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ब्रिक्स सम्मेलन में अफगान संकट पर चर्चा की संभावना, चीन ने दिया संकेत


शनि, 04 सितम्बर 2021   |   2 मिनट में पढ़ें

बीजिंग, तीन सितंबर (भाषा) चीन ने शुक्रवार को संकेत दिया कि इस माह होने जा रहे ब्रिक्स सम्मेलन में काबुल में अमेरिका समर्थित सरकार को तालिबान द्वारा सत्ता से हटाने के बाद अफगानिस्तान में उत्पन्न संकट पर चर्चा होने की संभावना है। तेरहवां ब्रिक्स सम्मेलन भारत की अध्यक्षता में डिजिटल तरीके से होगा।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वीनबिन ने यहां प्रेस वार्ता के दौरान कहा, ‘‘ ब्रिक्स उभरते बाजार एवं विकासशील देशों के बीच सहयोग का अहम मंच है। यह अंतरराष्ट्रीय विषयों में सकारात्मक स्थायित्वकारी रचनात्मक ताकत है।’’ प्रवक्ता से सवाल पूछा गया था कि क्या आगामी ब्रिक्स सम्मेलन में अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा होगी। वांग ने कहा कि ब्रिक्स देशों की संवाद एवं समन्वय कायम रखने तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों एवं और साझा हितों के क्षेत्रीय मुद्दों पर बयान देने की अच्छी परंपरा रही है । उन्होंने कहा कि ब्रिक्स देशों के बीच पहले से ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकारों की बैठक के जरिए अफगान मुद्दे पर ‘ संवाद एवं समन्वय’ है।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में 24 अगस्त को हुई बैठक में ब्रिक्स देशों के शीर्ष अधिकारियों ने तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान से कई आतंकवादी संगठनों द्वारा अपनी गतिविधियां तेज करने की संभावना को लेकर बढ़ रही चिंता की पृष्ठभूमि में आतंकवाद एवं आतंक के वित्त पोषण का मुकाबला करने के लिए व्यावहारिक सहयोग को बढ़ाने के लिए एक कार्ययोजना पारित की थी।

भारत की मेजबानी में डिजिटल तरीके से यह बैठक हुई जिसमें भारत ने सीमापार आतंकवाद तथा लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों की गतिविधियों का मुद्दा भी उठाया जिन्हें ‘राजकीय समर्थन’ प्राप्त है एवं जो शांति एवं सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं।

ब्रिक्स (ब्राजील-रूस-भारत-चीन और दक्षिण अफ्रीका) दुनिया के सबस अधिक उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक दूसरे के समीप लाता है और यह 41 फीसद वैश्विक जनसंख्या, 24 प्रतिशत वैश्विक जीडीपी एवं 16 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है।

चीन और रूस ने अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज हुए तालिबान से संपर्क स्थापित किया और काबुल में पाकिस्तान के साथ अपने दूतावासों को खुला रखा जबकि भारत, अमेरिका एवं कई पश्चिमी देशों ने राजनयिक मिशनों को बंद कर दिया है एवं इस युद्ध प्रभावित देश से अपने कर्मियों को निकाल लिया है।




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