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संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में एक समझौते पर बनी सहमति, कोयले पर भारत का अलग रुख


रवि, 14 नवम्बर 2021   |   3 मिनट में पढ़ें

ग्लासगो, 14 नवंबर (एपी) : ग्लासगो में जलवायु पर चर्चा के लिए एकत्रित हुए करीब 200 देशों ने ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्य को हासिल करने के इरादे से शनिवार को एक समझौते पर सहमति जताई। हालांकि, कुछ देशों का मानना है कि आखिरी समय में समझौते की भाषा में कुछ बदलावों से कोयले को लेकर प्रतिबद्धता पर पानी फिर गया।

छोटे द्वीपीय देशों समेत कई देशों ने कहा है कि वे कोयले के इस्तेमाल को ‘‘चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय इसे चरणबद्ध तरीके से कम करने’’ के भारत के सुझाव से बेहद निराश हैं क्योंकि कोयला आधारित संयंत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत हैं।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने एक बयान में कहा, ‘‘पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील धरती के लिए कदम उठाना बेहद जरूरी है। हम जलवायु आपदा के कगार पर खड़े हैं।’’ ग्लासगो में दो सप्ताह तक संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में कई देशों ने एक-एक कर अपनी आपत्ति जताई कि कैसे यह समझौता जलवायु संकट से निपटने में पर्याप्त नहीं है। लेकिन, कई देशों ने कहा कि कुछ नहीं करने से बेहतर है कि कुछ किया जाए और इस दिशा में आगे बढ़ते रहना बेहतर होगा।

गुतारेस ने कहा, ‘‘हमने इस सम्मेलन में लक्ष्यों को हासिल नहीं किया, क्योंकि प्रगति के मार्ग में कुछ बाधाएं हैं।’’ स्विट्जरलैंड की पर्यावरण मंत्री सिमोनेटा सोमारुगा ने कहा कि समझौते की भाषा में बदलाव से वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक सीमित करना कठिन होगा।

जलवायु मामलों पर अमेरिका के दूत जॉन केरी ने कहा कि सरकारों के पास कोयला के संबंध में भारत के बयान को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर हमने ऐसा नहीं किया होता तो हमारे बीच कोई समझौता नहीं होता।’’

केरी ने बाद में संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हम वास्तव में जलवायु अराजकता से बचने और स्वच्छ हवा, सुरक्षित पानी और स्वस्थ ग्रह हासिल करने की दिशा में पहले से कहीं ज्यादा करीब हैं।’’

कई अन्य देशों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अंतिम समझौते को कमजोर करने वाली मांगों को लेकर भारत की आलोचना की। ऑस्ट्रेलिया के जलवायु वैज्ञानिक बिल हरे ने कहा, ‘‘भारत का अंतिम समय में समझौते की भाषा को बदलने का सुझाव काफी चौंकाने वाला है। भारत लंबे समय से जलवायु कार्रवाई पर अवरोधक रहा है, लेकिन मैंने इसे सार्वजनिक रूप से कभी नहीं देखा।’’

बहरहाल, सीओपी26 के अध्यक्ष और ब्रिटेन के कैबिनेट मंत्री आलोक शर्मा ने समझौते की घोषणा करते हुए कहा, ‘‘अब हम इस धरती और इसके वासियों के लिए एक उपलब्धि के साथ इस सम्मेलन से विदा ले सकते हैं।’’

वहीं, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन में पूछा कि कोई विकासशील देशों से कोयले और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को ‘‘चरणबद्ध तरीके से बंद करने’’ के वादे की उम्मीद कैसे कर सकता है, जबकि उन्हें अब भी उनके विकास एजेंडा और गरीबी उन्मूलन से निपटना है।

पर्यावरण मंत्री यादव ने कहा, ‘‘अध्यक्ष महोदय (शर्मा) सर्वसम्मति बनाने के आपके निरंतर प्रयासों के लिए धन्यवाद। हालांकि, सर्वसम्मति बन नहीं पायी। भारत इस मंच पर रचनात्मक बहस और न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाधान के लिए हमेशा तैयार है।’’ मंत्री ने कहा कि जीवाश्म ईंधन और उनके उपयोग ने दुनिया के कुछ हिस्सों को सम्पन्नता और बेहतरी प्राप्त करने में सक्षम बनाया है और किसी विशेष क्षेत्र को लक्षित करना ठीक नहीं है। यादव ने जोर देकर कहा कि हर देश अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों, ताकत और कमजोरियों के अनुसार ‘नेट-जीरो’ के लक्ष्य पर पहुंचेगा।

यादव ने कहा, ‘‘विकासशील देशों को वैश्विक कार्बन बजट में अपने उचित हिस्से का अधिकार है और वे इस दायरे में जीवाश्म ईंधन के जिम्मेदार उपयोग के हकदार हैं। ऐसी स्थिति में, कोई कैसे उम्मीद कर सकता है कि विकासशील देश कोयला और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी ​​को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के बारे में वादा कर सकते हैं, जबकि ​​विकासशील देशों को अब भी अपने विकास एजेंडा और गरीबी उन्मूलन से निपटना है।’’

यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में शनिवार का समझौता ‘‘हमें विश्वास दिलाता है कि हम इस धरती पर मानवता के लिए एक सुरक्षित और समृद्ध स्थान प्रदान कर सकते हैं, लेकिन आगे अभी भी कड़ी मेहनत करने की जरूरत है।’’ यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष लेयेन ने कहा, ‘‘आगे आराम करने का समय नहीं होगा।’’

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