(माणिक गुप्ता)
नयी दिल्ली, 31 अगस्त (भाषा) इतिहासकार व लेखक विलियम डेलरिम्पल ने चेताया है कि तालिबान को कम नहीं आंकना चाहिए और इस बात में कोई शक नहीं है कि तालिबान को पाकिस्तान ने प्रशिक्षित किया तथा उसकी आर्थिक मदद की है लेकिन अब यह संभावना भी है कि वे अपने ‘आका’ (पेमास्टर्स) से ही आजादी का ऐलान कर सकते हैं।
डेलरिम्पल ने कहा है कि अमेरिका का अफगानिस्तान से सैनिकों को वापस बुलाने का निर्णय ‘रणनीतिक रूप से गलत’ और ‘भावनात्मक रूप से सुविचारित नहीं है।’ वह 2012 में आई ‘रिटर्न ऑफ ए किंग: द बेटल फॉर अफगानिस्तान’ नाम की किताब के लेखक हैं। उन्होंने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब मंगलवार को काबुल से अमेरिका के शेष सैनिक एक विमान से मुल्क से रवाना हो गए हैं और जंग में तबाह देश को तालिबान के हाथों में छोड़ गए हैं।
डेलरिम्पल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को फोन पर दिए साक्षात्कार में कहा, “ अगर कुछ भारतीय रणनीतिकार या लेखक तालिबान को पूरी तरह से पाकिस्तानी आंदोलन बताते हैं तो यह गलत है। यह एक अफगान आंदोलन है जो एक अत्यंत कट्टर अति-धर्मनिष्ठ ग्रामीण अफगान आंदोलन को दर्शाता है। मगर इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान ने उन्हें वित्तपोषित किया, प्रशिक्षित किया, मैदान में उतारा और उन्हें पनाह दी और यह 20 साल तक हुआ।”
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि कुछ भारतीय दक्षिणपंथी टिप्पणीकार तालिबान की स्वायत्तता को कम आंकते हैं और अब संभावना है – हालांकि ऐसा हो नहीं सका है – कि तालिबान अपने पाकिस्तानी आकाओं से अपनी स्वतंत्रता घोषित कर सकता है क्योंकि अब वे सत्ता में हैं … इसलिए मैं यह नहीं समझता हूं कि वह पूरी तरह से पाकिस्तानी कठपुतली बने रहेंगे।”
गौरतलब है कि तालिबान ने अफगानिस्तान के कई प्रमुख शहरों पर कब्जा करने के बाद 15 अगस्त को काबुल पर भी कब्जा कर लिया था और इस तरह से अफगानिस्तान में अमेरिका की 20 साल की जंग खत्म हो गई।
डेलरिम्पल ने तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों को समझाते हुए कहा, “जब आप किसी के घर में मेहमान होते हैं तो आपके लिए अपनी मर्जी का करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि आपको अपने मेजबान की चिंता करनी पड़ती है। लेकिन अब तालिबान काबुल में सत्ता में वापस आ गया है, उनमें कम से कम अपने हितों का पालन करने की क्षमता है।”
स्कॉटलैंड के लेखक ने कहा कि जहां समान हित होंगे वहां पाकिस्तान का प्रभाव फिर भी चलेगा लेकिन तालिबान उन मुद्दों पर ‘स्वतंत्र रुख’ अपना सकता है जहां दोनों के हित अलग होंगे।
उन्होंने कहा कि जो कुछ हुआ है उससे पाकिस्तान ‘निश्चित रूप से खुश’ है लेकिन ‘भारत, अमेरिका और ब्रिटेन का प्रभाव और शक्ति कम हुई है।’
लेखक ने अफगानिस्तान के अध्याय को अमेरिका की पिछले 100 साल की विदेश की सबसे बड़ी रणनीतिक गलतियों में से एक बताया है जिससे देश की प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुंचा है।
उन्होंने कहा, “ इसने अमेरिका के दुश्मनों के हाथ में बड़ी जीत दे दी है और अमेरिका के सभी सहयोगी, चाहे वह भारत या ब्रिटेन हों या दुनिया का कोई और सहयोगी हो, उनके महत्व को कम किया है। सिर्फ पाकिस्तान की सरकार इसका स्वागत करती दिखती है। खासतौर पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां जिन्होंने इन सालों में तालिबान को पनाह दी और वित्तपोषित किया।”
उन्होंने अफगानिस्तान की स्थिति को ‘वैश्विक त्रासदी’ बताते हुए कहा कि देश से बुरी खबर के सिवाए किसी और चीज़ की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
डेलरिम्पल ने कहा कि उन्होंने 2010,2011, और 2013 में साक्षात्कारों में कहा था कि अफगानिस्तान की सरकार नहीं चलेगी लेकिन यह इतनी जल्दी गिर जाएगी, उन्हें इसकी उम्मीद नहीं थी।
वह अपनी किताब लिखने के दौरान कई बार अफगानिस्तान गए थे। उन्होंने कहा कि उनके दोस्त बेघर हो गए हैं। लेखक के मुताबिक, उनके दोस्त और बाद में अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति बने अमरूल्लाह सालेह पंजशीर घाटी में लड़ रहे हैं। यही एक प्रांत है जिसपर तालिबान का कब्जा नहीं है।
भाषा
नोमान नरेश
नरेश
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