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ऑस्ट्रेलिया-फ्रांस के बीच पनडुब्बी सौदा रद्द होने की बात पूर्वानुमान लगाए जाने योग्य क्यों थी?


रवि, 26 सितम्बर 2021   |   2 मिनट में पढ़ें

(रोमेन फाठी, वरिष्ठ लेक्चरर, इतिहास, फ्लाइंडर्स यूनिवर्सिटी)

एडीलेड, 25 सितंबर (द कन्वरसेशन) : फ्रांसीसी पनडुब्बियां खरीदने का सौदा एकतरफा ढंग से रद्द किए जाने और ‘ऑकस सुरक्षा समझौते’ पर हस्ताक्षर किए जाने के ऑस्ट्रेलिया के निर्णय को फ्रांस की कूटनीति के चेहरे पर एक तमाचे के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, फ्रांसीसी राजनयिक इसे ‘‘पीठ में छुरा घोंपने वाला’’ निर्णय और ‘‘धोखेबाजी’’ करार दे रहे हैं।

अचानक हुए संबंधित घटनाक्रम से पेरिस यद्यपि हतप्रभ हो सकता है, लेकिन कुछ हद तक चीजें विभिन्न ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनयिक कारणों से पूर्वानुमान लगाए जाने योग्य थीं।

इस ‘‘सदी के सौदे’’ के तहत पेरिस और कैनबरा 2016 में इस बात पर सहमत हुए थे कि ऑस्ट्रेलिया को फ्रांस 25 साल की अवधि में 34 अरब यूरो (55 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर) में डीजल-विद्युत चालित बर्राकुडा पनडुब्बियां उपलब्ध कराएगा।

फ्रांस के लिए यह दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के सबसे बड़े देश के साथ भागीदारी विकसित करने का मौका था, जो आधी सदी के लिए एक करीबी और स्थायी समझौता होता और इस तरह बड़े रणनीतिक महत्व के क्षेत्र में इसका कूटनीतिक और सैन्य नेटवर्क मजबूत होता।

हालांकि, यह योजना विवेकसम्मत (क्योंकि इसने चीन-अमेरिका के प्रभाव से मुक्त क्षेत्र के लिए तीसरा कूटनीतिक मार्ग प्रस्तावित किया) और महत्वाकांक्षी (क्योंकि इसने फ्रांस और यूरोप को हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में एक नई उपस्थिति प्रदान की) दोनों हो सकता था, लेकिन फिर भी फ्रांस की स्थिति में लगभग अत्यधिक कमजोरी दिखी, जिसकी वजह से यह सौदा रद्द हो गया।

यह स्पष्ट करते हैं: फ्रांस द्वारा प्रस्तावित गठबंधन प्रशंसनीय था, लेकिन फिर भी असामान्य था। पिछले तीन साल से चीन के साथ बढ़ते तनाव ने स्थायी रूप से ऑस्ट्रेलिया को वापस अमेरिका के खेमे में खड़ा कर दिया।

यह याद रखा जाना चाहिए कि अमेरिका ने 1945 से ओशनिया क्षेत्र पर नियंत्रण और निगरानी रखी है। इसमें समूचे क्षेत्र में सैन्य अड्डों का नेटवर्क, इसके खुद के क्षेत्र, दीर्घकालिक राजनीतिक गठबंधन और यहां तक कि इसका खुद का हवाई राज्य शामिल है।

ओबामा प्रशासन (जब जो. बाइडन उपराष्ट्रपति थे) के दौरान प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की अपेक्षाकृत कम मौजूदगी का लाभ उठाते हुए चीन ने क्षेत्र में अपनी विस्तारवादी नीति को काफी कठोर कर दिया है, जिसके चलते अमेरिका को पिछले तीन साल में जवाबी कदम उठाने पड़े हैं।

अब मामला यह है कि इसमें ऑस्ट्रेलिया कहां है। अमेरिका का हित इसमें था कि कैनबरा फ्रांस के साथ अपना सौदा रद्द कर दे और वाशिंगटन के साथ सौदा करे-इस तरह संभवत: उनके द्वारा खुद बनाई जाने वाली पनडुब्बियों के बेड़े पर अमेरिकी नियंत्रण सुनिश्चित होता है, चाहे प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन जो कहें।

अमेरिका इस तरह 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश द्वारा शुरू की गई ‘‘हमारे साथ या हमारे खिलाफ’’ की नीति पर लौट रहा है। असल में, यह प्रशांत क्षेत्र में किसी तीसरे तरीके को सहन नहीं कर सकता। यह रुख बीजिंग और वाशिंगटन के बीच केवल तनाव बढ़ाने का काम करेगा और ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के खेमे जाकर तनाव को और बढ़ा रहा है।

अमेरिका के साथ ऑस्ट्रेलिया के ऐतिहासिक संबंध के चलते नेवल ग्रुप के साथ ऑस्ट्रेलिया का सौदा रद्द करने का फैसला इस तरह पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था, खासकर तब जब कैनबरा ने पेरिस के साथ विभिन्न मुद्दों पर असहमति जताई।

यह इतिहास ही बताएगा कि ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ सौदा रद्द कर और ‘ऑकस’ से जुड़कर सही फैसला किया या नहीं।

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