वाशिंगटन, 24 सितंबर (एपी) : राष्ट्रपति जो बाइडन ‘क्वाड’ के तौर पर प्रसिद्ध हिंद-प्रशांत गठबंधन के नेताओं के साथ शुक्रवार को पहली आमने-सामने की बैठक की मेजबानी के लिए पूरी तरह तैयार हैं। इसी के साथ उनके लिए कूटनीति के एक कठिन सप्ताह का समापन भी हो जाएगा जिसमें उन्हें सहयोगियों और विरोधियों दोनों की आलोचनाओं को झेलना पड़ा है।
व्हाइट हाउस में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं के साथ बाइडन की मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति को उनकी विदेश नीति के सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य यानी प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान खींचने का मौका देगी जो अमेरिका की नजरों में चीन की प्रतिरोधी आर्थिक कार्यप्रणाली और क्षेत्र में अस्थिरता लाने वाले सैन्य युद्धाभ्यासों से मिल रही चुनौती का सामना कर रहा है। चारों नेताओं की वार्ता जलवायु, कोविड-19 पर प्रतिक्रिया और साइबर सुरक्षा पर केंद्रित रहेगी।
शिखर सम्मेलन से पहले, जापान और भारत की सरकारों ने हाल में हुई घोषणा का स्वागत किया कि अमेरिका ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक अलग नये गठबंधन के हिस्से के तौर पर ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा संचालित पनडुब्बियां उपलब्ध कराएगा।
बाइडन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच तनाव कम हुआ है जब दोनों नेताओं ने बुधवार को फोन पर बात कर हिंद-प्रशांत में और ज्यादा करीब से समन्वय करने पर सहमति जताई।
जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में एशिया के वरिष्ठ निदेशक के रूप में कार्य करने वाले माइकल ग्रीन ने कहा कि जापान और भारत अमेरिकी-ब्रिटेन-ऑस्ट्रेलियाई गठबंधन का स्वागत करते हैं क्योंकि यह वास्तव में अगले 50 वर्षों के लिए नौसैन्य शक्ति में विकास पथ को प्रशस्त करेगा और चीजों को स्थिर करने वाले इन देशों के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि चीन बड़े पैमाने पर अपनी नौसैनिक ताकतों को बढ़ा रहा है।
चीन ने इस गठबंधन का खुलकर विरोध किया है जहां चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने इसे “पुरानी शीत युद्ध वाली शून्य-संचय मानसिकता और संकीर्ण सोच वाली भू-राजनीतिक धारणा’ करार दिया है जो क्षेत्रीय हथियारों की दौड़ को तेज करेगा। अर्थशास्त्र में शून्य-संचय ऐसा व्यावहारिक सिद्धांत है जिसमें किसी एक पक्ष को जितना फायदा होता है, उतना ही दूसरे पक्ष को नुकसान होता है।
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