वाशिंगटन, 25 सितंबर (एपी) : अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे ने अमेरिका और पाकिस्तान के बीच परस्पर अविश्वास को और गहरा कर दिया है। दोनों तथाकथित सहयोगी देश अफगानिस्तान के मुद्दे पर उलझन की स्थिति में हैं, लेकिन दोनों पक्षों को एक-दूसरे की जरूरत है।
अफगानिस्तान में आतंकवादी खतरों को रोकने के लिए नए तरीकों की तलाश में बाइडन प्रशासन संभवतः फिर से पाकिस्तान की ओर देखेगा, जो अफगानिस्तान से निकटता और तालिबान नेताओं के साथ संबंध होने के कारण अमेरिकी खुफिया और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है।
दो दशकों से अधिक समय तक चले युद्ध में, अमेरिकी अधिकारियों ने पाकिस्तान पर दोहरा खेल खेलने का आरोप लगाया है। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक एक ओर जहां पाकिस्तान ने आतंकवाद से लड़ने और अमेरिका से सहयोग करने का वादा किया, वहीं दूसरी ओर उसने तालिबान और अन्य चरमपंथी समूहों को पनपने में मदद की, जिन्होंने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों पर हमले किये।
वहीं, इस्लामाबाद ने 11 सितंबर, 2001 के हमलों के बाद तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से हटाने के बाद काबुल में एक सहायक सरकार बनाने के असफल वादों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चरमपंथी समूहों ने पूर्वी अफगानिस्तान में शरण ली और पूरे पाकिस्तान में घातक हमले शुरू कर दिए।
लेकिन अमेरिका आतंकवाद विरोधी प्रयासों में पाकिस्तानी सहयोग चाहता है और अफगानिस्तान या अन्य खुफिया सहयोग में निगरानी विमानों की उड़ान के लिए अनुमति मांग सकता है। वहीं, पाकिस्तान अमेरिकी सैन्य सहायता और वाशिंगटन के साथ अच्छे संबंध चाहता है, जबकि उसके नेता तालिबान के सत्ता में आने का जश्न मना रहे हैं।
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