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]]>अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर रूस रवाना होने से पहले लिज ने कहा, ”रूस के पास यहां एक विकल्प है। हम उन्हें सैनिकों की संख्या कम करने और कूटनीति का रास्ता अपनाने को प्रोत्साहित करते हैं।”
उन्होंने कहा, ”रूस को हमारी मजबूत जवाबी कार्रवाई को लेकर किसी तरह के संदेह में नहीं रहना चाहिए।”
रूस ने यूक्रेन की सीमा के पास 1,00,000 से अधिक सैनिकों की तैनाती के साथ ही इस क्षेत्र में सैन्य युद्धाभ्यास शुरू किया है। हालांकि, रूस का कहना है कि उसकी अपने पड़ोसी पर हमले की कोई योजना नहीं है।
लिज अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात करेंगी।
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]]>The post उत्तर प्रदेश-नेपाल सीमा की संवेदनशीलता appeared first on Chanakya Forum.
]]>विगत में यह तथ्य भी प्रकाश में आए थे कि माओवादी, जो नेपाल में क्रियाशील थे, वह जब घायल हो जाते थे तो लखनऊ के प्रमुख चिकित्सालय में चिकित्सा हेतु और शल्य चिकित्सा हेतु आते थे। यह संतोष का विषय है कि उत्तर प्रदेश पुलिस और एसटीएफ ने इनके और चिकित्सकों के गठजोड़ का अनावरण किया, प्रभावी कार्यवाही की और विगत कई वर्षों से माओवादियों का नेपाल से भारत में चिकित्सा हेतु आवागमन पूरी तरह से नियंत्रण में है। उल्लेखनीय है कि इस पूरे सीमा क्षेत्र में बड़ी संख्या में अवांछित व बिना अनुमति के मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हुआ है, जो कि अस्वाभाविक इसलिए है क्योंकि जो जनसंख्या इस क्षेत्र में है उसके अनुपात में कदाचित मदरसों और मस्जिदों की संख्या अत्यधिक ज्यादा है। यदि अभिसूचना तंत्र की बात माने तो इसके पीछे विदेशी निहित स्वार्थों और शक्तियों का हाथ है, जिसमें प्रमुख आईएसआई है। यदि हम आईएसआई की चर्चा करते हैं तो इसमें चीन की मिलीभगत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। आईएसआई इस क्षेत्र को इस तरीके से नियंत्रित करना चाहती है, जिससे अवैधानिक रूप से प्रवेश किए हुए बांग्लादेशी नागरिक एवं रोहिंग्या यहां पर लाकर बसाएं जा सकें। संगठित गिरोहों द्वारा उनको भारतीय नागरिकता के अभिलेख उपलब्ध कराए जाएं। जैसे आधार कार्ड, निर्वाचन प्रमाणपत्र आदि। उनके रहने, बोलचाल, भारतीयता के बारे में उनका प्रशिक्षण भी दिया जाए। यह पूरी प्रक्रिया बस यूं ही नहीं कराई जाती है। इसके पीछे दूरगामी लाभ देखे जाते हैं। यह सर्वविदित है कि गोरखपुर के रहने वाले मिर्जा दिलशाद बेग का अपराधिक साम्राज्य नेपाल में चलता था। राजनीति में भी उतरे। कालांतर में मिर्जा दिलशाद बेग की हत्या भी हुई। यह बताया जाता है की कारों की स्मगलिंग में और भारत से नेपाल ले जाकर उनके अवैध व्यापार में इस गिरोह का सक्रिय योगदान था।
आईएसआई की जो सबसे कुटिल और गहरी नीति रही है वह जाली भारतीय मुद्रा को भारत में प्रवेश कराना है। इसके तहत एन, केन, प्रकारेण उनके द्वारा पाकिस्तान के प्रमुख बैंक, हबीब बैंक और नेपाल के प्रमुख बैंक, राष्ट्रीय बैंक, के साथ मिलकर एक नए बैंक का सृजन किया गया जिसका नाम हिमालयन बैंक है। इस हिमालयन बैंक की उत्तर प्रदेश-नेपाल सीमा पर बड़ी संख्या में शाखाओं को खोलने की व्यवस्था की गई। इसका मुख्य उद्देश्य वाणिज्य और व्यापार न होकर नकली भारतीय मुद्रा, जो बहावलपुर पाकिस्तान में छपती थी पाकिस्तान से नेपाल लाने के उपरांत, इन्हीं बैंकों के माध्यम से, अपने कैरियर के माध्यम से, एजेंट्स के माध्यम से और गिरोह के माध्यम से भारत में प्रवेश कराया जाता था। यह भी बताया जाता है कि 40 असली भारतीय रुपयों के एवज में नकली 100 रुपये में सौदा किया जाता था। अवांछित तत्वों द्वारा यह व्यापार के दृष्टिकोण से लाभ का एक अच्छा अवसर था। दुर्भाग्य से कुछ ऐसे भी भारतीय तत्व थे जिन्होंने इस में सहयोग किया, लेकिन संतोष का विषय है कि उनका अनावरण हुआ और उनके ऊपर कठोर कार्रवाई की गई। इसका प्रमुख दृष्टांत महाराजगंज स्थित स्टेट बैंक के उस अकाउंटेंट का है जिसको भगत जी के नाम से जाना जाता था। जो कि वर्षों तक स्टेट बैंक की शाखा में नियुक्त रहा और अपने कार्यकाल में उसने भी नकली भारतीय मुद्रा के आवागमन में अपना पूरा सहयोग दिया और लाभान्वित हुए। हमारी भी यह जिम्मेदारी है कि और बैंकिंग इंडस्ट्री की विशेष तौर पर कि वह देखें और अवांछित तत्वों पर निगरानी रखें और कोई अधिकारी या कर्मचारी निर्धारित अवधि जो कि 3 साल है, उससे अधिक इस संवेदनशील क्षेत्र में न रहने पाए।
दूसरा चिंता का विषय है मादक पदार्थ। यह सर्वविदित है कि विश्व का 85% अफीम अफगानिस्तान में तैयार किया जाता है और पाकिस्तान की आईएसआई के द्वारा बड़ी मात्रा में नेपाल लाकर उत्तर प्रदेश की इस लंबी और पोरस सीमा के माध्यम से भारत में प्रवेश कराया जाता है। इससे न केवल अपराधिक तत्वों और राष्ट्र विरोधी तत्वों को धन अर्जन का अवसर मिलता है बल्कि दुर्भाग्य से हमारे युवा और बड़ी जनसंख्या को नशे की लत लगाने का कुलसित प्रयास भी किया जाता है। उल्लेखनीय है कि इस दिशा में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा भी वांछित सतर्कता बरती गई है और एक साझा कार्रवाई के तहत और अभिसूचना संकलन के माध्यम से इस ओर प्रभावी नियंत्रण भी किया गया है। परंतु वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के निर्वाचन की पूर्व संध्या में अधिक सतर्कता की आवश्यकता है।
इन नए मदरसों और मस्जिदों में बड़ी संख्या में रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिक क्रियाशील बताए जाते हैं। जबकि इनका यहां आने का कोई औचित्य नहीं है। संगठित अपराधियों एवं संगठित गिरोहों द्वारा उनके यहां पर लाए जाने से और इनको यहां प्रशिक्षित कर के उत्तर प्रदेश में चिन्हित संवेदनशीलता के दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण जिले हैं, वहां भेजने का प्रयास किया जाता है। जिससे फर्जी वोटर आईडी व आधार कार्ड लेकर निर्वाचन प्रक्रिया में सम्मिलित हो सके और निर्वाचन को भी प्रभावित कर सके। यह एक भयावह स्थिति है कि यदि 18 जिले जो कि संवेदनशील बताए जाते हैं, इन अवांछनीय तत्वों के माध्यम से अगर एक एक या दो विधायक सीट इनके द्वारा कुप्रभावित की जाती है, तो एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और भयावह स्थिति होगी। क्योंकि इसके उपरांत यह एक समूह बनाकर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित होंगे और सांप्रदायिक स्थिति को बिगाड़ने का भी पूरा प्रयास करेंगे। अतः इस दृष्टिकोण से वर्तमान निर्वाचन में ऐसे व्यक्ति जो सामान्यतः उत्तर प्रदेश के नागरिक प्रतीत नहीं होते हैं, यदि उनके पास वोटर आईडी और आधार कार्ड हैं तो भी निर्वाचन के पहले सुरक्षा एजेंसियों को भली-भांति संतुष्ट हो लेना होगा कि वह भारतीय नागरिक हैं और मताधिकार प्रयोग करने के अधिकारी हैं। अन्यथा उनके विरुद्ध प्रभावी वैधानिक कार्रवाई होनी चाहिए।
इसके पहले भी ऐसे दृष्टांत आए हैं। विशेषकर जनपद मेरठ का उदाहरण देना चाहूंगा जहां पर एक कारखाने में विस्फोट में 30 के करीब बांग्लादेशी नागरिक मारे गए थे। पुलिस विवेचना में यह पता लगा कि इनको दैनिक वेतन भोगी के रूप में लेबर के रूप में लाया गया था। परंतु उनके पास सभी पहचान पत्र उपलब्ध थे और छोटे-छोटे कमरों में 3-3 तल्ले की पटरी लगाकर 8-8 घंटे की शिफ्ट में उनको रखा जाता था। यदि इस संगठित तरीके से अवांछनीय व्यक्तियों को सुविधा उपलब्ध करा कर हमारी निर्वाचन व्यवस्था को प्रभावित किया जाएगा तो इसके भयावह दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। अतः समस्त पुलिस बलों को विशेषकर अभिसूचना इकाइयों को इस ओर विशेष रूप से सतर्क रहना होगा और कोऑर्डिनेटेड तरीके से सूचना का आदान प्रदान हो और इन अवांछनीय गतिविधियों और संगठित आपराधिक गिरोह के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई होनी चाहिए। मैं यह भी परामर्श देना चाहूंगा कि अब तकनीकी ऐसी आ गई है कि जिसके माध्यम से इस दिशा में बहुत प्रभावी कार्यवाही संभव है। जैसे बिग डाटा एनालिटिक्स, फैसियल रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर, ड्रोन टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि। एसएसबी, उत्तर प्रदेश पुलिस, अभिसूचना इकाई, उत्तर प्रदेश अभिसूचना संगठन के समन्वय के साथ यदि भावी गस्त और निगरानी की जाए तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि इनके मंसूबे कभी सफल नहीं हो सकते हैं।
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]]>The post बीएसएफ ने लोगों को पाक सीमा से ड्रोन घुसपैठ पर नजर रखने का प्रशिक्षण दिया appeared first on Chanakya Forum.
]]>सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने 140 से अधिक ड्रोन जागरुकता कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को भारत-पाक सीमा पर ड्रोन गतिविधियों से जुड़े विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया है।
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित आरएस पुरा, अखनूर और अरनिया सेक्टर में सीमावर्ती बस्तियों में ड्रोन गतिविधियों को लेकर जागरुकता फैलाने वाले कई फ्लेक्स बोर्ड भी लगाए गए हैं।
सुचेतगढ़ निवासी दयान सिंह कहते हैं, ‘हम सीमा पर ड्रोन गतिविधियों पर नजर रखते हैं। हमें बताया गया है कि आतंकवादियों के इस्तेमाल के लिए हथियार, गोला-बारूद और नशीले पदार्थ गिराने की खातिर कैसे सीमापार से ड्रोन का संचालन किया जाता है।’
एक अन्य ग्रामीण एवं पूर्व सैनिक सुरम चंद ने कहा कि बीएसएफ के गश्त अभियान और तकनीकी निगरानी के अलावा अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वाले लोग ड्रोन गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सीमा पर तीसरी आंख बन गए हैं।
बीएसएफ के डीआईजी एसपीएस संधू ने बताया कि बीएसएफ ने अतीत में जम्मू, सांबा और कठुआ जिले के सीमावर्ती इलाकों में 170 से अधिक बस्तियों व स्कूलों में 144 ड्रोन जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं।
संधू के मुताबिक, बीएसएफ ने सीमा पार से ड्रोन गतिविधियों में इजाफे के बाद अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित गांवों में पिछले साल ड्रोन जागरुकता कार्यक्रम शुरू किए थे।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से संचालित ड्रोन गतिविधियां सीमावर्ती इलाकों में गंभीर चिंता का सबब बन गई हैं, क्योंकि ड्रोन के जरिये आतंकियों के लिए मदद सामग्री गिराए जाने की कई घटनाएं दर्ज की गई हैं।
डीआईजी बीएसएफ ने कहा, सीमावर्ती इलाकों में रह रह लोगों को ड्रोन के जरिये खेप गिराए जाने का लाइव दृश्य दिखाया गया।
बीएसएफ अधिकारियों के अनुसार, गांवों और स्कूलों में विभिन्न फ्लेक्स बोर्ड भी प्रदर्शित किए गए, ताकि सीमावर्ती इलाकों में किसी भी संदिग्ध ड्रोन गतिविधि की जानकारी देने और उसे नाकाम करने के लिए आबादी के बीच समझ व समन्वय को बढ़ाया जा सके।
बीते साल जीपीएस से लैस और दस किलो वजन ढोने में सक्षम कई ड्रोन ने पाकिस्तान से दर्जनों बार हथियार, गोला-बारूद और नशीले पदार्थों के जखीरे गिराए थे, जिन्हें जम्मू सीमा पर बीएसएफ और पुलिस ने जब्त किया था।
अधिकारियों ने बताया कि सीमावर्ती आबादी की समस्याओं के समाधान और उनसे बेहतर समन्वय स्थापित करने के मकसद से बीएसएफ के जवान भी सीमावर्ती गांवों में पहुंचे और 86 ग्राम समन्वय बैठकें (वीसीएम) आयोजित कीं।
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]]>The post सीमा पर बाड़ लगाने का काम समाप्ति की ओर, मेघालय के गांव के अलग-थलग पडने का खतरा appeared first on Chanakya Forum.
]]>पूर्वी खासी पर्वतीय जिले में लेंगखोंग गांव के पास, एकल पंक्ति की बाड़ की नींव रख दी गई है लेकिन निवासियों के विरोध के चलते इस कार्य को रोक दिया गया है। हालांकि, अधिकारी अब तक इस बात पर सहमत नहीं हुए हैं कि बाड़ नहीं लगाई जाएगी या इसे जीरो लाइन पर ही लगाया जाएगा।
लेंगखोंग की एक बुजुर्ग महिला और यहां के भू स्वामियों में से एक बार्निंग खोंग्सडीर ने पीटीआई-भाषा से कहा, “यह ठीक नहीं है कि बाड़ लगने के बाद हमारा गांव भारत के क्षेत्र से बाहर हो जाएगा। हम सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। हम यहां जमाने से रह रहे हैं…सरकार को हमारी सुरक्षा और कुशलता के लिए कुछ करना चाहिए।’’
असुरक्षित महसूस करने के बार्निंग के पास कारण हैं। उनका घर जीरो लाइन और उन्हें और बांग्लादेश में रहने वालों को अलग करने वाले सीमा स्तंभ से बमुश्किल कुछ फुट की दूरी पर है। हालांकि, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का एक शिविर लेंगखोंग में स्थित है। बार्निंग ने कहा कि ‘राष्ट्र विरोधी तत्व’ आवागमन के लिए आसान सी इस सीमा का फायदा उठाते हैं । उन्होंने कहा कि सुरक्षा की दृष्टि से सभी चाहते हैं कि बाड़ जल्द से जल्द लग जाए, लेकिन जीरो-लाइन पर लगे।
उन्होंने कहा कि अस्थायी रूप से, गांव ने महामारी के मद्देनजर पिछले साल से खुद को बांग्लादेश से अलग करने के लिए बांस और छोटी टहनियों से बनी बाड़ लगाई है।
गौरतलब है कि मेघालय में भारत-बांग्लादेश सीमा पर करीब 80 फीसदी हिस्से में बाड़ लगाई जा चुकी है। कुछ हिस्सा बाकी है जहां पर या तो निवासियों के विरोध के कारण या बांग्लादेश के बॉर्डर गॉर्ड्स के विरोध के कारण या फिर भौगोलिक स्थिति की वजह से बाड़ नहीं लगाई जा सकी है।
बीएसएफ मेघालय फ्रंटियर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया ‘‘समझौते के अनुसार, जीरो लाइन से कम से कम 150 गज की दूरी पर बाड़ लगाई जाती है लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता। बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड कुछ मामलों में जीरो लाइन के पास ही बाड़ लगाने के लिए सहमत हो जाते हैं। यह उस इलाके की आबादी पर निर्भर करता है जैसे कि लेंगखोंग है।’’
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]]>The post चीन ने सीमा पर मौजूदा स्थिति को ‘स्थिर’ बताया,कमांडर स्तरीय वार्ता 12 जनवरी को होने की पुष्टि की appeared first on Chanakya Forum.
]]>चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन का उक्त बयान नयी दिल्ली में सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों द्वारा यह कहे जाने के एक दिन बाद आया है कि भारत 20 महीने से चले आ रहे विवाद पर दोनों पक्षों के बीच 14वें दौर की सैन्य वार्ता से पहले, पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले शेष स्थानों में मुद्दे के समाधान के लिए चीन के साथ सार्थक वार्ता को लेकर आशान्वित है।
यह पूछे जाने पर कि क्या चीन बैठक और इससे जुड़ी उम्मीदों की पुष्टि कर सकता है, वांग ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘जैसा कि दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी है, चीन और भारत 12 जनवरी को चीन की ओर माल्दो बैठक स्थल पर 14वें दौर की कमांडर स्तरीय वार्ता करेंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान में, सीमावर्ती इलाकों में स्थिति कुल मिलाकर स्थिर है और दोनों पक्ष राजनयिक एवं सैन्य माध्यमों से संवाद कर रहे हैं।’’
वांग ने कहा कि चीन को उम्मीद है कि भारत स्थिति को आपात स्थिति से एक नियमित प्रतिदिन आधारित प्रबंधन चरण की ओर ले जाने में मदद करेगा। नयी दिल्ली स्थित सूत्रों के मुताबिक, भारत और चीन के बीच ‘वरिष्ठ उच्चतम सैन्य कमांडर स्तरीय’ वार्ता वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के चीन की ओर चुशुल-मोल्दो में 12 जनवरी को होगी।
उन्होंने बताया कि वार्ता का मुख्य केंद्र बिंदु हॉट स्प्रिंग इलाके में सैनिकों को पीछे हटाना होगा। यह उम्मीद की जा रही है कि भारत देपसांग बल्ग और डेमचोक में मुद्दों के समाधान सहित टकराव वाले सभी शेष स्थानों पर यथाशीघ्र सैनिकों को पीछे हटाने के लिए जोर देगा।
उल्लेखनीय है कि 13वें दौर की सैन्य वार्ता 10 अक्टूबर 2021 को हुई थी और गतिरोध दूर नहीं कर पाई थी। पैंगोंग झील इलाके में पांच मई 2020 को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प होने के बाद पूर्वी लद्दाख सीमा गतिरोध पैदा हुआ था। सिलसिलेवार सैन्य एवं राजनयिक वार्ता के परिणामस्वरूप पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी तटों तथा गोगरा इलाके में सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया दोनों पक्षों ने पिछले साल पूरी की थी। वास्तविक नियंत्रण रेखा के संवेदनशील क्षेत्रों में वर्तमान में दोनों में से प्रत्येक देश के करीब 50,000 से 60,000 सैनिक हैं।
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