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9/11 की वर्षगांठ पर मार्मिकता बढ़ाती काबुल घटना

टीपी श्रीनिवासन
शनि, 11 सितम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

“महानगर पर आकाश से दो स्टील के पक्षी गिरेंगे/आकाश पैंतालीस डिग्री अक्षांश पर जलेगा/आग  नए  महान शहर के पास पहुंचती है/तुरंत एक विशाल, बिखरी हुई लौ उछलती है/महीनों तक, नदियाँ खून से  बहेंगी।” १६वीं शताब्दी के फ्रांसीसी लेखक नास्त्रेदमस ने 11 सितंबर, 2001 को सुबह 08:45 बजे न्यूयॉर्क में हुई घटना की भविष्यवाणी इस प्रकार की थी। इस सटीक भविष्यवाणी ने दुनिया को स्तब्ध कर दिया। भले ही इस भविष्यवाणी में प्रयोग की गयी भाषा की व्याख्याएँ भिन्न हो सकती हैं ।

11 सितंबर, 2001 के बीस वर्ष पश्चात् जीवित  प्रत्येक व्यक्ति को याद होगा कि इस असाधारण घटना के समय वह कहाँ था, जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। उस दिन इस्लामिक चरमपंथी समूह अल कायदा से जुड़े 19 आतंकवादियों ने बॉक्स कटर, चाकू और कांटे से लैस होकर चार हवाई जहाजों का अपहरण कर लिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में आत्मघाती हमले किए। दो विमानों को न्यूयॉर्क शहर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर से टकराया गया,  तीसरा विमान वाशिंगटन डीसी के बाहर पेंटागन से टकराया और चौथा विमान पेन्सिलवेनिया के शैंक्सविले में अपहरणकर्ता और कुछ यात्रियों के बीच हुए झगड़े के कारण एक खेत में  दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विडंबना यह है कि यात्रियों ने उसी कैपिटल हिल को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी, जहां इसी वर्ष विद्रोह हुआ। 9/11 के आतंकवादी हमले में लगभग 3,000 लोग मारे गए थे, जिसके पश्चात  अमेरिका द्वारा आतंकवाद से निपटने के लिए पहल  की गयी और यह पहल जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रम्प और जो बिडेन की अध्यक्षता को परिभाषित करती है।

मैं वियना में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक में  शामिल था। जब खबर आई कि कैसे न्यूयॉर्क शहर के आकाश में चार यात्री विमानों को पूरे ईंधन के साथ घातक मिसाइलों में बदल दिया गया है। जब सभापति ने बैठक को तत्काल स्थगित करने की घोषणा की तो अमेरिकी राजदूत ने, “जैसे कि कुछ हुआ ही न हो “, इस आत्म विश्वास के साथ कहा कि बैठक को जारी रखना चाहिए,  परंतु हॉल खाली हो गया था।  जब उस सुबह की खेल, बदलने वाली घटनाएँ सामने आईं  तो दुनिया बदल चुकी थी।

9/11 की बीसवीं वर्षगांठ की विडंबना यह है कि यह अफगानिस्तान में आतंकवादियों के विरुद्ध अमेरिकी सेना की जीत का जश्न मनाने का अवसर बनने के स्थान पर अफगान सेना द्वारा अमेरिकी सेना की अपमानजनक निकासी को दर्शाता है।  उम्मीद थी कि  अफगानी सेना तालिबान के अधिग्रहण का विरोध करेगी,  परंतु उन्होंने आत्मसमर्पण किया और राष्ट्रपति गनी ने देश छोड़ दिया। सेना की वापसी के परिणामों के संबंध में अमेरिका के गलत अनुमान ने 9/11 की मार्मिक स्मृति को इससे जोड़ दिया है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों की विफलता, देश भर में महामारी और कई प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि से स्थिति जटिल हो गई  है। अमेरिका और बाइडेन प्रशासन ने 9/11 की पीड़ा को फिर से ताजा  कर दिया है।

अमेरिका के लिए संतोष की बात यह रही कि पिछले बीस वर्षों के दौरान अमेरिकी क्षेत्र में कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ। 9/11 के बाद से जिहादी विदेशी हमले का केवल एक मामला सामने आया, जिसमें 107 लोग मारे गए, जबकि संयुक्त राष्ट्र की सेना अफगान धरती पर आतंकवादियों के विरुद्ध भीषण युद्ध में लगी हुई थी। यह उपलब्धि मातृभूमि सुरक्षा तंत्र और हवाई अड्डों पर व्यापक सुरक्षा प्रणाली के गठन तथा अधिकारियों को प्रारंभिक चेतावनी देकर उन्हें समर्थन प्रदान करने में जनता की मजबूत भागीदारी के कारण हासिल हुई। पिछले बीस वर्षों की मुख्य विरासत  संभवत यह है कि आतंकवादी हमलों के विरुद्ध राष्ट्र की सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया। अमेरिका और अन्य देश सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करने में सफल रहे, जिससे विश्व में आतंकवादी हमलों में कमी आयी, भले ही आतंकवादी संगठनों का पूरी तरह सफाया नहीं किया जा सका।

बीस वर्ष पहले यह भविष्यवाणी की गई थी कि 9/11 दुनिया को पूरी तरह से बदल देगा और प्रतिरोध के सिद्धांतों, परमाणु हथियारों के प्रभाव और भू-राजनीति भी परिवर्तित हो जायेगी। यह भविष्यवाणी भी की गई  कि आतंकवाद के मूल कारणों में से एक फिलिस्तीन का प्रश्न हल हो जाएगा। लेकिन मानवता एक जिद्दी प्रजाति निकली, जिसने अपने तौर-तरीकों में अधिक बदलाव नहीं किया। अच्छे और बुरे आतंकवादियों की पुरानी धारणाओं के कारण आतंकवाद के विरुद्ध एक व्यापक सम्मेलन को भी स्वीकृति नहीं दी जा सकी। विश्व के परमाणु शस्त्रागार में कटौती नहीं हुई, भले ही 9/11 ने मानव सोच और आतंक के विरुद्ध परमाणु निरर्थकता को प्रदर्शित किया हो। राष्ट्रपति ओबामा द्वारा प्रारंभ किए गए परमाणु निरस्त्रीकरण और वैश्विक शून्य की ओर उठाये गये कदम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यरुशलम और अन्य संबंधित मुद्दों पर कठोर अमेरिकी नीति के कारण अरब-इजरायल संघर्ष में कमी नहीं आयी। प्रमुख अरब देशों के साथ इजरायल के संबंधों में बड़े बदलाव हुए, परंतु गाजा की स्थिति  बार-बार उग्र होने से पता चलता है कि कोई मौलिक परिवर्तन नहीं हुआ, जैसा  9/11 के तुरंत बाद परिकल्पित  था।

अमेरिकी राज्य की खतरे के प्रति जागरूकता 9/11 का मुख्य परिणाम रही। इससे पूर्व, अमेरिकियों को अल कायदा, ओसामा बिन लादेन अथवा आईएसआईएस के संबंध में  कुछ भी जानकारी नहीं थी। इस  जागरूकता के परिणामस्वरूप  अमेरिका को अपने स्रोतों पर खतरों से निपटने के लिए विदेशों में युद्ध करने की आवश्यकता पड़ी। तालिबान सरकार के अपदस्थ होने, ओसामा बिन लादेन का पता लगाने और उसका सफाया करने के पश्चात भी अफगानिस्तान में आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध समाप्त नहीं हुआ। इराक पर आक्रमण और सद्दाम हुसैन की हत्या भी अमेरिका की भेद भाव की नई भावना के कारण थी। अपनी आर्थिक  स्थिति और सैन्य शक्ति के कारण अमेरिका की सुरक्षा को 9/11 के बाद के बीस वर्षों में एक झटका लगा।

ट्रम्प प्रशासन के दौरान विकसित आव्रजन और निर्वासन नीतियां, जिसमें मैक्सिकन सीमा पर दीवार बनाने का विचार अमेरिका के एक नए  मनोविकारी भय का परिणाम था। कुछ इस्लामिक राज्यों के  नागरिकों पर यात्रा प्रतिबंध और एच-1 वीजा तथा अन्य प्रतिबंध उनकी नई मानसिकता की अभिव्यक्ति थे। इसने विश्व के गरीब और विस्थापित लोगों को संकेत दिया कि अमेरिका अब स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के प्रतीक के रूप में एक मित्रवत प्रवासी देश नहीं है। प्रवासन के मुद्दों ने यूरोप में अमेरिकी गठबंधनों में दरार पैदा कर दी और ब्रेक्सिट को अमेरिकी समर्थन भी नई घटना से असंबंधित नहीं था। हवाई यात्रा सुरक्षित हो गई थी परंतु  कठोर निगरानी ने संयुक्त राज्य की यात्रा को और अधिक खतरनाक और अप्रिय बना दिया।

पिछले बीस वर्षों में अमेरिकी व्यक्तित्व और मित्रता को फिर से परिभाषित किया गया। अपनी मातृभूमि  की सुरक्षा में व्यस्तता के कारण उन्होंने अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों अर्थात जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य मुद्दों और प्रणालीगत नस्लवाद पर अधिक ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण अमेरिकी समाज  प्रभावित  हुआ। महामारी से निपटने के संबंध में समाज के भीतर गहरे मतभेद सामने आए और देश में तबाही मच गई।

अमेरिकी विदेश नीति पर 9/11 के प्रभाव ने बहुपक्षवाद, वैश्वीकरण और सहयोगियों के साथ संबंधों में एक अविश्वास पैदा किया। राष्ट्रपति ट्रम्प की अमेरिका की पूर्व नीति और दुनिया के साथ उनके जुड़ाव में क्रमिक कमी ने यह धारणा पैदा की कि इसकी कमजोरियां वैश्विक नेतृत्व में एक शून्य पैदा कर देंगी, जिसे चीन ने भरने का प्रयास किया। राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा किए गए सुधारात्मक उपाय अभी प्रभावित नही कर पाये हैं। अफ़ग़ानिस्तान से व्यवस्थित परिवर्तन सुनिश्चित किए बिना वापसी का उनका निर्णय, जिसके कारण तालिबान की वापसी 2001 में मिले  समर्थन  से अधिक के साथ हुई,  इसने 9/11 की बीसवीं वर्षगांठ के साथ एक विशेष मार्मिकता को जोड़ दिया है। अफगानिस्तान में अमेरिका की उपस्थिति से देश में अपेक्षाकृत शांति  बनी  रही थी और शेष विश्व में आतंकवादी खतरे में भी कमी आयी थी। लेकिन  यदि अमेरिका ने काबुल में एक समावेशी सरकार पर जोर दिया होता और तालिबान को हवाई अड्डा सौंपने  से पूर्व पिछले बीस वर्षों से वहाँ रहने वाले अमेरिकी नागरिकों और अन्य लोगों को  वहाँ से निकाल लिया होता, तो अमेरिका 9/11 की बरसी के  इस अवसर  का जश्न मनाने की स्थिति में  हो सकता था। लेकिन दुखद है कि बमबारी का कड़वा अनुभव हुआ और एकमात्र सुपर पावर की कमजोरियां सामने आई और साथ ही कठिन चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है।

रोजर एंजेल ने “न्यू यार्कर में लिखा कि “ट्विन टावर्स पर हमले के बीस वर्ष पश्चात, – हमारी सैन्य प्रतिक्रिया, घरेलू प्रतिक्रिया, उत्तरदाताओं के प्रति हमारा अपर्याप्त समर्थन, एवं अन्य विषयों पर प्रश्न उठाना उचित है।  तथापि एक बात स्पष्ट है, कि अब हम युवा नहीं हैं और हमें अपने खोए व्यक्तियों का शोक मनाते हुए, उसे सहन करने और उस स्थिति को पार करने के बेहतर मार्ग की खोज करनी होगी, जो अभी अस्पष्ट है “।

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लेखक
टीपी श्रीनिवासन भारत के पूर्व राजदूत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं। वह वर्तमान में केरल अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के महानिदेशक हैं। उन्हें बहुपक्षीय कूटनीति में लगभग 20 वर्षों का अनुभव है और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रमंडल और एनएएम की ओर से आयोजित कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने कई संयुक्त राष्ट्र समितियों और सम्मेलनों की अध्यक्षता की है।

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