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Geopolitics & National Security
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चीन का सीमा संबंधी नया कानून – किस लिए?

क्लाउड अर्पी
रवि, 07 नवम्बर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के भीतर खलबली दिखाई दे रही है। शीर्ष स्तर पर लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। खासकर भारत  की सीमा पर तैनात जनरलों को बदला जा रहा हैl यह आंशिक रूप से चीन में एक नए भूमि सीमा कानून की आवश्यकता को दर्शाता है। हम उस पर  बाद में बात करेंगे।

अभी के लिए, जनरल शू किलिंग पर बात करते हैं।  मई 2020 में, वे  लेफ्टिनेंट जनरल हे. वेइदॉन्ग के स्थान पर डब्ल्यूजीएफ कमांडर के पद पर तैनात हुए। 2016 के बाद के सुधारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि तिब्बत सैन्य जिला (टीएमडी) के साथ-साथ शिनजियांग सैन्य जिला (एक्सएमडी) आंशिक रूप से पीएलए जीएफ के नियंत्रण में आ गया था।

आश्चर्यजनक यह था कि लेफ्टिनेंट जनरल हे. वेइदॉन्ग को पूर्वी थिएटर कमांड (ईटीसी) के कमांडर के रूप में स्थानांतरित किए जाने के बाद पांच महीने से अधिक समय तक डब्ल्यूटीसी कमांडर का महत्वपूर्ण पद खाली रहा था।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भारतीय सेना में इतने महत्वपूर्ण पद कई महीनों से  खाली हैं? जू को देरी से तब नियुक्त किया गया, जब चीन लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पार आ गयाl स्पष्ट रूप से तब जनरल जू को मोर्चे के संचालन के लिए लाया गया था।

दिसंबर 2020 में, जनरल झांग ज़ुडोंग ने जनरल झाओ झोंगकी की जगह ली थी, जिन्हें डोकलाम प्रकरण शुरू करने का श्रेय दिया जाता है। चार महीने की सेवा के बाद, झांग ज़ुडोंग की जगह जू किलिंग ने ले ली। इस अफवाह में कोई दम नही है कि झांग पहाड़ों पर ऑक्सीजन की कमी से पीड़ित थे। (चेंगदू, डब्ल्यूटीसी का मुख्यालय समुद्र तल से केवल 600 मीटर ऊपर स्थित है)। आखिरकार, 1 अक्टूबर, 2021 को  झान्ग की कैंसर से मृत्यु हो गई; फिर ज़ू किलिंग भी गायब हो गये; कुछ गंभीर पर्यवेक्षकों के अनुसार उन्हें कोई   रहस्यमय बीमारी थी।

कई लोगों को आश्चर्य होगा कि अब जू किलिंग महत्वपूर्ण संयुक्त स्टाफ विभाग के चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में फिर से प्रकट हुए हैं, जिस पद पर सर्व-शक्तिशाली केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के सदस्य जनरल ली ज़ुओचेंग तैनात थे। क्या इसका मतलब यह है कि जेन जू स्वर्ग से कुछ हफ्तों की दूरी पर हैं। उन्होंने डेढ़ साल में डब्ल्यूटीसी के जीएफ कमांडर से सीएमसी के पद पर पहुँचने की बड़ी छलांग लगाई थी। यह  शी जिनपिंग के  प्रिय है और  किसी भी  अन्य ‘ शासन के कानून ‘ का पालन नहीं करता।

हालांकि इससे पता चलता है कि सशस्त्र बलों के आपसी टकराव और भारत के साथ बातचीत के दौरान लिए जाने वाले निर्णय अक्सर निजी इच्छा तथा अस्थायी रूप से लिये जाते हैं।

मैं यहां इस तथ्य का उल्लेख नहीं करना चाहता कि हाल ही में, चुशुल/मोल्दो में भारत के 14 कोर कमांडर के साथ 13वें दौर की वार्ता आधिकारिक रूप से नियुक्त किये गए चीनी समकक्ष अधिकारी के बिना की गई थी।

भूमि सीमा कानून

‘चीन जनवादी गणराज्य के भू सीमा कानून’ को चीन की पश्चिमी सीमाओं पर तेजी से बदलती हुई स्थिति और भारत के साथ अप्रत्याशित (बीजिंग के लिए) टकराव के संदर्भ में  देखा जाना चाहिएl कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ सदस्य (विशेष रूप से केंद्रीय समिति और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस या एनपीसी के) भारत के साथ टकराव के औचित्य और इससे प्राप्त होने वाले लाभ पर प्रश्न करने के लिए बाध्य हैंl इस पृष्ठभूमि के आधार पर कुछ नियम तैयार किये जाने  है।

24 अक्टूबर को, सिन्हुआ ने नए कानून का एक मसौदा प्रकाशित किया, जो 1 जनवरी, 2022 को लागू होगाl इसमें सीएमसी, पीएलए के साथ-साथ अन्य हितधारकों को भी भूमिकाएं सौंपी जानी हैं।

इस कानून में सात अध्याय और 62 लेख शामिल हैं

हालांकि कई पर्यवेक्षकों ने इस कानून की उपयोगिता (और भारत के लिए इसके ‘गंभीर’ निहितार्थ) पर सवाल खड़ा किया है l इसे चीन की अराजक स्थिति के संदर्भ में देखना होगा, जहां महत्वपूर्ण लोग प्राय स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इसमें शामिल होने वाले दलों के बीच आपसी समन्वय की कमी  है।

चीन ने हाल ही में सीमा के अपने हिस्से में बुनियादी ढांचे को सुधारा है, लेकिन सीमा प्रबंधन के  कानूनी ढांचे में सुधार की जरूरत है।

क्षेत्रीय तनावों के बीच’ चीन के कानून’ शीर्षक वाले लेख में निक्केई ने एक नए चीनी कानून का विश्लेषण किया, जिसे 23 अक्टूबर को एनपीसी की स्थायी समिति द्वारा पारित किया गया। जापानी पेपर के अनुसार: “भारत के साथ विवादित क्षेत्रों में बढ़ते हुए तनाव और अफगानिस्तान से इस्लामी चरमपंथियों की संभावित आमद पर चिंताओं के बीच देश की भूमि सीमाओं को मजबूत करने के लिए चीन के शीर्ष विधायी निकाय द्वारा एक कानून पारित किया गया।” यह शायद इस कानून का मुख्य आधार नहीं है।

ध्यान देने वाली पहली बात यह है कि इतनी जल्दी क्यों? एनपीसी की स्थायी समिति को यह कानून क्यों बनाना चाहिए? अजीब है कि यह मार्च एनपीसी की बैठक का इंतजार भी नहीं कर सका? क्या अधिनियम के कई स्पष्टीकरणों की तत्काल आवश्यकता थी? अधिनियम की कठिन कानूनी भाषा पर भी ध्यान दिये जाने की जरूरत है।

इसके अलावा, इसके पीछे एक तथ्य यह भी हो सकता है कि सब कुछ शी जिनपिंग के नियंत्रण में नहीं हैं।

मुख्य आकर्षण

यह स्पष्ट है कि चीन की सीमाओं की रक्षा में पीएलए की अग्रणी भूमिका रहेगी, लेकिन अब अर्धसैनिक बलों और अन्य एजेंसियों की भूमिकाओं को भी स्वीकार किया जा रहा है।

इसमे महत्वपूर्ण  बात यह है कि अब सशस्त्र बल “अवैध रूप से सीमा पार करने वाले हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ हथियारों का उपयोग कर सकते हैं, साथ ही बिना अनुमति के सीमाओं के पास ड्रोन और मॉडल हवाई जहाज के उपयोग पर प्रतिबंध लगा सकते हैं।”

क्या चीनी विधायकों ने गलवान घटना को ध्यान में रखा?

निश्चित रूप से कोई भी यह प्रश्न कर सकता है, कि भारत के विरुद्ध हथियारों का उपयोग न करने से संबंधित द्विपक्षीय समझौते का क्या हुआ (जैसे कि 1958 बाराहोती समझौता)। क्या नया कानून लागू होगा या पुराने द्विपक्षीय समझौते प्रबल होंगे?

अब प्रत्येक हितधारक की जिम्मेदारी सुनिश्चित की गयी है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 6  के अनुसार: “विदेश मंत्रालय राष्ट्रीय भू-सीमाओं से संबंधित विदेशी मामलों के लिए जिम्मेदार होगा, राष्ट्रीय भू-सीमाओं के प्रबंधन से संबंधित कार्यों में भाग लेना, विदेशी वार्ता, अनुबंध, कार्यान्वयन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में अग्रणी होगा। साथ ही, वह उन मुद्दों  का समाधान करेगा, जिन्हें राजनयिक चैनलों के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है, और राष्ट्र की सीमाओं और सीमा चिह्नकों के रखरखाव और प्रबंधन को व्यवस्थित करेगा।”

ऐसा प्रतीत होता है कि वार्ताओं का आयोजन करना पीएलए की जिम्मेदारी नहीं है। इसके अलावा, अनुच्छेद 16 में यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य (केंद्र सरकार) और उसके  पड़ोसी “राष्ट्रीय भू -सीमाओं के परिसीमन पर बातचीत और संधियों को समाप्त करें तथा आपसी सहमति एवं समझौतों से राष्ट्रीय भू-सीमाओं के निर्धारण में  तेजी लाये।”

ऐसा लगता है कि  ‘उपनिवेश’ पर बातचीत में पीएलए की भूमिका नहीं है। बातचीत के मौजूदा दौर में इसका अर्थ स्पष्ट नहीं है, लेकिन संभवत बीजिंग (विदेश मंत्रालय पढ़ें) चुशुल/मोल्दो में ‘सैन्य’ वार्ता  की ओर कदम बढ़ायेगा।

अन्य एजेंसियां

साथ ही, “राज्य परिषद के सार्वजनिक सुरक्षा विभाग पर सीमावर्ती क्षेत्रों में सार्वजनिक सुरक्षा का दायित्व  है,  इसके अलावा यह सीमावर्ती  क्षेत्रों के सार्वजनिक, सामाजिक सुरक्षा प्रबंधन को मजबूत करने और सीमा पर अवैध और आपराधिक गतिविधियों को रोकने और उनका मुकाबला करने के लिए मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण कार्य करेगा।”

प्रांतीय सरकारों की जिम्मेदारियां भी परिभाषित की गयी हैं। यह भी स्पष्ट है कि उन्हें इन कानूनी दिशा-निर्देशों से बाहर नहीं जाना है।

लेकिन अनुच्छेद 7 कहता है कि “केंद्रीय सैन्य आयोग के नेतृत्व में, संबंधित सैन्य टुकड़ी  राष्ट्रीय भू-सीमाओं की रक्षा और उनपर नियंत्रण, सामाजिक स्थिरता का रखरखाव, आपात स्थिति से निपटना, सीमा रक्षा सहयोग का आयोजन, निर्देशन,समन्वय और संबंधित  अन्य कार्य  करेगी।”

सीएमसी की प्रमुख भूमिका बनी हुई है

अनुच्छेद 43 जो पहले ही पारित हो चुका है, इसमें भारत और भूटान की सीमाओं पर 600 से अधिक ‘मॉडल’ गांवों के निर्माण को वैधता प्रदान की गयी है। “राज्य सीमावर्ती कस्बों के निर्माण का समर्थन करेगा, सीमावर्ती कस्बों की व्यवस्था में सुधार करेगा और सीमावर्ती कस्बों की क्षमताओं को मजबूत करने का कार्य करेगा।”

ये गांव  रहने के लिए हैं, इसमें कोई शक नहीं

नए कानून का एक स्पष्ट निहितार्थ यह है कि पीएलए, पीएपी, पीएसबी, सीमा रक्षा बल, मिलिशिया, स्थानीय सरकारों के विदेश  मामलों के साथ-साथ चीन के रेल मंत्रालय या जल संसाधन मंत्रालय के साथ साथ विदेश मंत्रालय के  साथ बेहतर समन्वय होगा।

अंततः इसका अर्थ सीमा संघर्ष के मामलों में कहीं अधिक दक्षता हासिल करना है। इसके अलावा, यदि वह सीमा पर एक नया मोर्चा शुरू करने का फैसला करके एक नई पहल करता है (जैसा कि अतीत में हुआ है) तो यह एक कठोर जनरल द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का ख्याल रखेगा।

इस कानून में विशेष रूप से कहा गया है कि चीन की सीमाओं के किनारे पर परिवहन, संचार, निगरानी और रक्षा की बुनियादी सुविधाओं को स्थापित किया जा सकता हैं, लेकिन कोई भी संगठन या व्यक्ति चीन की मंजूरी के बिना सीमाओं के पास मजबूत ढांचे का निर्माण नहीं कर सकता। भारत के लिए, यह स्पष्ट संदेश है कि सीमाओं का प्रभारी कौन है।

अंतत: भले ही नए कानून में कुछ भी नया न हो,  परंतु गंभीर स्थिति उत्पन्न होने पर शी जिनपिंग और उनके सीएमसी सहयोगियो को बेहतर नियंत्रण प्रदान करता है; यह चीन के वर्तमान नकारात्मक प्रभाव को समाप्त कर सकता है और कुछ ‘कानूनी’ स्थिरताएं ला सकता है। भारत को इस पर ध्यान देना होगा।

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लेखक
क्लाउड अर्पी फ्रांसीसी मूल के लेखक, पत्रकार, इतिहासकार और तिब्बत विशेषज्ञ हैं। वह भारत-तिब्बत संबंध (1947-1962) 4 खंडों में और द फेट ऑफ तिब्बत: व्हेन बिग इंसेक्ट्स ईट स्मॉल इंसेक्ट्स सहित कई पुस्तकों के लेखक हैं। उन्होंने तिब्बत, चीन, भारत और भारत-फ्रांस संबंधों पर कई लेख लिखे हैं। वह ऑरोविले में तिब्बती संस्कृति के पवेलियन के निदेशक हैं।

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