इस्तांबुल, 15 अगस्त (एपी) काबुल की दहलीज पर खड़े तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में शांति के नए युग का वादा किए जाने के बावजूद आम अफगानों के दिलों में क्रूर शासन की वापसी का डर घर करने लगा है।
तमाम लोगों को डर है कि तालिबान उन सभी अधिकारों को समाप्त कर देगा जो पिछले करीब दो दशक में कड़ी मशक्कत से महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय ने हासिल किए थे। साथ ही पत्रकारों और गैर-सरकारी संगठनों के काम करने की आजादी पर भी पाबंदी लगायी जा सकती है।
तालिबान के रविवार तड़के काबुल पहुंचने के बीच सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई जिसमें एक ब्यूटी पार्लर का मालिक महिलाओं की तस्वीर वाले पोस्टरों को पेंट कर रहा है। वहीं, युवा जींस और टी-शर्ट बदलकर पारंपरिक सलवार-कमीज पहनने के लिए अपने घरों को भागते दिख रहे हैं।
हेरात शहर के एक एनजीओ के साथ काम करने वाली 25 वर्षीय युवती ने कहा कि लड़ाई के चलते वह कई सप्ताह तक घर से नहीं निकली। इस शहर पर पिछले सप्ताह तालिबान ने कब्जा जमा लिया था।
हेरात से फोन पर बातचीत में युवती ने कहा, ” मैं तालिबानी लड़ाकों का सामना नहीं करना चाहती। उनके बारे में मेरे मन में अच्छा अहसास नहीं है। कोई भी महिलाओं और लड़कियों के बारे में तालिबान के नजरिए को नहीं बदल सकता, वे अब भी चाहते हैं कि महिलाएं घर में ही रहें। मुझे नहीं लगता की मैं बुर्का पहनने के लिए तैयार हूं।”
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि तालिबान लगातार पत्रकारों को धमकी देने और बंधक बनाने का काम करता है, खासकर ऐसी महिलाओं और पत्रकारों को जो तालिबान की गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं।
एपी शफीक अर्पणा
अर्पणा
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