बीजिंग, 17 नवंबर (भाषा) : चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने एक दुर्लभ स्वीकारोक्ति की है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) पर उसका नियंत्रण कुछ समय के लिए कमजोर पड़ा था और यदि ऐसे हालात बने रहते तो इससे न केवल सेना की युद्ध क्षमता कम होती बल्कि सेना पर पार्टी के नियंत्रण का एक अहम राजनीतिक सिद्धांत भी कमजोर पड़ जाता।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के पिछले हफ्ते हुए पूर्ण अधिवेशन में 68 वर्षीय राष्ट्रपति शी चिनफिंग को अगले वर्ष तीसरा कार्यकाल देने की मंजूरी समेत बीते 100 वर्षों में प्रमुख उपलब्धियों के लिए ‘‘ऐतिहासिक प्रस्ताव’’ को अपनाया गया।
इस प्रस्ताव में, सीमा की रक्षा की खातिर ‘बड़े अभियान’ चलाने के लिए देश की सेना की भी सराहना की गई। मंगलवार रात को सीपीसी द्वारा जारी प्रस्ताव के पूरे पाठ में 20 लाख अधिकारियों और जवानों वाली पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में क्रांतिकारी बदलाव लाने में शी के योगदान को रेखांकित किया गया है।
शी के सत्ता पर आसीन होने के बाद चीन का रक्षा बजट धीरे-धीरे बढ़कर इस साल 200 अरब डॉलर से अधिक हो गया। 2012 में सत्ता में आने के बाद शी ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि सेना को पार्टी नेतृत्व के तहत काम करना चाहिए, ना कि सरकार के अलग निकाय के तौर पर।
प्रस्ताव में शी के विचार को रेखांकित करते हुए कहा गया है, ‘‘मजबूत सशस्त्र बल बनाने के लिए सेना पर पूरी तरह पार्टी का नेतृत्व होने के बुनियादी सिद्धांत और व्यवस्था को बरकरार रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि सर्वोच्च नेतृत्व और अधिकार पार्टी के पास रहें।’’
अन्य देशों में जहां सेनाएं सरकार के अधीन काम करती हैं, वहीं इसके विपरीत चीन की व्यवस्था में सेना से सीपीसी नेतृत्व के निर्देशों के तहत काम करने की अपेक्षा की जाती है। शी सीपीसी के महासचिव हैं और केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के अध्यक्ष हैं जो चीनी सेना की सर्वोच्च कमान है।
सेना के कई शीर्ष जनरलों को भ्रष्टाचार के लिए बर्खास्त करने के अलावा शी ने एक तरह से जन अभियान चलाया है कि सेना को पार्टी नेतृत्व के तहत काम करना चाहिए।
भारत के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पिछले साल पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना के आक्रामक रुख का सीधे उल्लेख किये बिना प्रस्ताव में कहा गया कि पीएलए के सैनिकों ने ‘सीमा की रक्षा से संबंधित बड़े अभियान चलाए हैं’।
पैंगोंग झील इलाके में हिंसक संघर्ष के बाद पिछले साल पांच मई को भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमावर्ती इलाके में गतिरोध की स्थिति पैदा हो गयी थी।
सीपीसी के प्रस्ताव में कहा गया कि चीनी सेना ने राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास के हितों की रक्षा के लिहाज से ठोस कदम उठाये हैं।
इसमें कहा गया है, ‘‘सशस्त्र बलों ने नयी लड़ाकू क्षमताओं के साथ अपने रणनीतिक बलों और नये क्षेत्र में बलों को मजबूत किया है और संयुक्त अभियानों की क्षमता बढ़ाई है।’’
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