बीजिंग, 25 नवंबर (भाषा) :चीन ने प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत की चीन को ‘‘सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा’’ बताने वाली कथित टिप्पणी पर भारत के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई है। चीन के रक्षा मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल वू कियान ने यहां ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘ भारतीय अधिकारी बिना किसी कारण के तथाकथित ‘चीनी सैन्य खतरे’ पर अटकलें लगाते हैं, जो दोनों देशों के नेताओं के रणनीतिक मार्गदर्शन का गंभीर उल्लंघन है कि चीन और भारत ‘एक दूसरे के लिए खतरा नहीं हैं’, और भू-राजनीतिक टकराव को भड़काना गैर जिम्मेदाराना तथा खतरनाक है।’’
रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर पोस्ट किए गए विवरण के अनुसार कर्नल वू हाल में जनरल रावत की कथित टिप्पणियों पर एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें कहा गया था कि ‘‘भारत के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा चीन है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने में ‘भरोसे’ की कमी है और ‘संदेह’ बढ़ता जा रहा है। इस पर चीन की क्या टिप्पणी है?’’
कर्नल वू ने कहा, ‘‘हम इस टिप्पणी का कड़ा विरोध करते हैं। हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं और भारतीय पक्ष के सामने कड़ा एतराज जताया है।’’ हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि विरोध कब दर्ज कराया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत-चीन सीमा मुद्दे पर चीन का रुख स्पष्ट और जाहिर है। चीनी सीमा रक्षक बल राष्ट्रीय संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित हैं तथा सीमा क्षेत्र में अमन-चैन बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तनाव घटाने के लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं।’’
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक पुराने चीनी कहावत को भी उद्धृत किया, ‘‘यदि आप तांबे का उपयोग दर्पण के रूप में करते हैं तो आप तैयार हो सकते हैं, यदि आप इतिहास का दर्पण के रूप में उपयोग करते हैं तो आप उत्थान और पतन को जान सकते हैं, यदि आप लोगों को दर्पण के रूप में इस्तेमाल करते हैं तो आप लाभ और हानि को समझ सकते हैं।’’
लद्दाख में पिछले साल मई में गतिरोध तब शुरू हुआ जब चीन ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास पैंगोंग झील और अन्य क्षेत्रों में अपने सैनिकों को गोलबंद किया। पिछले साल 15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक टकराव के बाद तनाव काफी बढ़ गया। तब से तनाव घटाने और विवादित क्षेत्रों से सैनिकों को पीछे हटाने को लेकर दोनों देशों के बीच सैन्य और राजनयिक स्तर की कई वार्ता हो चुकी है।
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