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Geopolitics & National Security
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भारतीय सैन्य प्रशिक्षण में अर्थशास्त्र और भगवदगीता को शामिल करना : भारत की सामरिक जड़ों में इसका महत्व

डॉ कजरी कमल
मंगल, 28 सितम्बर 2021   |   4 मिनट में पढ़ें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस वर्ष मार्च में राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली के स्वदेशीकरण को बढ़ाने के लिए किया गया आह्वान, केवल यंत्रों एवं हथियारों की खोज तक ही सीमित  नहीं था अपितु राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के निर्धारण के लिए सेना बलों में प्रचलित सिद्धांतों, प्रक्रियाओं और प्रथाओं  में देशज स्रोतों को शामिल करने के सरकारी प्रयासों की दोबारा पुष्टि भी थी। भारत के सैन्य प्रशिक्षण में कौटिल्य अर्थशास्त्र और भगवद्गीता को शामिल किये जाने का वर्तमान विचार प्राचीन भारतीय ग्रंथो के स्थायी विवेक को  एकत्रित और विकसित करना है। कुछ प्रमुख सुरक्षा संस्थान इस कार्य को पहले से ही कर रहे हैं।

यह विशेष रूप से खुशी की बात है कि समकालीन समय में इसके महत्व को स्थापित करने के लिए छुट पुट व्या्ख्यानों पर ही ध्यान दिया जाता था परंतु अब अर्थशास्त्र के नियमित प्रशिक्षण पर विचार किया जा रहा है। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ये ग्रंथ अन्य ग्रंथो की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण क्यों हैं? भारत के लिए अपनी सामरिक जड़ों से जुड़ना क्यों महत्वपूर्ण है, और अब ही क्यों? यह समाजीकरण सशस्त्र बलों तक ही सीमित क्यों हो? क्या इसका अर्थ यह है कि सैन्य बल अब तक सांस्कृतिक सदाचारों से  दूर थे और क्या यह सांस्कृतिक रूप से जुड़ने का उत्तम मार्ग है, जो संभवत भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों के सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण के लिए महत्वपूर्ण भी है।

 पुरातन की पवित्रता

एक राष्ट्र की संस्कृति का सार निश्चित रूप से उसके ‘मूल’ में  होता है- जो देश के मूल निवासियों के साथ महत्वपूर्ण रूप से जुड़ा हुआ है। अतः,  भारत की प्राचीन और शास्त्रीय  ग्रंथ परंपरा भारतीय ‘शुद्धता” की खोज की कुंजी है। सामरिक सांस्कृतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि किसी राष्ट्र की सामरिक संस्कृति का ‘विश्लेषण” अनिवार्य रूप से    उसके रणनीतिक ग्रंथों से ही होता है, जो रणनीतिक विचारों और प्रथाओं के विकास में एक आधारभूत अवधि का प्रतिनिधित्व करते हैं। बाहरी सुरक्षा वातावरण (युद्ध की भूमिका, विरोधी की प्रकृति और बल उपयोग की उपयोगिता के संदर्भ में) की रचनात्मक अवधारणा के साथ-साथ इससे निपटने में रणनीतिक प्राथमिकताओं के लिए एक  विशेष क्षमता की आवश्यकता होती है, खासकर तब जब निर्णय करने वालों के सामने इन अनुमानों और वरीयताओं को पर्याप्त रूप से एकत्रित और प्रदर्शित किया जाता है।

कौटिल्य का अर्थशास्त्र 2300 वर्ष पूर्व का चित्रण है। जब पहली बार एक  संयुक्त भारतीय भू-सांस्कृतिक स्थान और अखिल भारतीय राज्य/साम्राज्य स्थापित करने का अभियान अस्तित्व में आया। चूंकि यह ग्रंथ पिछली अर्थ परंपरा के निर्देशों और सिद्धांतों का संकलन है और भारत की बड़ी रणनीतिक और दार्शनिक परंपरा के महत्वपूर्ण ग्रंथों की विचार-शैली को प्रदर्शित करता है, यह शासन कला की प्राचीन परंपरा का प्रमुख  प्रतिनिधि है। साथ ही, संभवत यह भारत का प्रमुख ऐतिहासिक सैन्य ग्रंथ भी है, जो सेना की भूमिका और राज्य सुरक्षा के अन्य आयामों के साथ इसकी पूरकता को दर्शाता है, जिससे यह अन्य भौगोलिक क्षेत्रों के सैन्य ग्रंथो से अलग हो जाता है।

भविष्य अतीत में निहित है

प्रश्न यह है कि भारत अपने अतीत का अवलोकन क्यों करे और अपनी सामरिक परंपरागत राज्य शिल्प के लिए  सबक क्यों ले? जैसे-जैसे विश्व में भारत का प्रभाव बढ़ रहा है, उसे अपने उन मूल्यों के संबंध में आत्म-जागरूकता की आवश्यकता अधिक अनुभव की होगी जिसका वह प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रीय सुरक्षा मूल्यों की रक्षा करनी है। अलग-अलग लोगों के लिए इसका अर्थ भिन्न हो सकता है। जिसमें मूल्यों का सटीक सेट, उन्हें सुरक्षित रखने के साधन, लागत जो वहन की जा सके और सुरक्षा की विशिष्ट मात्रा जिसे राज्य हासिल करना चाहता है जो प्रत्येक राज्य में अलग-अलग है, इसकी रणनीतिक संस्कृति, कार्यो के व्यापक उपाय आदि शामिल हैं। सामरिक सोच का सार्वभौमिक-सांस्कृतिक से इतर पक्ष, युद्ध के निर्णय के निर्धारित सिद्धांतों पर पहुंचने के लिए स्थानीय सांस्कृतिक मानदंडों को एकीकृत करता है तथा भू-सांस्कृतिक स्थानों को विशिष्टता प्रदान करता है।

कोई भी देश समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रीय दृष्टिकोण से ही अपने सांस्कृतिक संदर्भ निर्मित करता है। अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए अन्य देशों के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश को समझना भी महत्वपूर्ण है। अतः थ्यूसीडाइड्स, क्लॉजविट्ज़ और सन त्ज़ु का अध्ययन आवश्यक है। परंतु यह भी महत्वपूर्ण है कि हमें हमारी अपनी सामरिक परंपराओं और युद्ध के विशिष्ट भारतीय तरीके का ज्ञान हो, आंशिक रूप से यह  जानकारी भी हो कि भारत को उसके सहयोगियों और विरोधियों द्वारा कैसा माना जाता है।

कौटिल्य और सशस्त्र बल

सैन्य बलों को राष्ट्रीय सुरक्षा संरचना के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में सामाजिक बनाये जाने की आवश्यकता है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्य क्या हैं और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए किन उपायों को प्रमुखता दी जाए, इसके स्पष्ट वर्णन करने की आवश्यकता है। परंतु यदि  संस्कृतियां स्थायी रूप से अचेतन, अव्यक्त प्रभावों वाली हैं, तो किसी भी देश की सेना उन्हें उस समाज के सांस्कृतिक और राजनीतिक मानदंडों से अलग नहीं कर सकती, जिसके प्रति उन्होंने अपने लोगों को आकर्षित किया है। उन्हें संरचित तथा उनका समाजीकरण किये बिना भी मूल प्रवृत्तियों और झुकावों का प्रतिनिधित्व  किया जा सकता है।

आइए  हम भारतीय सेना के ‘भूमि युद्ध सिद्धांत’, 2018 को देखें। दस्तावेज़  कौटिल्य के सिद्धांतों का प्रत्यक्ष रूप से व्यापक संकेत देते हैं। विडंबना यह है कि चाणक्य उद्धरण के जागरूकता समावेशन में कौटिल्यन विचार न्यूनतम हैं। विवादों को ‘सौहार्दपूर्ण तरीके’ से हल करने के लिए प्राथमिक उपाय, ‘राजनीतिक-राजनयिक पहल’ की संयुक्त  तैयारियां, क्षमताओं के आधार पर विचार विमर्श के विकल्प, हाइब्रिड युद्ध, बाहरी आक्रमण के साथ आंतरिक सुरक्षा महत्व के सिद्धांत, ‘संचालन कला और युद्धाभ्यास, सूचना एवं मनोवैज्ञानिक आधार पर युद्ध,  तथा सैन्य शस्त्रागार  तत्वों के सामान्य ज्ञान से अन्य समेकित राष्ट्रीय शक्तियों के साथ देश की व्यापक रणनीति तैयार करना आदि  कौटिल्य के जीवंत विषय हैं। इसलिए, एक चालाक राजनेता के लिए सड़क के नाम, कलम के नाम, कॉमिक्स और चाणक्य रूपक जैसे प्रतिनिधित्व वाले स्वरूपों के स्थान पर अतीत का प्राथमिक समाजीकरण अपनी जीवंत उपस्थिति के प्रतीकों द्वारा अधिक प्रभावशाली और ठोस हो सकता है।

यह इस अभ्यास की कम प्रभावशीलता पर विचार करने से नहीं रोकता । राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अधिक आत्म-जागरूक सोच रखने के लिए प्राचीन ग्रंथों के औपचारिक अध्ययन से इसमें अंतर्निहित भावार्थ को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है। शायद, इन ‘बहुमूल्य विचारों’ की आरंभिक स्तर पर की गयी प्रस्तुति इसको आत्मसात करने और संचालन के लिए बेहतर काम करेगी।

एक व्यापक दृष्टिकोण

कौटिल्य का  राज्य शिल्प का व्यापक विचार सैन्य शक्ति के  साथ-साथ उदार शासन,  उत्तम परामर्श, उत्पादक संसाधनों और आर्थिक संपदा के संबंध में भी है। इसलिए, इन प्राचीन ग्रंथों में सुरक्षा को सैन्य कर्मियों के दायरे से परे, समग्र रूप से परिभाषित किया गया है, इसमें राजनीतिक नेता राजनयिक, सिविल सेवक और सार्वजनिक नीति निर्माता सभी शामिल हैं।

संपूर्णता (राजनीतिक निकाय) इसके अंगो (सात अंग या सप्तांग) में निहित है और बाद वाला व्यक्तिगत रूप और सामूहिक रूप से कुशल राज्य शिल्प का उत्तरदायी हैं। किसी विशिष्ट के स्थान पर “भारतीयकरण” की दिशा में एक व्यापक दृष्टिकोण बनाना प्राचीन रणनीतिक विचारकों के प्रति सच्ची  श्रद्धाञ्जली होगी।

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लेखक
डॉ कजरी कमल तक्षशिला इंस्टीट्यूट बैंगलोर में एक फैकल्टी हैं। उन्होंने भारतीय संदर्भ में सामरिक संस्कृति पर 
अपना शोध किया है। उनका शोध प्रबंध भारत की विदेश नीति के संचालकों को बेहतर ढंग से समझने के लिए 
चाणक्य विचारों के महत्व पर था।

अस्वीकरण

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