहासिक पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी के तहत देशों ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ इस वैश्विक लड़ाई में कटौती के अपने लक्ष्य निर्धारित किए हैं।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विश्व बैंक की विकास समिति में अपने संबोधन में कहा कि सतत विकास के संदर्भ में भारत की विकासात्मक अनिवार्यता गरीबी उन्मूलन, सभी नागरिकों के लिए बुनियादी जरूरतों का प्रावधान और सभी के लिए ऊर्जा तक पहुंच है।

सीतारमण ने कहा, ‘‘यह सबसे महत्वपूर्ण है कि विश्व बैंक इनके लिए अपना समर्थन बनाए रखे और उसे बढ़ाए। हम व्यापक रूप से पर्यावरण के अनुकूल उपायों और समावेशी विकास (जीआरआईडी) रणनीति का समर्थन करते हैं, लेकिन हम सावधान करना चाहेंगे कि यह रणनीति ग्राहक देशों के एनडीसी के अनुरूप होनी चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘डब्ल्यूबीजी को ऐसे हस्तक्षेपों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, जो उक्त एनडीसी के दायरे से बाहर हैं और साथ ही अपने दोहरे लक्ष्यों से ध्यान भटकने नहीं देना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि बहुपक्षीय जलवायु परिवर्तन व्यवस्था राष्ट्रीय परिस्थितियों के संदर्भ में समानता और साथ ही अलग-अलग जिम्मेदारी और क्षमताओं के सिद्धांतों पर आधारित है।

वित्त मंत्री ने कहा विकसित और विकासशील देशों के बीच तुलना विकास के स्तर और पिछले उत्सर्जन के कारण उनकी जिम्मेदारी के संदर्भ में उचित नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक संचयी उत्सर्जन (1850-2018) में भारत का हिस्सा केवल 4.37 प्रतिशत है और इस समय इसका प्रति व्यक्ति कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन 1.96 टन है। यह आंकड़ा क्रमश: यूरोप के लिए 33 प्रतिशत और 7.9 टन है तथा अमेरिका के लिए 25 प्रतिशत और 17.6 टन है।’’

सीतारमण ने कहा, ‘‘विकसित देशों द्वारा उत्सर्जन के कारण वातावरण में कार्बन का एक बड़ा भंडार जमा हो गया है, जिससे विकासशील देशों को बढ़ने के लिए जरूरी कार्बन स्थान खत्म हो गया है।’’

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कहा, ‘‘कुछ विकसित देश 1979 में चरम पर थे, लेकिन अभी भी 2050 तक नेट-जीरो तक पहुंचने का लक्ष्य है, जबकि वे उम्मीद करते हैं कि विकासशील देशों ऐसा ही बदलाव अधिक तेजी से करें, जिनमें से कई अभी तक अपने चरम पर नहीं पहुंचे हैं।’’

वित्त मंत्री ने कहा कि इस बदलाव की उम्मीद स्पष्ट और पर्याप्त वित्तीय सहायता या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बिना की जा रही है।

उन्होंने कहा कि इसलिए ऐतिहासिक जिम्मेदारी की मांग है कि विकसित देशों को आगे बढ़कर शून्य उत्सर्जन के उपाए करने चाहिए और वर्तमान दशक तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लिए कानून बनाना चाहिए।

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