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काबुल में सत्ता परिवर्तन न तो बातचीत से हुआ, न ही समावेशी है : भारत


बुध, 13 अक्टूबर 2021   |   3 मिनट में पढ़ें

संयुक्त राष्ट्र, 12 अक्टूबर (भाषा) : भारत ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा कि काबुल में सत्ता में बदलाव न तो बातचीत के जरिए हुआ और न ही समावेशी है। भारत ने यह भी रेखांकित किया कि उसने लगातार व्यापक आधार वाली, समावेशी प्रक्रिया का आह्वान किया है, जिसमें अफगानिस्तान के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। भारत ने अफ्रीका में आतंकवाद के बढ़ते प्रसार पर भी गहन चिंता जाहिर की।

अमेरिका द्वारा 11 सितंबर के हमलों के बाद सत्ता से बेदखल किए गए तालिबान ने अगस्त के मध्य में पूर्व में निर्वाचित पश्चिम के समर्थन वाली सरकार को हटाकर अफगानिस्तान पर फिर से नियंत्रण कर लिया था।

तालिबान ने अफगानिस्तान के जटिल जातीय विन्यास का प्रतिनिधित्व करते हुए एक समावेशी सरकार का वादा किया था। हालांकि, पिछले महीने विद्रोही समूह द्वारा घोषित अंतरिम मंत्रिमंडल में स्थापित तालिबान नेताओं का वर्चस्व था, जिन्होंने 2001 से अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। अंतरिम मंत्रिमंडल में किसी महिला को नहीं लिया गया है।

विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा, “काबुल में सत्ता में बदलाव, न तो बातचीत के जरिए हुआ और न ही समावेशी है। हमने लगातार व्यापक आधार वाली, समावेशी प्रक्रिया का आह्वान किया है, जिसमें अफगानों के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व शामिल हो।”

अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की वापसी के अंतिम चरण के दौरान तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल पर नियंत्रण कर लिया था।

‘शांति निर्माण और शांति कायम रखने: विविधता, राज्य निर्माण और शांति की तलाश’ पर यूएनएससी की उच्चस्तरीय खुली बहस को संबोधित करते हुए मुरलीधरन ने कहा कि आतंकवाद का मुकाबला करने सहित अफगानिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उम्मीदें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प 2593 में स्पष्ट रूप से निर्धारित हैं, जिसे अगस्त में 15-राष्ट्रों वाली परिषद में भारत की अध्यक्षता के दौरान अपनाया गया था।

उन्होंने कहा, “यह महत्वपूर्ण है कि इस संदर्भ में व्यक्त की गई प्रतिबद्धताओं का सम्मान व पालन किया जाए।”

सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 2593 स्पष्ट रूप से कहता है कि अफगान क्षेत्र का उपयोग आतंकवादियों को आश्रय देने, प्रशिक्षण देने, योजना बनाने या आतंकी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए नहीं किया जाना चाहिए। विशेष रूप से यह प्रस्ताव, लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद सहित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और व्यक्तियों को संदर्भित करता है।

मुरलीधरन ने कहा कि जो देश संघर्ष का सामना कर रहे हैं या उनसे उभर रहे हैं, उन्हें शांति निर्माण और शांति बनाए रखने के रास्ते में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये संघर्ष के कारकों से संबंधित हैं, और मुख्य रूप से जातीयता, जाति और धर्म से जुड़े हैं जो प्रभावी रूप से सामाज में पहचान को चिन्हित करते हैं।

उन्होंने कहा, “इसके अलावा, समाज राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों का भी सामना करते हैं, जो एक निर्णायक भूमिका निभाते हैं कि कैसे देश सफलतापूर्वक उभरे और राष्ट्र निर्माण की इन मूलभूत चुनौतियों का समाधान करने में आगे बढ़े।” उन्होंने कहा कि इतिहास दिखाता है कि यह चुनौतियां सिर्फ अफ्रीका या विकासशील दुनिया तक सीमित नहीं हैं।

वहीं, भारत ने अफ्रीका में आतंकवाद के बढ़ते प्रसार पर भी गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इन आतंकवादी ताकतों और समूहों को सदस्य देशों से प्रोत्साहन मिल रहा है, जो आतंकवादी गतिविधियों को वैध बनाकर समुदायों को विभाजित करना चाहते हैं।

मुरलीधरन ने कहा, “आतंकवाद इस बात की स्पष्ट अभिव्यक्ति है कि कैसे एकता और विविधता की विरोधी ताकतें देशों के सामाजिक सामंजस्य और लोकतांत्रिक ताने-बाने को नष्ट करने की कोशिश कर सकती हैं।”

मुरलीधरन ने कहा कि अफ्रीका में आतंकवाद का बढ़ता प्रसार गहन चिंता का विषय है।

उन्होंने केन्या की अध्यक्षता में आयोजित खुली बहस में कहा, “ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इन आतंकवादी ताकतों और समूहों को सदस्य देशों से प्रोत्साहन मिल रहा है, जो आतंकवादी गतिविधियों को वैध बनाकर समुदायों को विभाजित करना चाहते हैं।”

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